उन्होंने इस विवाद को नाम दिया ‘द स्की वॉर.’ इसने ऐन सर्दियों के साथ और शायद महामारी की तीसरी लहर के साथ दस्तक दी. इससे पहले और गर्मियों के आखिर में दूसरी लहर आई थी, जिसने ख़ूब तबाही मचाई. जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल का इसे लेकर बिल्कुल साफ नजरिया था. उन्होंने अपनी संसद में कहा, ‘हम यूरोप में सारे स्की रिजॉर्ट्स को बंद करने के लिए वोटिंग का दबाव डालेंगे.’ पहाड़ों पर छुट्टियां मनाने कोई नहीं जाएगा, कम से कम क्रिसमस/नए साल पर पारंपरिक दो हफ्ते की छुट्टियों के दौरान.
इटली के प्रधानमंत्री जुसेपी कोंते और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों इसे बिल्कुल सहमत थे, लेकिन यूरोपीय संघ में अल्पाइन क्षेत्र के चौथे बड़े देश ऑस्ट्रिया को यह बात ठीक नहीं लगी. उसने कहा, ‘यह ऐसा मुद्दा नहीं, जिस पर समूचा यूरोप फैसला करे’ और ‘फ्रांस को लुव को कब खोलना है, क्या हम बताएंगे’, ऑस्ट्रिया ने इस सवाल पर ऐसी बातें कहीं. वहां के चांसलर सेबेस्टियन कुर्ट्ज ने कहा, ‘ये वैसा मामला नहीं है, जिसमें यूरोपीय संघ को दख़ल देना चाहिए.’
लेकिन सच पूछिए तो यह वैसा ही मामला था. समूचे यूरोप के दख़ल देने लायक. दरअसल, पिछले साल मार्च में ऑस्ट्रिया के इशगल रिजॉर्ट में 40 देशों के 600 पर्यटक कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और वे इसे अपने साथ अपने-अपने देश ले गए. हमारी सीमाएं एक दूसरे से इतनी करीब हैं, बड़े पैमाने पर यूरोप में एक देश के लोग दूसरे देश के लोगों से मिलते-जुलते हैं कि कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए चेयरलिफ्ट्स को बंद करने को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए था.
खैर, अंत में चांसलर कुर्ट्ज भी क्रिसमस लॉकडाउन की ख़ातिर 4,000 ऑस्ट्रियन रिजॉर्ट्स को बंद करने को मान गए. लेकिन इस मामले से यह भी पता चलता है कि यूरोपीय संघ के 27 देशों को एकजुट रखना और एक साझा भविष्य (कॉमन फ्यूचर) तैयार करना कितना मुश्किल है. बर्फ और स्की फिजूल के मामले नहीं हैं. इनका ऑस्ट्रिया के जीडीपी में चार फीसदी योगदान रहता है. यह वॉल्यूम (बिकने वाली कारों की संख्या) के लिहाज से जर्मनी की अर्थव्यवस्था में कार उद्योग के योगदान से कुछ ही कम है. यूरोपीय संघ को आने वाले वक्त में जिन चुनौतियों का सामना करना है, उनके सामने यह मुश्किल कुछ भी नहीं थी.
इकॉनमी में बड़े बदलाव की जरूरत होगी. इस बीच ग्लोबल जियोपॉलिटिक्स में तेजी से बदलाव हो रहा है. नए और आक्रामक खिलाड़ी सामने आ रहे हैं. लोकतंत्र पर हमले बढ़ रहे हैं और अव्यवस्था भी.
महामारी अपने आप में किसी इमरजेंसी से कम नहीं होती. इससे बड़ी संख्या में लोग मरते हैं. निजी और सामुदायिक आजादी पर पाबंदियां लगती हैं. रोज़गार के लिए तो किसी जलजले से कम नहीं यह. इससे बड़ी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों से लेकर छोटे व मध्यम दर्जे की कंपनियां तक प्रभावित होती हैं. कोविड-19 ने तो हमारे सामने और भी तात्कालिक चुनौतियां खड़ी की हैं.
हमें इस महामारी के बाद आने वाले मुश्किलात से निपटने के लिए तैयार रहना होगा. इकॉनमी में बड़े बदलाव की जरूरत होगी. इस बीच ग्लोबल जियोपॉलिटिक्स में तेजी से बदलाव हो रहा है. नए और आक्रामक खिलाड़ी सामने आ रहे हैं. लोकतंत्र पर हमले बढ़ रहे हैं और अव्यवस्था भी. ऐसा नहीं है कि हम इन चुनौतियों से पहले अनजान थे, लेकिन हमने यह भी सोच रखा था कि इनसे निपटने के लिए अधिक वक्त मिलेगा. इन सबके बीच महामारी तेजी से फैली और उससे इन चुनौतियों की विकरालता हमारे सामने आ गई. इसलिए अब हमें बदलना ही होगा.
अल्पाइन इलाके में स्की लिफ्ट्स को बंद करने के लिए जो वाद-विवाद हुआ, उससे आप आज के यूरोपीय संघ को ठीक से नहीं समझ सकते. आज के यूरोपीय संघ को समझने के लिए ‘अभी तक के सबसे बड़े स्टीमुलस पैकेज यानी राहत पैकेज’ पर गौर करना होगा, जिसे ब्रसेल्स में 1.8 लाख करोड़ यूरो का रिकवरी प्लान कहा जाता है. इस प्लान का मकसद ‘कोविड के बाद के यूरोप’ का फिर से निर्माण करना है. वह भी रिसर्च और इनोवेशन को ध्यान में रखकर, क्लाइमेट और डिजिटल ट्रांजिशन के जरिये और एक नया हेल्थ प्रोग्राम लाकर. नेक्स्ट जेनरेशन यूरोप भी उतनी ही अहमियत रखता है. इसके लिए कैपिटल मार्केट से 750 अरब यूरो जुटाने की खातिर टेंपररी रिकवरी इंस्ट्रूमेंट लाना. इसके साथ यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने 3.5 लाख करोड़ यूरो का सस्ता कर्ज देने की भी बात कही है. इतना ही नहीं, 1.3 अरब यूरो का इमरजेंसी बॉन्ड खरीदने का प्लान भी उसने पेश किया है.
इसमें कोई शक नहीं कि जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने से राहत मिली है, लेकिन जैसा कि यूरोपियन कमीशन की प्रेसिडेंट बारबरा वॉन डर लीएन ने चेताया, ‘प्राथमिकताओं और सोच में कुछ बदलाव किसी नेता या सरकार से कहीं गहरे होते हैं.’
यूरोप की विशाल इकॉनमी को उबारने के लिए ये सारे जरूरी औजार हैं, लेकिन इनका राजनीतिक महत्व और भी ज़्यादा है. इस प्लान का संदेश है- हम सब को मिलकर इस दलदल से बाहर निकलना होगा, चाहें आप ग़रीब हों या अमीर. आपका खजाना भरा हुआ हो या खाली हो. और हमें यह काम करना होगा क्योंकि हमारे आसपास की दुनिया बदल रही है. इसलिए हमें भी मज़बूती से खड़ा होना होगा.
डोनाल्डट्रंप के अमेरिका को नए रास्ते पर ले जाने और यूरोपीय सहयोगियों के प्रति उनके तिरस्कार के कारण यूरोपीय संघ के लिए अप्रत्याशित रूप से डटे रहने की गुंजाइश बनी. बेलारूस और रूस पर नए आर्थिक प्रतिबंध, लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर बढ़ता फोकस और फिजूल के व्यापार युद्ध पर स्पष्टीकरण- न तो चीन और न ही अमेरिका के आक्रामक रुख के साथ, चीन के साथ सहयोग, प्रतियोगिता और प्रतिद्वंद्विता की कहीं धुंधली तस्वीर पेश करना. चीन रणनीतिक तौर पर एक प्रतियोगी है, लेकिन इसके साथ ही वह वैश्विक तालमेल में सहयोगी भी है. इस तरह से जाकर यूरोपीय संघ की एक साझी विदेश नीति बनी.
इसमें ख़ासतौर पर अमेरिका के साथ यूरोपीय संघ का ताल्लुक काफी दिलचस्प हो गया है. इसमें कोई शक नहीं कि जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने से राहत मिली है, लेकिन जैसा कि यूरोपियन कमीशन की प्रेसिडेंट बारबरा वॉन डर लीएन ने चेताया, ‘प्राथमिकताओं और सोच में कुछ बदलाव किसी नेता या सरकार से कहीं गहरे होते हैं.’ उनका इशारा चीन, डेटा प्राइवेसी, डिजिटल टैक्सेशन, विश्व व्यापार संगठन में सुधार और एयरक्राफ्ट सब्सिडी (बोईंग बनाम एयरबस) की ओर था. इन मुद्दों पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों ही पार्टियों के साथ यूरोपीय संघ के मतभेद हैं. अमेरिका में कोई भी सरकार हो, वह यूरोपीय संघ पर साझी सुरक्षा के लिए अधिक जवाबदेही लेने की खातिर दबाव डालेगी. नेटो के 30 सदस्य देश संगठन के वित्तीय बोझ का अधिक भार उठाने पर सहमति दे चुके हैं. वे अपने जीडीपी का कम से कम 2 फीसदी रक्षा पर ख़र्च करेंगे. हालांकि अभी तक सिर्फ 8 देश ही इस वादे को पूरा कर पाए हैं. इनमें से 6 पूर्वी यूरोप से यूरोपीय संघ के सदस्य हैं (यूरोप में नेटो के सारे सहयोगी देश यूरोपीय संघ के सदस्य नहीं हैं), जो सोवियत संघ के वारसा पैक्ट से जुड़े थे. इससे पता चलता है कि पुतिन के रूस को लेकर इन देशों में कितना अविश्वास है.
कई सदस्यों को लगता है कि भविष्य में यूरोपीय संघ की स्थिरता को चीन से अधिक ख़तरा रूस या रेसेप एर्दोआन की नव-ऑट्टोमन महत्वाकांक्षाओं से है. यानी यूरोपीय संघ को खतरा यूरोप के अंदर से माना जा रहा है न कि बाहर से.
बाइडेन जब चुनाव प्रचार कर रहे थे, तब उन्होंने लोकतांत्रिक देशों के सम्मेलन का विचार पेश किया था. इसके लिए देशों को चुनना थोड़ा अजीब लगेगा, इसलिए 2021 की पहली छमाही में इसके बजाय अमेरिका के राष्ट्रपति नया ट्रांस-अटलांटिक एजेंडा पेश करेंगे. इस बीच फाइनेंशियल टाइम्स ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना दमखम दिखाने के लिए ब्रसेल्स अमेरिका को ‘एक नए वैश्विक अलायंस का ऑफर देगा. ऐसा ऑफर, जो शायद एक पीढ़ी में एक बार ही दिया जाता है. …और चीन की तरफ से मिल रही रणनीतिक चुनौतियों का सामना करेगा.’
यूरोप को ख़तरा कहां से माना जा रहा है?
रूस के साथ जहां फ्रांस, इटली और जर्मनी के दोस्ताना ताल्लुकात हैं, वहीं पोलैंड और बाल्टिक देश उससे नफरत करते हैं. यूरोपीय संघ के पूर्वी और पश्चिमी सदस्य देशों में सिर्फ इसी को लेकर मतभेद नहीं है. कई सदस्यों को लगता है कि भविष्य में यूरोपीय संघ की स्थिरता को चीन से अधिक ख़तरा रूस या रेसेप एर्दोआन की नव-ऑट्टोमन महत्वाकांक्षाओं से है. यानी यूरोपीय संघ को खतरा यूरोप के अंदर से माना जा रहा है न कि बाहर से.
हंगरी में विक्टर ओरबान की परिभाषा के मुताबिक हंगरी और पोलैंड, यूरोप की दो पॉपुलिस्ट ‘इलिबरल डेमोक्रेसीज’ हैं यानी ये उदार लोकतंत्र नहीं हैं. दोनों देश 1.8 लाख करोड़ यूरो के रिकवरी प्लान में देरी करवाना चाहते हैं, जबकि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को इसकी तुरंत जरूरत है. हंगरी और पोलैंड ने इसके विरोध में ‘कानून-व्यवस्था की प्रक्रिया’ का सवाल उठाया है. यानी यह पैसा यूरोपीय संघ में ज्यूडिशियल और मीडिया की स्वतंत्रता जैसे उदार लोकतंत्र को मज़बूत करने वाले संस्थानों पर ख़र्च करना होगा, जिस पर उन्हें ऐतराज है. दोनों ही देश इसे मनमानी शर्तें बता रहे हैं, जबकि 2004 में जब वे यूरोपीय संघ के सदस्य बने थे तो उन्होंने उदार लोकतंत्र को मजबूत और संरक्षित रखने वाले दस्तावेजों पर दस्तखत किए थे.
इन दोनों देशों की हरकतों और वाइजग्रैड ग्रुप (हंगरी, पोलैंड, चेक रिपब्लिक और स्लोवाकिया) की बार-बार दखलंदाजी, रोमानिया, बल्गारिया, स्लोवेनिया, क्रोएशिया की ओर से यूरोपीय संघ की कानूनी प्रक्रिया पर अविश्वास, वहां मौजूद भ्रष्टाचार और अपारदर्शिता यूरोपीय संघ के बुनियादी मूल्यों और उनकी मज़बूती के लिए खतरनाक हैं. स्लोवानिया के प्रधानमंत्री यानेज यांसा ने अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के एक दिन बाद कहा, ‘यह बिल्कुल साफ है कि अमेरिका की जनता ने डोनाल्ड ट्रंप और माइक पेंस को और चार वर्षों के लिए चुन लिया है.’ ट्रंप की पत्नी मेलानिया स्लोवानियाई मूल की हैं. शायद इससे प्रभावित होकर यांसा ने शर्मसार करने वाला ऐसा बयान दिया था.
यूरोपीय संघ का एक बड़ा हिस्सा बहुत तेजी से आगे निकल गया और सदस्यता को लेकर उसने बहुत सख्ती नहीं बरती. लेकिन यूरोपियन एंटरप्राइज का अस्तित्व समावेशी व्यवस्था को लेकर था और आज भी है.
शायद यूरोपीय संघ का एक बड़ा हिस्सा बहुत तेजी से आगे निकल गया और सदस्यता को लेकर उसने बहुत सख्ती नहीं बरती. लेकिन यूरोपियन एंटरप्राइज का अस्तित्व समावेशी व्यवस्था को लेकर था और आज भी है. यानी यहां अधिक से अधिक जोर जोड़ने पर है, न कि अलग-थलग रखने पर. शीतयुद्ध के ख़त्म होने के बाद हमें इसका अहसास नहीं हुआ कि हमारे सामने दो अलग और एक दूसरे के विपरीत लक्ष्य थे. इसमें से एक तो पश्चिम यूरोपीय देशों का अंतरराष्ट्रीय मकसद और दूसरी ओर पूर्वी यूरोप के देशों का करीब 50 साल के सोवियत नियंत्रण के बाद अपनी आजादी पर जोर देना था.
हम अपनी ग़लतियों की कीमत चुका रहे हैं. शायद यूरोपीय संघ की स्थापना और उसके सामाजिक व राजनीतिक इंजीनियरिंग की जटिलताओं की भी. महामारी हमारे लिए निर्णायक सबक़ लेकर आई है और कोविड के ख़त्म होने के बाद के बरसों में हमें यूरोपीय संघ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण खिलाड़ी में बदलने का मौका मिलेगा. यह यूरोप के लिए निर्णायक घड़ी है. हम या तो फेल हो जाएंगे या खुद को बदलेंगे. हमारे सामने कोई तीसरा रास्ता नहीं है, जो कोविड-19 के दस्तक देने से पहले मौजूद था.
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