बिना किसी बाधा के हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित होने के लिए दुनिया भर के देश अहम खनिज तत्वों की आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित बनाने के तरीक़ों की पहचान कर रहे हैं. कोबाल्ट, ग्रेफाइट और लिथियम समेत कई दुर्लभ खनिजों को अहम खनिज तत्व या क्रिटिकल मिनरल्स (CMs) कहा जाता है. ये इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EVs) समेत दूसरी हरित तकनीकों के लिए बेहद अहम होते हैं. इसीलिए, सहजता से हरित परिवर्तन के लिए इन खनिजों (CMs) की आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करना बेहद अहम हो जाता है.
हालांकि, अपनी प्राकृतिक उपस्थिति के कारण, ये दुर्लभ खनिज दुनिया के कुछ ख़ास भौगोलिक इलाक़ों में ही ज़्यादा मिलते हैं.मिसाल के तौर पर अफ्रीकी देश, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में दुनिया के 46 प्रतिशत कोबाल्ट के भंडार हैं. वहीं, लैटिन अमेरिकी देश बोलीविया में सबसे बड़ा लिथियम भंडार है, जो दुनिया के कुल लिथियम भंडार का 23.6 प्रतिशत है. अपनी उपलब्धता के साथ साथ, इन खनिज तत्वों के उत्पादन और साफ़-सफ़ाई का काम भी कुछ गिने-चुने देशों में ही केंद्रित है. दुनिया के लगभग आधे लिथियम काखनन अकेले ऑस्ट्रेलिया में किया जाता है. वहीं, चीन दुनिया के 90 प्रतिशत से ज़्यादा ग्रेफाइट कोरिफाइनकरता है, जिसे अलग अलग तत्वों के रूप में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरियों में इस्तेमाल किया जाता है. क्रिटिकल मिनरल्स के कुछ ख़ास देशों तक सीमित होने की वजह से उनकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को झटके लगने और उनमें बाधा पड़ने का ख़तरा बढ़ जाता है. इसके लिए निर्यात पर नियंत्रण और पाबंदियों जैसे कई कारण ज़िम्मेदार होते हैं.
खनिज संसाधन का व्यापार
अभीहाल ही में चीन ने ग्रेफाइट के निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगा दिए थे, और इस तरह चीन ने बिना लाइसेंस के ‘बेहद अधिक शुद्धता वाले सिंथेटिक ग्रेफाइट’ क़ुदरती तौर पर मिलने वाले फ्लेक ग्रेफाइट के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी. इसमें ‘गोलाकार और फैले हुए रूप में मिलने वाला ग्रेफाइट’ भी शामिल है. ग्रेफाइट के निर्यात पर चीन की ये पाबंदी 1 दिसंबर 2023 से लागू हो जाएगी. इससे पहले चीन ने इसी साल अगस्त में जर्मेनियम और गैलियम के निर्यात पर भीकुछ पाबंदियां लगा दी थीं. दोनों ही मामलों में निर्यात पर पाबंदियों का असर दो प्रमुख क्षेत्रों में पड़ने वाला है- ग्रेफाइट को इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरियां बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. वहीं, जर्मेनियम और गैलियम को सेमीकंडक्टर तकनीकें बनाने में प्रयोग किया जाता है. ग्रेफाइट के निर्यात पर चीन द्वारा लगाई गई पाबंदी से दुनिया भर में ग्रेफाइट के दामबढ़ने की आशंका है. क्योंकि, चीन दुनिया का शीर्ष ग्रेफाइट निर्यातक देश है, और ये अनुमान लगाया गया है कि वो ‘दुनिया के कुल प्राकृतिक फ्लेक ग्रेफाइट के 61 प्रतिशत और बैटरी केएनोड बनाने में इस्तेमाल होने वाले 91 फ़ीसद परिष्कृत ग्रेफाइट का उत्पादन करेगा.’
वैसे तो क्रिटिकल मिनरल्स (CMs) के निर्यात को सीमित करने के लिए लाइसेंस और प्रतिबंधों के हथियार का इस्तेमाल पहले भी किया गया है. लेकिन,2009 के बाद से ये पाबंदियां लगाने का सिलसिला ख़ास तौर से तेज़ हो गया है. हालांकि, इससे एक बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि अन्य देश अहम खनिज तत्वों की आपूर्ति श्रृंखलाओं को कैसे सुरक्षित बना सकते हैं. ख़ास तौर से उस सूरत में जब वो दूसरे देशों से इनके आयात पर बहुत ज़्यादा निर्भर हों और इन संसाधनों से लैस देशों या इनकी आपूर्ति के मामले में दबदबा रखने वाले देश निर्यात पर प्रतिबंध लगा दें. इसके अलावा, येआकलन भी किया गया है कि हरित परिवर्तन की वजह से CMs की मांग में इज़ाफ़ा होगा, ख़ास तौर से इलेक्ट्रिक गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाले खनिज तत्वों की मांग बढ़ेगी, जिससे इनकी क़िल्लत पैदा हो सकती है. इसीलिए, तमाम देशों को न केवल CMs की आपूर्ति बढ़ानी होगी, बल्कि, भविष्य की मांग पूरी करने के लिए उन्हें मौजूदा आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी सुरक्षित बनाना होगा. नीचे की तस्वीर, अमेरिका के क्रिटिकल मिनरल्स असेसमेंट2023 की है, जिसमें कुछ अहम खनिज तत्वों (CMs) की आपूर्ति में मध्यम अवधि के जोखिमों के बारे में बताया गया है (Image Missing).
इन जोखिमों को देखते हुए, कई देश तमाम तरह के नीतिगत क़दम उठाकर, क्रिटिकल मिनरल्स की आपूर्ति के ख़तरों को कम करने और उनकी सप्लाई चेन को सुरक्षित बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इनमें दोस्त देशों के साथ मिलकर नीतियां बनाना, आपूर्ति करने वालों में विविधता लाना और घरेलू क्षमता निर्माण में निवेश करने जैसे उपाय शामिल हैं. इलेक्ट्रिक गाड़ियों का कारोबार करने वालों ने भी अपने सप्लायर्स की संख्या बढ़ा दी है और अब वो CM की आपूर्ति श्रृंखलाओं में ख़ुद भी निवेश कर रहे हैं. इसी साल की शुरुआत में अपने सप्लायर्स में विविधता लाने के लिए अमेरिकी कंपनी टेस्ला ने ग्रेफाइट की आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए मैग्निस एनर्जी टेक्नोलॉजीस के साथ एकसमझौता किया था. इसके अलावा, पिछले साल टेस्ला ने इस बात की तस्दीक़ भी की थी कि वो अमेरिका में लिथियम कीरिफाइनरी का निर्माण कर रहा है. इसी तरह, जनरल मोटर्स भी लिथियम की आपूर्ति सुरक्षित बनाने के लिए लिथियम अमेरिकाज़ मेंनिवेश कर रही है.
इन क़दमों के साथ साथ, CM की अधिक लचीली आपूर्ति श्रृंखलाएं निर्मित करने के लिए द्विपक्षीय साझेदारियां भी एक अहम औज़ार बनकर उभरी हैं.G20 औरG7 जैसे बहुपक्षीय संगठनों ने अहम खनिजों की आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित बनाने की ज़रूरत को बार बार दोहराया है. लेकिन, द्विपक्षीय साझेदारियों के ज़रिए, CM के क्षेत्र में सहयोग और निवेश को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. क्रिटिकल मिनरल्स की आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित बनाने के लिए देशों द्वारा जो नीतिगत क़दम उठाए जा रहे हैं, उनमें इन साझेदारियों का निर्माण सबसे ज़्यादा हो रहा है. ये साझेदारियां करने वाले देशों को नीतिगत स्तर पर सहयोग और तालमेल के वादे करने से लेकर पर्यावरण और श्रमिक मानकों को लेकर और गंभीर वादे करने जैसे अलग अलग स्तरों पर मिलकर काम करने का मौक़ा मिलता है. ये साझेदारियां/ समझौते मौजूदा आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने और मौजूदा सप्लायर्स पर अधिक निर्भरता कम करने में भी योगदान देते हैं. जैसे कि अमेरिका और जापान नेCM समझौता किया है, जिसका मक़सद इलेक्ट्रिक गाड़ियों की तकनीक से जुड़े अहम खनिजों की आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत करना और उनमें विविधता लाना है. इस समझौते में ज़ोर दिया गया है कि दोनों देश व्यापार की अंतरराष्ट्रीय बाध्यताओं का पालन क्रिटिकल मिनरल्स के मामले में भी करेंगे, और इसमें टिकाऊ आपूर्ति श्रृंखलाएं निर्मित करने के लिए भी मिलकर काम करने का प्रावधान है. इसी तरह भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीचक्रिटिकल मिनरल्स इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप हुई है, जिससे दोनों देशों के बीच CMs के मामले में आपसी सहयोग को बढ़ाया जा सके. हाल ही में फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया ने भी अहम खनिज तत्वों को लेकर एकद्विपक्षीय समझौता किया है. क्रिटिकल मिनरल्स के द्विपक्षीय समझौते करने के लिए अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) और अमेरिका और ब्रिटेन (UK) के बीच भीबातचीत चल रही है. निवेश में सहयोग और व्यापार की बाधाएं दूर करने के साथ साथ, इनमें से कुछ समझौतों में संबंधित देशों द्वारा आयात या निर्यात पर प्रतिबंध न लगाने के वादे भी किए गए हैं. इसके साथ साथ बाज़ार तक पहुंच और व्यापार संबंधी प्रावधानों के अलावा, इन समझौतों में, आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़े व्यापार संबंधी पर्यावरण के मानकों को जोड़कर, CMs की टिकाऊ आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण के प्रावधान भी शामिल किए जा सकते हैं. इससे CM की आपूर्ति श्रृंखलाएं सुरक्षित बनाने के साथ साथ इन खनिजों की सबके लिए समान और टिकाऊ आपूर्ति भी सुनिश्चित की जा सकेगी. इसीलिए, आने वाले समय में आपसी सहयोग बढ़ाने और क्रिटिकल मिनरल्स की अधिक सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखलाएं निरमित करने में द्विपक्षीय सहयोग और साझेदारी एक प्रमुख ज़रिया बनकर उभरने वाला है.
निष्कर्ष
भले ही अहम खनिज तत्वों की आपूर्ति श्रृंखलाएं कुछ ख़ास देशों में केंद्रित हैं, पर इन से जुड़ी कुछ चुनौतियों से द्विपक्षीय सहयोग के ज़रिए निपटा जा सकता है. इसीलिए, बहुपक्षीय स्तर पर नीतिगत तालमेल और घरेलू स्तर पर नीतिगत दख़ल और कारोबार जगत द्वारा जोखिम कम करने के उपाय अहम तो हैं. लेकिन, अब बहुत से देश क्रिटिकल मिनरल्स के मामले में सहयोग करने और आपूर्ति श्रृंखलाओं में संभावित कमज़ोरियों से निपटने के लिए द्विपक्षीय सहयोग पर ज़ोर दे रहे हैं, ख़ास तौर से निर्यात पर नियंत्रण और व्यापारिक कर की बाधाओं के मामले में. ये साझेदारियां देशों को आपूर्ति के झटकों और निर्यात के प्रतिबंधों से उबरने की दिशा में एक क़दम और आगे बढ़ने में योगदान देंगी और इनसे क्रिटिकल मिनरल्स की सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखलाएं निर्मित करने की सहयोगात्मक राह बनाने में मदद मिलेगी, जिससे हरित ऊर्जा की तरफ बिना किसी बाधा के क़दम बढ़ाए जा सकें.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.