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कुर्स्क पर आकस्मिक हमले की असरदार कामयाबी के बावजूद, यूक्रेन को वैसे नतीजे हासिल नहीं हुए, जिनकी उसने उम्मीद लगा रखी थी.
Image Source: Getty
24 फरवरी 2022 को रूस की सेनाओं ने बेलारूस से यूक्रेन के सुमी और चेर्निहाइव इलाक़ों को पार किया और प्रिपयाट में दाख़िल हो गए थे (चित्र 1 देखें). रूसी सेना के कमांडरों का शुरुआती मूल्यांकन ये था कि रूस दस दिनों में यूक्रेन पर क़ब्ज़ा कर लेगा. तमाम मुश्किलों के बावजूद, यूक्रेन ने अपने सैन्य बलों को नए सिरे से खड़ा किया और वो 2014 में डोनबास क्षेत्र में संघर्ष के बाद से ही उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) की रणनीतियों को अपना रहा था. इलाक़े की बेहतर जानकारी और बेहतर ख़ुफ़िया नेटवर्क जैसे अन्य कारणों की मदद से यूक्रेन की सेना ने रूस के सैनिकों को सुमी चेर्निहाइव और ख़ारकीव से पीछे धकेल दिया. युद्ध के शुरुआती दिनों में रूस की सेनाओं को कुछ कामयाबी मिली थी जब उन्होंने दक्षिण में ज़फ़रोशिया और खेरसन पर क़ब्ज़ा कर लिया था. रूस के आक्रामक अभियान की गति शुरुआत में ही सैनिकों की कमी की वजह से धीमी हो गई थी.
यूक्रेन के सैनिकों की संख्या रूसी सेना से अधिक थी, क्योंकि आक्रमण वाले दिन ही यूक्रेन ने देश भर से सैनिकों की भर्ती शुरू कर दी थी. यही नहीं, पश्चिमी देशों ने हथियारों और खुफिया जानकारियों से भी यूक्रेन की मदद करके उसकी ताक़त बढ़ाई.
यूक्रेन के सैनिकों की संख्या रूसी सेना से अधिक थी, क्योंकि आक्रमण वाले दिन ही यूक्रेन ने देश भर से सैनिकों की भर्ती शुरू कर दी थी. यही नहीं, पश्चिमी देशों ने हथियारों और खुफिया जानकारियों से भी यूक्रेन की मदद करके उसकी ताक़त बढ़ाई. मिसाल के तौर पर स्पेस X की पूरी दुनिया में मौजूद इंटरनेट सेवा स्टारलिंक की सेवाएं यूक्रेन के सैन्य बलों को दी गईं. इससे यूक्रेन के सैनिकों को वास्तविक समय में कहीं भी डेटा साझा करने में आसानी हो गई. इस इंटरनेट सेवा के साथ साथ मल्टिपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम (MLRS और हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम (HIMARS) लॉन्चर (Table 1) सभी यूक्रेन को पश्चिमी देशों से मिले. इस वजह से यूक्रेन को युद्ध के शुरुआती दौर में ही फ़ौरी बढ़त हासिल हो गई थी. युद्ध शुरू होने के तीन महीने बाद मई 2022 में अमेरिकी संसद ने यूक्रेन की मदद के लिए लेंड-लीज़ एक्ट पारित किया जिससे यूक्रेन को अमेरिकी हथियार मुहैया कराए जा सकते थे.
पश्चिमी देशों की मदद की वजह से रूस को खेरसन शहर से पीछे हटना पड़ा. क्योंकि रूस को डर था कि नीपर नदी पर बने पुलों पर यूक्रेन की बमबारी से उसकी सप्लाई लाइनें टूट जाएंगी. यूक्रेन के लिए ये एक बड़ी जीत थी. पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को टैंक भी मुहैया कराए. जिसके बाद यूक्रेनी सेना में नई इकाइयों का गठन किया गया और सैन्य बलों में नया जोश आ गया. इस दौरान यूक्रेन, रूसी सैन्य बलों को भारी नुक़सान पहुंचा सकता था. लेकिन, यूक्रेन ने ज़फरोशिया से अज़ोव सागर तक अपना वो आक्रामक अभियान देर से शुरू करके वो मौक़ा गंवा दिया, जिससे रूस की खेरसन तक पहुंच को काटा जा सकता था और लुहांस्क में उसके अभियान को भी चोट पहुंचाई जा सकती थी. ऐसा न करने की वजह शायद ये थी कि अमेरिका को यूक्रेन की सेनाओं द्वारा ऐसा अभियान छेड़ पाने की क्षमताओं को लेकर हिचक थीं.
चित्र 1: 27 फरवरी 2022 को यूक्रेन में रूस के क़ब्ज़े वाले इलाक़े और रूस के मुख्य आक्रामक मोर्चे
Table 1: यूक्रेन को मुख्य हथियारों की आपूर्ति
हथियार का नाम |
जिस देश ने दिया या देगा |
आपूर्ति का वर्ष और महीना |
बयरक्तार TB-2 drones |
तुर्की |
2019 से ही यूक्रेन को आपूर्ति कर रहा है |
स्विचब्लेड ड्रोन |
अमेरिका |
मई 2022 से |
स्टिंगर मिसाइलें |
अमेरिका |
मार्च 2022 से |
AT-4 पोर्टेगल एंटी टैंक हथियार |
अमेरिका |
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NLAW-हल्की एंटी टैंक मिसाइलें |
ब्रिटेन |
मार्च 2022 से |
MGM-140 ATACMS टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम |
अमेरिका |
युद्ध की शुरुआत से |
F-16 लड़ाकू विमान |
बेल्जियम, डेनमार्क, नीदरलैंड और नॉर्वे |
|
हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम(HIMARS) |
अमेरिका |
जून 2022 से |
पैट्रियट मिसाइलें |
अमेरिका |
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FGM-148 एंटी टैंक मिसाइल जैवलिन |
अमेरिका |
मार्च 2022 से |
स्टॉर्म शैडो मिसाइलें |
अमेरिका |
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मिग-29 विमान |
पोलैंड, उत्तरी मैसेडोनिया और स्लोवाकिया |
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DPICM क्लस्टर म्युनिशन |
अमेरिका |
स्रोत: लेखक का अपना रिसर्च
यूक्रेन के सैन्य बलों ने 2023 की शुरुआत में भी अपने पलटवार के अभियान की शुरुआत को टाल दिया, क्योंकि वो पश्चिमी देशों से हथियार मिलने का इंतज़ार कर रहा था. 8 जून को आख़िरकार यूक्रेन ने ज़फ़रोशिया और डोनेत्स्क की दिशा में अपना अभियान शुरू किया. यूक्रेन के पलटवार करने में देरी की वजह से रूस ने हारे हुए इलाक़ों पर दोबारा क़ब्ज़ा जमा लिया था और अपनी मोर्चेबंदी भी मज़बूत कर ली थी. रूस के सैटेलाइट यूक्रेन के सैन्य बलों की गतिविधियों को ट्रैक करके उनका जवाबी हमला कर सकते थे. रूस के सैन्य बलों ने जंग के मैदान में अपनी मोर्चेबंदी का एक नेटवर्क खड़ा कर लिया और बड़ी तादाद में सैनिकों की नई टुकड़ियां भी तैनात कर ली थीं. यही नहीं, रूस की सेनाओं ने सोलेदर और बख़मुत में कुछ कामयाबियां भी हासिल कर ली थीं और जुलाई के आते आते, वैगनर लड़ाकों की बग़ावत के बाद रूस ने कुपियांस्क की तरफ़ अपना हमला शुरू कर दिया था.
दोनों ही पक्षों को इलाक़ों पर क़ब्ज़े की लड़ाई में बहुत कामयाबी नहीं मिलने की बड़ी वजह तकनीकी तरक़्क़ी है. मानवरहित विमानों (UAV) और फर्स्ट पर्सन व्यू (FPV) ड्रोन के इस्तेमाल और जंग के मोर्चों की तकनीक से निगरानी ने पारंपरिक तौर तरीक़ों को बेअसर बना दिया है. क्योंकि किसी एक जगह पर भारी तादाद में सैनिक इकट्ठा करने की सूरत में उन पर ड्रोन हमले का अंदेशा बढ़ जाता है. इस युद्ध में ड्रोन ने पूरा खेल ही बदल दिया है. कई मामलों में ड्रोन चलाने वालों ने तोपखाने की तुलना में दुश्मन के कहीं ज़्यादा सैनिक मारे हैं. ड्रोन सस्ते पड़ते हैं और उनको आसानी से तैनात किया जा सकता है और इसीलिए इसका फ़ायदा दोनों ही पक्षों को हो रहा है. रूस, ड्रोन की मदद से ही जंग में बाज़ी पलटने में कामयाब रहा है; रूस की सेनाओं ने 2023-24 में आगे बढ़ना शुरू किया. अवदिविका पर क़ब्ज़ा कर लिया और फिर रूस ने लुगांस्क में कुपियांस्क की तरफ़ बढ़त बनानी शुरू कर दी थी. इसके जवाब में यूक्रेन ने रूस के भीतर ड्रोन हमले तेज़ कर दिए थे और उसने रूस के ऊर्जा के मूलभूत ढांचे जैसे कि तेल की रिफाइनरियों और सैन्य केंद्रों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था.
इस युद्ध में ड्रोन ने पूरा खेल ही बदल दिया है. कई मामलों में ड्रोन चलाने वालों ने तोपखाने की तुलना में दुश्मन के कहीं ज़्यादा सैनिक मारे हैं. ड्रोन सस्ते पड़ते हैं और उनको आसानी से तैनात किया जा सकता है और इसीलिए इसका फ़ायदा दोनों ही पक्षों को हो रहा है.
फिर भी रूस की सेनाएं ‘कई ज़ख़्म’ देने वाली अपनी रणनीति से कुछ सफलताएं हासिल करने में कामयाब हो गईं, क्योंकि रूस ने यूक्रेन के तमाम इलाक़ों में अपने सैनिक तैनात कर दिए थे, जिससे यूक्रेन के विकल्प सीमित हो गए थे. हालांकि, मई 2024 में अमेरिका से 61 अरब डॉलर के सहायता पैकेज का एलान होने और यूक्रेन द्वारा अमेरिका से आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम (ATACMS) का इस्तेमाल करने की इजाज़त हासिल करने के बाद से यूक्रेन ने सीमा के पार हमले जारी रखे और उसने रूस के क्रासनोदर और ओर्स्क में परमाणु हमले की पहले चेतावनी देने वाले दो रडार स्टेशनों पर भी हमले किए थे.
6 अगस्त 2024 को यूक्रेन के सैन्य बल सीमा पार करके रूस के कुर्स्क इलाक़े और फिर बेलगोरोद इलाक़ों में दाख़िल हो गए. रूस ने कुर्स्क पर हमले के एक दिन बाद वहां और बाद में बेलगोरोद में आपातकाल लगाने का एलान किया. इसके साथ साथ रूस ने यूक्रेन के हमले का जवाब देने के लिए अपने सैनिक तैनात करने शुरू कर दिए. यूक्रेन की सेनाओं की बढ़त ने इस साल की शुरुआत में रूस के सैन्य बलों की रफ़्तार धीमी कर दी थी. यूक्रेन के जनरल ओलेकसांद्र सिरिस्की की चतुर चाल की वजह से रूस को ख़ुद को पूर्वी यूक्रेन और अपने ख़ुद के इलाक़े यानी दो मोर्चों पर जंग लड़ने के हिसाब से तैयारी करने के लिए मजबूर कर दिया. यूक्रेन के इस हमले का मक़सद शांति वार्ता से पहले रूस की ज़्यादा से ज़्यादा ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लेना था.
जैसे जैसे रूस ने पश्चिम की ओर बढ़त बनानी शुरू की, वैसे ही यूक्रेन के सैन्य बल सुमी के इलाक़े से रूस की सीमा में घुसे. क्योंकि रूस और यूक्रेन के इस सीमावर्ती इलाक़े में विशाल घने जंगल हैं. इनकी मदद से यूक्रेन को कुर्स्क की सीमा पर अपनी मोर्चेबंदी को छुपाने में मदद हासिल हो गई (चित्र 1.4 देखें). यूक्रेन के सैनिकों ने रूस के मोर्चे की दरारों का लाभ उठाया और आक्रमण के आख़िरी लम्हे तक अपनी चाल को छुपाकर रखा. रूस पर इस हमले के पहले हफ़्ते तक यूक्रेन ने रूस के सुडज़ा इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया था. ये जगह रूस की प्राकृतिक गैस को यूरोप को आपूर्ति करने का प्रमुख केंद्र है. ख़बरों के मुताबिक़, यूक्रेन की सेना ने सीम नदी पर तीन अहम पुलों को बारूद से उड़ा दिया, जिससे रूसी सेना की आपूर्ति श्रृंखलाएं कट गईं. यूक्रेन ने इस हमले को लेकर जो समीकरण बनाए थे, उनका मक़सद रूस को बातचीत की मेज़ पर आने के लिए मजबूर करना, रूस और यूक्रेन के बीच एक बफ़र ज़ोन बनाना और संघर्ष को पूर्वी यूक्रेन से हटाकर पश्चिमी रूस की तरफ़ ले जाना था, जिससे पूर्वी यूक्रेन में लड़ रहे यूक्रेन के सैनिकों पर से दबाव कम हो सके. इस हमले के जवाब में रूस ने कुर्स्क, ब्रियांस्क और बेलगोरोद ओब्लास्ट में नई टुकड़ियों की स्थापना का एलान किया, ताकि यूक्रेन से लगने वाली सीमा पर रूसी नागरिकों की बस्तियों की हिफ़ाज़त की जा सके. रूस के सैनिकों ने कुर्स्क और लगोव ओब्लास्ट के पास रक्षा पंक्ति बनानी शुरू की और वो यूक्रेन की बढ़ रोक पाने में कामयाब रहे. सितंबर महीने में रूस ने जवाबी हमला किया और कुर्स्क में हाथ से निकल गए कई इलाक़ों पर दोबारा क़ब्ज़ा कर लिया.
ख़बरों के मुताबिक़, यूक्रेन की सेना ने सीम नदी पर तीन अहम पुलों को बारूद से उड़ा दिया, जिससे रूसी सेना की आपूर्ति श्रृंखलाएं कट गईं.
हालांकि, यूक्रेन के कमांडरों की अपेक्षाओं के विपरीत, इस हमले से पूर्वी यूक्रेन में रूस की बढ़त में कोई कमी नहीं आई और न ही दोनेत्स्क में लड़ रहे रूसी सैनिकों को कुर्स्क की तरफ़ भेजा गया. इसके बजाय रूस के सैन्य बलों ने काफ़ी सफलताएं हासिल की हैं और वो पोकरोवस्क शहर की दहलीज तक जा पहुंचे और उन्होंने बड़ी कामयाबी से वुहलेडर शहर की भी घेरेबंदी कर ली. ये दोनों शहर दोनेत्स्क क्षेत्र में ही हैं. रूसी सेना के आगे बढ़ने की रफ़्तार और कुर्स्क में यूक्रेन के हमले से रूस के तेज़ी से उबरने में सफलता ने यूक्रेन के सैन्य बलों के विकल्प और भी सीमित कर दिए हैं.
18 फरवरी 2024 को यूक्रेन में रूस के क़ब्ज़े वाले इाक़े और रूसी सेनाओं की प्रमुख मोर्चेबंदियां
चित्र 1.3: 7 अगस्त 2024 को यूक्रेन में रूस के क़ब्ज़े वाले इाक़े और रूसी सेनाओं की प्रमुख मोर्चेबंदियां
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आज जब नैटो के सदस्य देश यूक्रेन को रूस के बहुत भीतर जाकर हमले की इजाज़त देने के नफ़ा नुक़सान पर विचार कर रहे हैं, तो असरदार ढंग से किया गया कुर्स्क का हमला, यूक्रेन को वो नतीजे नहीं दे पाया है, जिसकी उसने उम्मीद लगाई थी. आने वाले महीने युद्ध के लिए काफ़ी अहम हैं. क्योंकि, अमेरिका में होने वाले चुनाव इस संघर्ष के लिए सबसे निर्णायक साबित हो सकते हैं.
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Rajoli Siddharth Jayaprakash is a Research Assistant with the ORF Strategic Studies programme, focusing on Russia's domestic politics and economy, Russia's grand strategy, and India-Russia ...
Read More +Kartik Bommakanti is a Senior Fellow with the Strategic Studies Programme. Kartik specialises in space military issues and his research is primarily centred on the ...
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