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खाद्य असुरक्षा कई G20 देशों में एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है; इस मुद्दे के समाधान के लिए संगठित प्रयासों की आवश्यकता है.
विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं होने के बावजूद खाद्य असुरक्षा कुछ G20 देशों में एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है. कोविड-19 महामारी ने इस समस्या को कई देशों में बढ़ा दिया है, विशेष रूप से उन देशों में जहां पहले से खाद्य सुरक्षा की चुनौतियां थी.
G20 देशों में कोविड-19 और यूक्रेन संघर्ष- दोनों का काफ़ी प्रभाव पड़ा है. महामारी ने खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को अस्त-व्यस्त किया है जिसकी वजह से कुछ क्षेत्रों में अनाज की कमी और क़ीमत में बढ़ोतरी हुई है. लॉकडाउन और यात्रा पर पाबंदियों ने भी किसानों को अपना उत्पाद बेचने और उपभोक्ताओं के लिए खाद्य उपलब्धता में कठिनाई पैदा की है. महामारी के आर्थिक असर, जिनमें नौकरियों का जाना और आमदनी में कमी शामिल है, ने बहुत से लोगों के लिए अनाज पर खर्च करना मुश्किल बना दिया है जिसके कारण खाद्य असुरक्षा और कुपोषण में बढ़ोतरी हुई है. युद्ध और संघर्ष की परिस्थितियों ने कृषि उत्पादन में व्यवधान पैदा किया है, बुनियादी ढांचे एवं बाज़ारों को बर्बाद किया है और विस्थापन एवं अनाज की कमी जैसे हालात बनाए है. युद्ध और संघर्ष की वजह से विस्थापन ने भी आजीविका के नुक़सान और अनाज की उपलब्धता में कमी की परिस्थितियां पैदा की है.
भारत, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका उन G20 देशों में शामिल है जहां सबसे ज़्यादा अल्पपोषण है. इनमें बच्चों में उचित विकास नहीं होना, उनका कम वज़न और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी शामिल है
कुपोषण और खाद्य असुरक्षा के बीच गहरा संबंध है; भरपूर और पौष्टिक आहार की अपर्याप्त उपलब्धता ने दोनों मुद्दों को बढ़ाने में काफ़ी हद तक योगदान दिया है. कुपोषण एक जटिल मुद्दा है जिसमें अल्पपोषण और ज़रूरत से ज़्यादा पोषण- दोनों शामिल हैं. वैसे तो कुपोषण कई G20 देशों में एक बड़ी चुनौती बना हुआ है लेकिन विशेष परिस्थिति अलग-अलग देशों में बदलती है. भारत, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका उन G20 देशों में शामिल है जहां सबसे ज़्यादा अल्पपोषण है. इनमें बच्चों में उचित विकास नहीं होना, उनका कम वज़न और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी शामिल है. ज़्यादा आमदनी वाला देश होने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में भी अल्पपोषण की समस्या है, विशेष रूप से मूल निवासियों के बीच. कुछ G20 देशों जैसे कि ब्राज़ील और मेक्सिको में अल्पपोषण की समस्या कम हो रही है लेकिन अभी भी जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को ये प्रभावित करता है. दूसरी तरफ़ ज़रूरत से ज़्यादा पोषण कई G20 देशों में एक बढ़ती हुई समस्या है, ख़ास तौर से उन देशों में जहां आमदनी का स्तर और शहरीकरण की दर अधिक है. अमेरिका और मेक्सिको दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां मोटापे की समस्या सबसे ज़्यादा है. ये समस्या ब्राज़ील, चीन और भारत जैसे देशों में भी बढ़ रही है. कुल मिलाकर G20 देशों में कुपोषण और खाद्य असुरक्षा की समस्याओं का समाधान करने के लिए एक बहुआयामी और समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी जिसमें खाद्य उपलब्धता को बेहतर करने पर ध्यान हो, स्वस्थ आहार एवं जीवनशैली को बढ़ावा मिले और ग़रीबी एवं असमानता का समाधान हो.
आंकड़ा 1: ज़रूरत से कम पोषण की व्यापकता (जनसंख्या के प्रतिशत में)
विश्व बैंक के ताज़ा उपलब्ध आंकड़े, जो कि वर्ष 2020 का है, के अनुसार G20 देशों में आवश्यकता से कम पोषण की व्यापकता अलग-अलग है. कुछ G20 देशों (जैसे कि अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया) में जहां ज़रूरत से कम भोजन की समस्या का स्तर बहुत कम है, वहीं कुछ देशों में ये समस्या काफ़ी व्यापक है, विशेष रूप से सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में मौजूद अफ्रीकी देशों और दक्षिण एशिया में. आंकड़ा 1 चुनिंदा G20 देशों में अल्पपोषण की व्यापकता को दिखाता है जिसे जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया गया है. भारत में दुनिया के सबसे ज़्यादा कुपोषित लोग है और भारत के बाद दक्षिण अफ्रीका का स्थान है. मेक्सिको दुनिया की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन वहां खाद्य असुरक्षा का स्तर ज़्यादा है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में. इंडोनेशिया ने हाल के वर्षों में भुखमरी की समस्या को कम करने के मामले में प्रगति की है लेकिन इसके बावजूद खाद्य असुरक्षा एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. ब्राज़ील दुनिया के सबसे बड़े खाद्य उत्पादों में से एक है लेकिन तब भी वहां के लोग भुखमरी और कुपोषण से जूझते है. वैसे तो परिस्थिति अलग-अलग देशों के हिसाब से भिन्न है लेकिन ये स्पष्ट है कि खाद्य असुरक्षा एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है जिसका समाधान करने के लिए सरकार, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सिविल सोसाइटी की तरफ़ से संगठित कार्रवाई की आवश्यकता है.
ब्राज़ील दुनिया के सबसे बड़े खाद्य उत्पादों में से एक है लेकिन तब भी वहां के लोग भुखमरी और कुपोषण से जूझते है. वैसे तो परिस्थिति अलग-अलग देशों के हिसाब से भिन्न है लेकिन ये स्पष्ट है कि खाद्य असुरक्षा एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है
खाद्य सुरक्षा के लिए कई चुनौतियां है जिनका सामना G20 के देश अपने यहां और वैश्विक स्तर पर करते है:
जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती है क्योंकि जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम में काफ़ी उतार-चढ़ाव देखा जाता है जैसे कि सूखा और बाढ़. इस तरह का मौसम फसलों और अनाज उत्पादन को बर्बाद कर सकता है.
जनसंख्या बढ़ोतरी: 2050 तक दुनिया की जनसंख्या 9.7 अरब होने की उम्मीद है. इतनी बड़ी आबादी खाद्य उत्पादन और वितरण पर काफ़ी दबाव डालेगी.
पानी की कमी: पानी की कमी खाद्य सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है, ख़ास तौर पर बंजर और अर्ध-बंजर क्षेत्रों में.
संघर्ष एवं राजनीतिक अस्थिरता: संघर्ष एवं राजनीतिक अस्थिरता खाद्य उत्पादन और वितरण में बाधा पैदा कर सकती है जिसके कारण खाद्य की कमी और भुखमरी की परिस्थितियां बन सकती है.
व्यापार की बाधाएं: व्यापार की बाधाएं, जैसे कि टैरिफ और आयात प्रतिबंध, अलग-अलग देशों के सामने अनाज और कृषि उत्पादों की उपलब्धता मुश्किल बना सकती हैं, विशेष रूप से विकासशील देशों में.
कुल मिलाकर G20 अलग-अलग पहल और सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों एवं सिविल सोसायटी के साथ सहयोग के माध्यम से खाद्य एवं पोषण संबंधी सुरक्षा की जटिल चुनौतियों का समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध है. हाल के वर्षों में की गई दो महत्वपूर्ण पहल हैं मटेरा घोषणापत्र और संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन. मटेरा घोषणापत्र को सितंबर 2021 में इटली के मटेरा में G 20 देशों के कृषि मंत्रियों की बैठक में अपनाया गया था. ये घोषणा पत्र कृषि-खाद्य प्रणाली के लचीलेपन और निरंतरता को मज़बूत करने, वैश्विक सहयोग बढ़ाने, कम ज़मीन पर खेती करने करने वाले किसानों का समर्थन करने और अनाज की बर्बादी एवं नुक़सान को कम करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है. सितंबर 2021 में आयोजित संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन ने एक-दूसरे से जुड़ी खाद्य सुरक्षा, पोषण और निरंतरता की चुनौतियों को समाधान करने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र, सिविल सोसायटी और दूसरे भागीदारों को एक साथ लाने का काम किया. इस शिखर सम्मेलन में पांच कार्रवाई पर ध्यान दिया गया: सभी के लिए सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्य की उपलब्धता को सुनिश्चित करना; सतत उपभोग के स्वरूप की तरफ़ बदलाव; प्रकृति के लिए सकारात्मक उत्पादन को बड़ी मात्रा में बढ़ावा; न्यायसंगत आजीविका एवं मूल्य वितरण को आगे करना और कमज़ोरियों, झटकों एवं दबाव के प्रति लचीलेपन का निर्माण करना.
संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन ने एक-दूसरे से जुड़ी खाद्य सुरक्षा, पोषण और निरंतरता की चुनौतियों को समाधान करने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र, सिविल सोसायटी और दूसरे भागीदारों को एक साथ लाने का काम किया.
G20 ने खाद्य सुरक्षा से जुड़ी दूसरी पहल भी की हैं जैसे कि कृषि बाज़ार सूचना प्रणाली (AMIS) जिसका उद्देश्य बाज़ार की पारदर्शिता को बढ़ाना एवं खाद्य उत्पादों की क़ीमत में उतार-चढ़ाव को कम करना और वैश्विक कृषि एवं खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम (GAFSP) को तैयार करना है. ये कार्यक्रम विकासशील देशों में कम ज़मीन पर खेती करने करने वाले किसानों के समर्थन के लिए फंडिंग मुहैया कराने का काम करता है.
चूंकि भारत के पास G20 की अध्यक्षता है, ऐसे में खाद्य असुरक्षा के मुद्दे का समाधान करने के लिए उसके पास महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है.
कुल मिलाकर खाद्य असुरक्षा बहुत से G20 देशों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है और कई तरह के उपायों, जिनमें सेहतमंद और पौष्टिक आहार की उपलब्धता में सुधार, स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा और सामाजिक संरक्षण के कार्यक्रमों में निवेश शामिल है, के माध्यम से इस मुद्दे का समाधान करने के लिए संगठित प्रयासों की आवश्यकता है.
शोभा सूरी ORF की हेल्थ इनिशिएटिव के साथ सीनियर फेलो है.
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Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...
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