Author : Ivan Shchedrov

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jul 09, 2024 Updated 0 Hours ago

रूस-चीन और भारत-अमेरिका के बीच मेल-जोल को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच भारत और रूस को अपना द्विपक्षीय संबंध अधिक व्यावहारिक बनाने के लिए एक रोडमैप अपनाने की ज़रूरत है.

अनिश्चितता से जोख़िम के निपटारे तक: पीएम नरेंद्र मोदी का रूस दौरा

जून के आख़िर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मॉस्को यात्रा को लेकर प्रकाशित अटकलों को दुनिया की मीडिया ने तुरंत तवज्जो दी. हर किसी ने ये समझा कि रूस के नेतृत्व के साथ बातचीत राजनीतिक और सांकेतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इस साल भारत के आम चुनाव के बाद पीएम मोदी की ये पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा है. इस तरह मोदी ने सबसे पहले दक्षिण एशिया के पड़ोसी देश का दौरा करने की अनौपचारिक परंपरा को तोड़ने का फैसला किया. 2015 के बाद रूस की राजधानी का मोदी का ये पहला दौरा है और ये दौरा रूस-भारत संवाद के प्रारूप (फॉर्मेट) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दिखाती है. 2022 में उज़्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन के दौरान हुई बैठक को छोड़ दिया जाए तो दोनों देशों के बीच बातचीत पिछले तीन वर्षों से स्थगित थी. एक तरफ भारत-रूस की बातचीत स्थगित थी तो दूसरी तरफ रूस-चीन संवाद लगातार होता रहा और एक-के-बाद-एक तीन आमने-सामने की बैठकें हुईं. 

महामारी के बाद राष्ट्रपति पुतिन ने 2021 में भारत का दौरा किया. इसकी वजह से अब बारी मोदी के रूस दौरे की थी. पिछले साल के अंत में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अपने रूस दौरे में कहा था कि प्रधानमंत्री 2024 में रूस का दौरा करेंगे.

अक्टूबर 2000 में भारत और रूस ने जिस रणनीतिक साझेदारी के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे, उसमें एक मुख्य प्रावधान था सालाना शिखर सम्मेलन स्तर की बैठकों का आयोजन. इसलिए दोनों देशों के राष्ट्र प्रमुखों के बीच द्विपक्षीय बातचीत कोविड-19 महामारी तक बार-बार होती रही. महामारी के बाद राष्ट्रपति पुतिन ने 2021 में भारत का दौरा किया. इसकी वजह से अब बारी मोदी के रूस दौरे की थी. पिछले साल के अंत में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अपने रूस दौरे में कहा था कि प्रधानमंत्री 2024 में रूस का दौरा करेंगे. 

2022 के बाद के युग में भारत और रूस के बीच संबंधों में हैरानी का तत्व एक प्रमुख विशेषता बन गया है. आधिकारिक खुलासे में आकस्मिकता दौरे के साथ मिलने वाली जानकारी की भरमार को ख़त्म करने की इच्छा से प्रेरित थी. लोगों की सोच में यात्रा का उतना ही सांकेतिक महत्व है जितनी कि राजनीतिक अहमियत. ये महत्व लंबे समय के बाद बातचीत के इस प्रारूप की शुरुआत से पैदा होता है. अगर दोनों देशों के नेता इस साल नहीं मिलते तो इससे बड़ी शक्तियों की तरफ संतुलित दृष्टिकोण के मामले में भारत की विदेश नीति की रणनीति की निरंतरता के बारे में गंभीर चर्चाओं में तेज़ी आती. रूस में भारत के पूर्व राजदूत वेंकटेश वर्मा ने कहा, “ये यात्रा समय पर तो है ही लेकिन इसके साथ-साथ रणनीतिक साझेदारी के स्रोत को फिर से सक्रिय करने के लिए भी इसकी ज़रूरत थी.”

विदेश संबंधों का जाल 

भारत में फैसला लेने वाले विदेश नीति के जिस समीकरण का हल करने की कोशिश कर रहे हैं, उसकी संरचना जटिल प्रतीत होती है. भारत परस्पर विरोधी गुटों के नेतृत्व के साथ जुड़ते हुए एक निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाने का प्रयास कर रहा है. यही कारण है कि रूस दौरे के पहले मोदी G7 के शिखर सम्मेलन में शामिल हुए जो उनके शपथ लेने के कुछ दिनों के बाद आयोजित हुआ था. विशेषाधिकार प्राप्त देशों के इस सम्मेलन में मोदी ने न सिर्फ़ ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) की आवाज़ को बुलंद किया बल्कि यूक्रेन के राष्ट्रपति से भी मुलाकात की. ये ऐसी मुलाकात थी जो फॉर्मेट के भीतर पहले ही सामान्य हो चुकी है. इस मामले में किनारे में बैठक की प्राथमिकता रूस के दौरे की स्थिति के ख़िलाफ़ तय की गई थी. एक और उदाहरण स्विट्ज़रलैंड शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी का स्तर और अंतिम बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार करना है. राजनीतिक अभिजात वर्ग नई परिस्थितियों के तहत व्यक्तिगत संपर्क के महत्व को समझता है क्योंकि इस तरह के आयोजन को दोनों पक्षों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत के रूप में समझा जा सकता है. 

मुश्किल इस तथ्य को लेकर भी है कि इस दौरे के राजनीतिक मतलब को समझने के बारे में रूस और भारत के दृष्टिकोण अलग-अलग हैं. अगर रूस के लिए कम-से-कम सार्वजनिक क्षेत्र में यूक्रेन संकट के बीच पश्चिमी देशों के साथ भारत की भागीदारी के संदर्भ में महत्व है तो भारत के लिए इस समीकरण को विदेश नीति की यूरेशियाई और यूरो-अटलांटिक दिशा के बीच विरोधाभास के साथ-साथ इस महाद्वीप में प्रतिस्पर्धियों के साथ संबंध से मदद मिलती है. दूसरे शब्दों में कहें तो समस्या विदेश नीति के तिकड़म के अलग-अलग आकलन से पैदा होती है. 

अगर रूस के लिए कम-से-कम सार्वजनिक क्षेत्र में यूक्रेन संकट के बीच पश्चिमी देशों के साथ भारत की भागीदारी के संदर्भ में महत्व है तो भारत के लिए इस समीकरण को विदेश नीति की यूरेशियाई और यूरो-अटलांटिक दिशा के बीच विरोधाभास के साथ-साथ इस महाद्वीप में प्रतिस्पर्धियों के साथ संबंध से मदद मिलती है.

कज़ाखस्तान में SCO शिखर सम्मेलन में मोदी की यात्रा का अचानक रद्द होना एक और उदाहरण है. एक तरफ तो इस फैसले के पीछे का कारण आंतरिक राजनीति है- नई लोकसभा का पहला सत्र एक दिन पहले ख़त्म हुआ था. लेकिन इसके साथ-साथ ये फैसला भारत की विदेश नीति के नज़रिए के संदर्भ में लिया गया. भारत का नेतृत्व चीन और पाकिस्तान के साथ बातचीत को सार्वजनिक रूप से दिखाने में झिझकता है. माना जाता है कि इस वजह से यूरेशिया में रूस के साथ द्विपक्षीय बातचीत और मध्य एशिया + भारत शिखर सम्मेलन, जो कि इस साल होने वाला है, आयोजित करने पर भारत की विदेश नीति के एजेंडे में वैचारिक स्तर पर “बंटवारा” हुआ है. हालांकि, मौजूदगी की राजनीतिक स्थिति में कमी का मतलब भागीदारी से इनकार करना नहीं है क्योंकि चीन और पाकिस्तान के साथ-साथ अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दों पर बातचीत के लिए SCO एक महत्वपूर्ण मंच बना हुआ है. 

रूस का संदेह

रूस ने तुरंत संकेत दिया कि वो मोदी के दौरे को बहुत ज़्यादा महत्व देता है क्योंकि ये भारत के द्वारा एक संतुलित और स्वतंत्र विदेश नीति को आगे बढ़ाने की रणनीतिक क्षमता की पुष्टि के तौर पर देखा जाता है जो कि एक बहुध्रुवीय विश्व प्रणाली की स्थापना के लिए एक शर्त है. भारत-अमेरिका संबंधों की गतिशीलता को नज़रअंदाज़ नहीं किया गया लेकिन इस प्रक्रिया को बढ़ाने वाले मूलभूत कारणों को रूस समझता है. यही वजह है कि मुख्य इच्छा है कि ये “भटकाव” रूस के साथ संबंधों की कीमत पर नहीं हो. 

रूस ने तुरंत संकेत दिया कि वो मोदी के दौरे को बहुत ज़्यादा महत्व देता है क्योंकि ये भारत के द्वारा एक संतुलित और स्वतंत्र विदेश नीति को आगे बढ़ाने की रणनीतिक क्षमता की पुष्टि के तौर पर देखा जाता है जो कि एक बहुध्रुवीय विश्व प्रणाली की स्थापना के लिए एक शर्त है.

आम तौर पर द्विपक्षीय संबंधों का दायरा और रफ्त़ार आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों- दोनों में सकारात्मक मानी जाती है. इस तरह वित्तीय वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार का स्तर 65.5 अरब अमेरिकी डॉलर के पार चला गया जो वित्तीय वर्ष 2022-23 की तुलना में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी दिखाता है. भारत के सभी व्यापारिक साझेदारों में रूस चौथे नंबर पर है. इसके अलावा भारत के निर्यात में 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जो स्मार्टफोन, धातु उद्योग और इंजीनियरिंग उत्पादों की सप्लाई में तेज़ी से प्रेरित व्यापार असंतुलन में बढ़ोतरी में कमी की शुरुआत का संकेत है. इस अवधि के दौरान 15 वर्षों में पहली बार रूस को एल्युमिनियम की सप्लाई भी देखी गई. 

क्या उम्मीद करनी चाहिए

स्पष्ट रूप से दोनों पक्षों की ओर से यात्रा के बारे में सूचना की लगभग पूरी तरह से कमी के कारण कोई भी महत्वपूर्ण समझौता होने की उम्मीद नहीं है. वैसे तो रूस की अर्थव्यवस्था पर प्रतिबंध का दबाव कम नहीं हुआ है लेकिन इन प्रतिबंधों से पार पाने की रूस की क्षमता अधिक बनी हुई है और समय के साथ नई पाबंदियों का मनोवैज्ञानिक असर भी कम हो रहा है. इस तथ्य को देखते हुए कि भारत और रूस के बीच व्यापारिक संबंध अभी भी शुरुआती दौर में हैं, ये यात्रा लंबे समय के सहयोग के लिए इरादे का प्रदर्शन कर सकती है. बातचीत के एजेंडे में कथित विषयों की जानकारी नीचे है: 

  1. व्यापार एवं लॉजिस्टिक:  पहले के वर्षों से अलग ये सवाल एजेंडे में छाए हुए हैं जिसका प्रमाण SCO शिखर सम्मेलन के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के बीच बैठक के बाद आधिकारिक बयानों से मिला. उदाहरण के लिए, द्विपक्षीय व्यापार के लिए एक स्थायी भुगतान प्रणाली तैयार करना अभी भी महत्वपूर्ण है, जबकि समस्या के पैमाने को मीडिया के द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है. एक और विषय रूस और भारत की कंपनियों को शामिल करके नई उत्पाद श्रृंखला का निर्माण है. इसके साथ-साथ चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री रूट के परिचालन को सुनिश्चित करने के लिए समुद्री बुनियादी ढांचे में निवेश है. अंत में, मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर के विपरीत BJP के घोषणापत्र में कोई ध्यान नहीं दिए जाने के बावजूद INSTC (इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर) के विकास का मुद्दा अभी भी महत्वपूर्ण है. 
  2. राजनीति:  ये मुद्दे यूक्रेन के संकट से जुड़े हुए हैं जिसमें चर्चा के लिए कई पहलू शामिल हैं. इनमें दोनों पक्षों के राजनीतिक रवैये का स्पष्टीकरण, शांति समझौते के लिए शर्तें और हथियारों की सप्लाई का मुद्दा शामिल है. एक और विषय युद्ध में भारतीय नागरिकों की भागीदारी है. इस समस्या को पिछले दिनों एस. जयशंकर ने रेखांकित किया है. वैश्विक मुद्दों के अलावा हमें अफ़ग़ानिस्तान और साउथ कॉकेशस में कुछ बदलावों से जुड़ी क्षेत्रीय गतिशीलता को नहीं छोड़ना चाहिए. क्षेत्रीय सहयोग मध्य एशिया समेत यूरेशिया में साझा परियोजनाओं के लिए अवसरों की तलाश की आवश्यकता से भी प्रेरित होगा. 
  3. तकनीक़ एवं निवेश: रूस द्विपक्षीय परियोजनाओं और भारतीय बाज़ार में अपनी कुल मौजूदगी- दोनों के माध्यम से तकनीक के सेक्टर में तालमेल बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है. नई और उभरती तकनीकों के अलावा हाल के वर्षों में धातु उद्योग, रसायन उद्योग, खनन, अंतरिक्ष, इत्यादि जैसे कम महत्वपूर्ण सेक्टर के पारंपरिक क्षेत्रों को गलत तरीके से भुला दिया गया है. आज इन पारंपरिक क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करने की आवश्यकता को रूस में व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है. इस भागीदारी का आधार साझा मूलभूत रिसर्च और वैज्ञानिक एवं शैक्षणिक आदान-प्रदान में खोजा जा सकता है. 

निष्कर्ष

द्विपक्षीय व्यापार में उच्च गतिशीलता के लिए एक उचित रणनीतिक आधार की आवश्यकता है जो भारत-रूस संबंध को अधिक व्यावहारिक बनाएगा. भुगतान से जुड़े मुद्दों, लॉजिस्टिक, तकनीक और निवेश के क्षेत्रों के लिए अधिक पूर्वानुमान की लंबे समय से आवश्यकता महसूस की जा रही थी. राजनीतिक क्षेत्र में रूस-चीन और भारत-अमेरिका मेल-जोल को लेकर बढ़ती आशंकाओं के बीच दोनों देशों को आपसी भरोसे की पुष्टि करने की ज़रूरत है. इन परिस्थितियों में दोनों देशों को द्विपक्षीय संबंधों में अधिक व्यावहारिकता लाने के लिए एक रोडमैप स्थापित करने की आवश्यकता है. ऐसा करने में नेता बातचीत के उद्देश्य से अधिक टिकाऊ रूप-रेखा तैयार करने के लिए "बाहरी चुनौतियों को लेकर अस्थायी प्रतिक्रिया” के उदाहरण से परिवर्तन करने का इरादा जताएंगे.


इवान शेदरोव ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में विज़िटिंग फेलो हैं. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.