दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती घुसपैठ और संप्रभुता के उसके बृहत् दावों ने ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपीन्स, ताइवान और वियतनाम जैसे देशों को ख़फ़ा कर दिया है. चीन ने विवादित क्षेत्रों में 2013 से ज़मीन हासिल कर और उन पर कृत्रिम द्वीप विकसित कर अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों को पूरी ढिठाई से तोड़ा-मरोड़ा है और अब इन द्वीपों पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है. इसके जवाब में, अमेरिका अपने रुख़ और क्षेत्र में सैन्य मौजूदगी को सख़्त कर रहा है और ‘फ्रीडम ऑफ नेवीगेशन ऑपरेशन्स’ (FONOP) को बढ़ाने में लगा हुआ है.
क्या FONOP दूसरों को डराने का ज़रिया है?
अमेरिका ने भारतीय क्षेत्र में एक FONOP का संचालन अप्रैल 2021 में किया. यह मुद्दा पिछले साल सामने आया जब अमेरिकी नौसेना का क्रूजर ‘यूएसएस जॉन पॉल जोन्स’ अतिक्रमण करते हुए भारतीय द्वीप लक्षद्वीप में, भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (ईईजेड) के काफ़ी भीतर तक घुस आया, जिसने भांति-भांति की घटनाओं को जन्म दिया. यह भलीभांति ज्ञात है कि UNCLOS के कुछ प्रावधानों की व्याख्या पर भारत और अमेरिका के बीच (और वास्तव में कई एशियाई समुद्रतटीय देशों और पश्चिमी ताकतों के बीच) मतभेद हैं.
मीडिया रिपोर्टों ने इशारा किया कि अमेरिका ने इसे फ्रीडम ऑफ नेवीगेशन ऑपरेशन्स (FONOP) गतिविधि बताया, जिसका उद्देश्य यह दावा करना था कि महासागर ‘ग्लोबल कॉमन्स’ हैं. ग्लोबल कॉमन्स को ऐसे संभावित आर्थिक संसाधनों के रूप में देखा जाता है जो किसी देश के न्यायाधिकार से परे हैं और विवादित क़ानूनी परिभाषा रखते हैं.
गाइडेड मिसाइल विध्वंसक पोत यूएसएस जॉन पॉल जोन्स ने 9 अप्रैल 2021 को लक्षद्वीप द्वीपसमूह के पश्चिम में 130 नॉटिकल मील की दूरी पर नौवहन अधिकारों का दावा किया. चूंकि यह भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन के भीतर था और भारत से पूर्व सहमति के किसी अनुरोध (अंतरराष्ट्रीय क़ाननू के अनुरूप) के बगैर यह किया गया, इसलिए इसने संदेह पैदा किया. मीडिया रिपोर्टों ने इशारा किया कि अमेरिका ने इसे फ्रीडम ऑफ नेवीगेशन ऑपरेशन्स (FONOP) गतिविधि बताया, जिसका उद्देश्य यह दावा करना था कि महासागर ‘ग्लोबल कॉमन्स’ हैं. ग्लोबल कॉमन्स को ऐसे संभावित आर्थिक संसाधनों के रूप में देखा जाता है जो किसी देश के न्यायाधिकार से परे हैं और विवादित क़ानूनी परिभाषा रखते हैं. FONOP ने अमेरिका के रणनीतिक साझेदारों, उदाहरण के लिए, जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपीन्स, ताइवान और थाईलैंड जैसे सहयोगियों; भारत, सऊदी अरब, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे दोस्तों; इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका, मालदीव और स्वीडन जैसे तटस्थ देशों; और रूस, चीन और ईरान जैसे विरोधियों को लक्षित किया है. हालांकि, कुछ भारतीय विश्लेषक मानते हैं कि अमेरिका ने अप्रैल 2021 में भारतीय एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन में प्रवेश कर ईईजेड और संचार के सिद्धांत का उल्लंघन किया है.
इसने अंतरराष्ट्रीय क़ानून को शब्दों और भावना दोनों के लिहाज़ से क्षीण किया. 1979 में शुरू हुआ FONOP कार्यक्रम उन समुद्री (मैरीटाइम) दावों को चुनौती देने के लिए डिज़ाइन किया गया था, जिन्हें चुनौती देना अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अनुरूप पाया. FONOP अमेरिका को दुनिया मे कहीं भी एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन, खुले समुद्र (हाई सी) और द्वीपसमूहों के जलक्षेत्र में निर्दोष पारगमन (इनोसेंट ट्रांजिट) का अभयदान (इम्युनिटी) व अधिकार और नौवहन के अधिकार प्रदान करता है. यहां एक अहम सवाल ज़रूर उठाया जाना चाहिए – समुद्र का अंतरराष्ट्रीय क़ाननू यानी UNCLOS आख़िर कितना सर्वव्यापी है, जबकि अमेरिका ने कभी इसकी संपुष्टि नहीं की है?
UNCLOS को भारत और यूरोपीय संघ समेत 167 देश संपुष्ट कर चुके हैं. UNCLOS 1982 के मुताबिक़, ‘किसी देश का संप्रभु समुद्र उसकी तटरेखा से 12 नॉटिकल मील होता है, और उसका एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन 12 से 200 नॉटिकल मील के बीच फैला होता है.’
जिस ‘अंतरराष्ट्रीय क़ानून’ का उल्लेख किया जा रहा है वह 1982 का ‘यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन ऑन द लॉ आफ द सी’ (UNCLOS) है, जिसे संपुष्ट करने से अमेरिका इनकार कर चुका है. UNCLOS को भारत और यूरोपीय संघ समेत 167 देश संपुष्ट कर चुके हैं. UNCLOS 1982 के मुताबिक़, ‘किसी देश का संप्रभु समुद्र उसकी तटरेखा से 12 नॉटिकल मील होता है, और उसका एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन 12 से 200 नॉटिकल मील के बीच फैला होता है.’ लिहाज़ा, UNCLOS लगभग सार्वभौमिक रूप से क़ानूनों और नियमों की स्थापना करता है जिनकी व्यापक स्वीकार्यता से उन अंतर-राज्यीय संघर्षों की संख्या, बारंबारता और संभावना में काफ़ी कमी आयी मानी जाती है, जो इसके न होने पर घटित हुए होते. लेकिन UNCLOS को लेकर अब भी काफ़ी अस्पष्टता है.
इस संदर्भ में पहली महत्वपूर्ण घटना 200 नॉटिकल मील के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन की क़ानूनी स्वीकार्यता है. इस 200 नॉटिकल मील में राज्यों को उन ‘खुले समुद्रों’ के अन्वेषण का संप्रभु अधिकार है जो मानव जाति के लिए साझा पहुंच वाले क्षेत्र हैं. खुले समुद्रों में, ‘पारगमन गलियारे’ के लिए मुख्य संकीर्ण जलसंधियों (स्ट्रेट्स) पर क़ानून ने विचार ज़रूर किया है, लेकिन किसी देश को अपने न्यायाधिकार की दावेदारी की इजाज़त नहीं है. यह क्षेत्र एक विशेष विवाद-निपटारा कार्यप्रणाली का पालन करता है. ये विवादास्पद मुद्दे और जटिल हो जाते हैं क्योंकि अमेरिका ने UNCLOS को संपुष्ट नहीं किया है.
FONOP: दूसरी शक्तियों के लिए भी एक मिसाल?
चीन एक उभरती हुई समुद्री शक्ति है, जिसने कोई काम या फ़ैसला करने के बाद उसे दुनिया के समक्ष रखा है. कई देशों द्वारा उस पर UNCLOS का उल्लंघन करने और अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था नहीं मानने का आरोप लगाया जा रहा है. अमेरिका, जो दक्षिण चीन सागर क्षेत्र पर नज़र रखने को जायज़ ठहराता है, ऐसा ही काम दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक क्षेत्रीय (टेरिटोरियल) दावों और संघर्षों को चुनौती देने के लिए नियमित रूप से FONOP के संचालन के ज़रिये कर रहा है. जैसा कि शुरू में कहा गया है, चीन ने अमेरिकी संलिप्तता से ख़ुद को बेअसर रखते हुए, दक्षिण चीन सागर का नियंत्रण हासिल करने के लिए अपना अभियान तेज़ कर दिया है. 2016 में हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ने चीन के ख़िलाफ़ फिलीपीन्स के एक UNCLOS संबंधी दावे पर अपना निर्णय जारी किया, जिसमें लगभग हर बिंदु पर फ़ैसला फिलीपीन्स के पक्ष में था. हालांकि, चीन ने इस क़ानून को मानने से इनकार कर दिया है. इसलिए, यह हमें एक अन्य अहम सवाल तक ले जाता है – क्या FONOPs चीन जैसे देशों के लिए जब चाहे दूसरे देशों के क्षेत्रीय समुद्रों का उल्लंघन करने के लिए एक मिसाल बना रहे हैं? क्या यह भारत के लिए भी एक संभावित ख़तरा है?
जब दोनों देश भारत और अमेरिका, क्वॉड और हिंद-प्रशांत महासागरीय पहल जैसे रणनीतिक गठबंधनों के ज़रिये सार्वजनिक रूप से सहयोग बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, तब भारतीय नौसेना को पश्चिमी प्रशांत में अमेरिकी नौसेना के साथ संयुक्त अभियानों पर विचार करना चाहिए.
निश्चित रूप से, इसका जवाब मौजूदा क़ानूनों में सुधार करने के संदर्भ में दिये जाने की ज़रूरत है. विशेष रूप से, UNCLOS 1982 में सुधार की ज़रूरत है, ख़ासकर इसके फ्रेमवर्क के संबंध में. अब समय आ गया है कि क़ानून की परीक्षा और विवादों के निपटारे के लिए UNCLOS के हस्ताक्षरी एक नया सम्मेलन आयोजित करें. UNCLOS के फ्रेमवर्क की प्रकृति का मतलब है कि ‘सभी विवादों का निपटारा नहीं करना है’, इसके बजाय उन्हें ‘प्रबंधित’ किया जा सकता है. UNCLOS की इन सीमाबद्धताओं के साथ, हम अपने ग्लोबल कॉमन्स को बचाये रखने में देर-सवेर विफल हो सकते हैं.
अंत में, भारत-अमेरिका के विस्तृत होते रक्षा एवं सुरक्षा संबंधों के संदर्भ में, अप्रैल 2021 की FONOP घटना अमेरिका और भारत दोनों के लिए एक दूसरे की संवेदनशीलताओं को तवज्जो देने की बढ़ी हुई ज़रूरत को निश्चित रूप से उजागर करती है. ख़ासकर एक ऐसे समय में जब दोनों देश भारत और अमेरिका, क्वॉड और हिंद-प्रशांत महासागरीय पहल जैसे रणनीतिक गठबंधनों के ज़रिये सार्वजनिक रूप से सहयोग बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, तब भारतीय नौसेना को पश्चिमी प्रशांत में अमेरिकी नौसेना के साथ संयुक्त अभियानों पर विचार करना चाहिए. दोनों देश एक स्वस्थ महासागरीय वातावरण बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और संयुक्त अभियानों की संभावना का मूल्यांकन UNCLOS के संबंध में अपने मतभेदों को हल करने के आलोक में करना चाहिए. लक्षद्वीप में FONOP को लेकर आरोप-प्रत्यारोप के बावजूद, दोनों देशों ने अपने मतभेदों को कम करके दिखाने की कोशिश की है.
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