Author : Kashish Parpiani

Published on Oct 30, 2020 Updated 0 Hours ago

जहां एक ओर जो बाइडेन साल 2018 के चुनावी अनुभवों के आधार पर अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं, वहीं डोनाल्ड ट्रंप नए मतदाताओं को मनाने और अपने साथ जोड़ने के बजाय, बड़ी संख्या में अपने मौजूदा महिला मतदाता वर्ग को मतदान के लिए आगे आने के लिए प्रोत्साहित करने में जुटे हैं. 

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2020 में महिला मतदाताओं की केंद्रीय भूमिका की पड़ताल

साल 1984 के बाद अमेरिका में हुए हर राष्ट्रपति चुनाव की तरह साल 2016 में भी पुरुषों (53.8%)  की तुलना में महिलाओं ने अधिक (58.1%) मतदान किया. यह आंकड़े, डोनाल्ड ट्रंप की जीत का मुख्य कारण भी बने, क्योंकि श्वेत महिलाओं के एक बड़े वर्ग ने हिलेरी क्लिंटन के मुक़ाबले 52-43 के साथ उनके लिए  मतदान किया. इसकी तुलना में हिलेरी क्लिंटन को काली महिलाओं के 94-4 और लातीनी महिलाओं के 69-25 मत मिले. हिलेरी क्लिंटन के श्वेत महिलाओं को खोने के पीछे गैर-कॉलेज शिक्षित श्वेत महिलाओं के वर्ग का महत्वपूर्ण योगदान था, जिन्होंने भारी संख्या में ट्रंप के समर्थन में (61-34) मतदान किया, जबकि क्लिंटन को कॉलेज-शिक्षित श्वेत महिलाओं (51-44) के मतों से मामूली जीत हासिल हुई.

हालांकि, रिपब्लिकन पार्टी के नेता के रूप में ट्रंप के सत्ता में आने के बाद, उन्हें मिले इस समर्थन पर सवाल भी उठे, क्योंकि ट्रंप के कार्यकाल के पहले दो वर्षों के अध्ययन के बाद यह सामने आया कि  उनके प्रति अनुमोदित, पुरुषों और महिलाओं की औसत रेटिंग में 13 प्रतिशत-पॉइंट का जेंडप-गैप था. यह अंतर, जॉर्ज डब्ल्यू बुश तक के उनसे पहले चुने गए सभी राष्ट्रपतियों की रेटिंग में पाए गए अंतर से अधिक था, और साल 2018  के मध्यावधि चुनावों के नतीजों में इस अंतर का असर और इसकी ज़मीनी हक़ीकत स्पष्ट रूप से सामने आ गई. डेमोक्रेटिक पार्टी को प्रतिनिधि सभा का नियंत्रण सौंपने वाली इस जीत में, डेमोक्रेटिक पार्टी ने 19 अंकों (59-40) से महिला मतदाताओं को जीता- यह 1982 की जीत (58-41) से भी बड़ा अंतर था. गैर-श्वेत और लातीनी महिलाओं द्वारा अधिक संख्या में मतदान किए जाने के अलावा, इस जीत का श्रेय, कॉलेज में शिक्षित श्वेत महिलाओं को भी दिया गया, जिन्होंने 59 प्रतिशत मतदान के साथ जीत को डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों के पक्ष में दर्ज किया

साल 2018 के अनुभवों के आधार पर, जो बाइडेन के अभियान ने अन्य महिला मतदाताओं के वर्ग पर ध्यान केंद्रित किया है,  ताकि वो कामकाजी वर्ग की श्वेत महिलाओं से ट्रंप को मिलने वाले किसी भी चुनावी लाभ से आगे निकल सकें. 

हालांकि, ‘इलेक्टोरल-कॉलेज’ की महत्वपूर्ण भूमिका के कारण कांग्रेस के मध्यावधि चुनावों और राष्ट्रपति चुनावों में अंतर है. राष्ट्रपति चुनावों में परिणाम, “सभी ज़िलों में प्रत्याशियों की सिलसिलेवार जीत” के आधार पर तय किए जाते हैं और उम्मीदवार के वोट मार्जिन से नहीं. यह वजह है कि साल 2016 में, मिशिगन, पेंसिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन में- जहां ट्रंप ने 0.2, 0.7 और 0.8 प्रतिशत अंकों के बेहद कम अंतर के साथ जीत हासिल की, वहां गैर-कॉलेज-शिक्षित श्वेत महिलाओं ने, ट्रंप को डेमोक्रेटिक पार्टी के मुक़ाबले, 46 ‘इलेक्टोरल-वोट’ के ज़रिए, इन राज्यों में पैठ बनाने में अहम रूप से सहायता की. 

कैसे संतुलित हो सकती है ट्रंप की चुनावी बढ़त

अमेरिकी चुनावी प्रणाली की इस विशेषता को पहचानते हुए, जिसमें “मतदाताओं के असंगत प्रभाव” का नतीजों पर खासा असर पड़ता है, जैसे कि नतीजों को प्रभावित करने वाले राज्यों में, श्वेत कामकाजी वर्ग की संख्या,  डेमोक्रेटिक उम्मीदवार और पूर्व उपराष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने चुनावी अभियान की रणनीति को इसी हिसाब से निर्धारित किया है. साल 2018 के अनुभवों के आधार पर, जो बाइडेन के अभियान ने अन्य महिला मतदाताओं के वर्ग पर ध्यान केंद्रित किया है,  ताकि वो कामकाजी वर्ग की श्वेत महिलाओं से ट्रंप को मिलने वाले किसी भी चुनावी लाभ से आगे निकल सकें. यह राष्ट्रीय स्तर पर जो बाइडेन की लगातार जारी, दोहरे अंकों की बढ़त के रूप में स्पष्ट है, जिसे ख़ासतौर पर महिला समर्थकों और मतदाताओं द्वारा रेखांकित किया गया है- जिनमें से 56 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने ट्रंप के मुकाबले बाइडेन का पक्ष लिया है. यहां तक कि ट्रंप, भले ही गैर-कॉलेज शिक्षित श्वेत महिलाओं के साथ 59-37 अंकों की बढ़त बनाए हुए हैं, लेकिन बाइडेन के लिए जीत के आंकड़ें, उपनगरों में रहने वाली महिलाओं पर निर्भर हैं, जो 14 प्रतिशत के ज़रिए, बुज़ुर्ग महिलाएं जो 12 प्रतिशत के ज़रिए, अफ्रीकी-अमेरिकी महिलाएं जो 72 प्रतिशत के ज़रिए और 30 साल से कम उम्र की महिलाएं जो 60 प्रतिशत अंकों के ज़रिए, उनके आंकड़ों को बेहतर बना सकती हैं.

इसके अलावा, जो बाइडेन के अभियान ने मतदाताओं के रुझान में भी बदलाव पैदा किया है, जो पिछले कुछ महीनों में, रिपब्लिकन प्रशासन काल में रहे सुरक्षा अधिकारियों के ज़रिए हुआ है. ‘बाइडेन रिपब्लिकन’ के रूप में लोकप्रिय इस रणनीति को, बाइडेन अब अपने चुनावी अभियान के ज़रिए उन महिलाओं के पक्ष में इस्तेमाल करना चाहते हैं, जो लिंकन परियोजना जैसी रूढ़िवादी राजनीतिक समितियों के साथ जुड़ी हैं, और जिनका उद्देश्य “असंतुष्ट, रूढ़िवादी, रिपब्लिकन और रिपब्लिकन-झुकाव वाले स्वतंत्र लोगों” को डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता से बाहर करने के लिए प्रेरित करना है.

जो बाइडेन ने इस बात को रेखांकित किया है कि महिलाओं व लड़कियों के लिए बनाई गई, ‘व्हाइट हाउस काउंसिल ऑन वीमेन एंड गर्ल्स’ को भंग कर, और उचित वेतन व सुरक्षित कार्यस्थल से जुड़े कार्यकारी आदेश को रद्द करने से संबंधित ट्रंप प्रशासन के फ़ैसलों ने महिलाओं को पीछे धकेल दिया है.

ऐसी संस्थाओं ने मदद स्वरूप, कोविड-19 की महामारी से निपटने में ट्रंप प्रशासन की विफलता, कानून व व्यवस्था से जुड़े मुद्दों और नस्लीय मनमुटाव के मसलों पर डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ धार-दार विज्ञापनों की झड़ी लगा दी है. इसके ज़रिए जो बाइडेन का चुनावी अभियान, महिला मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करने में सफल हो पाया है. “डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी महिलाओं को निराश किया है”, इस नारे के तहत महिलाओं के लिए एक ब्लूप्रिंट जारी कर, जो बाइडेन ने इस बात को रेखांकित किया है कि महिलाओं व लड़कियों के लिए बनाई गई, ‘व्हाइट हाउस काउंसिल ऑन वीमेन एंड गर्ल्स’ को भंग कर, और उचित वेतन व सुरक्षित कार्यस्थल से जुड़े कार्यकारी आदेश को रद्द करने से संबंधित ट्रंप प्रशासन के फ़ैसलों ने महिलाओं को पीछे धकेल दिया है. इस रणनीति को अपनाकर जो बाइडेन के चुनावी अभियान ने पारंपरिक रूप से रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक रहे अमेरिकी नागरिकों और ट्रंप समर्थकों के बीच फाड़ पैदा करने की कोशिश की है, क्योंकि यह फैसले रिपब्लिकन पार्टी के पारंपरिक समर्थकों को भी रास नहीं आए हैं, और उन्होंने इसे रिपब्लिकन पार्टी की सोच से जुड़े फैसले की तरह न देखते हुए, महिलाओं के प्रति ट्रंप प्रशासन के रवैये के रूप में देखा है.

इसने जो बाइडेन के चुनावी अभियान को कथित रूप से प्रभावशाली रूढ़िवादी महिला मतदाताओं से जोड़ा है, जो डेमोक्रैटिक पार्टी की प्रभावशाली और कद्दावर महिला नेताओं, जैसे कमला हैरिस, नैन्सी पेलोसी, वैलेरी जेरेट की ताक़त को बढ़ाने का काम करेंगी. जो बाइडेन के अभियान ने कथित रूप से क्रिस्टीन टॉड व्हिटमैन (न्यू जर्सी की पूर्व गवर्नर) और सुसान मोलिनारी (न्यूयॉर्क की पूर्व कांग्रेस नेता) जैसी प्रभावशाली ‘बाइडेन रिपब्लिकन महिलाओं’ से भी मदद ली है. जो बाइडेन के अभियान ने, एरिज़ोना जैसे राज्यों में- जो कई दशकों में पहली बार डेमोक्रेट पार्टी के लिए नतीजों में आमूल-चूल परिवर्तन का कारण बन सकते हैं, प्रभावशाली मैककेन परिवार की महिला मुखिया को भी, बाइडेन के समर्थन में सामने आने के लिए तैयार किया है. इस संबंध में अपनी घोषणा में सिंडी मैककेन ने “उपनगरीय महिलाओं” को संबोधित करते हुए कहा कि वे इस चुनावी “दौड़ को सख़्त नज़रिए से देखें और जिस तरह उन्होंने ख़ुद एक रेखा को पार किया है, उसी तर्ज पर वह भी आगे बढ़ें.”

महिला मतदाताओं को मनाने के बजाय उन्हें अपने पक्ष में जुटाना

साल 2016 के परिणामों के एक वैकल्पिक अध्ययन से पता चलता है, कि ट्रंप इसलिए नहीं जीते क्योंकि उन्होंने ‘अमेरिकी मूल’ के अपने चुनावी संदेश के ज़रिए, ‘स्विंग राज्यों’ में श्वेत मतदाताओं को सफलतापूर्वक अपने पक्ष में किया, बल्कि वह इसलिए जीते, क्योंकि साल 2012 के मुकाबले, बेहद कम संख्या में मतदाता मतदान के लिए बाहर निकले, जिसके चलते हिलेरी क्लिंटन की हार हुई. उदाहरण के लिए, चुनावी युद्ध क्षेत्र विस्कॉन्सिन में,  साल 1984 के बाद, ट्रंप पहले ऐसे रिपब्लिकन उम्मीदवार बने जिन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता. हालांकि, ट्रंप को समग्र रूप से लगभग उतने ही वोट मिले थे जितने साल 2012 में मिट रॉमनी को मिले थे, जब वो बराक ओबामा से चुनाव हार गए थे. जबकि इस आंकड़े को उलटकर देखें तो पता चलता है कि हिलेरी क्लिंटन को “बराक ओबामा की तुलना में लगभग 240,000 कम वोट मिले”. विस्कॉन्सिन में, साल 2012 में 79 प्रतिशत गैर-श्वेत आबादी मतदान के लिए बाहर निकली, जबकि साल 2016 में केवल 47 प्रतिशत गैर-श्वेत आबादी ने मतदान में हिस्सा लिया. ऐसे में इस अकेले कारक के चलते हिलेरी क्लिंटन को लगभग 88,000 मतों का नुकसान हुआ.

यही वजह है कि ट्रंप अगर गैर-कॉलेज-शिक्षित श्वेत महिला मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ बनाए रखते हैं, तो इससे एक बार फिर चुनावी नतीजों पर फर्क पड़ सकता है. ख़ासतौर पर अगर मतदाताओं के बाहर निकलने और मतदान करने पर ही सबकुछ निर्भर हो, क्योंकि कोविड-19 की महामारी के कारण देश भर में नए मतदाताओं के पंजीकरण में खासी गिरावट आई है. इसके अलावा, जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा साल 2004 में पुनर्निवाचित होने के दौरान, ऐतिहासिक रूप से मतदाताओं के बाहर निकलने की बात देखें तो, ट्रंप के पास साल 2016 में मिशिगन, विस्कॉन्सिन और पेंसिल्वेनिया के क्रमशः 222,000, 175,000 और 130,000  आंकड़ों के ज़रिए, अतिरिक्त मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की गुंजाइश है. यही वजह है कि महामारी की आशंकाओं के बावजूद डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी अभियान के तहत बड़े पैमाने पर रैलियों का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें,  उन लोगों की पहचान की जा रही है, और उन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिन्होंने साल 2016  में वोट नहीं दिया था, और इस बात को सुनिश्चित किया जा रहा है कि यह लोग अपने संपर्क-सूत्र एक डेटाबेस में दर्ज करें, ताकि घर-घर जाकर, फोन कॉल और टेक्स्ट संदेशों के ज़रिए उन्हें मतदान करने के लिए उकसाया जा सके.

गैर-कॉलेज-शिक्षित श्वेत महिलाओं के बीच अपने पक्ष को मज़बूती से रखने और उन्हें अपने हक़ में मतदान करने के लिए प्रोत्साहित करने के प्रयास के रूप में ट्रंप ने अपने अभियान के अंतर्गत, ‘वूमन फॉर ट्रम्प’ नाम से बस यात्रा शुरू की है, जो चुनावी नज़रिए से महत्वपूर्ण राज्यों के सुदूर और सबसे छोटे केंद्रों में मतदाताओं को प्रोत्साहित करने और मतदान को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखती हैं. इन यात्राओं में, लॉरेंस काउंटी (पेंसिल्वेनिया) में स्थित न्यू कैसल (जनसंख्या 88,000 से कम), माहोनिंग काउंटी (ओहायो) में स्थित बोर्डमैन (जनसंख्या 35,000 से कम) और पिट काउंटी (नॉर्थ कैरोलीना) में स्थित ग्रीनविल (जनसंख्या 178,000  से कम) जैसे इलाके शामिल हैं.

ट्रंप ने अपने अभियान के अंतर्गत, ‘वूमन फॉर ट्रम्प’ नाम से बस यात्रा शुरू की है, जो चुनावी नज़रिए से महत्वपूर्ण राज्यों के सुदूर और सबसे छोटे केंद्रों में मतदाताओं को प्रोत्साहित करने और मतदान को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखती हैं.

ऐसी जगहों पर मतदान के लिए महिलाओं को जुटाने के लिए, ट्रंप के चुनावी अभियान ने, जो बाइडेन द्वारा ट्रंप के चरित्र और महिलाओं से जुड़ी उनकी नीतियों पर प्रहार करने की कोशिशों को नाकाम करने पर ध्यान दिया है. महिला मतदाताओं के लिए साल 2016  में अपनाए गए मंत्र को दोहरी ताक़त से अमल में लाते हुए ट्रंप के अभियान में इस बात पर ध्यान दिया जा रहा है कि महिलाओं को “क्या बात बुरी लग सकती है, और क्या बात उन्हें प्रभावित करती है”. इसके चलते, ट्रंप अभियान मतदाताओं के बीच ‘कानून और व्यवस्था’ से जुड़े अपने संदेश पर टिका रहा है, और इस बात को दोहराता रहा है कि जो बाइडेन द्वारा प्रस्तावित की जा रही सस्ते आवास की योजना और नीतियां, उपनगरों के लिए अस्तित्व और सुरक्षा का संकट बन सकती हैं. इसके अलावा,  इस अभियान में ट्रंप के उस फैसले का भी पुरज़ोर समर्थन किया जा रहा है, जिसमें उन्होंने सुसान बी एंथनी को पूरी तरह से माफ़ी दिए जाने की पैरवी की है. सुसान बी एंथनी, महिलाओं के मताधिकार को लेकर आगे आने वाली सबसे प्रमुख नेता रही हैं, हालांकि, वामपंथियों ने नस्लीय मुद्दों पर उनकी विरासत को ‘संदिग्ध’ करार देते हुए उनके योगदान पर सवाल खड़े किए हैं.

अंतिम रूप में देखे तों, रूथ बेडर गिन्सबर्ग की मृत्यु के बाद,  ट्रंप के चुनावी अभियान ने एमी कोनी बैरेट के नामांकन को उजागर किया है, ताकि वह रूढ़िवादी ईसाई महिलाओं को रिझा सकें. 

अंतिम रूप में देखे तों, रूथ बेडर गिन्सबर्ग की मृत्यु के बाद,  ट्रंप के चुनावी अभियान ने एमी कोनी बैरेट के नामांकन को उजागर किया है, ताकि वह रूढ़िवादी ईसाई महिलाओं को रिझा सकें. इस नामांकन की डेमोक्रैटिक पार्टी के सदस्यों ने यह कहकर आलोचना की है, कि बैरेट के रूढ़िवादी कैथलिक विचारों का न्याय व्यवस्था और उसके फ़ैसलों पर असर पड़ेगा. ट्रंप द्वारा बैरेट के नामांकन से आने वाले दशकों में, सुप्रीम कोर्ट में रूढ़िवादी झुकाव और मज़बूत हो जाएगा. यह प्रजनन अधिकारों के संबंध में विशेष रूप से लक्षित हो सकता है, जिसे लेकर साल 2016 के अभियान के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने प्रतिज्ञा की थी कि वह ऐसे न्यायाधीशों को नामांकित करेंगे जो “स्वचालित रूप से” रो बनाम वेड (वर्ष 1973 का प्रभावी निर्णय जिसने गर्भपात के लिए महिलाओं के कानूनी अधिकार को स्थापित किया था) को पलट देंगे. चुनावों के दृष्टिकोण से, यह नामांकन, प्रजनन अधिकारों के नज़रिए से दोनों प्रत्याशियों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.

इसलिए, जो बाइडेन के विपरीत, डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी अभियान की रणनीति, नई महिला मतदाताओं को मनाने और उन्हें अपने साथ जोड़ने पर नहीं टिकी है, बल्कि गैर-कॉलेज-शिक्षित श्वेत महिला मतदाताओं पर अपनी पकड़ बनाए रखने और बड़ी संख्या में उन्हें मतदान के लिए आगे आने के लिए प्रोत्साहित करने से जुड़ी है.

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