Author : Shoba Suri

Published on Dec 08, 2020 Updated 0 Hours ago

साल 2020 की शुरुआत में, लगभग 690 मिलियन लोग कुपोषित थे. कोविड-19 की महामारी के चलते यह संख्य़ा अब 130 मिलियन तक बढ़ सकती है.

खाद्य व्यवस्था पर कोविड-19 महामारी का लिंग आधारित प्रभाव

लॉकडाउन, यात्राओं पर लगे प्रतिबंध और गैर-आवश्यक व्यापार व स्कूलों के बंद होने जैसी प्रमुख रुकावटों के चलते कोविड-19 ने हमारे जीवन और हमारी आजीविका को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है. साल 2020 की शुरुआत में, लगभग 690 मिलियन लोग कुपोषित थे. कोविड-19 की महामारी के चलते यह संख्य़ा अब 130 मिलियन तक बढ़ सकती है. खाद्य क्षेत्र और खाद्य व्यवस्था न केवल, खाद्य और पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने और इस क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा बनाए रखने के लिए ज़रूरी है, बल्कि आर्थिक सशक्तिकरण में भी इसकी मुख्य़ भूमिका है. महामारी ने सभी स्तरों पर खाद्य प्रणालियों को प्रभावित किया है यानी विश्व स्तर पर, घरेलू स्तर पर और स्थानीय स्तर पर भी. कोविड-19 के संकट से महिलाएं व पुरुष अलग-अलग रूप में प्रभावित हुए हैं. विडंबना यह है कि अधिकांश महिलाएं और लड़कियां, घरों के लिए पोषण सुनिश्चित करने व खाद्य निर्माता और प्रदाता के रूप में अपनी भूमिका निभाती हैं, लेकिन देश में खाद्य असुरक्षा और भुखमरी का खामियाज़ा भी सबसे अधिक महिलाएं ही भुगतती हैं. खाद्य क्षेत्र में यह लिंग अंतर शिक्षा, ग़रीबी और बेरोज़गारी के चलते और व्यापक हो जाता है. कोविड-19 की महामारी ने भोजन की कमी को पोषण में कमी को जन्म दिया है, जो उन महिलाओं पर अतिरिक्त भार डालता है, जो पहले से ही स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों से लेकर लिंग-आधारित हिंसा तक का सामना कर रही हैं. महामारी ने खाद्य प्रणाली की खामियों को उजागर किया है, जिसने व्यापक रूप से महिलाओं को प्रभावित किया है, ख़ासतौर पर विकासशील देशों में.

कोविड-19 के संकट से महिलाएं व पुरुष अलग-अलग रूप में प्रभावित हुए हैं. विडंबना यह है कि अधिकांश महिलाएं और लड़कियां, घरों के लिए पोषण सुनिश्चित करने व खाद्य निर्माता और प्रदाता के रूप में अपनी भूमिका निभाती हैं

विकासशील देशों में, कृषि क्षेत्र में काम करने वालों में लगभग 43 प्रतिशत महिलाएं हैं. दुनियाभर के अधिकांश खाद्य उत्पादकों में महिलाएं और लड़कियां शामिल हैं. लॉकडाउन के साथ कृषि उपज के लिए पैदा हुए ख़तरों और बाज़ार बंद होने के कारण, प्राथमिक खाद्य उत्पादकों के रूप में यह महिलाएं व लड़कियां अपनी उत्पादकता और आय पर भारी असर पड़ने के चलते सबसे अधिक जोख़िम में हैं. कोविड-19 ने वर्तमान खाद्य प्रणाली में मौजूद असमानताओं को और भी अधिक उजागर किया है. लॉकडाउन व यात्रा संबंधी प्रतिबंधों के चलते, महिलाओं की उत्पादकता में गिरावट आई है और वह कई मायनों में सबसे गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं. वर्तमान में, महिलाएं समुद्री खाद्य उद्योग (sea food industry) में विश्व की लगभग आधी श्रम शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो उन्हें इस संकट के समय और अधिक जोख़िम में डालता है. इसके अलावा, अनौपचारिक श्रम क्षेत्र में मज़दूरी का काम करने वाली महिलाओं के पास बेहद कम या ज़्यादातर मामलों में कोई भी सुरक्षा तंत्र उपलब्ध नहीं है. महामारी ने उनके लिए रोज़गार के अवसर कम किए हैं, और आय में हुई इस कमी के चलते, भोजन और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच बुरी तरह प्रभावित हुई है. इसके अलावा, एक रिपोर्ट के मुताबिक निम्न-मध्यम आय वाले देशों में केवल 54 प्रतिशत महिलाओं के पास, मोबाइल इंटरनेट उपलब्ध है. यही वजह है कि ऑनलाइन माध्यमों की बढ़ती ज़रूरत के बीच, लैंगिक आधार पर व्यापक होती इस डिजिटल खाई में, महिलाओं के बहुत हद तक पीछे छूट जाने की संभावना है.

महिलाएं अधिक से अधिक अवैतनिक काम कर रही हैं, और अक्सर उनके द्वारा किए जाने वाला प्रजनन कार्य और देखभाल संबंधी काम अनदेखा रह जाता है. महामारी, घरेलू स्तर पर लैंगिक असमानताओं को भी उजागर कर रही है, यानी घर की साफ़-सफ़ाई, खाना पकाने और बच्चों की देखभाल सहित की तरह के काम जो पूरी तरह से अवैतनिक हैं वह आमतौर पर महिलाओं के खाते में हैं. कोविड-19 के चलते लगाए गए लॉकडाउन और घर से काम करने ने उत्पादक और देखभाल संबंधी कामों को घर के भीतर एक मंच पर ला दिया है. महामारी के साथ, महिलाओं द्वारा भुगतान की एवज़ में किए जाने वाले श्रम (paid labour) और अवैतनिक श्रम (unpaid labour) में वृद्धि हुई है, क्योंकि बड़ी संख्य़ा में महिलाएं, शिक्षकों, परिवारों की देखभाल करने वालों और नर्सों के रुप में काम कर रही हैं. हालांकि, देखभाल संबंधी यह काम अक्सर नज़रअंदाज किए जाते हैं, और इन पर किसी का ध्यान नहीं जाता, न ही इन कामों का कोई मूल्यांकन हो पाता है.

कोविड-19 के चलते लगाए गए लॉकडाउन और घर से काम करने ने उत्पादक और देखभाल संबंधी कामों को घर के भीतर एक मंच पर ला दिया है. 

मज़दूरों के पलायन से समस्या बढ़ी

कोविड-19 के चलते लगाए गए लॉकडाउन से, बड़ी संख्य़ा में शहरों से हुए पलायन ने मज़दूरों की कमी पैदी की. इस कमी और कम उत्पादकता के कारण किसानों को सबसे ख़राब अनुभव हुआ है. इसके चलते खुदरा विक्रेता भी प्रभावित हुए हैं, जो विकासशील देशों के अधिकांश हिस्सों में मुख्य रूप से महिलाएं हैं. इसका प्रभाव ग्रामीण महिलाओं पर भी पड़ा है, जो कृषि मूल्य श्रृंखलाओं और खाद्य प्रणाली में पैदा हुई रुकावटों के चलते नुकसान भुगत रही हैं.

इस संबंध में एकत्रित किए गए साक्ष्य बताते हैं कि परिवारों ने इस संकट के दौरान इससे उबरने के लिए कई तरह की रणनीतियों को अपनाया है, जैसे कम भोजन खरीदना और भोजन की खपत को कम करना. महिलाओं को अक्सर भोजन और पोषण में आ रही इस कमी और इस कटौती के बोझ का सामना करना पड़ता है. लगातार कम भोजन खाने से उनके स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है. इस तरह की घरेलू खाद्य असुरक्षा महिलाओं को कुपोषण के चक्र तक ले जाती है, जो एक से दूसरी पीढ़ी को प्रभावित करता है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agricultural Organisation) के अनुसार, अधिकतर मामलों में परिवारों व समाज में फैले कुपोषण का चेहरा महिला ही होती है’, भले ही कुपोषण को कम करने के लिए घरेलू स्तर पर महिलाएं एक अनूठी स्थिति में हैं. इसके साथ ही घटते पोषण के चलते, महिलाओं में ‘एनीमिया’ (anaemia) यानी खून की कमी की संभावना  भी बढ़ जाती है, जो आगे चलकर सीखने की क्षमता और उत्पादकता पर असर डालती है. विकासशील देशों में शारीरिक क्षमता में आई यह कमी और इसके चलते घटती उत्पादकता की स्थिति, सकल घरेलू उत्पाद में सालाना 4.05 प्रतिशत का नुकसान पैदा कर सकती है.

महिला नेतृत्व से स्थिति में बदलाव

महिलाएं चेंजमेकर्स (changemakers) हैं, यानी वो घटक जो बदलाव की बयार लेकर आते हैं, और यही वजह है कि उन्हें समाधान के एक हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए. महिलाओं की बेहतरी के लिए गए निवेश (जिसमें 1 डॉलर का निवेश 31 डॉलर का लाभ प्राप्त कर सकता है) से महिला खुद, उसका परिवार और समुदाय सभी लाभान्वित होते हैं. कोविड-19 से निपटने के लिए बनाई गई नीतिगत प्रतिक्रियाओं में, खाद्य व्यवस्था और प्रजनन देखभाल जैसे कामों में लैंगिक मानदंडों को नज़रअंदाज़ किया गया है. खाद्य प्रणालियों और घरेलू खाद्य सुरक्षा में महिलाओं की भूमिका को, कोविड-19 के परिणामों को संबोधित करने के लिए और इस संबंध में नीतियां बनाने के लिए, ध्यान में रखा जाना चाहिए. यह बात सामने आई है कि सामाजिक और व्यवहारिक बदलाव ने कोविड-19 की महामारी से निपटने के तरीकों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है.

इस महामारी के दौरान यह मिलाजुला संबंध स्पष्ट रूप से सामने आया है, ख़ासतौर पर उन देशों में जहां नेतृत्व महिलाओं के हाथों में है. इन महिला नेताओं ने कोविड-19 के संकट का प्रबंधन करने की बेहतर क्षमता दिखाई है.

खाद्य प्रणालियों में लैंगिक असमानता और महिलाओं व पुरुषों की अलग-अलग भूमिकाओं को देखते हुए, इस संबंध में नीतियां बनाए जाने की तत्काल आवश्यकता है. महिलाओं की बेहतरी के लिए निवेश करना और इन नीतियों में भागीदारी के लिए उन्हें सशक्त बनाने में योगदान देना इस संकट को दूर करने में मदद कर सकता है. इस महामारी के दौरान यह मिलाजुला संबंध स्पष्ट रूप से सामने आया है, ख़ासतौर पर उन देशों में जहां नेतृत्व महिलाओं के हाथों में है. इन महिला नेताओं ने कोविड-19 के संकट का प्रबंधन करने की बेहतर क्षमता दिखाई है. दीर्घकालिक रूप से लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए, महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित रखने, उनके सशक्तिकरण और लैंगिक समानता को महामारी से बचाव और उससे निपटने की प्रतिक्रिया के रूप में समझना महत्वपूर्ण है. लैंगिक असमानताओं को संबोधित करने से महिलाओं के सामने आने वाली समस्याओं का महत्वपूर्ण विश्लेषण हो पाएगा, और इन बाधाओं को दूर करने व संबंधित समूहों के लिए बेहतर पोषण को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. इससे उनके जीवन स्तर और आजीविका में भी सुधार होगा. यदि ऐसा नहीं किया गया तो कोविड-19 की महामारी के अलावा, वैश्विक समुदाय को संभावित रूप से भूख़मरी की महामारी से भी निपटना होगा.

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