Published on Jul 25, 2023 Updated 0 Hours ago
सिद्धांत से व्यवहार तक: बेहतर शिक्षा के लिये AR/VR का प्रयोग!

स्पेशल (Spatial) कंप्यूटिंग, पारंपरिक कंप्यूटर और प्रोग्रामिंग को 3D दुनिया से जोड़ता है. इससे इस्तेमाल करने वाले के इंटरफेस में क्रांतिकारी बदलाव आता है. और, भारत जैसे देशों को इसके परिवर्तनकारी फ़ायदों को शिक्षा के क्षेत्र में लागू करने के अनूठे अवसर मिलते हैं. इस तरह की कंप्यूटिंग के दो प्रमुख स्वरूप हैं. एक तो ऑग्मेंटेड  रियलिटी  (AR) और दूसरा वर्चुअल रियलिटी (VR). AR में डिजिटल तरीक़े से बनाई गई चीज़ों को यूज़र के असली जीवन के माहौल में पेश किया जाता है. वो इसका अनुभव फोन की स्क्रीन, ख़ास तरह के चश्मों या हेडसेट के ज़रिए कर सकता है. VR में कंप्यूटर की मदद से यूज़र के इर्द-गिर्द काल्पनिक 3D दुनिया रची जाती है, जिसका अनुभव वो ऐसे हेडसेट के माध्यम से कर सकता है, जो उसे चहुंमुखी तजुर्बा देते हैं.

भारत की शिक्षा व्यवस्था इस समय पहुंच की सुविधा, समानता, समता और प्रासंगिकता जैसी चुनौतियों का सामना कररही है. आज जब सरकार बच्चों को पढ़ाने के लिए कई तरह की डिजिटल शिक्षा की पहल कर रही है, तो AR और VR मिलकर (जिसे मिक्स्‍ड रियलिटी या MR कहा जाता है), भविष्य में एक परिवर्तनकारी भूमिका अदा कर सकते हैं.

AR और VR गेम या मनोरंजन का ख़ुद भी हिस्सा बन जाने वाले अनूठे अनुभव प्रदान करते हैं. लेकिन, इनका इस्तेमाल शिक्षा के क्षेत्र में करने की भी अपार संभावनाएं हैं. छात्रों को वर्चुअल दुनिया में डुबोने का अनुभव देकर VR, छात्रों को सीखने का मंत्रमुग्ध कर देने वाला अनुभव देते हैं, जिससे उनकी समझ और ज्ञान को बढ़ाने में मदद मिलती है. इसी तरह छात्रों को कोशिकाओं, प्रायोगिक व्यवस्थाओं और ग्रहों का वास्तविक अनुभव प्रदान करके AR, सैद्धांतिक परिकल्पनाओं को समझना आसान बनाते हैं. भारत की शिक्षा व्यवस्था इस समय पहुंच की सुविधा, समानता, समता और प्रासंगिकता जैसी चुनौतियों का सामना कररही है. आज जब सरकार बच्चों को पढ़ाने के लिए कई तरह की डिजिटल शिक्षा की पहल कर रही है, तो AR और VR मिलकर (जिसे मिक्स्‍ड रियलिटी  या MR कहा जाता है), भविष्य में एक परिवर्तनकारी भूमिका अदा कर सकते हैं.

स्पेशल (Spatial) कंप्यूटिंग या VR और AR को 2016 में काफ़ी तवज्जो मिली थी, जब ऑकुलस (जिस पर अब मेटा का मालिकाना हक़ है और जिसका नाम अब मेटा क्वेस्ट कर दिया गया है) ने ऑकुलस रिफ्ट को लॉन्च किया था. ऑकुलस किसी भी यूज़र को असली और वर्चुअल दुनिया के बीच बिना किसी बाधा के संवाद करने का अनुभव देता था. इस VR हेडसेट ने यूज़र को एक नया और डूब जाने वाला अनुभव प्रदान किया, क्योंकि ये यूज़र को एक काल्पनिक  3D दुनिया में ले जाता था, जहां वो हैंड कंट्रोलर के ज़रिए उस दुनिया से बातचीत कर सकते थे. इसके बाद, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, HTC, सैमसंग, HP, सोनी और एपसन जैसी कई कंपनियां अपनी VR मशीनों के साथ इस क्षेत्र में दाखिल हुईं, ताकि अपार संभावनाओं वाले इस उद्योग का लाभ उठा सकें.

स्थानिक कंप्यूटिंग और शिक्षा

दुनिया भर में शिक्षा के क्षेत्र में नई नई तकनीकों को अपनाने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है. स्टैनफोर्ड स्कूल ऑफ़ बिज़नेस, 2016 से ही VR पर आधारित कार्यक्रम मुहैया कराता है. इसके अलावा इमर्सिव लर्निंग रिसर्च नेटवर्क (iLRN) ने एक वर्चुअल कैंपस विकसित किया है, जो पूरे साल लेक्चर, कार्यक्रमों, नेटवर्किंग और उनके सालाना सम्मेलन के लिए उपलब्ध रहता है.

मेडिकल के क्षेत्र में भी VR का इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ रहा है और इसके साथ कई उल्लेखनीय सहयोग और उपयोग किए जा रहे हैं. मिसाल के तौर पर ऑक्सफर्ड मेडिकल सिमुलेशंस ने ऑक्सफोर्ड, UCLA, जॉन हॉपकिंस और NYU जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी की है, ताकि VR के माध्यम से नर्सिंग, रोग की पड़ताल और मरीज़ों की देखभाल जैसी मेडिकल ट्रेनिंग दी जा सके.

ESADE बिज़नेस स्कूल छात्रों ही नहीं अपने अध्यापकों और कर्मचारियों को जोड़े रखने के लिए वर्चुअल कैंपस के ज़रिए वर्चुअल रियलिटी का कंटेंट इस्तेमाल कर रहा है. जहां वो ‘दूसरों से संवाद कर सकते हैं. 

विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के अलावा भी AR/VR तकनीक के कई तरह के उपयोग किए जा रहे हैं, और सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग में इन तकनीकों के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जा रहा है. ESADE बिज़नेस स्कूल छात्रों ही नहीं अपने अध्यापकों और कर्मचारियों को जोड़े रखने के लिए वर्चुअल कैंपस के ज़रिए वर्चुअल रियलिटी  का कंटेंट इस्तेमाल कर रहा है. जहां वो ‘दूसरों से संवाद कर सकते हैं. प्रयोग कर सकते हैं. और मेटावर्स के व्यावहारिक  उपयोग के बारे में सीख सकते हैं.’ इससे नए दौर के कौशल विकास में इन तकनीकों के इस्तेमाल की उपयोगिता बढ़ती दिख रही है.

इसके अलावा माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों ने भी शिक्षा के क्षेत्र में मिक्स्ड रियलिटी  (MR) की भूमिका पर अपना नज़रिया स्पष्ट किया है. माइक्रोसॉफ्ट ने शिक्षा के क्षेत्र में मिक्स्ड रियलिटी  के सकारात्मक असर की ओर इशारा किया है. कंपनी ने बताया कि इससे छात्रों के टेस्ट स्कोर 22 प्रतिशत तक बढ़ गए और उसके पढ़ने लिखने में दिलचस्पी लेने में भी 35 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. माइक्रोसॉफ्ट का ये भी कहना है कि होलोलेंस से पढ़ाने वाले की ट्रेनिंग का वक़्त भी कम हो जाता है और उसकी उत्पादकता भी बढ़ जाती है. गूगल की स्पेशल (Spatial) कंप्यूटिंग की तकनीकों जैसे कि कार्डबोर्ड और टिल्ट ब्रश ने भी छात्रों को पढ़ाई के अधिक जुड़ाव वाले अनुभव मुहैया कराए हैं. शिक्षा के क्षेत्र में MR की इन तमाम उपयोगिताओं के बावजूद, हाल के वर्षों में इसके उद्योग में गिरावट देखी जा रही है. इस क्षेत्र में नई जान आने की संभावना हाल ही में तब दिखी, जब एप्पल ने 5 जून 2023 को WWDC23 में अपने विज़न प्रो हेडसेट को पेश किया. एप्पल ने इस हेडसेट को स्पेशल कंप्यूटिंग के भविष्य के तौर पर पेश किया, जिसके बाद शिक्षा जैसे क्षेत्रों में मिक्स्ड रियलिटी  के असर को लेकर नए सिरे से सोच-विचार किया जाने लगा.

प्रमुख चुनौतियां

एप्पल के विज़न प्रो जैसे उपकरणों के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाने की राह में कई चुनौतियां हैं. पहला, जो लोग 3500 डॉलर का हेडसेट ख़रीद सकते हैं, वही इस तकनीक का लाभ ले पाएंगे. हालांकि, कहा जा रहा है कि भारत जैसे देशों के लिए एप्पल सस्ते हेडसेट भी बना रहा है. लेकिन, ऐसे उपकरणों का उपयोग भारत में आमदनी की असमानता को ही उजागर करेगा. भले ही हेडसेट कम महंगा हो जाए, इसको ख़रीदने की क्षमता भारत की आबादी के बेहद छोटे तबक़े के पास ही होगी. आज देश की एक फ़ीसद से भी कम आबादी एप्पल का आईफ़ोन ख़रीद सकती है. ऐसे में इसमें कोई शक नहीं कि केवल अमीर लोग ही आधुनिक स्पेशल (Spatial) कंप्यूटिंग का लाभ उठा सकेंगे. इससे भारत की आबादी के बीच डिजिटल फ़ासला और बढ़ेगा. देश के सबसे महंगे संस्थानों के छात्रों को शिक्षा की गुणवत्ता और सीखने के मामले में काफ़ी बढ़त हासिल होगी. अब अगर अमीर तबक़े के बच्चे ही अधिक इंटरैक्टिव  और बेहतर सबक़ सीख सकेंगे, तो उच्च शिक्षा के ज़रिए रोज़गार और कौशल विकास में भी उन्हें बढ़त हासिल होगी. इससे दूसरे छात्रों के लिए करियर में तरक़्क़ी करने की संभावनाएं और भी सीमित हो जाएंगी. इससे आगे चलकर आर्थिक असमानता और बढ़ जाएगी.

वहीं दूसरी ओर IIT मद्रास द्वारा किए गए रिसर्च जैसी पहल से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सीखने के आसान मॉडल तैयार किए जा सकते हैं, जिससे उनकी मुक़ाबला करने की क्षमता बढ़ेगी और स्पेशल कंप्यूटिंग को शिक्षा के क्षेत्र में लागू किया जा सकेगा, ख़ास तौर से ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले ग़रीब छात्रों के लिए. इसके अलावा, IIT भुवनेश्वर  जिस तरह से भारत की AR/VR कंपनियों को तकनीकी संरक्षण, सम्मेलनों और नेटवर्कों के ज़रिए आगे बढ़ने का मौक़ा मुहैया करा रहा है, वो भी भारत में स्पेशल कंप्यूटिंग के क्षेत्र में काम करने वाली स्टार्ट अप कंपनियों को सही समय पर प्रगति करने में सहयोग करके उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण मदद देता है. इन तरीक़ों से तकनीक को दूरगामी इलाक़ों में भी पहुंचा जा रहा है, जिससे ग़रीब सामाजिक आर्थिक तबक़े के लोगों को पढ़ाई के बेहतर अवसर मिलते हैं और उनकी ज़िंदगी भी बेहतर बनती है.

दूसरी बाधाएं

स्पेशल (Sptial) कंप्यूटिंग को शिक्षण संस्थानों में लागू करने से निजता के लिए भी कई ख़तरे पैदा होते हैं. मिसाल के लिए विज़न प्रो यूज़र को जिस तरह का अनुभव देता है, उसके लिए उसमें 12 कैमरे और छह माइक्रोफोन लगे होते हैं. जो इस्तेमाल के वक़्त लगातार यूज़र की आंखों, उसकी आवाज़ और आस-पास के माहौल की रिकॉर्डिंग करते रहते हैं. दूसरे AR/VR हेडसेट भी यही करते हैं क्योंकि इन्हें चलाने के लिए कैमरा और माइक ज़रूरी हैं और इस्तेमाल के वक़्त ये लगातार यूज़र की निजी जानकारी और बायोमेट्रिक डेटा को जमा करते रहते हैं. इससे आगा चलकर यूज़र की प्राइवेसी और सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा हो सकता है. इसलिए, ऐसे सख़्त नियम और क़ानून बनाने ज़रूरी हो जाते हैं, जिनके ज़रिए लोगों के निजी डेटा को बिना इजाज़त किसी और से साझा न किया जा सके और संगठन को इस बात के लिए बाध्य किया जा सके कि वो सुरक्षा में चूक और पहचान की चोरी के जोखिम को कम से कम करने पर ज़ोर दे.

आज जब तकनीक तेज़ी से तरक़्क़ी कर रही है, तो इसकी प्रगति को देश के विकास के सामूहिक लक्ष्य का हिस्सा बनाया जाना बेहद ज़रूरी हो जाता है.

इसके अलावा, MR के उपकरण तो छात्रों को हेडसेट पहनने और जितना वो मोबाइल फोन में डूबे रहते हैं, उससे भी ज़्यादा आस-पास के माहौल से कट जाने के लिए मजबूर करते हैं. इसीलिए, स्पेशल कंप्यूटिंग और छात्रों को इसकी लत लगना अपने आप में सामाजिक रूप से अलग-थलग पड़ने का जोखिम पैदा करते हैं. दूसरे लोगों से संवाद में इस तरह की कमी छात्रों की मानसिक सेहत पर बुरा असर डाल सकती. इससे वो दूसरों से कटकर अकेलेपन, भावनात्मक रूप से कटे हुए और हमदर्दी की भावना से महरूम हो सकते हैं.

हक़ीक़त का सामना करें

हो सकता है कि MR कुछ लोगों के लिए दिखावे का नुस्खा हो. लेकिन, हम आज तकनीक को किस तरह इस्तेमाल करते हैं, उसमें ये कई तरह की नई संभावनाएं पैदा करती है. हालांकि इसमें जितनी संभावनाएं हैं, उतने ही जोखिम और नुक़सान भी हैं, जो व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर हमारे ऊपर ग़लत असर डाल सकते हैं. दोनों ही सूरतों में ये हमारे भविष्य को हमेशा के लिए बदल सकते हैं.

ऊपर हमने IIT मद्रास के जिस रिसर्च और IIT भुवनेश्वर  द्वारा तकनीकी स्टार्टअप  को मदद करने का ज़िक्र किया है, उनके अलावा भी घरेलू स्तर पर शिक्षा में स्पेशल कंप्यूटिंग को इस्तेमाल करने के लिए काफ़ी प्रयास किए जा रहे हैं. आम नागरिक और सरकार जिस तरह इस उभरती हुई तकनीक को राष्ट्र के विकास में इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहन दे रहे हैं, वो डिजिटल इंडिया वीक 2022 में AR/VR स्टार्टअप  को ये तकनीक प्रदर्शित करने में सरकार की तरफ़ से दी गई मदद से ज़ाहिर हो जाता है. इसीलिए, डिजिटल इंडिया की पहल में MR तकनीक के इस्तेमाल में काफ़ी संभावनाएं दिख रही हैं.

आज जब तकनीक तेज़ी से तरक़्क़ी कर रही है, तो इसकी प्रगति को देश के विकास के सामूहिक लक्ष्य का हिस्सा बनाया जाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. अपने अनूठे डेमोग्राफिक डिविडेंड के साथा भारत में इस बात की काफ़ी संभावना है कि आने वाले वर्षों और दशकों में वो इस क्षेत्र में एक वैश्विक नेता के तौर पर उभर सके, और शिक्षा इस परिवर्तन की गति को तेज़ कर सकती है. इसीलिए, भविष्य को आकार देने और देश की संभावनाओं के द्वार पूरी तरह खोलने में शिक्षा की केंद्रीय भूमिका को पहचान कर उसको प्राथमिकता देना सर्वोपरि है.

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