लेकिन शहरों की तरफ़ लोगों का आना एक समान नहीं रहा है. शहरों में रहने वाले लोगों का बड़ा हिस्सा महानगरों और बड़े शहरों में है. 600 बड़े शहरों में दुनिया की 20 प्रतिशत आबादी रहती है. ये स्वाभाविक है कि आबादी में इस बदलाव के साथ शहर, ख़ासतौर पर बड़े शहर अपने-अपने देश के मामलों में प्रमुख स्थान हासिल करेंगे क्योंकि वो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को ताक़त देंगे. आर्थिक मामलों में बड़े शहरों की प्रबल भूमिका होती है क्योंकि वो अपने देश के लिए सबसे ज़्यादा संपत्ति उत्पन्न करते हैं. शहरों में जहां दुनिया की आधी से थोड़ी ज़्यादा आबादी रहती है लेकिन शहर वैश्विक जीडीपी में 80 प्रतिशत से ज़्यादा योगदान देते हैं. दुनिया के 600 बड़े शहरी केंद्रों में 20 प्रतिशत आबादी रहती है लेकिन वो वैश्विक जीडीपी में 60 प्रतिशत का योगदान देते हैं.
महामारी, जलवायु परिवर्तन, वायु और जल प्रदूषण, अपराध, ग़रीबी और जीवन की गुणवत्ता जैसे मुद्दों के मामले में भी शहर सबसे महत्वपूर्ण हैं. वो उसी तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो टिकाऊ शहरीकरण के लिए ख़तरा हैं.
लेकिन सिर्फ़ अर्थव्यवस्था की वजह से ही शहर अलग नहीं हैं. वैज्ञानिक रिसर्च, तकनीकी आधुनिकता और इनोवेशन का उदय, और कला, वास्तुकला, संस्कृति और पर्यटन- हर चीज़ शहरों की तरफ़ खिंची है. इसीलिए कई मायनों में शहरों में जो होता है और शहरों को जो होता है वो राष्ट्रीय सरकारों के लिए बड़ी चिंता बन जाते हैं. वैश्विक अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और प्रतिस्पर्धा भी तेज़ी से शहरों से प्रभावित होंगे.
महामारी, जलवायु परिवर्तन, वायु और जल प्रदूषण, अपराध, ग़रीबी और जीवन की गुणवत्ता जैसे मुद्दों के मामले में भी शहर सबसे महत्वपूर्ण हैं. वो उसी तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो टिकाऊ शहरीकरण के लिए ख़तरा हैं. कोविड-19 महामारी ने दिखाया है कि शहर महामारियों को फलने-फूलने की अच्छी जगह मुहैया कराते हैं. वर्तमान में शहर 70 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैस का उत्पादन करते हैं और दुनिया की ऊर्जा और संसाधनों में से 75 प्रतिशत की खपत करते हैं. दुनिया के पर्यावरण को शहरों से ख़तरा बढ़ रहा है. यूएन-हैबिटैट की वर्ल्ड सिटीज़ रिपोर्ट के मुताबिक़, “शहरी क्षेत्रों का अनियंत्रित विस्तार ऊर्जा की खपत, ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण की दुर्दशा के लिए बेहद गंभीर असर है.” शहर संगठित अपराध के अड्डे भी बन गए हैं और आमतौर पर अपराध के लिए ज़्यादा झुकाव रखते हैं. शहर तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी, रोज़ाना लंबी दूरी की यात्रा और अनियमित काम के घंटे को भी बढ़ावा देते हैं जिसका नतीजा तनावपूर्ण माहौल और अस्वस्थ खाने-पीने की आदत के रूप में सामने आता है. लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियां जैसे मोटापा, डाइबिटीज़ और हाइपर टेंशन, और मनोवैज्ञानिक बीमारियां शहरों में अपना घर बसा लेती हैं. असमानता भी चिंता की एक वजह है. बड़े शहरों में घरों की काफ़ी कमी है और ग़रीब वहां झुग्गियों में रहते हैं.
वैश्विक विकास और शहरों की भूमिका
वैश्विक विकास के मुद्दों के मामले में शहरों में ज़्यादा समानता है. अपने-अपने शहरों की तरफ़ से सभी देशों ने संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) को लागू किया है. दुनिया भर में सैकड़ों शहर सिस्टर सिटी के संबंध में बंधे हुए हैं. वो क्षेत्रीय और कार्य क्षेत्र आधारित साझेदारी के हिस्से हैं और समय-समय पर पारस्परिक प्रासंगिक मुद्दों पर चर्चा के लिए इकट्ठा होते हैं. शहरों के मंच जैसे संयुक्त शहरी और स्थानीय सरकार, राष्ट्रमंडल स्थानीय सरकारी मंच, निरंतरता के लिए स्थानीय सरकार, शहरों का राष्ट्रीय लीग और कई अन्य बहु-शहरी संगठन काम कर रहे हैं. इसके अलावा, दुनिया भर के शहर एक जैसी नगरपालिका संबंधी काम करते हैं. कुछ शहर ज़्यादा काम कर सकते हैं और कुछ शहर कम लेकिन सभी शहरों की मुख्य़ ज़िम्मेदारी एक जैसी रहती है. रोज़ाना की ज़िंदगी के लिए ज़रूरी चीज़ें शहरों की ज़िम्मेदारी के तहत आती हैं. वेस्ट मैनेजमेंट, पानी और सीवरेज, सड़क, स्ट्रीट लाइट, घर, खुला क्षेत्र, आर्थिक और कमर्शियल क्षेत्र, शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन- सभी नगरपालिका के काम हैं.
दुनिया के दूसरे हिस्सों में शहर ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जहां सरकार के द्वारा नियुक्त कमिश्नर नगरपालिका के संचालन का ज़िम्मा संभालते हैं और नगरपालिका पर मज़बूती से सरकार का नियंत्रण होता है. इन शहरों में मेयर औपचारिक और गौण भूमिका निभाते हैं.
वास्तव में गवर्नेंस के क्षेत्र में मूलभूत विभिन्नता बनी रहती है. जो देश व्यापक विकेंद्रीकरण (ज़्यादातर पश्चिम में) से गुज़र चुके हैं वहां शहरों में मज़बूत सत्ता है और वो ज़्यादा स्वतंत्रता और स्वायत्तता के साथ काम करते हैं. ऐसे शहरों में आमतौर पर सशक्त और सीधे तौर पर चुने मेयर मुख्य़ कार्यकारी के तौर पर होते हैं जिनके पास फ़ैसले लेने की बहुत ज़्यादा ताक़त होती है. दुनिया के दूसरे हिस्सों में शहर ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जहां सरकार के द्वारा नियुक्त कमिश्नर नगरपालिका के संचालन का ज़िम्मा संभालते हैं और नगरपालिका पर मज़बूती से सरकार का नियंत्रण होता है. इन शहरों में मेयर औपचारिक और गौण भूमिका निभाते हैं. शहरी योजना और किस हद तक शहरी सरकार अपने काम-काज और योजना की प्रक्रिया में अपने नागरिकों के साथ भागीदारी करें, उसको लेकर शहरों के दृष्टिकोण में भी विभिन्नता है. शहरों को पैसे मिलने के तरीक़े और उसकी सीमा को लेकर भी विभिन्नताएं हैं. कुछ देशों में केंद्रीय करों को अपने शहरों के साथ साझा किया जाता है जबकि बाक़ी में ऐसा नहीं होता. उन देशों में नगरपालिकाओं को स्थानीय स्तर पर कुछ करों की वसूली करने की इजाज़त दी जाती है.
लेकिन ये विभिन्नताएं उनके काम-काज में ज़बरदस्त ढंग से समानता, मानवीय मामलों में उनकी बढ़ती अहमियत और उनकी चुनौतियों से पिछड़ जाती हैं. इसलिए इस बात की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है कि एक ऐसा वैश्विक मंच होना चाहिए जहां शहर एक-दूसरे से सीख सकें, अपनी अच्छी कार्यप्रणाली को साझा कर सकें, चुनौतियों पर चर्चा कर सकें और साथ मिलकर समाधान की तलाश कर सकें. उनके पास ऐसे मंच पर अपनी सफलताओं और इनोवेशन को साझा करने का मौक़ा होगा. एक-दूसरे को वो ये बता सकेंगे कि उनकी कोई ख़ास पहल क्यों कामयाब हुई और दूसरी पहल क्यों नाकाम हुई. सबसे बढ़कर, अगर दो-तिहाई वैश्विक आबादी शहरों में रहेगी, वैश्विक अर्थव्यवस्था में शहरों का योगदान 80 प्रतिशत होगा और अगर वैश्विक निरंतरता में बड़ी चुनौतियां शहरों से निकलेंगी तो निश्चित रूप से अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता, जैसे कि ग्रुप ऑफ ट्वेंट (जी20) की, उस वक़्त तक फलीभूत नहीं होंगी जब तक कि शहर इस कोशिश में बड़े भागीदार नहीं होंगे.
जी20 ने अपनाये संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे
जी20 की कल्पना अंतर्राष्ट्रीय और आर्थिक स्थिरता पर विचार करने के लिए की गई थी. समय बीतने के साथ ये टिकाऊ विकास, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन, ऊर्जा, पर्यटन, आतंकवाद, भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे ज़रूरी वैश्विक मुद्दों की चर्चा के लिए बड़ा मंच बन गया है. इनमें से हर मुद्दा शहर केंद्रित है और इनका समाधान शहरों में होने वाली कार्रवाई के ज़रिए किया जा सकता है.
जी20 के नेताओं ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते और टिकाऊ विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र के 2030 के एजेंडे को अपनाया है. संयुक्त राष्ट्र के 2030 के एजेंडे में शहरों और इंसानी बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित, लचकदार और टिकाऊ (एसडीजी 11) बनाने की बातें हैं.
जी20 के नेताओं ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते और टिकाऊ विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र के 2030 के एजेंडे को अपनाया है. संयुक्त राष्ट्र के 2030 के एजेंडे में शहरों और इंसानी बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित, लचकदार और टिकाऊ (एसडीजी 11) बनाने की बातें हैं. दुर्भाग्य ये है कि शहरों, ख़ासतौर पर विकासशील दुनिया के शहरों, के पास पैसा, संस्थागत क्षमता और ऐसा मंच नहीं है जो साझा चुनौतियों के वैश्विक समाधान की दिशा में उन्हें भागीदार बना सके. इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि शहरों को समर्थ बनाया जाए. ये तभी संभव है जब जी20 के तहत ‘सिटीज़ 20’ समूह बनाया जाए जहां शहर स्थानीय स्तर पर जी20 के लक्ष्यों को पूरा कर सकें. इस तरह वो वैश्विक परिवर्तन में साझेदार बन सकेंगे. ये समूह भी मौजूदा जी20 समूह के साथ काम करेगा. स्थानीय सरकार को वैश्विक परिवर्तन के एजेंट के रूप में मान्यता मिलेगी. इस तरह 2030 के एजेंडे पर जी20 की कार्य योजना को लागू करने के लिए शहरों को क़ानूनी तौर पर स्वीकार किया जाएगा.
ये लेख — कोलाबा एडिट सीरीज़ का हिस्सा है.
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