Author : Abhishek Gupta

Published on Oct 20, 2021 Updated 0 Hours ago

जाने-माने अमेरिकी उद्यमी, निवेशक और सॉफ़्टवेयर इंजीनियर मार्क एंड्रेसन का ये विचार बेहद मशहूर हुआ है कि सॉफ़्टवेयर दुनिया को ‘निगल’ रहा है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बेहिसाब इस्तेमाल: हमारी पृथ्वी के ख़िलाफ़ मशीनों का प्रकोप

जाने-माने अमेरिकी उद्यमी, निवेशक और सॉफ़्टवेयर इंजीनियर मार्क एंड्रेसन का ये विचार बेहद मशहूर हुआ है कि सॉफ़्टवेयर दुनिया को ‘निगल’ रहा है. बहरहाल, आज इससे आगे की कड़ी दिखाई दे रही है. अब आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) सॉफ़्टवेयर को तबाह कर रहा है. हालांकि, मूल रूप से इस दलील के तहत ‘दुनिया’ का मतलब है विश्व का आर्थिक तानाबाना: मसलन कारोबार जगत का संचालन कैसे होता है और कैसे उनकी सबसे मूल चिंता मुनाफ़े को लेकर होती है. हालांकि, अब इस सिलसिले में तिहरे मकसद की ओर आगे बढ़ने का दबाव बनता जा रहा है. इसके तहत तीन P- यानी प्रॉफ़िट (मुनाफ़ा), पीपुल (आम लोग) और प्लैनेट (हमारी धरती) के हितों को ध्यान में रखना ज़रूरी समझा जाने लगा है. ऐसे में इस बात की पड़ताल ज़रूरी हो गई है कि AI किस तरह से हमारी पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहा है!

दरअसल, AI सिस्टम सघन रूप से कम्प्यूटरों पर आधारित है. इसकी संरचना, विकास और तैनाती में कम्प्यूटरीकृत प्रक्रियाओं के कई चरणों का इस्तेमाल होता है. आमतौर पर इसमें एक या ज़्यादा ग्राफ़िकल प्रोसेसिंग यूनिट्स (GPUs) का प्रयोग होता है.  

दरअसल, AI सिस्टम सघन रूप से कम्प्यूटरों पर आधारित है. इसकी संरचना, विकास और तैनाती में कम्प्यूटरीकृत प्रक्रियाओं के कई चरणों का इस्तेमाल होता है. आमतौर पर इसमें एक या ज़्यादा ग्राफ़िकल प्रोसेसिंग यूनिट्स (GPUs) का प्रयोग होता है. क्लॉउड कम्प्यूटिंग के बढ़ते चलन के चलते इन सिस्टम्स के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और अनुमानों से जुड़ी नौकरियां बड़े डेटा सेंटरों के ज़रिए संचालित होने लगी है. इस बीच इन विशाल डेटा सेंटरों से उत्सर्जित होने वाले कार्बन की मात्रा दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है. माना कि आपके ख़ुद के बुनियादी ढांचों के मुकाबले कार्बन उत्सर्जन के मसलों पर ये ज़्यादा कार्यकुशल होते हैं और इनके संचालन में कम कार्बन उत्सर्जित होता है. अपने आकार और संसाधनों के इस्तेमाल की कार्यकुशलता की वजह से ऐसा होता है. हालांकि यहां एक बात पर ध्यान देना ज़रूरी है. चूंकि ये कम्प्यूटेशन को सस्ता और आसानी से सुलभ बनाते हैं लिहाजा इनके संदर्भ में जेवॉन का विरोधाभासी सिद्धांत (Jevon’s Paradox) लागू होता है. इस प्रकार कार्यकुशलता के बढ़ते ही मांग और कुल उपभोग में बढ़ोतरी होती है. इस पूरी प्रक्रिया के साथ-साथ बड़े आकार वाले AI मॉडल की व्यवस्था आम प्रचलन में आ जाती है. इनमें से कुछ व्यवस्थाओं के तहत प्रशिक्षण में लाखों डॉलरों की लागत आ सकती है. इसके साथ ही इन तंत्रों से कई कारों द्वारा उत्सर्जित होने वाले कार्बन या महादेशों के आर-पार विमानों के अनेक उड़ानों के बराबर कार्बन बाहर निकलता है.     

OpenAI द्वारा कराए गए एक अध्ययन से विशाल आकार वाले AI सिस्टम द्वारा कंप्यूटेशनल उपभोग में हुई तेज़ रफ़्तार बढ़ोतरी का पता चला है. इन हालातों में इनकी ज़रूरत हर 3.4 महीनों पर दोगुनी हो जा रही है. इस तरह ये रफ़्तार मूर के सिद्धांत को भी पीछे छोड़ती दिखाई देती है. इस सिद्धांत के तहत एक इंटीग्रेटेड सर्किट में बंद हो सकने वाले ट्राज़िस्टर्स की तादाद के तक़रीबन 2 सालों में दोगुना होने की बात कही गई है. कुछ लोग मानव जीवन को सुखमय बनाने के लिए ऐसे विशाल AI सिस्टमों के इस्तेमाल को जायज़ बता सकते हैं. हालांकि हमें मालूम है कि ये बात सच्चाई से परे है. यहां ख़ासतौर से इस बात को रेखांकित करना ज़रूरी है कि AI तंत्र के इस्तेमाल से सामाजिक तौर पर कई नुकसानदेह प्रभाव उभरते हैं. कई मामलों में तो विडंबनापूर्ण या विरोधाभासी परिणाम भी देखने को मिलते हैं. मसलन AI के इस्तेमाल से जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबले की प्रक्रिया में पर्यावरण को नुकसान भी पहुंच सकता है. इस प्रक्रिया में ख़ासतौर से विशाल-पैमाने वाले AI तंत्र की संरचना, विकास और तैनाती के उल्टे परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं.

AI से पर्यावरण को नुक़सान

मशीनों की तेज़ रफ़्तार और उनके सघन इस्तेमाल से हमारी पृथ्वी को नुकसान पहुंच रहा है. ऐसे डेटा सेंटरों से सूक्ष्म रूप से ही सही, पर बड़े पैमाने पर कार्बन का उत्सर्जन होता है. आम तौर पर हमारी नज़रों से दूर स्थित इमारतों के शांत माहौल में ऐसे डेटा सेंटर संचालित होते हैं. AI व्यवस्था के सामाजिक नुकसानों (पूर्वाग्रहों, पारदर्शिता के अभाव, ब्योरों की कमी, प्राइवेसी के हनन और अनुचित या अन्यायपूर्ण तौर-तरीक़ों के विरुद्ध जंग) के ख़िलाफ़ हमारे संघर्ष में पृथ्वी और पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को भी शामिल करना बेहद ज़रूरी है. इस सिलसिले में आपसी सामंजस्य से तैयार ढांचा दोनों क्षेत्रों में कामयाबी हासिल करने के प्रयासों में चार चांद लगा सकता है. 

कुछ लोग मानव जीवन को सुखमय बनाने के लिए ऐसे विशाल AI सिस्टमों के इस्तेमाल को जायज़ बता सकते हैं. हालांकि हमें मालूम है कि ये बात सच्चाई से परे है. यहां ख़ासतौर से इस बात को रेखांकित करना ज़रूरी है कि AI तंत्र के इस्तेमाल से सामाजिक तौर पर कई नुकसानदेह प्रभाव उभरते हैं.

बहरहाल इस संदर्भ में ग्रीन सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग के क्षेत्र से कुछ अहम जानकारियां मिल सकती है. जैसा कि इस आंदोलन से स्पष्ट है: “जलवायु विज्ञान, सॉफ़्टवेयर से जुड़े तौर-तरीक़ों और ढांचे, बिजली के बाज़ार, हार्डवेयर और डेटा सेंटर डिज़ाइन के मेल-जोल से उभरते हुए विज्ञान का नाम है ग्रीन सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग”. ग्रीन सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग के सिद्धांतों के तहत हरित और टिकाऊ सॉफ़्टवेयर ऐप्लिकेशंस को परिभाषित करने, तैयार करने और संचालित करने के लिए ज़रूरी प्रमुख योग्यताओं को शामिल किया गया है.”

रेड AI सिस्टम्स के ख़िलाफ़ प्रतिरोधी व्यवस्थाओं को AI के जीवनकाल के हर चरण यानी परिकल्पना से लेकर संरचना तक में लागू किए जाने की ज़रूरत है. दूसरे शब्दों में इसके जीवन काल की समाप्ति तक इस प्रतिरोधी व्यवस्था को बरकरार रखना आवश्यक है. ग़ौरतलब है कि रेड AI सिस्टम कारोबार को अधिकतम सीमा तक पहुंचाने और कार्यकारी उद्देश्यों की प्राप्ति के एकमात्र लक्ष्य के ऊपर खड़ा किया जाता है. इस व्यवस्था में साथ जुड़ी कंप्यूटेशनल लागतों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. इनका इस्तेमाल करने वालों और शोधकर्ताओं को AI के जीवनकाल में पर्यावरण से जुड़ी लागतों को शामिल करने पर ज़ोर देना चाहिए. इसे एक प्रमुख कार्यकारी ज़रूरत के तौर पर जोड़े जाने की वक़ालत की जानी चाहिए. ऐसा होने पर हमें लगातार बढ़ते जा रहे और बड़े से बड़े AI सिस्टम के नुकसानों से लड़ने के लिए ज़रूरी हथियार मिल सकेंगे. 

हरित लक्ष्य की पूर्ति के लिये सख़्त नियमों से बचाव

बहरहाल पर्यावरण पर AI सिस्टमों के प्रभाव को कम करने की क़वायद उनके प्रदर्शन में गिरावट की क़ीमत पर नहीं होनी चाहिए. इस सिलसिले में कई वैकल्पिक रुख़ों का प्रदर्शन कमोबेश विशाल तंत्रों के समान ही पाया गया है. इनमें डिस्टिल्ड और कंप्रेस्ड नेटवर्क शामिल हैं. इसके अलावा इन वैकल्पिक तौर-तरीक़ों में कंप्यूटेशनल लागत भी अपेक्षाकृत काफ़ी कम होती है. दरअसल इस प्रणाली से पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर लागत या मौद्रिक रूप से ठोस वजहें और दलीलें भी पेश की जा सकती हैं: हरित AI सिस्टम खड़ा करने से संगठन की लागत में भी बचत होती है! इस संदर्भ में TinyML का बढ़ता हुआ क्षेत्र हमारे सामने अवसरों के अनेक द्वार खोल सकता है. दूसरे रुख़ों के हिसाब से इसके ज़रिए छोटी-छोटी AI व्यवस्थाओं का जाल खड़ा किया जा सकता है. अच्छी बात ये है कि इनका प्रदर्शन भी पहले वाली व्यवस्था के समान ही होता है. दूसरे तौर-तरीक़ों में कार्बन-कुशल AI ऐप्लिकेशंस तैयार करना शामिल है. ये रुख़ ऊपर बताए गए तरीक़ों के ज़रिए हासिल किया जा सकता है. इतना ही नहीं कार्बन उत्सर्जन के प्रति जागरूकता के साथ क़दम उठाकर भी इस लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है. मिसाल के तौर पर इसके तहत ये ध्यान रखा जा सकता है कि AI सिस्टम के कंप्यूटर-सघन प्रशिक्षण के क्रियाकलापों को तब चलाया जाए जब बिजली ग्रिड में नवीकरणीय उर्जा का हिस्सा अपेक्षाकृत अधिक हो. इतना ही नहीं इन क्रियाकलापों को दुनिया के उन हिस्सों की ओर मोड़ा जा सकता है जहां हरित साधनों के ज़रिए बिजली पैदा की जा रही है. इसका बहुत बड़ा असर हो सकता है: मसलन अमेरिका के आयोवा जैसी जगह पर कोई कामकाज करने में कनाडा के क्यूबेक जैसी जगह के मुक़ाबले 40 गुणा ज़्यादा कार्बन प्रभाव सामने आएगा. ऐसे में साफ़ है कि परियोजनाओं का स्थान बदलने भर से ही भारी-भरकम बचत का लक्ष्य पाया जा सकता है. ग़ौरतलब है कि आज का उपभोक्ता सॉफ़्टवेयर सिस्टम के कार्बन प्रभावों को लेकर ज़्यादा संजीदा हो गया है. वो पूरी व्यवस्था में अधिक से अधिक पारदर्शिता की मांग करने लगा है. ऐसे में संगठनों द्वारा अपने क्रियाकलापों को कमज़ोर नियम-क़ायदों वाले इलाक़ों में लेकर चले जाने से जुड़े जोखिम कम हो गए हैं. दूसरे शब्दों में हरित लक्ष्यों की पूर्ति के लिए तय की गई सख़्त ज़रूरतों से बचने के लिए संगठनों द्वारा इस तरह के हथकंडे अपनाए जाने का ख़तरा अब पहले के मुक़ाबले काफ़ी कम हो गया है. यही वजह है कि हमें इन तमाम गतिविधियों के साथ-साथ इन सिस्टम्स के पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों को लेकर जागरूकता बढ़ाने की ज़रूरत है. इसके ज़रिए हम अपनी पृथ्वी को होने वाले नुकसानों से लड़ने के लिए चौतरफ़ा रुख़ और रणनीति तैयार कर सकते हैं.  

रेड AI सिस्टम्स के ख़िलाफ़ प्रतिरोधी व्यवस्थाओं को AI के जीवनकाल के हर चरण यानी परिकल्पना से लेकर संरचना तक में लागू किए जाने की ज़रूरत है. दूसरे शब्दों में इसके जीवन काल की समाप्ति तक इस प्रतिरोधी व्यवस्था को बरकरार रखना आवश्यक है.

सामाजिक दायरे में तो पहले से ही मशीनों की ताक़त और प्रभावों को लेकर प्रतिरोध दिखाई दे रहा है. ऐसे में इनके साथ-साथ AI द्वारा ऊर्जा के बेहिसाब इस्तेमाल के चलते भविष्य में उभरने वाले प्रतिरोधों के बारे में हमें और ज़्यादा गहराई से सोचना होगा. आज दुनिया में जलवायु परिवर्तन से जुड़े तमाम ख़तरे मंडरा रहे हैं. संसाधनों तक पहुंच से जुड़े मसले दुनिया में मौजूद असमानताओं को और बढ़ा रहे हैं. समृद्ध और ग़रीब तबके के बीच की खाई और चौड़ी होती जा रही है. ऐसे में AI का सघन इस्तेमाल करने वाले उद्योग आपके AI सिस्टम की कार्बन-कुशलता और कार्बन-जागरूकता से जुड़े विचारों की चिंता करते हुए अपनी विकास यात्रा की शुरुआत कर सकते हैं. इस सिलसिले में सबसे पहले तो यही सोचा जा सकता है कि क्या वाकई इन क्रियाकलापों में AI की ज़रूरत भी है और क्या इनकी बजाए ऐसे ही नतीजे देने वाले सरल और निश्चयात्मक सिस्टमों का विकल्प चुना जा सकता है. इस कड़ी में आख़िरकार ऐसी व्यवस्था तैयार की जा सकती है जिसमें सामाजिक और पर्यावरणीय-दोनों नज़रियों से मशीनों के वजूद में सामंजस्य बिठाया जा सके.      

AI सिस्टम के कंप्यूटर-सघन प्रशिक्षण के क्रियाकलापों को तब चलाया जाए जब बिजली ग्रिड में नवीकरणीय उर्जा का हिस्सा अपेक्षाकृत अधिक हो. इतना ही नहीं इन क्रियाकलापों को दुनिया के उन हिस्सों की ओर मोड़ा जा सकता है जहां हरित साधनों के ज़रिए बिजली पैदा की जा रही है. 

AI को अगर सचमुच मानवता के लिए लाभदायक नतीजे देने वाली तकनीक के तौर पर उभरना है, मानव जीवन के लिए सुखद परिस्थितियों का निर्माण करना है, तो पर्यावरण से जुड़े विचारों को प्रमुखता देनी ही होगी. टिकाऊ AI इंजीनियरिंग के विचारों की वक़ालत करना उस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में पहला क़दम है.  

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