Author : Akshay Mathur

Published on Mar 01, 2021 Updated 0 Hours ago

आर्थिक बहुपक्षवाद की प्रभावशीलता, वैश्विक समन्वय के कुच्छेक उदाहरणों, रुख़ में मामूली बदलाव या मतदान के ढांचे को बदलने से नहीं आंकी जा सकती है.

जिओ-इकोनॉमिक्स के लिए अगला दशक

एक दशक तक बिगड़ती आर्थिक बहुपक्षीयता, वैश्वीकरण और वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में आई कमज़ोरी के बाद, अगले दशक में जियो-इकॉनॉमिक्स को परिभाषित करने के लिए तीन प्रमुख बदलाव व गठजोड़ हमारे सामने हैं.

सबसे पहले राज्यों और आर्थिक बहुपक्षवाद के बीच का संबंध है. बहुपक्षीय संस्थानों में विश्वास लगातार कम होने के चलते अपने सबसे बुरे क्षण में पहुंच गया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रमुख ने “न्यू ब्रेटन वुड्स मोमेंट” का ज़िक्र करते हुए, विकासशील देशों की मदद करने के लिए सफल रूप से एक अभूतपूर्व वैश्विक पहल यानी ऋण सेवा निलंबन पहल (Debt Service Suspension Initiative) का नेतृत्व किया. हालांकि, आर्थिक बहुपक्षवाद की प्रभावशीलता, वैश्विक समन्वय के कुच्छेक उदाहरणों, रुख में मामूली बदलाव या मतदान के ढांचे को बदलने से नहीं आंकी जा सकती और इस स्थिति में यह टिकाऊ नहीं होगी. इस के लिए जो ज़रूरी है वह है विकासशील देशों और भारत जैसी उभरती ताक़तों की ओर उन्मुख एक तय एजेंडा.

भारत के पास साल 2021 में ब्रिक्स की आगामी अध्यक्षता, 2021/22 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और 2023 में जी-20 के साथ इस गठजोड़ को नए सिरे से परिभाषित करने और अधिक संवारने का अवसर होगा.

अमेरिका में नए बाइडेन प्रशासन ने पहले ही विश्व व्यापार संगठन, जी-20 और जलवायु परिवर्तन को ले कर अमेरिका द्वारा नए सिरे से इन प्रयासों से जुड़ने का एलान कर दिया है. ऐसे में भारत के पास साल 2021 में ब्रिक्स की आगामी अध्यक्षता, 2021/22 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और 2023 में जी-20 के साथ इस गठजोड़ को नए सिरे से परिभाषित करने और अधिक संवारने का अवसर होगा. भारत सरकार पहले ही ‘सुधारित बहुपक्षवाद’ और ‘जन-केंद्रित वैश्वीकरण’ को ‘वैश्विक जुड़ाव के प्रमुख मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में सामने रख चुकी है. भारत द्वारा गैरक़ानूनी पूंजी प्रवाह से निपटने के लिए एक वैश्विक ढांचे को अमल में लाने की दिशा में लगातार काम किए जाने की संभावना है, खास तौर पर वह पूंजी प्रवाह जो आतंकवाद के वित्तपोषण और धन शोधन को सक्षम बनाता है. साथ ही भारत, डिजिटल बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियमन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक वैश्विक ढांचा विकसित करने को लेकर अपना समर्थन जारी रख सकता है. ब्रिक्स आर्थिक भागीदारी फ्रेमवर्क, 2025 (BRICS Economic Partnership Framework, 2025) जो आर्थिक सहयोग के लिए एक रोडमैप तय करता है, और जिसे इस साल नेताओं द्वारा समर्थन प्राप्त हुआ है, ने भी इस बात का वादा किया है कि अगर इसे सही रूप में संचालित किया जाता है, तो यह गठजोड़ मूल्यवान साबित हो सकता है.

आपूर्ति श्रृंख़ला में फेरबदल

दूसरा, वैश्विक शक्तियों और वैश्विक व्यापार के बीच का संबंध है. अमेरिका व चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध, एक रणनीतिक निर्माण के रूप में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का उदय और भारत व चीन के बीच सीमा पर संघर्ष यह बताता है, कि व्यापार अब इस बात की उम्मीद नहीं कर सकता है कि आर्थिक हित विदेशी नीति के लक्ष्यों से अलग अस्तित्व रख पाएंगे. वैश्विक व्यापारिक इकाईयों को जी-20 और संयुक्त राष्ट्र को को गंभीरता से लेना चाहिए, ठीक उसी तरह जिस तरह वह दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम को लेते हैं.

चीन में अमेरिकी, यूरोपीय और जापानी फर्मों ने अपनी आपूर्ति श्रृंखला में फेरबदल करने का विरोध किया, क्योंकि भू-राजनीतिक संबंध भी बिगड़ गए थे. 

वैश्विक व्यवसायों से अपने निवेश की रक्षा किया जाना अपेक्षित है. चीन की विदेशी कंपनियों ने अपने निर्यात के आधे हिस्से को लेकर तब सजगता दिखाई जब अमेरिकी सरकार ने व्यापार युद्ध के शुरुआती दिनों में उस देश से अपने व्यापार को बाहर निकालने की धमकी दी. अमेरिकी सरकार ने इस बात को महसूस किया कि चीन में स्थित अपनी कंपनियों व व्यापारिक इकाइयों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किए बिना आयात पर प्रतिबंध लगाना मुश्किल है. फिर भी, अमेरिकी विदेश नीति के लक्ष्य नहीं बदले. चीन में अमेरिकी, यूरोपीय और जापानी फर्मों ने अपनी आपूर्ति श्रृंखला में फेरबदल करने का विरोध किया, क्योंकि भू-राजनीतिक संबंध भी बिगड़ गए थे. ऐसे में 10 प्रतिशत से कम फर्मों ने अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को स्थानांतरित किया, जिन में से कुछ ने वियतनाम का रुख किया और बहुत कम संख्या में कुछ भारत भी आईं. इसी तरह, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत द्वारा शुरू की गई आपूर्ति-श्रृंखला प्रतिरोध संबंधी पहल (Supply-Chain Resistance Initiative ) केवल तभी काम करेगी जब सरकारें और फर्म संयुक्त रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए एक वैकल्पिक रणनीति विकसित करें कि वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाएं, बाज़ार और वित्तीय प्रणालियां उनके लिए उपलब्ध हों. फर्मों के लिए नियोजित रूप से किए जाने वाले स्थानांतरण की लागत, निश्चित रूप से भू-राजनीतिक व्यवधानों के कारण होने वाले नुकसान से कम होगी.

अमेरिका व चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध, एक रणनीतिक निर्माण के रूप में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का उदय और भारत व चीन के बीच सीमा पर संघर्ष यह बताता है, कि व्यापार अब इस बात की उम्मीद नहीं कर सकता है कि आर्थिक हित विदेशी नीति के लक्ष्यों से अलग अस्तित्व रख पाएंगे.

यहां तक कि चीन, जिस के राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम देश के आर्थिक राजनयिकों के रूप में काम कर रहे हैं, विदेशों में विस्तार को ले कर अपने दृष्टिकोण को फिर से परिभाषित करने के लिए तैयार हैं. बड़े नीति-नियामक बैंक, निर्माण फर्म और निर्माण इकाइयां चीन के लिए आर्थिक कूटनीति के महत्वपूर्ण साधन हैं. लेकिन संप्रभु बैलेंस शीट्स पर राजकोषीय लागत के चलते वह अब रणनीतिक रूप से चीन के लिए सम्मान नहीं कमा सकते. वैश्विक स्तर पर पहले ही चीनी निवेश में गिरावट की ख़बरें हैं, और इसका चीनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के वित्तपोषण पर सीधा असर पड़ेगा.

भू-राजनीति और बदलता अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचा

तीसरा, भूराजनीति के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे में बदलाव है. ईरान पर अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंधों से पता चला है कि कैसे अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली को भू-राजनीतिक लाभ के लिए अवरुद्ध किया जा सकता है. यूरोप ने अपने भुगतान का चैनल बनाने के लिए ‘इंसटेक्स’ नामक वस्तु-विनिमय प्रणाली (Instrument in Support of Trade Exchanges, INSTEX) को लॉन्च किया,  लेकिन वैश्विक वित्तीय पाइपलाइन में विघटन और विच्छेद के ख़तरे के साथ. इसी तरह, अमेरिका व चीन के बिगड़ते संबंधों ने दिखाया कि कैसे व्यापार को हथियार बनाया जा सकता है. इस ने नए मुद्दों जैसे वाणिज्य और सेवाओं पर बातचीत और समझौतों को भी मुश्किल बना दिया है. वहीं भारत में, साल 2020 में चीनी ऐप्स पर लगाए गए प्रतिबंध एक ऐसे देश के ख़िलाफ़ सोची समझी आर्थिक कार्रवाई थी, जो लगातार भारत के साथ, शत्रुतापूर्ण, अपमानजनक और गैर-पारस्परिक व्यवहार कर रहा है. इस ने यह बात याद दिलाई कि डिजिटल बहुराष्ट्रीय कंपनियां भू-राजनीतिक प्रभावों से अछूती नहीं हैं. समान विचारधारा वाले देशों के बीच जियो-इकॉनॉमिक्स यानी भू-आर्थिक गठबंधन उभर रहे हैं. जी-7 देशों से सामने आए जी-10 गठबंधन का उद्भव, वैकल्पिक वैश्विक वित्तीय वास्तुकला विकसित करने की दिशा में उठाए गए क़दम को इंगित करता है जो कि एकपक्षीय ढांचे में लोकतंत्रों के भौगोलिक आर्थिक हितों को साथ सकता है, जो मौजूदा वैश्विक, बहुपक्षीय ढांचे से बेहतर है और जिसे लेकर चीन और अन्य प्रतिस्पर्धी देशों द्वारा महारत हासिल का जा चुकी है. समान विचारधारा वाले लोकतंत्रों के बीच आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर ग्लोबल पार्टनरशिप (Global Partnership on Artificial Intelligence) का उद्देश्य भी यही है.

जी-7 देशों से सामने आए जी-10 गठबंधन का उद्भव, वैकल्पिक वैश्विक वित्तीय वास्तुकला विकसित करने की दिशा में उठाए गए क़दम को इंगित करता है जो कि एकपक्षीय ढांचे में लोकतंत्रों के भौगोलिक आर्थिक हितों को साथ सकता है, जो मौजूदा वैश्विक, बहुपक्षीय ढांचे से बेहतर है और जिसे लेकर चीन और अन्य प्रतिस्पर्धी देशों द्वारा महारत हासिल का जा चुकी है. 

वैश्विक आर्थिक प्रणाली और भू-राजनीतिक विश्व व्यवस्था के भविष्य को लेकर कुछ भी कहने से पहले इन वास्तविकताओं का अध्ययन आवश्यक है. यदि भारत इन वास्तविकताओं को साथ सकता है और इन्हें नए सिरे से आकार दे सकता है, तो यह नए उभरते हुए वैश्विक वित्तीय, आर्थिक, डिजिटल और भू-राजनीतिक एकीकरण से लाभान्वित होगा.

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