भारत एक दिसंबर 2022 से G20 की अध्यक्षता कर रहा है. कोविड-19 महामारी के प्रभाव, रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से चल रही भू-राजनीतिक तनातनी और वैश्विक खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा के सामने खड़ी चुनौतियों के बीच भारत ने अपनी अध्यक्षता में एक समावेशी प्रशासन का नज़रिया अपनाया है. भारत ने G20 के मंच का इस्तेमाल बहुपक्षीयवाद को मज़बूती देने और अंतरराष्ट्रीय वार्ता प्रक्रिया को नया आकार देकर और विकासशील देशों के टिकाऊ विकास की प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाते हुए महत्वपूर्ण योगदान देने की कोशिश की है.
भारत ने G20 के मंच का इस्तेमाल बहुपक्षीयवाद को मज़बूती देने और अंतरराष्ट्रीय वार्ता प्रक्रिया को नया आकार देकर और विकासशील देशों के टिकाऊ विकास की प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाते हुए महत्वपूर्ण योगदान देने की कोशिश की है.
1999 में G20 का गठन, 1997 के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के बाद हुआ था. शुरुआत में ये वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों का संगठन था जो वैश्विक वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए नीतियों पर चर्चा करते थे. 2008 के वैश्विक वित्तीय और बैंकिंग संकट इसके लिए एक अहम मोड़ साबित हुआ. तब पहलाG20 शिखर सम्मेलनआयोजित किया गया था. आज G20 बहुत से विषयों पर चर्चा का मंच बन चुका है. इनमें ग़रीबी और असमानता, वित्तीय स्थिरता और क़र्ज़ में राहत जैसे मुद्दे थामिल हैं. ये सारे विषय संयुक्त राष्ट्र संघ के टिकाऊ विकास के एजेंडे के लक्ष्यों (SDG) 2030 के दायरे में आते हैं.
भारत की G20 अध्यक्षता: वसुधैव कुटुम्बकम
पश्चिमी आर्थिक प्रतिबंधों के लगातार बढ़ते जाल ने उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव बढ़ा दिया है. इस वजह से बढ़ती महंगाई की चुनौतियां और संगीन हो गई हैं और इसकी चपेट में खाद्य और ऊर्जा के संसाधन ही नहीं और भी चीज़ें आ गई हैं. इन चुनौतियों ने कोविड-19 महामारी की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में पड़ी बाधा की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है और अब दुनिया पर आर्थिक सुस्ती का ख़तरा मंडरा रहा है. इन हालात में सितंबर 2023 का G20 शिखर सम्मेलन बेहद महत्वपूर्ण हो गया है. इस शिखर सम्मेलन में जिन नीतियों और रणनीतियों पर मुहर लगेगी, उनका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा. क्योंकि G20 के सदस्य कुल मिलाकर बहुत व्यापक असर रखते हैं. दुनिया की GDP मेंइनकी हिस्सेदारी80 प्रतिशत से ज़्यादा है. विश्व के व्यापार में इनकी भागीदारी 75 प्रतिशत और कुल आबादी में इनका हिस्सा 60 फ़ीसद से अधिक है.
इस संदर्भ में शिखर सम्मेलन के दौरान भारत का नेतृत्व बहुआयामी है. भारत की अध्यक्षता में इन नाज़ुक और मुश्किल मसलों से पार पाना, और G20 द्वारा सामूहिक तौर पर टिकाऊ विकास के तीन अहम स्तंभों- जनता, पृथ्वी और समृद्धि की दिशा में आगे ले जाना है. भारत का लक्ष्य है कि वो महामारी के बाद की रिकवरी को समावेशी बनाए और बहुपक्षीय सहयोग को मज़बूती दे. आज जब भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय की बेहतरी में अधिक से अधिक योगदान देने की कोशिश कर रहा है, तो उसका ज़ोर श्रम बाज़ार की चुनौतियों, स्वास्थ्य के मूलभूत ढांचे की कमियों, जलवायु वित्त और क़र्ज़ के प्रशासन पर अधिक है.
चित्र1: 2015-2022के बीच भारत काSDGसूचकांक स्कोर (100में से)
B) एक धरती: जलवायु वित्त
भारत दुनिया मेंकार्बन डाई ऑक्साइड का चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जकहै. लेकिन, विकसित देशों की तुलना में उसका प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन बेहद कम है. 2019 में जहां अमेरिका का कार्बन उत्सर्जन 15.5 टन प्रति व्यक्ति और रूस का 12.5 टन था, वहीं भारत की उत्सर्जन दर केव 1.9 टन प्रति व्यक्ति रहा था. 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ने से 2036 के पूर्वानुमानों के अनुसार भारत की GDP में बेसलाइन से 4.7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो सकती है, जो लगभग 371 अरब डॉलर के बराबर होगी. इस वादे को पूरा करके इसके वित्तीय फ़ायदे उठाने के लिए भारत को तमाम चुनौतियों से पार पाना होगा. ख़ास तौर से उसे G20 के मंच से उपलब्ध होने वाली अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं के ज़रिए वित्तीय चुनौतियों पर जीत हासिल करनी होगी.
शिखर सम्मेलन के दौरान भारत द्वारा, ‘क्लीन एनर्जी प्रोजेक्ट फंड’ स्थापित करने के अपने प्रस्ताव को दोबारा पेश करने की उम्मीद है. इसके तहत विकसित देशों की GDP का एक प्रतिशत हिस्सा कम विकसित देशों में हरित प्रयासों के लिए देने का प्रस्ताव है. इसके अलावा, भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग को G20 देशों में बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों का एक संगठन बनाने की वकालत भी करनी चाहिए.
C)एक परिवार: मानव पूंजी को आगे बढ़ाना
महामारी ने जन स्वास्थ्य के मूलभूत ढांचे को मज़बूत बनाने के लिए सहयोग की फौरी ज़रूरत को रेखांकित किया है. इसके अलावा जल्दी से जल्दी आपातकालीन मेडिकल सप्लाई के लिए एक वैश्विक फंड स्थापित करना और स्वास्थ्य के अंतरराष्ट्रीय मानक और प्रक्रियाएं तय करने की ज़रूरत है, जिस पर भारत ज़ोर दे सकता है. इसके साथ साथ, स्वास्थ्य और बेहतरी के लक्ष्य हासिल करने के लिए डिजिटल समाधानों का इस्तेमाल भी बहुत अहम है. लोगों को अच्छी सेहत की सुविधा देने के लिए स्वास्थ्य के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण और उन्हें हर जगह इस्तेमाल लायक़ बनाना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. भारत केको-विनऔर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप से ये बात और ज़ाहिर हो जाती है. G20 के ज़रिए जो वैश्विक साझेदारियां हो सकती हैं, वो बेहद महत्वपूर्ण हैं. क्योंकि सेहत के जोखिम सीमाओं के आर-पार होते हैं और इनसे निपटने में अक्सर देशों के पास पैसे की कमी हो जाती है, ख़ास तौर से विकासशील देशों के लिए.
2023 की शुरुआत में भारत, चीन को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश बन गया था. वैसे तो ये बढ़ती युवा आबादी, दूसरे देशों के मुक़ाबले भारत को बढ़त देती है लेकिन, रोज़गार के अवसरों की मौजूदा क़िल्लत एक बड़ी चुनौती है.
2023 की शुरुआत में भारत, चीन को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश बन गया था. वैसे तो ये बढ़ती युवा आबादी, दूसरे देशों के मुक़ाबले भारत को बढ़त देती है लेकिन, रोज़गार के अवसरों की मौजूदा क़िल्लत एक बड़ी चुनौती है. स्थायी विकास के लक्ष्य (SDG) 8 यानी ‘सम्मानजनक काम और आर्थिक विकास’ को मोटे तौर पर किसी देश के स्तर की चुनौती माना जाता है. इसी वजह से भारत से अपेक्षा है कि वो अपनी अध्यक्षता के एजेंडे में महामारी के बाद न्यायोचित और समावेशी आर्थिक रिकवरी और G20 की मदद से बहुपक्षीय सहयोग पर ज़ोर देने वाला है, जिससे एक मज़बूत वित्तीय और मौद्रिक सहयोग व्यवस्था विकसित की जा सके, जिसमें कौशल विकास और मानव पूंजी की दूसरी तरक़्क़ियों के लिए स्वास्थ्य के मूलभूत ढांचे का प्रभावी ढंग से विस्तार किया जा सके.
C) एक भविष्य: महामारी के बाद आर्थिक पुनरुद्धार
भारत की प्राथमिकताओं में सबसे अहम, महामारी के बाद समावेशी और सबकी समान आर्थिक रिकवरी है. G20 के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो देशों के ऊपर लदने कर्ज़ का बोझ है, जिसे चुकाने में नाकामी से उनके दिवालिया होने का डर है. इससे न सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय वित्ती व्यवस्था के लिए ख़तरा पैदा होगा, बल्कि टिकाऊ विकास के लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करना भी दुश्वार हो जाएगा. क़र्ज़ में राहत देने के G20 के प्रयासों के अब तक कोई ख़ास नतीजे नहीं निकल सके हैं. 2020 मेंडेट सर्विस सस्पेंसन इनिशिएटिव (DSSI)के तहत कम आमदनी वाले देशों के आधिकारिक क़र्ज़दाताओं को वापस दिए जाने वाले एक करोड़ बीस लाख डॉलर के क़र्ज़ में रियायत दी गई थी. इसके बाद पेरिस क्लब के सहयोग से हर देश की चुनौती के हिसाब से उसके सरकारी क़र्ज़ की वापसी में रियायत के लिएकॉमन फ्रेमवर्क(CF) को स्थापित किया गया था. अफ़सोस की बात ये है कि अब तक केवल तीन देशों, चाड, इथियोपिया और जैम्बिया ने ही इस फ्रेमवर्क के तहत सहायता मांगी है.
बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे कईदक्षिण एशियाई देश, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से क़र्ज़ में राहत लेते रहे हैं. वैसे तो ये देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक बाज़ार से जोड़ने के लिए आर्थिक सुधार की नीतियां चलाते रहे हैं. लेकिन, अक्सर इन देशों के सामने आर्थिक चुनौतियां खड़ी होती रही हैं, जिनसे निपटने के लिए इन्हें बाहरी सहायता की ज़रूरत पड़ती रही है. मिसाल के तौर पर 2022 में श्रीलंका एक भयंकर आर्थिक संकट में फंस गया था, जिससे बाहरी वित्तीय मदद पर उसकी निर्भरता उजागर हो गई थी. वहीं दूसरी तरफ़ पाकिस्तान तो पिछले कई वर्षों के दौरान बार बार अपनी वित्तीय और आर्थिक चुनौतियों से उबरने के लिए अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद लेता रहा है. इन देशों की तुलना में बांग्लादेश की स्थिति वैसे तो ठीक रही है. लेकिन, वो भी आर्थिक विकास और रिकवरी के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से क़र्ज़ और मदद के पैकेज लेता रहा है.
आज का दौर बहुपक्षीय चुनौतियों का रहा है. ऐसे में भारत बुरी तरह से विभाजित बहुध्रुवीय दुनिया में स्थिरता स्थापित करने की बड़ी ज़िम्मेदारी उठा रहा है.
IMF से इन दक्षिण एशियाई देशों के बार बार क़र्ज़ मांगने से ज़ाहिर होता है कि इन देशों की आर्थिक स्थिति कमज़ोर है. भारत, दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इनमें से कई देशों के साथ उसका काफ़ी व्यापार होता है. ऐसे में क़र्ज़ से जूझते इन देशों में अगर कोई सामाजिक उथल-पुथल और अस्थिरता पैदा होती है, तो भारत इनकी अनदेखी नहीं कर सकता है. इसीलिए, मुद्रा कोष (IMF) के प्रशासन और हिस्सेदारी की संरचना को सुधारने के साथ साथ क़र्ज़ का मसला G20 देशों का एक बड़ा सियासी एजेंडा है.
भारत को G20 की अध्यक्षता देश के लोकतंत्र के एक अहम मुकाम पर मिली है, जो 8 से 10सितंबर 2023को दिल्ली में शिखर सम्मेलन के दौरान अपने शीर्ष पर पहुंच गई. आज का दौर बहुपक्षीय चुनौतियों का रहा है. ऐसे में भारत बुरी तरह से विभाजित बहुध्रुवीय दुनिया में स्थिरता स्थापित करने की बड़ी ज़िम्मेदारी उठा रहा है. दुनिया की सबसे तेज़ी से विकास कर रही बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर अपनी ताक़त का इस्तेमाल करते हुए भारत के लिए ये शिखर सम्मेलन, G20 के एजेंडे में विकास को लेकर ग्लोबल साउथ के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने का भी एक अवसर है. आज जब भारत वैश्विक नेताओं की इस अहम बैठक की अगुवाई कर रहा है, तो तय है कि भारत की भूमिका से वैश्विक प्रशासन की रूप-रेखा तय होगी. क्योंकि भारत मौजूदा विश्व के सामने खड़ी बहुआयमी चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक क़दम उठाने की अहमियत पर ज़ोर देता रहा है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Soumya Bhowmick is an Associate Fellow at the Centre for New Economic Diplomacy at the Observer Research Foundation. His research focuses on sustainable development and ...