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भारत को अपनी रक्षा और तकनीकी क्षमताओं में बहुत इज़ाफ़ा करने की ज़रूरत है. क्योंकि चीन के छठवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान और डीपसीक जैसे आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के औज़ारों ने दिखाया है कि तकनीक के मामले में दोनों देशों के बीच कितना बड़ा फ़ासला आ चुका है.
Image Source: Getty
नई दिल्ली में रायसीना डायलॉग 2025 के दौरान एक भावना बिल्कुल साफ़ तौर पर दिखी- टैंक, टैरिफ और तकनीक. इससे मौजूदा विश्व व्यवस्था के आज के समीकरण समझ में आते हैं, जो सशस्त्र संघर्ष, आर्थिक अनिश्चितता और तकनीकी बदलाव के वजह से पूरी तरह से हिल गए हैं. भारत को एक दूसरे से जुड़ी इन तीनों तल्ख़ सच्चाइयों से निपटने और अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए बहुत सावधानी मगर मज़बूत इच्छाशक्ति के साथ आगे बढ़ना होगा.
भारत ने इस बार के एरो इंडिया में दो भू-राजनीतिक दुश्मनों अमेरिका और रूस को एक साथ, अपने अपने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान F-35 और सुखोई-57 फेलन को भेजने के लिए राज़ी कर दिया.
भारत की मशहूर हवाई कारोबार और प्रदर्शनी एरो इंडिया का 2025 में बैंगलुरू में हुए संस्करण ने इस मामले में एक अनूठी उपलब्धि हासिल की. भारत ने इस बार के एरो इंडिया में दो भू-राजनीतिक दुश्मनों अमेरिका और रूस को एक साथ, अपने अपने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान F-35 और सुखोई-57 फेलन को भेजने के लिए राज़ी कर दिया. इसके ऊपरी संकेत जो भी हों. ये बात व्यापक भू-राजनीतिक विश्व के लिए आम तौर पर और भारत के लिए तो ख़ास तौर पर इसलिए ज़्यादा अहम हो जाती है कि चीन, जिसके पास पांचवीं पीढ़ी के दो आंशिक रूप से सक्रिय स्टेल्थ लड़ाकू विमान (चेंगडू J-20 और शेनयांग J-35) पहले से मौजूद हैं, उसने हाल ही में अपने छठवीं पीढ़ी के नए लड़ाकू विमान के प्रोटोटाइप की परीक्षण उड़ान को दुनिया के सामने पेश किया है. ये भारत के लिए चिंता की एक बड़ी बात है. क्योंकि भारत का सबसे हालिया और सबसे उन्नत लड़ाकू विमान रफाल है, जिसे फ्रांस के दसा एविएशन से हाल के वर्षों में ख़रीदा गया है. रफ़ाल को 4.5वीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान कहा जाता है. रफ़ाल के साथ इस वक़्त भारत की वायुसेना के पास जो प्रमुख लड़ाकू विमान है, वो रूस का सुखोई-30 है, जो चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान है. इसके साथ ही भारत, चौथी पीढ़ी के स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस को भी शामिल करना शुरू कर दिया है. साफ़ है कि अगले तीन से पांच वर्षों के दौरान भारत के पास जो वायु क्षमता होगी, वो चीन की लगातार बढ़ती वायुशक्ति को जवाब दे पाने के लिहाज़ से काफ़ी कमज़ोर स्थिति में होगी.
चीन ने छठवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान का नमूना तैयार करने की ख़बर देने के बाद ही, दुनिया को एक और ख़बर देकर चौंका दिया. चीन ने तकनीकी तौर पर हैरान करते हुए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के स्टार्ट अप डीपसीक (DeepSeek) को लॉन्च किया. वैसे तो ये कारोबारी क्षेत्र की उपलब्धि है और चीन की सेना या सरकारी प्रयासों का नतीजा नहीं है. लेकिन, डीपसीक को शीतयुद्ध के ‘स्पुतनिक लम्हे’ के तौर पर पेश किया जा रहा था. तब सोवियत संघ ने पहले मानव निर्मित उपग्रह स्पुतनिक को अंतरिक्ष में भेजा था. अब चीन के डीपसीक को आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में अमेरिका के मुक़ाबले चीन की छलांग के तौर पर पेश किया जा रहा है. डीपसीक के आने से पहले AI के क्षेत्र में अमेरिका की सिलिकॉन वैली की बड़ी बड़ी कंपनियों का दबदबा था. लेकिन, डीपसीक ने अपनी बहुत कम लागत, कुशलता और नए माहौल के हिसाब से ख़ुद को बदलने के लिए अपग्रेड करने की क्षमता की वजह से कंप्यूटर की दुनिया में तहलका मचा दिया है.
भारत के पड़ोसी और मुख्य भू-राजनीतिक प्रतिद्वंदी चीन की इन बड़ी बड़ी तकनीकी उपलब्धियों ने उच्च तकनीक के क्षेत्र में भारत की प्रतिस्पर्धी क्षमता पर पैनी निगाहें टिका दी हैं. ऐसे तकनीकी चक्रों की तेज़ चाल को देखते हुए अगर भारत रक्षा उद्योग और डिजिटल अर्थव्यवस्था से जुड़े तमाम क्षेत्रों में अपनी घरेलू क्षमताओं में तेज़ी से बढ़ोत्तरी नहीं करता, तो उसके सामने सत्ता के वैश्विक ढांचे में अपनी प्रासंगिकता गंवा देने का ख़तरा मंडरा रहा है.
एरो इंडिया 2025 की शुरुआत में रूस ने भारत के सामने एक ऐसे सौदे का प्रस्ताव पेश किया था, जिसके तहत रूस के सबसे उन्नत लड़ाकू विमान को भारत में ही बनाने का मौक़ मिलता. इन घटनाओं के ठीक बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से मिलने फरवरी में अमेरिका के दौरे पर गए. ये दौरा भी काफ़ी महत्वपूर्ण था. इस दौरे के आख़िर में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से एलान किया कि अमेरिका, रक्षा और क्रिटिकल ऐंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीस (CET) के क्षेत्र में भारत के साथ और नज़दीकी भागीदारी के बारे में सोच रहा है और अमेरिका अपने सबसे उन्नत लड़ाकू विमान, लॉकहीड मार्टिन के बनाए पांचवीं पीढ़ी के F-35 (लाइटनिंग) को भी भारत को बेचने पर विचार कर रहा है. उन्नत तकनीक से लैस F-35 लड़ाकू विमान का सबसे सस्ता वैरिएंट लगभग 8 करोड़ डॉलर का है. अगर इसको नौसेना के इस्तेमाल के लिए एयरक्राफ्ट कैरियर पर उतरने और वहां से संचालित होने की क्षमता से लैस किया जाता है, तब एक F-35 लड़ाकू विमान की क़ीमत बढ़कर 11.5 करोड़ डॉलर पहुंच जाती है. एक इंजन वाले F-35 लड़ाकू विमान की उड़ान के हर एक घंटे का ख़र्च लगभग 36 हज़ार डॉलर आता है. रूस के Su-57 लड़ाकू विमान की क़ीमत 3.5 से 4 करोड़ डॉलर है. हालांकि, दो इंजन वाली डिज़ाइन होने की वजह से इसकी उड़ान की लागत F-35 की तुलना में कहीं अधिक है.
अमेरिका ने अब तक 19 दूसरे देशों के सामने भी F-35 लड़ाकू विमान बेचने का प्रस्ताव रखा है, जिन्हें वो अपना सामरिक सहयोगी और साझीदार मानता है. इज़राइल के अलावा, अमेरिका भी विकास, इस्तेमाल, ख़ास तौर से तब्दीली और रख-रखाव के मामले में अपनी तकनीकी प्रगति पर तगड़ा नियंत्रण रखता है.
अमेरिका ने अब तक 19 दूसरे देशों के सामने भी F-35 लड़ाकू विमान बेचने का प्रस्ताव रखा है, जिन्हें वो अपना सामरिक सहयोगी और साझीदार मानता है. इज़राइल के अलावा, अमेरिका भी विकास, इस्तेमाल, ख़ास तौर से तब्दीली और रख-रखाव के मामले में अपनी तकनीकी प्रगति पर तगड़ा नियंत्रण रखता है. ये वैसा ही तरीक़ा है, जैसा अमेरिका ने ‘एआई डिफ्यूज़न फ्रेमवर्क’ लागू करने में अपनाया है. इस रूप-रेखा के तहत एनविडिया की ग्राफिक प्रॉसेसिंग यूनिट्स (GPU) यानी उन्नत सेमीकंडक्टर चिप (मतलब हार्डवेयर) के दूसरे देशों को निर्यात को नियंत्रित और सीमित किया जाता है. ये सेमीकंडक्टर चिप आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के उन्नत मॉडलों पर रिसर्च और विकास (मतलब सॉफ्टवेयर) के लिए काफ़ी अहम है. ट्रंप से पहले राष्ट्रपति रहे जो बाइडेन के प्रशासन ने अपने कार्यकाल के आख़िरी दिनों में ‘प्रतिस्पर्धा को दबाने’ वाली इस नीति को लागू किया था. भारत के लिए निराशा की बात ये थी कि अमेरिका के साथ बढ़ती सामरिक भागीदारी के बावजूद, उसको अमेरिका के भरोसेमंद पहली क़तार (Tier 1) के उन 18 देशों की सूची से बाहर रखा गया था, जिन्हें इस रूप-रेखा के तहत छूट दी गई थी. इससे आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भारत की तरक़्क़ी की रफ़्तार सुस्त और ज़्यादा बाधाओं वाली हो गई.
ट्रंप के कारोबारी वाले रवैये ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को एलर्ट कर दिया है, जिसके तहत वो दुनिया के तमाम देशों (जिनमें कभी अमेरिका के क़रीबी रहे यूरोपीय संघ और कनाडा जैसे सहयोगी देश भी शामिल हैं) से अमेरिका के लिए ‘बेहतर सौदे’ की मांग करते हैं. वैसे तो ट्रंप ने पारस्परिक टैरिफ नीति के तहत कई देशों पर नए व्यापार कर लगा दिए हैं. लेकिन, जहां तक भारत की बात है तो F-35 लड़ाकू विमान बेचने के प्रस्ताव को अमेरिका के लिए दोगुने मूल्य वाला माना जा रहा है. भारत से इस महंगे रक्षा कार्यक्रम के लिए हामी भरवाने और दोनों देशों के बीच व्यापारिक खाई के बीच संतुलन बनाने की इस कोशिश के बाद भारत को अमेरिका के सैन्य प्रतिद्वंदी रूस के साथ लंबे समय से चले आ रहे हथियारों की ख़रीद के रिश्ते पर भी पुनर्विचार करना होगा, जो कि भारत के रक्षा क्षेत्र में गहरी जड़ें जमाए हुए है.
ख़बरों के मुताबिक़, पाकिस्तान भी अपनी वायुसेना की क्षमताओं को बेहतर बनाना चाहता है और इसके लिए वो 2026 तक चीन से J-35 लड़ाकू विमान हासिल करने के साथ साथ, तुर्की के उपयोग में आ रहे पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान कार्यक्रम ‘KAAN’ में भागीदार बना है. अपने सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा समझे जाने वाले इन दो दुश्मनों की इस बढ़ती क्षमता का मुक़ाबला करने के लिए भारत ने अपने स्वदेशी एडवांस्ड मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) परियोजना पर काम शुरू किया है और एरो इंडिया में 5.5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के प्रोटोटाइप की नुमाइश की थी. हालांकि, इस बहुप्रतीक्षित परियोजना के पूरा होने और फिर इस्तेमाल में आने में अभी लगभग दस वर्षों का समय लगेगा. इससे भारतीय वायुसेना के पास 2035 तक पांचवीं पीढ़ी का कोई व्यापक स्टेल्थ लड़ाकू विमान नहीं होगा. तब तक दुनिया की ज़्यादातर वायुसेनाएं छठवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल कर रही होंगी. अमेरिका ने हाल ही में बोइंग के साथ मिलकर, अपनी वायुसेना के छठवीं पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू विमान की पहल F-47 पर काम शुरू करने का एलान किया है.
भारत लगतार बनी हुई ग़रीबी की चुनौती वाला विकासशील देश भी है और वो संस्थाओं को बदलने की क्षमता रखने वाली उभरती ताक़त भी है. दुनिया के सबसे बड़े हथियार ख़रीदने वाले देशों में से एक होने और देश ऊर्जा और तेल की बढ़ती ज़रूरतें, भारत की अर्थव्यवस्था पर काफ़ी बोझ डालती हैं. अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और वायुसेना को भविष्य के लिए सुदृढ़ बनाने की सामरिक रूप से अहम ज़रूरत के तहत पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान ख़रीदने का विषय राष्ट्रीय चर्चा का बिंदु बना हुआ है. 1999 के कारगिल युद्ध से ही भारत की भौगोलिक स्थिति और उत्तरी सीमा के पड़ोसियों के साथ भू-सामरिक संबंधों ने उसको युद्ध के ग़ैरपारंपरिक तौर-तरीक़े ईजाद करने पर मजबूर किया है. जैसा कि 2022 से चल रहे यूक्रेन और रूस के युद्ध में देखने को मिल रहा है कि आधुनिक युद्ध कला ने ड्रोन और मिसाइलों जैसी उन्नत तकनीकों के विकास के साथ ही ख़ुद को नई परिस्थितियों के मुताबिक़ ढाल लिया है. हमने भारत के सामने खड़ी जिन चुनौतियों का ज़िक्र किया, उनकी रौशनी में सवाल और अहम हो गया है कि भारत के लिए F-35 जैसे महंगे और पारंपरिक हथियारों को ख़रीदनकर इन पर अपनी निर्भरता बढ़ानी चाहिए या फिर नहीं.
भारत का ज़ोर मुख्य रूप से उच्च स्तर के मूलभूत ढांचे और एल्गोरिद्म की क्षमता वाले बुनियादी मॉडलों के ज़रिए अपनी कंप्यूटेशन की क्षमता में बढ़ोत्तरी करने पर होना चाहिए. बहुत अधिक संसाधन मांगने वाले इन महंगे प्रयासों में अपनी कमियां दूर करने के लिए अगले दो तीन साल काफ़ी मेहनत करनी होगी.
इसी तरह, चीन के AI टूल डीपसीक की उपलब्धि के बाद, भारत को चाहिए कि वो आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में तेज़ी से हो रही प्रगति के मामले में मज़बूत दूरगामी दृष्टिकोण का प्रदर्शन करे और अपनी ‘सामरिक स्वायत्तता’ को बरक़रार रखे. भारत का ज़ोर मुख्य रूप से उच्च स्तर के मूलभूत ढांचे और एल्गोरिद्म की क्षमता वाले बुनियादी मॉडलों के ज़रिए अपनी कंप्यूटेशन की क्षमता में बढ़ोत्तरी करने पर होना चाहिए. बहुत अधिक संसाधन मांगने वाले इन महंगे प्रयासों में अपनी कमियां दूर करने के लिए अगले दो तीन साल काफ़ी मेहनत करनी होगी. जिस तरह, विदेश से ख़रीदे जाने वाले मल्टी-रोल लड़ाकू विमान (MRFA) कार्यक्रम, हल्के लड़ाकू विमान (LCA) और एडवांस्ड मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) जैसी स्वदेशी परियोजनाएं भारत की फ़ौरी, मध्यम अवधि की और दूरगामी ज़रूरतों को पूरा करने वाली हैं. ऐसे में भारत को दुनिया में छिड़ी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की होड़ में आगे बढ़ने के लिए मिशन मोड में आना होगा. भारत की महत्वाकांक्षी ‘इंडिया AI मिशन’ योजना, 2025 के अंत तक एक स्वदेशी लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) विकसित करने के लिए काम कर रही है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए 10 कंपनियों का चुनाव किया गया है कि वो कॉमन कंप्यूट एम्पैनलमेंट के 18 हज़ार 693 उच्च स्तर के GPU चीप मुहैया कराएं. इनमें से 12 हज़ार 896 चिप दुनिया की सबसे उन्नत Nvidia की H100 क़िस्म की होंगी. दुनिया के GPU बाज़ार में 80 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ Nvidia का ही दबदबा है.
इस समय, ताइवान दुनिया का सबसे बड़ा चिप निर्माता है. ताइवान की सलाहकार कंपनी ट्रेंडफोर्स के आंकड़े बताते हैं कि चिप के वैश्विक बाज़ार में ताइवान की हिस्सेदारी लगभग 44 फ़ीसद है. इसके बाद चीन (28 प्रतिशत), साउथ कोरिया (12 फ़ीसद), अमेरिका (6 प्रतिशत) और जापान (2 प्रतिशत) का नंबर आता है. ताइवान जलसंधि में भू-राजनीतिक तनावों ने भारत के नवजात सेमीकंडक्टर उद्योग को निर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के प्रयासों की रफ़्तार बढ़ाने को मजबूर किया है. भारत ने अपने ‘इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन’ के तहत ताइवान और अमेरिका जैसे सहयोगी देशों और PSMC, माइक्रोन और Nvidia जैसी कंपनियों के निवेश और विशेषज्ञता की मदद से 2030 तक इलेक्ट्रॉनिक्स के बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत चिप निर्माताओं को सस्ता श्रम मुहैया कराता है और दुनिया के चिप डिज़ाइन क्षेत्र में 20 फ़ीसद का योगदान देता है. ऐसे में अगले एक दशक में वो चिप बनाने के बड़े केंद्र के तौर पर उभर सकता है.
भारत सरकार द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव्स (PLI) जैसी नीतियां लागू करने के बावजूद भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी पिछले दो दशकों में 15 प्रतिशत से आगे नहीं बढ़ सकी है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोज़गार भी 12 प्रतिशत पर स्थिर बना हुआ है. ऊपर हमने जिन दोनों उदाहरणों पर चर्चा की है- अगली पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू विमान और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में उन्नत मॉडल विकसित करना- ये दोनों ही दिखाते हैं कि उच्च तकनीक की अगुवाई में भारत की भू-सामरिक स्वायत्तता और हार्ड पावर असल में उसकी सॉफ्ट पावर पर निर्भर करती है. अपने नागरिकों का घरेलू स्तर पर लाभ उठाते हुए अपने रिसर्च और विकास, डिज़ाइन और मैन्युफैक्चरिंग को ताक़त देकर भारत रफ़्तार, कुशलता और व्यापकता के मामले में दुनिया के साथ अपनी साझेदारी को मज़बूत बना सकता है. गुजरात में हुई 2025 की सेमी कनेक्ट कांफ्रेंस इस दिशा में बढ़ने के एक मज़बूत इरादे का संकेत देती है. इसके अंतर्गत अरबों डॉलर के निवेश हो रहे हैं. समीकरण बदलने वाले सहमति पत्रों (MoU) पर हस्ताक्षर किए जा रहे हैं और घरेलू सेमीकंडक्टर उत्पादन, इनोवेशन, प्रतिभा के विकास और रोज़गार को तेज़ करने के लिए रणनीतिक गठजोड़ बनाए जा रहे हैं.
अगली पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू विमान और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में उन्नत मॉडल विकसित करना- ये दोनों ही दिखाते हैं कि उच्च तकनीक की अगुवाई में भारत की भू-सामरिक स्वायत्तता और हार्ड पावर असल में उसकी सॉफ्ट पावर पर निर्भर करती है.
भारत की जोख़िम से बचने वाले, अफ़सरशाही की अगुवाई में आगे बढ़ने वाले उच्च तकनीक के सेक्टर के लिए अब ये अन्वेषण बस दिखावे के नहीं रह गए हैं. बल्कि, अब ये महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित पूरे करने वाले लक्ष्य आधारित मंज़िल बन चुके हैं.
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Rahul Batra is a geopolitical analyst with extensive experience at the intersection of digital platforms and international affairs. ...
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