समकालीन वैश्वीकरण की बदौलत आर्थिक गतिविधियों का विस्तार बड़ी तेजी से हुआ जिससे समस्त विकासशील देशों में ऊर्जा या बिजली की मांग एकदम से काफी बढ़ गई। यह उन देशों में ‘विकास के प्रति विशेष जुनून’ होने के कारण ही संभव हो पाया जिनका लक्ष्य विकसित राष्ट्रों के साथ एक ऐसा सामंजस्य स्थापित करना था जो ‘इतना या अत्यंत ज्यादा स्थिर नहीं’ हो! चूंकि मानव या हम सभी वर्तमान सुविधाओं और अंतर-पीढ़ीगत संसाधनों के बीच परस्पर आदान-प्रदान के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं, इसलिए ऊर्जा का महत्व बढ़ना तय है। हालांकि, यह बड़ा सवाल अब भी बना हुआ है कि आखिरकार कम ऊर्जा खपत वाला उत्पादन और इसका इष्टतम उपभोग कैसे संभव है?
कई विशेषज्ञों के मुताबिक, वित्तीय सेक्टर के विकास से ऊर्जा दक्षता या कम बिजली खपत पर पड़ने वाले असर के बारे में दो परस्पर विरोधी विचार हैं। सबसे पहले तो यह माना जा सकता है कि किसी भी अर्थव्यवस्था के वित्तीय सेक्टर या क्षेत्र में बड़ी तेजी से प्रगति होने पर लोग ज्यादा ऊर्जा खपत वाली वस्तुएं खरीदने की ओर उन्मुख होंगे जिससे ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन होगा। इसके ठीक विपरीत, यह बात भी ध्यान में रखी जानी चाहिए कि एक प्रगतिशील वित्तीय प्रणाली न केवल नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा क्रेडिट का मार्ग प्रशस्त करेगी, बल्कि लोगों को अपनी ऊंची आय की बदौलत काफी महंगी और कम ऊर्जा खपत वाली वस्तुओं को खरीदने के लिए भी प्रेरित करेगी।
इसके अलावा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) से बड़ी संख्या में कम ऊर्जा खपत वाली उत्पादन प्रौद्योगिकियों की पैठ बाजार में मजबूत हो जाने की संभावना है। इससे विदेशी कंपनियों का मुकाबला करने के उद्देश्य से निवेश और नवाचार के लिए घरेलू उत्पादकों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी।
इस लेख की प्रस्तावना विश्व बैंक की वित्तीय समावेश संबंधी परिभाषा में निहित है, जिसका ‘अर्थ है कि लोगों एवं कारोबारियों की पहुंच उन उपयोगी और किफायती वित्तीय उत्पादों व सेवाओं तक है जो उत्तरदायी एवं टिकाऊ तरीके से मुहैया कराई जाती हैं और जो उनकी जरूरतों को पूरा करती हैं जैसे कि लेन-देन, भुगतान, बचत, ऋण एवं बीमा।’ इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्व बैंक ने दृढ़ता के साथ यह स्वीकार किया है कि वित्तीय समावेश संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य 2015 के ‘लक्ष्य 7 (किफायती एवं स्वच्छ ऊर्जा)’ को हासिल करने में काफी हद तक मददगार है। कम ऊर्जा खपत वाले तरीकों पर अमल के संदर्भ में सूक्ष्म और व्यापक दोनों ही स्तरों पर वित्तीय समावेश की प्रमुख भूमिका होती है। उदाहरण के लिए, किसी ग्रामीण भारतीय समुदाय के स्तर पर वित्तीय समावेश के प्रमुख पहलू जैसे कि बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच, ऋणों की उपलब्धता, कुशल बीमा प्रणालियां और आधुनिक वित्तीय मशीनरी के जरिए एफडीआई लाभों का प्रसार या उपलब्धता तकनीकी दृष्टि से पिछड़े वर्गों को उत्पादन एवं उपभोग की कम ऊर्जा खपत वाली तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित करेगी। इसके अलावा, ग्रामीण वित्तीय संस्थान भी कम ऊर्जा खपत से जुड़े अभियानों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इसे ध्यान में रखते हुए हम एक ऐसा मैट्रिक्स विश्लेषण तैयार कर सकते हैं जो ऊर्जा दक्षता और वित्तीय समावेश के बीच आदान-प्रदान के मामले में भारतीय राज्यों की मौजूदा स्थिति को दर्शाता है। ऊर्ध्वाधर अक्ष वित्तीय प्रणाली के चार महत्वपूर्ण आयामों यथा शाखाओं की संख्या, ऋणों तक पहुंच, जमाराशि की स्थिति और बीमा की पैठ के आधार पर क्रिसिल (क्रिसिल इन्क्लूसिक्स) द्वारा अभिकलित भारतीय राज्यों के वित्तीय समावेशन के स्तर 2016 की श्रेणियों को दर्शाता है। क्षैतिज अक्ष ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीइई) और नीति आयोग की अगुवाई में ऊर्जा दक्षता अर्थव्यवस्था के लिए गठबंधन (एईर्ईई) द्वारा प्रकाशित राज्य ऊर्जा दक्षता तैयारी सूचकांक 2018 की श्रेणियों को दर्शाता है। इसके तहत सभी पांचों सेक्टरों में ऊर्जा दक्षता के 59 संकेतकों और चार अंतर-सेक्टर संकेतकों का उपयोग किया जाता है।
उपर्युक्त मैट्रिक्स में काले या ब्लैक जोन में किसी भी राज्य का न होना यह पुष्टि करता है कि ऊर्जा दक्षता हासिल करने में वित्तीय समावेश का बढ़ना अहम भूमिका निभाता है।
दूसरे शब्दों में, जिस राज्य में वित्तीय समावेश का स्तर बेहद कम (या औसत स्तर से कम) होता है वह ऊर्जा दक्षता के उच्च स्तर पर स्थान पाने में विफल रहता है। हालांकि, इसके ठीक विपरीत वाली स्थिति सही नहीं है: सफेद या व्हाइट जोन उन राज्यों को दर्शाता है जहां ऊर्जा दक्षता का स्तर तो कम है, लेकिन वित्तीय समावेश का स्तर ज्यादा (या औसत स्तर से अधिक) है। धूसर यानी ग्रे जोन इस दृष्टि से बदतर स्थिति वाले राज्यों को दर्शाता है, जबकि नीला या ब्लू जोन वित्तीय समावेश और ऊर्जा दक्षता दोनों ही दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ स्थितियों वाले राज्यों को दर्शाता है। हम यह पाते हैं कि पंजाब, केरल और आंध्र प्रदेश ऊर्जा दक्षता एवं वित्तीय समावेश दोनों ही दृष्टि से अग्रणी या बेहतर स्थिति में हैं, जबकि अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मेघालय एवं मणिपुर सबसे निचली श्रेणी में हैं जहां इस मोर्चे पर सुधार की काफी गुंजाइश है। उच्च ऊर्जा दक्षता वाली स्थिति का मार्ग ग्रे जोन से सफेद जोन होते हुए ब्लू जोन तक जाता है, न कि यह ब्लैक जोन से होते हुए जाता है। इससे यह पता चलता है कि ऊर्जा दक्षता हासिल करने के लिए वित्तीय प्रणालियों के संबंध में ढांचागत बदलाव लाना आवश्यक है। निचली श्रेणियों वाले राज्यों के लिए यह आवश्यक है कि वे ऊर्जा क्षेत्र के संबंध में बेहतर प्रदर्शन को प्रोत्साहित करने के लिए अपनी-अपनी वित्तीय प्रणालियों और संस्थागत समावेश पर फोकस करें।
दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेवाई) वर्ष 2015 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक बेंचमार्क योजना है। यह ‘एसडीजी 7’ में उल्लिखित लक्ष्यों यानी स्वच्छ एवं किफायती ऊर्जा के मामले में समावेश और इस तक पहुंच सुनिश्चित करने का मूर्त रूप है। भारत में उपलब्ध राज्य वार आंकड़ों के रेखीय प्रतिगमन विश्लेषण के जरिए ऊर्जा दक्षता पर वित्तीय समावेशन के असर की और अधिक पुष्टि की जा सकती है। यह देखा गया है कि क्रिसिल इन्क्लूसिक्स स्कोर (2016) दरअसल डीडीयूजीजेवाई (2017) के तहत विद्युतीकृत घरों के प्रतिशत में सकारात्मक योगदान करता है, जैसा कि ढलान गुणांक (0.314) के धनात्मक संकेत द्वारा रेखांकित किया गया है। इसके असर को बेहतर ढंग से समझने के लिए एक वर्ष का समय-अंतराल दिया जाता है। इसके साथ ही ढलान गुणांक 1% है जो सांख्यिकीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसकी मजबूती R2 (0.500) और समायोजित R2 (0.476) मूल्यों से परिलक्षित होती है। यह हमारे इस नजरिए को और ज्यादा मजबूती प्रदान करता है कि वित्तीय सेवाओं तक पहुंच बढ़ने से आमदनी निश्चित तौर पर बढ़ती है, इसे प्रभावशाली ढंग से जुटाना संभव हो पाता है और विशेषकर ग्रामीण स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा से जुड़े कदमों के संदर्भ में संबंधित नीति पर बढि़या तरीके से अमल सुनिश्चित होता है।
सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थान अपने यहां ऊर्जा दक्षता में क्रांति लाने और ऊर्जा दक्षता परियोजनाओं की एक विशेष श्रेणी के लिए वित्तीय प्रपत्रों या साधनों को विकसित करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं।
यह मुख्यत: सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों एवं संसाधनों की बदौलत संभव हुआ है जिससे इन संस्थानों के लिए ऊर्जा दक्षता ऑडिट जैसी तकनीकी सेवाओं के लिए वित्त के साथ-साथ कम ब्याज दर वाले ऋणों को मुहैया कराना संभव हो गया है। वहीं, दूसरी ओर निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों ने भी इस मामले में प्रतिबद्धताएं व्यक्त की हैं और इसके साथ ही उनके कई नवीकरणीय ऊर्जा ऋण कार्यक्रम भी हैं। हालांकि, इन संस्थानों द्वारा इन विशेष ऊर्जा दक्षता परियोजनाओं को वाणिज्यिक दृष्टि से लाभप्रद बनाने के लिए आवश्यक वित्तपोषण क्षमता हासिल करना अब भी मुश्किल है। अमेरिका के अलावा, इस सेक्टर में निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों की समर्पित गतिविधियों से जुड़े बहुत कम सबूत थे।
वैसे तो वित्तीय सेक्टर के विकास का ज्यादा वास्ता पूंजी बाजारों के प्रदर्शन के साथ-साथ संबंधित देश में एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) के प्रवाह से होता है, लेकिन निश्चित तौर पर यह वित्तीय समावेश का पहलू ही है जो ग्रामीण भारत में ऊर्जा दक्षता या कम बिजली खपत करने को काफी बढ़ावा देगा। स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए जमीनी स्तर पर वित्तीय प्रणालियों को विकसित करने के लिए मौजूदा समय में नीतिगत फोकस में बदलाव करना आवश्यक हो सकता है।
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