Author : Shoba Suri

Published on Jun 08, 2021 Updated 0 Hours ago

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस पर हम इस बात पर एक नज़र डाल रहे हैं कि किस तरह कोविड-19 ने खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंताओं को उजागर किया है.

महामारी के दौरान खाद्य सुरक्षा—चिंता का विषय और इसे बेहतर बनाने का अवसर
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खाद्य सुरक्षा सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक प्राथमिकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार ज़िंदगी को चलाने और अच्छी सेहत को बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित और पोषक खाद्य पदार्थों तक पहुंच होना बेहद महत्वपूर्ण है. खाद्य सुरक्षा से टिकाऊ विकास को मज़बूती मिलती है. क्योंकि ये, राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं, व्यापार और पर्यटन को बढ़ाने में सहयोग प्रदान करती है; और इससे खाद्य और पोषण संबंधी सुरक्षा में भी योगदान प्राप्त होता है. असुरक्षित खाने पीने से हर साल दुनिया भर में क़रीब 60 करोड़ लोग (या हर दस में से एक व्यक्ति) बीमार पड़ता है और इससे प्रति वर्ष 4 लाख, 20 हज़ार लोगों की जान चली जाती है- ये स्वस्थ जीवन के 3.3 करोड़ वर्षों की क्षति है. निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में असुरक्षित खाना खाकर बीमार पड़ने वाले लोगों के इलाज में हर साल 110 अरब डॉलर का ख़र्च आता है. हालांकि, कोरोना वायरस की बीमारी खाने से नहीं फैलती है. लेकिन, इसका खाद्य सुरक्षा पर बहुत अहम रूप से प्रभाव पड़ा है. इस महामारी ने खाद्य सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर लोगों का ध्यान फिर से आकर्षित किया है. हालांकि, कोविड-19 ने खाद्य व्यवस्था की कमज़ोरियों को भी उजागर किया है, जिनका प्रभाव उत्पादन और आपूर्ति, खेतों से खाने की मेज़ तक, यानी दोनों पर पड़ा है. इस साल विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस की थीम- आज सुरक्षित खाने से कल का सुरक्षित भविष्य- है, जो बिल्कुल सटीक है. इस थीम से को सुरक्षित खाने के उत्पादन और खपत से, इंसानों, धरती और अर्थव्यवस्था को लंबी अवधि में होने वाले लाभों पर ज़ोर दिया गया है.

वैसे तो ताज़ा खाने या पैकेटबंद खाने से कोरोना वायरस का संक्रमण होने का ख़तरा बहुत कम है. लेकिन, खाने पीने के सामान की साफ सफाई के लिहाज़ से उनकी सफाई, लाने ले जाने और भंडारण के दौरान सुरक्षा के उपायों का पालन करने से वायरस के संक्रमण का जोखिम और कम हो जाता है.

कोविड-19 ने खाद्य व्यवस्था के सामने अभूतपूर्व चुनौती प्रस्तुत की है. इससे खाने का नुक़सान और उसकी भारी बर्बादी ( Figure 1) हुई है. लॉकडाउन और कंटेनमेंट ज़ोन बनाने से रेस्टोरेंट, स्कूल, होटल और बाज़ारों को बंद करना पड़ा. इसी वजह से खाने की मांग में भारी कमी आई है. इसके बदले में खाने पीने के सामान की जमाखोरी, आपूर्ति में कमी और क़ीमतों में उछाल के चलते खाने पीने के सामान की मांग कम हुई है और खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति व्यवस्था भी गड़बड़ हो गई है. फ़सलों की बर्बादी, तिलचट्टों का हमला और ताज़ा सब्ज़ियों की फ़सलों को हल चलाकर नष्ट कर देने से महामारी के दौरान खाने पीने का बहुत सामान बर्बाद हुआ है.

खाने पीने के सामान की बर्बादी सार्वजनिक चिंता का विषय है और ये बात स्थायी विकास के लक्ष्य 12.3 को हासिल करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इसके अंतर्गत वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर प्रति व्यक्ति खाद्य पदार्थों की बर्बादी को खुदरा कारोबार और ग्राह के स्तर पर घटाकर आधा करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके साथ साथ उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाओं के स्तर पर होने वाली खाद्य पदार्थों की बर्बादी को भी घटाने का लक्ष्य रखा गया है. इंसानों के इस्तेमाल के लिए हर साल होने वाले खाद्य पदार्थों के उत्पादन का एक तिहाई हिस्सा (1.3 अरब टन) बर्बाद हो जाता है. इस खाने से उन 69 करोड़ लोगों का पेट भरा जा सकता है, जो भूखे रह जाते हैं. वैश्विक स्तर पर खाने पीने के सामान का नुक़सान और इसकी बर्बादी से हर साल 3.3 अरब टन के कार्बन फुटप्रिंट का बोझ धरती के पर्यावरण पर पड़ता है. महामारी के चलते आपूर्ति श्रृंखलाओं में पड़ी बाधाओं जैसे कि परिवहन के प्रतिबंधों, मज़दूरों की कमी और क्वारंटीन के उपायों से खाद्य पदार्थों, विशेष रूप से जल्दी ख़राब हो जाने वाली चीज़ों का नुक़सान और बर्बादी बहुत बढ़ गए हैं.

अमेरिका, ब्रिटेन और चीन में ग्राहकों के बीच हुए एक सर्वे से ये बात सामने आई है कि 77 प्रतिशत लोग खाने पीने के सामान के सुरक्षित होने को लेकर चिंतित हैं. वहीं, सर्वे में शामिल 52 प्रतिशत लोगों को ये महसूस होता है कि ये दुनिया के तीन सबसे महत्वपूर्ण विषयों में से एक है. दो तिहाई से ज़्यादा ग्राहकों को ये लगता था कि महामारी के संकट का प्रभाव खाद्य पदार्थों की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और इनकी उपलब्धता पर पड़ेगा. इन लोगों ने इस बात की ज़रूरत जताई कि खाने पीने के सामान के सुरक्षित होने और इसका नुक़सान रोकने पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

महामारी का ये संकट एक ऐसा अवसर भी लेकर आया है जिसमें हम अपनी खाद्य व्यवस्था में ऐसे परिवर्तन करें, जिससे उनमें उथल पुथल मचने का ख़तरा कम हो. 

विश्व व्यापार संगठन, खाद्य एवं कृषि संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोविड-19 के प्रभाव को कम करने से जुड़े एक साझा बयान में कहा गया था कि, ‘खाद्य सुरक्षा और इसके साफ़ सुथरे होने को बढ़ावा देने, पोषण पर ज़ोर देने और पूरी दुनिया में लोगों के सामान्य कल्याण को बढ़ाने की ज़रूरत है.’ खाद्य पदार्थों के कारोबार से जुड़े लोगों, ग्राहकों और खाद्य सुरक्षा के अधिकारियों को अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए पोषण और खाने पीने के सामान का साफ़ होना सुनिश्चित करने के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं. वैसे तो ताज़ा खाने या पैकेटबंद खाने से कोरोना वायरस का संक्रमण होने का ख़तरा बहुत कम है. लेकिन, खाने पीने के सामान की साफ सफाई के लिहाज़ से उनकी सफाई, लाने ले जाने और भंडारण के दौरान सुरक्षा के उपायों का पालन करने से वायरस के संक्रमण का जोखिम और कम हो जाता है.

16 देशों के खाद्य उद्योगों में महामारी के दौरान खाद्य पदार्थों की साफ सफाई को लेकर हुए सर्वेक्षण से पता चला था कि कर्मचारियों के बीच इसे लेकर जागरूकता, साफ सफाई रखने और सुरक्षा के उपकरणों को पहनने की काफ़ी अहमियत है. खाने पीने के सामानों की वास्तविक आपूर्ति श्रृंखलाएं महामारी के दौरान सबसे अधिक प्रभावित हुई थीं. इसके साथ साथ खाने पीने के सामान के भंडारण की सुविधाओं पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा था. वैसे तो इस सर्वे में ये बात सामने आई कि खाने पीने का सामान सुरक्षित रखने के नियमों का पालन किया जा रहा था. लेकिन, जिन कंपनियों पर ये सर्वे किया गया था, उनमें से आधी से भी कम के पास आपातकालीन स्थिति से निपटने की योजना थी. एक और सर्वे से संकेत मिलता है कि बाहर खाना खाने के दौरान खाद्य पदार्थों के सुरक्षित और साफ़ सुथरा होने को लेकर लोगों में भरोसे की भारी कमी थी और महामारी के दौरान बहुत से लोगों ने मांसाहारी खाने के बजाय, सुरक्षित खाने की तलाश को पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थ अपनाकर सुरक्षित खाने को लेकर पैदा हुए अविश्वास से पार पाने की कोशिश की.

खाने को लेकर फ़र्ज़ीवाड़े और झूठे दावे, उन्हें ग़लत नामों से बेचने की घटनाएं भी इस दौरान काफ़ी बढ़ गईं. जिससे खाद्य सुरक्षा और आपूर्ति श्रृंखलाओं के लचीलेपन के लिए चुनौतियां खड़ी हुईं. एक रिपोर्ट कहती है कि महामारी के दौरान ज़्यादा मात्रा में संरक्षक रसायन मिलाए गए असुरक्षित खान पान से सेहत संबंधी चिंताएं भी बढ़ गईं. हालांकि, कोविड-19 के कारण सुरक्षित खाना खाने की आदतों और खाद्य सुरक्षा व ग्राहकों और खाद्य उद्योग से जुड़े सभी लोगों द्वारा साफ सफाई को लेकर जागरूकता भी बढ़ी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के ‘सुरक्षित खाने के पांच सूत्रों’ को खान पान के उद्योग से जुड़े लोगों और सभी ग्राहकों को फिर से याद दिलाने की ज़रूरत है.

महामारी का ये संकट एक ऐसा अवसर भी लेकर आया है जिसमें हम अपनी खाद्य व्यवस्था में ऐसे परिवर्तन करें, जिससे उनमें उथल पुथल मचने का ख़तरा कम हो. अब ग्राहक खाद्य पदार्थों की सुरक्षा और इसे सुनिश्चित करने वाली तकनीकों को लेकर बहुत जागरूक हो गए हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में हुई हालिया प्रगति और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल कुशल और सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखलाएं बनाने और खाद्य पदार्थों की आपूर्ति और उनके स्रोत का पता लगाने में किया जा सकता है.

पैन अमेरिकन हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन (PAHO) ने पांच क़दम उठाए जाने की मांग की है- ये सुनिश्चित करना कि खाना सुरक्षित हो; इसे सुरक्षित तरीक़े से उगाया जाए; इसे सुरक्षित रखा जाए; खाद्य सुरक्षा के लिए सभी एकजुट हों और ये जानें कि क्या खाना सुरक्षित है. इन सभी क़दमों से खाद्य सुरक्षा को लेकर सरकारों, खाद्य उत्पादकों, कारोबारियों और ग्राहकों की साझा ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया जा सकेगा. सरकारों को ऐसे तरीक़ों की पहचान करनी चाहिए जिससे खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में खलल को कम से कम किया जा सके और उन लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके, जहां पर खाद्य पदार्थों का उत्पादन, प्रसंस्करण, पैकेजिंग और बिक्री होती है.

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