Published on Aug 02, 2019 Updated 0 Hours ago

खज़ाने पर दबाव के कारण योजनाओं की फंडिंग को लेकर सरकारी एजेंसियों के हाथ बंधे हुए हैं, डीआईबी इसका बेहतर विकल्प हो सकता है.

उत्कृष्ट डिवेलपमेंट इंपैक्ट बॉन्ड: गर्भवती महिला की देखभाल की फंडिंग का अनोखा रास्ता

बड़ी अजीब बात है कि दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भारत में मैटरनल मॉर्टेलिटी रेट (एमएमआर) 8.8 प्रतिशत के साथ काफी अधिक है. दुनिया में प्रेग्नेंसी और बच्चों के जन्म जैसे कारणों से जितनी महिलाओं की मौत होती है, उसमें भारत का योगदान 20 प्रतिशत है. ये ऐसे कारण हैं, जिन्हें रोका जा सकता है. हर साल देश में 44 हजार महिलाओं की प्रेग्नेंसी के दौरान ऐसी वजहों से मौत हो जाती है, जिनका इलाज पहले किया जा सकता था.

सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) के हालिया एमएमआर आंकड़ों से पता चलता है कि देश में राजस्थान में मां और नवजात शिशु मृत्यु दर 18.3 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक है. जहां देश भर में एक लाख बच्चों के जन्म पर एमएमआर की संख्या 130 है, वहीं राजस्थान में यह 199 है. अच्छी बात यह है कि इस मामले में देश के साथ राजस्थान की स्थिति में भी सुधार हो रहा है. राज्य सरकार की कोशिशों से पिछले 10 साल में अस्पताल में बच्चों के जन्म देने के मामले बढ़े हैं. यहां 25 प्रतिशत से अधिक बच्चों का जन्म निजी क्षेत्र के संस्थानों में हो रहा है, जिनका इस्तेमाल हर सामाजिक-आर्थिक वर्ग की महिलाएं कर रही हैं. निजी अस्पतालों और क्लिनिक में बहुत ऊंची फ़ीस ली जाती है और इनमें स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं है. मां और नवजात शिशु की जिंदगी की रक्षा के लिए इनमें काफी सुधार की गुंजाईश है.

उत्कृष्ट इंपैक्ट बॉन्ड से साल में दो से चार लाख महिलाओं को फायदा मिलने की उम्मीद है और इससे पांच साल में 10 हजार महिलाओं और नवजात शिशुओं की जिंदगी बचाई जा सकेगी. इस योजना के तहत निजी क्षेत्र में गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी.

गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए डिवेलपमेंट इंपैक्ट बॉन्ड (डीआईबी), मिसाल के तौर पर उत्कृष्ट डिवेलपमेंट इंपैक्ट बॉन्ड एक महत्वपूर्ण पहल है. यह दुनिया का पहला हेल्थ इंपैक्ट बॉन्ड है. इसे पिछले साल फरवरी में लाया गया था और इसका मकसद राजस्थान में गर्भवती महिलाओं से जुड़ी स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार लाना है. उत्कृष्ट डीआईबी, मैटरनल हेल्थ को लेकर सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल (एसडीजी) यानी सतत विकास लक्ष्यों के मुताबिक तैयार किया गया है. इसमें 2030 तक प्रति एक लाख बच्चों के जन्म पर महिलाओं की मृत्यु दर को घटाकर 70 तक लाने का लक्ष्य रखा गया है. अभी तक देश के सिर्फ तीन राज्य– केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु ही इस लक्ष्य को हासिल कर पाए हैं. उत्कृष्ट डीआईबी प्रोजेक्ट को तीन साल में लागू करने के लिए लिया गया है. इसमें कुल 90 लाख डॉलर का निवेश होगा, जिसमें से 10 लाख डॉलर इस परियोजना के नतीजों के विश्लेषण के लिए अलग रखे गए हैं. उत्कृष्ट इंपैक्ट बॉन्ड से साल में दो से चार लाख महिलाओं को फायदा मिलने की उम्मीद है और इससे पांच साल में 10 हजार महिलाओं और नवजात शिशुओं की जिंदगी बचाई जा सकेगी. इस योजना के तहत निजी क्षेत्र में गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी. देश में इंपैक्ट बॉन्ड का बाजार बहुत कम समय में तेजी से बढ़ा है. दुनिया का पहला डीआईबी, ‘लड़कियों को शिक्षित करें’ सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है और इसने 160 प्रतिशत लक्ष्य हासिल किया. डिवेलपमेंट इंपैक्ट बॉन्ड से चार पक्ष जुड़े होते हैं. इनमें से पहला निवेशक होता है, जो सेवा देने वाली कंपनी को वर्किंग कैपिटल यानी कामकाजी पूंजी देता है. सेवा देने वाली कंपनी या संस्था इसमें दूसरा पक्ष है, जिस पर तय लक्ष्य को हासिल करने की ज़िम्मेदारी होती है. तीसरा पक्ष स्वतंत्र समीक्षक होता है, जो योजना की सफलता का पता लगाता है. जब ये लक्ष्य पूरे हो जाते हैं, तभी निवेशक को लक्ष्य हासिल करने पर भुगतान करने वाला पक्ष यानी आउटकम पेयर, मूल रकम के साथ पहले से तय कुछ ब्याज़ अदा करता है. वह इस योजना में चौथा पक्ष है.

उत्कृष्ट डीआईबी कैसे काम करता है?

इसमें एक निवेशक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश के लिए कामकाजी पूंजी देता है ताकि सर्विस प्रोवाइडर यानी सेवा देने वाली संस्था राजस्थान में निजी क्षेत्र के संस्थानों के साथ काम शुरू कर सके. सर्विस प्रोवाइडर राजस्थान में 440 स्मॉल हेल्थकेयर ऑर्गनाइजेशंस (एसएचसीओ) यानी छोटे स्वास्थ्य सेवा संगठनों तक की वित्तीय मदद कर सकता है, जिन्हें सरकार के नए गुणवत्ता मानकों के मुताबिक अपनी सेवा में सुधार लाना होगा. राजस्थान में निजी संस्थाओं की सरकार से सर्टिफ़िकेट लेने की प्रक्रिया काफी पेचीदा और लंबी है. यहां किसी निजी संस्थान को सरकार से मान्यता प्राप्त हेल्थकेयर फैसिलिटी सर्टिफिकेशन प्रोसेस से प्रमाणपत्र हासिल करने में औसतन 14 महीने लगते हैं. उत्कृष्ट डीआईबी का मकसद इसे बेहतर बनाना है. अगर स्वतंत्र विश्लेषक डीआईबी को सफल घोषित करता है तो USAID और मर्क फॉर मदर्स यानी आउटकम पेयर्स निवेशक को मूल रकम के साथ ब्याज़ का भुगतान करेंगे. डीआईबी का एक मकसद सामाजिक परियोजनाओं में निजी निवेश आकर्षित करना है. कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि डीआईबी में निवेश करने से निजी कंपनियों को पहचान बनाने में मदद मिलेगी. कंपनियां ऐसे भी कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) फंड का इस्तेमाल सामाजिक योजनाओं के लिए करती हैं. हालांकि, अभी तक इन फंड्स के असर का पता लगाने की ठोस कोशिश नहीं हुई है. चैरिटी या दूसरे सामाजिक कामकाज और टैक्स बेनेफिट के लिए दान दिया जाता है, लेकिन इस पर गौर नहीं किया जाता कि दान का वास्तविक असर हो रहा है या नहीं. डीआईबी में असर की स्वतंत्र विश्लेषण से पड़ताल कराई जाती है. इसलिए अगर सीएसआर का फंड इसे मिलता है तो उसका प्रभावशाली इस्तेमाल हो पाएगा. डीआईबी से निवेश से जुड़े जोखिम कम करने (पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन) में भी मदद मिल सकती है. डीआईबी का पैसा अच्छे काम में इस्तेमाल होता है, जिससे कंपनियों पर पॉजिटिव असर होगा और उन्हें संतुष्टि भी मिलेगी. डीआईबी के साथ वित्तीय जोखिम भी जुड़े हैं. निवेशकों के लिए इसे समझना भी आसान नहीं है. क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के लिए भी इन बॉन्ड्स का इवैल्यूएशन आसान नहीं है क्योंकि यह काम पारंपरिक तरीकों से नहीं हो सकता. मान लिया जाया कि आउटकम पेयर्स पैसा देने में सक्षम हैं तो भी इसमें भुगतान योजना के लक्ष्य से जुड़ा हुआ है. डीआईबी में सेवा देने वाली कंपनी के डिफॉल्ट करने की काफी गुंजाईश रहती है. इसमें भुगतान लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने से जुड़ा है, लेकिन यह बात स्पष्ट नहीं है कि ‘इंपैक्ट’ के लिए भुगतान का वास्तविक अर्थ क्या है. इसलिए डीआईबी के गठन, पैमाने, इंपैक्ट यानी असर को मापने और इंपैक्ट किस तरह से भुगतान से जुड़ा है, इनके स्टैंडर्ड्स तय करने होंगे. डीआईबी बिल्कुल नया क्षेत्र है. इसलिए जैसे-जैसे इसका विस्तार होगा, इसकी ख़ातिर पूरा ढाँचा तैयार करना होगा.

राजस्थान में निजी संस्थाओं की सरकार से सर्टिफ़िकेट लेने की प्रक्रिया काफी पेचीदा और लंबी है. यहां किसी निजी संस्थान को सरकार से मान्यता प्राप्त हेल्थकेयर फैसिलिटी सर्टिफिकेशन प्रोसेस से प्रमाणपत्र हासिल करने में औसतन 14 महीने लगते हैं. उत्कृष्ट डीआईबी का मकसद इसे बेहतर बनाना है.

डीआईबी के स्ट्रक्चर से जुड़ी बातें बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए. इसके ईकोसिस्टम की निगरानी की मजबूत व्यवस्था भी बनानी होगी. हालांकि, अभी तक सरकार ने फंडिंग के इस अनोखे तरीके के लिए नीति बनाने के कोई संकेत नहीं दिए हैं. ग्लोबल इंपैक्ट बॉन्ड मार्केट पर की गई एक स्टडी से यह बात सामने आई थी कि निवेश की गई रकम के असर और प्रगति पर सही समय पर मिलने वाले, इस्तेमाल किए जाने लायक और प्रामाणिक आंकड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इससे सर्विस प्रोवाइडर को नतीजों को सुधारने में भी मदद मिलती है. डीआईबी पर हमें इन सच्चाइयों को भी स्वीकार करना होगा और समय-समय पर प्रोजेक्ट की समीक्षा करनी होगी. हमें यह भी याद रखना होगा कि सरकारी एजेंसियों की फंडिंग की एक सीमा है. ऐसे में डीआईबी से सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं की वित्तीय मदद का नया रास्ता खुला है. इसका इस्तेमाल शिक्षा, किफायती घरों के निर्माण और सैनिटेशन जैसे कामकाज में किया जा सकता है. हालांकि, इसके लिए उन चीजों की पहचान करनी होगी, जिनसे डीआईबी को बढ़ावा मिले और उसकी सफलता सुनिश्चित की जा सके. केंद्र और राज्य सरकारों की एजेंसियों को इसका पता लगाने के लिए रिसर्च स्टडी करवानी चाहिए कि क्या डीआईबी में लंबी अवधि के नजरिये से निवेश किया जा सकता है. अगर डीआईबी का प्रयोग सफल होता है तो सरकारें अपने वित्तीय संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर पाएंगी.


सानिका दीक्षित ORF मुंबई में रिसर्च इंटर्न हैं.

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