Author : Ankita Dutta

Published on Jul 24, 2023 Updated 0 Hours ago

सात सालों की चर्चा के बाद, यूरोपीय संघ ने एक नए समझौते के रूप में शरण और प्रवास से जुड़े अपने नियमों को आधुनिक बनाने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया है.

यूरोपीय संघ के माइग्रेशन समझौते का विश्लेषण: एक अध्ययन

आयोग द्वारा 2016 में यूरोपीय संघ (EU) के कॉमन एसाइलम पॉलिसी (1999) और न्यू पैक्ट ऑन माइग्रेशन एंड पॉलिसी (2020) में सुधार का प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद, EU के आंतरिक मंत्रियों ने अंततः जून 2023 में शरण प्रक्रिया विनियमन और शरण और प्रवासन प्रबंधन विनियम पर अंतिम समझौते को मंजूरी दी. सात सालों के लंबे समझौता वार्ता के बाद, नए समझौते को “शरण और प्रवास के संदर्भ में EU के नियमों को आधुनिक बनाने की तरफ़ एक निर्णायक कदम” बताया गया. इस लेख में इस समझौते के प्रमुख पहलुओं का विश्लेषण किया गया है और एक समग्र मूल्यांकन पेश किया गया है.

समझौते में शामिल प्रमुख बिंदु

यूरोप 2015-16 के दौरान प्रवासी संकट का सामना कर चुका है, जिसके अनुभवों से सीखते हुए यूरोपीय संघ महाद्वीप में प्रवासन को नियंत्रित करने और अपनी बाहरी सीमा की सुरक्षा के लिए कई उपायों पर विचार कर रहा है और उसने ऐसे कई उपाय लागू भी किए हैं. जबकि यूरोप में आने वाले प्रवासियों की संख्या 2016 में 389,976 थी, जो 2022 में घटकर 189,620 हो गई है. लेकिन यूरोप में शरण मांगने वालों की संख्या अभी काफ़ी अधिक है, जहां 2022 में यूरोपीय संघ को 962,160 से अधिक लोगों के आवेदन प्राप्त हुए. प्रवासन के लिए इतनी बड़ी संख्या में आवेदनों के प्राप्त होने से प्रवास और शरण का मुद्दा यूरोप में एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, जो ध्रुवीकरण पैदा कर सकता है.

वर्तमान समझौते का उद्देश्य प्रवासन और शरण प्रक्रियाओं से जुड़ी जटिलताओं को दूर करना है और उम्मीद है कि इसके ज़रिए इटली, ग्रीस, स्पेन जैसे सीमावर्ती राज्यों और उत्तरी और मध्य यूरोपीय देशों (संघ के सदस्य देश) के बीच एक न्यायसंगत और व्यावहारिक संतुलन स्थापित किया जा सकेगा.

वर्तमान समझौते का उद्देश्य प्रवासन और शरण प्रक्रियाओं से जुड़ी जटिलताओं को दूर करना है और उम्मीद है कि इसके ज़रिए इटली, ग्रीस, स्पेन जैसे सीमावर्ती राज्यों और उत्तरी और मध्य यूरोपीय देशों (संघ के सदस्य देश) के बीच एक न्यायसंगत और व्यावहारिक संतुलन स्थापित किया जा सकेगा. इस समझौते की चार प्रमुख विशेषताएं हैं:

1. शरण और सीमा प्रक्रिया: शरण प्रक्रिया को व्यवस्थित बनाने के विचार का उद्देश्य पूरे यूरोपीय संघ में एक समान प्रक्रियाओं को स्थापित करना है. इसमें दोहरे बदलावों को शामिल किया गया है: पहला, नियम के स्तर पर देखें तो, यह शरण मांगने वालों के लिए प्रक्रिया की अवधि और उनके अधिकारों के मानक को तय करता है, जिसमें कानूनी सहायता भी शामिल है. दूसरा, यह आवेदन के अस्वीकृत होने पर सीमा प्रक्रियाओं में तेज़ी लाता है. यह प्रक्रिया तब लागू होती है जब आवेदनकर्ता को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा माना गया हो, उसने गलत जानकारी से लोगों को गुमराह किया हो या फिर उसकी राष्ट्रीयता का रिकॉग्निशन रेट 20 प्रतिशत से नीचे हो. इस पूरी शरण और सीमा प्रक्रिया को 12-16 हफ़्ते के भीतर पूरा करना होता है.

2. यूरोपीय संघ की क्षमता को बढ़ाना: मानव संसाधन के स्तर पर सदस्य राज्यों की क्षमता बनाए रखना इस समझौते के केंद्र में है ताकि आवेदनों पर जल्दी कार्रवाई की जा सके और निर्णयों को लागू किया जा सके. इसे अवैध घुसपैठ के मामले में लागू होने वाली प्रक्रियाओं आधारित एक फार्मूले के माध्यम से क्रियान्वित किया जाएगा, जिसमें तलाश से लेकर बचाव तक और बाहरी सीमा पर प्रवेश न दिए जाने जैसी घटनाएं शामिल हैं, जिसकी हर तीन साल पर गणना की जाएगी. समझौते के तहत किसी सदस्य देश को अधिकतम उतने ही आवेदनों की जांच करनी चाहिए, जितनी उसकी क्षमता है. इससे प्रक्रिया में स्थिरता आएगी. यूरोपीय संघ के स्तर पर, यह क्षमता 30,000 निर्धारित की गई है.

3. आपसी सहयोग पर आधारित एक तंत्र की स्थापना की ज़रूरत  (आर्टिकल 44): सदस्य देशों के योगदान के संदर्भ ऐसे किसी तंत्र है स्थापित किए जाने की ज़रूरत है जहां ताकि छोटे देशों को मदद मिल सके. इनमें वित्तीय योगदान, मानव संसाधनों का स्थानांतरण और क्षमता निर्माण जैसे उपाय शामिल हैं. ऐसे किसी तंत्र के मूल में यह विचार शामिल है कि सदस्य देशों के पास इस बात का पूरा अधिकार हो कि वो क्या और कैसे योगदान देना चाहते हैं. जबकि संघ के स्तर पर अधिकतम 30,000 आवेदनों की सीमा तय की गई है, वहीं एक देश को छोड़कर दूसरे देश आने पर 20,000 यूरो की वित्तीय मदद दिए जाने का प्रावधान किया गया है. आर्टिकल 44(H) के तहत, अगर आवेदनों की संख्या तय सीमा से कम है, तो बची हुई सहायता राशि अतिरिक्त सहयोग के रूप में उपलब्ध होगी, और ऐसे में सहयोगी सदस्य देश शरण के दावों का आकलन करने की ज़िम्मेदारी लेंगे, जबकि सामान्य परिस्थितियों में यह अधिकार ज़िम्मेदार सदस्य देश का होता है.

4. डबलिन रेगुलेशंस में बदलाव: नए प्रवास समझौते के तहत, एसाइलम एंड माइग्रेशन मैनेजमेंट रेगुलेशन (AMMR) के डबलिन रेगुलेशंस के जगह लेने की उम्मीद है. डबलिन रेगुलेशंस के आधार पर यह तय किया जाता है कि शरण की मांग करने वालों के आवेदनों की जांच कौन सा देश करेगा. उम्मीद है कि AMMR के ज़रिए आवेदनों की जांच समेत स्थानांतरण की प्रक्रिया और व्यवस्थित हो जाएगी. इसमें द्वितीयक गतिविधियों को रोकने के लिए तीन प्रावधान किए गए हैं: “जिस सदस्य देश में पहला प्रवेश हुआ, वह दो साल के लिए शरण आवेदन की जांच के लिए जिम्मेदार होगा; अगर कोई देश किसी व्यक्ति को उस सदस्य देश में स्थानांतरित करता है जो प्रवासी के लिए जिम्मेदार है और वह व्यक्ति फरार हो जाता है, तो तीन साल के बाद यह ज़िम्मेदारी स्थानांतरित करने वाले देश की होगी; अगर सीमा प्रक्रिया के तहत कोई सदस्य देश किसी व्यक्ति का आवेदन रद्द कर देता है तो उस व्यक्ति के प्रति उसकी ज़िम्मेदारी 15 महीने के बाद समाप्त हो जाती है.” इस तरह, AMMR के तहत हर प्रक्रिया की एक निश्चित समय सीमा  होगी.

अगर कोई देश किसी व्यक्ति को उस सदस्य देश में स्थानांतरित करता है जो प्रवासी के लिए जिम्मेदार है और वह व्यक्ति फरार हो जाता है, तो तीन साल के बाद यह ज़िम्मेदारी स्थानांतरित करने वाले देश की होगी; अगर सीमा प्रक्रिया के तहत कोई सदस्य देश किसी व्यक्ति का आवेदन रद्द कर देता है तो उस व्यक्ति के प्रति उसकी ज़िम्मेदारी 15 महीने के बाद समाप्त हो जाती है.” 

आकलन

2015-16 के बाद से, यूरोपीय संघ पर प्रवासन और शरण के संबंध में एक व्यापक नीति दृष्टिकोण विकसित करने का भारी दबाव है. इस मुद्दे पर संघ ने दो तरफा  दृष्टिकोण को अपनाया है: पहला, इसने अपनी बाहरी सीमाओं को सख़्त कर दिया है और अवैध प्रवासन को विनियमित करने और उसमें कमी लाने के लिए उसने तुर्किए और लीबिया जैसे देशों के साथ समझौते किए हैं. दूसरा, आंतरिक स्तर पर इसने EU एसाइलम एजेंसी (जो पूर्ण रूप से कार्यरत है), EU रिसेटलमेंट फ्रेमवर्क जैसे कई नीतिगत उपाय लागू किए हैं और 2020 में प्रवासन और शरण पर एक नए समझौते को अपनाया है.

सदस्य देशों के बीच इस बात को लेकर आपसी सहमति की स्थिति है कि यूरोपीय संघ की प्रवासन और शरण व्यवस्था में बुनियादी स्तर पर परिवर्तन की आवश्यकता है. जबकि उत्तरी और मध्य यूरोपीय देश प्रवासियों और शरणार्थियों की द्वितीयक गतिविधियों को लेकर चिंतित हैं, यानी उन्हें इस बात का डर है कि वे प्रथम प्रवेश वाले देश को छोड़कर दूसरे देशों में अवैध रूप से घुस जाएंगे. वहीं, दक्षिणी यूरोपीय देश बढ़ते अवैध प्रवास के कारण दबाव में हैं. 2023 में अब तक, यूरोप में 87, 903 प्रवासी आए हैं. जबकि इस प्रवासन समझौते को ऐतिहासिक बताया जा रहा है और एक बार पारित होने के बाद यह प्रवासन के प्रति यूरोपीय संघ के नज़रिए और उससे निपटने के तरीके को पूरी तरह बदल सकता है. हालांकि, ज़मीनी सच्चाई और नियमों के बीच अंतराल बने रहेंगे क्योंकि इसमें सीमा सुरक्षा और शरण प्रक्रियाओं के स्थानांतरण पर ज्यादा से ज्यादा ज़ोर दिया गया है, वहीं इस मसले पर सदस्य देशों के बीच गठजोड़ की स्थिति पर उतना ध्यान नहीं दिया गया है जबकि सीमावर्ती देश पिछले कई सालों से इसकी मांग कर रहे हैं. 2023 के समझौते का उद्देश्य सभी सदस्य देशों के साथ बातचीत के ज़रिए उन्हें शरणार्थियों और प्रवासियों की एक समान ज़िम्मेदारी उठाने के लिए राजी करना है क्योंकि अन्य सदस्य देशों द्वारा प्रवासियों को स्वीकार न करने या बड़ी संख्या में उन्हें देश में जगह देने से मना करने के बाद उसका सारा भार सीमावर्ती देशों को उठाना पड़ रहा है. यह चिंताएं बनी रहेंगी क्योंकि लोगों के आवागमन पर नज़र रखना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा, ख़ासकर उनके संघ के स्वतंत्र क्षेत्रों में पहुंचने के बाद यह और ज्यादा कठिन हो जाएगा.

सदस्य देशों के वोटों के रुझान को देखें तो यही पता चलता है कि नीति को लेकर भी बंटवारे की स्थिति है. नए समझौते को सर्वसम्मति से नहीं बल्कि पर्याप्त बहुमत (55 प्रतिशत) के बल पर पारित किया गया, जहां बुल्गारिया, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया, माल्टा और लिथुआनिया जैसे देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. ठीक उसी दौरान, पोलैंड और हंगरी ने समझौते के विरोध में मतदान किया. इटली और ग्रीस जैसे सीमावर्ती देशों ने रियायत मिलने के बाद समझौते के पक्ष में मतदान किया. जबकि इस समझौते पर सहमति इस बात पर टिकी है कि यह अन्य देशों को अधिक संख्या में शरणार्थियों को जगह देने के लिए मज़बूर किए बिना सीमावर्ती देशों को सहायता प्रदान करने जैसा बीच का रास्ता ढूंढ़ेगा, हालांकि, आलोचकों का कहना है कि सीमा पर निगरानी को बढ़ाने से यूरोपीय संघ के देशों में हिरासत केंद्रों की संख्या भी बढ़ जाएगी.

यूरोपीय संघ के सम्मेलन में यह समझौता एक विवादास्पद मुद्दा बन गया, जहां पोलैंड और हंगरी ने आख़िरी मौके पर अपनी चिंताएं जाहिर कीं, जिससे बैठक की कार्रवाई बाधित हो गई. पोलैंड और हंगरी दोनों की आपत्ति का सबसे बड़ा मुद्दा सर्वसम्मति की बजाय पर्याप्त बहुमत के ज़रिए समझौते को पारित करना था. जैसा कि यूरोपीय संघ के संधि समझौते में कहा गया है कि प्रवासन और शरण पर कानून बनाने के लिए संघ को केवल पर्याप्त बहुमत की आवश्यकता होगी. हालांकि, परिषद ने पहले शायद ही कभी इस प्रक्रिया का पालन किया हो. लेकिन इस बार क्वालिफाइड मेजोरिटी वोटिंग (QMV) के कारण वारसॉ और बुडापेस्ट अपने वीटो का इस्तेमाल नहीं कर पाए जैसा कि वे आमतौर पर पहले करते रहे हैं. हालांकि, वे EU के शिखर सम्मेलन के निष्कर्षों में “आम सहमति” के मुद्दे को जोड़ने में कामयाब रहे, जो स्पष्ट रूप से भविष्य में सर्वसम्मति जुटाने की बात करता है.

इसमें कोई शक नहीं है कि इस समझौते ने कई देशों के मन में सवाल खड़े किए हैं, और EU को इस बात को लेकर खुद को तैयार करना होगा कि भविष्य में इस मुद्दे पर भयंकर खींचातानी होगी. अब संसद में इस समझौते पर बहस होनी है, उम्मीद है कि जून 2024 में यूरोपीय संसद के चुनावों से पहले इसे आखिरी रूप दे दिया जाएगा. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि नीति निर्माताओं के लिए इतने कम समय में इतने बड़े काम को पूरा करना एक बड़ी चुनौती है. लेकिन एक बात तो तय है कि यूरोपीय संघ के नीति निर्माताओं और सदस्य देशों के बीच प्रवासन का मुद्दा हावी रहेगा.

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