प्राकृतिक गैस की बढ़ती धमक
बिजली उत्पादन के लिए आवश्यक ईंधन के तौर पर प्राकृतिक गैस और कोयले की क़ीमतों में दुनिया भर में बढ़ोतरी हुई है. इसकी एक बड़ी वजह है मौसम. सर्दियों में बढ़ती ठिठुरन और गर्मियों में तपते मौसम की वजह से बिजली की मांग बढ़ती चली गई है. इन मौसमी बदलावों की वजह से नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति में भी गिरावट आ गई है. नतीजतन कोयले और गैस पर आधारित बिजली उत्पादन की मांग में उम्मीद से कहीं ज़्यादा बढ़ोतरी देखने को मिली है. इससे बिजली की क़ीमतों में उछाल आ गया है.
प्राकृतिक गैस और बिजली की क़ीमतों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की ख़बरें सबसे पहले यूरोप और यूनाइटेड किंगडम (यूके) से आईं. 2021 की पहली तिमाही में सर्दी ने जमकर सितम ढाया. इसके अलावा कोरोना संकट के चलते दूरदराज़ से काम करने की ज़रूरत और रुझान बढ़ गया. नतीजतन यूरोप में घरों को गर्म रखने से जुड़ी सुविधाओं की मांग में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई. इससे प्राकृतिक गैस की मांग में (बिजली निर्माण में इस्तेमाल के लिए) 7 प्रतिशत से भी ज़्यादा की बढ़ोतरी दर्ज हुई. आगे आने वाले समय में महामारी के चलते लागू लॉकडाउन में ढील दी जाने लगी या उन्हें ख़त्म किया जाने लगा. आर्थिक गतिविधियां फिर से पटरी पर आने लगीं. औद्योगिक उत्पादन एक बार फिर से परवान चढ़ने लगा. इन तमाम वजहों से ऊर्जा की मांग में इज़ाफ़ा होने लगा. इस साल गर्मियों का मौसम उम्मीद से ज़्यादा गर्म रहा. नतीजतन घरों में ठंडक बनाए रखने के लिए कूलिंग की मांग बढ़ गई. इससे यूरोप और यूके में गैस की मांग पर दबाव और बढ़ गया. बहरहाल गैस की मांग तो दुनिया भर में बढ़ रही थी. ख़ासतौर से LNG (लिक्विफ़ायड नैचुरल गैस) आयात करने वाले देशों में गैस की मांग तेज़ी से बढ़ने लगी. रूस ने घरेलू मांग में इज़ाफ़े की वजह से यूरोप को गैस की आपूर्ति में कटौती कर दी. हालांकि, कुछ लोगों का विचार है कि रूस ने नॉर्ड स्ट्रीम 2 को लेकर अपनी चिंताओं को ज़ाहिर करने के लिए जानबूझकर ऐसा किया. ग़ौरतलब है कि गैस की मांग मौसम पर आधारित होती है. यही वजह है कि गैस के सप्लायर्स स्टोरेज पर निवेश करते हैं. ये भंडार ऐसी बैटरियों की तरह काम करते हैं जिनका ज़रूरत के मुताबिक इस्तेमाल होता है. आम तौर पर गर्मियों में जब क़ीमतें कम होती हैं तब इन भंडारों को भर लिया जाता है. बहरहाल इस साल गर्मियों का मौसम काफ़ी गर्म रहने की वजह से घरों को ठंडा रखने की मांग बढ़ गई. इससे गैस के भंडारों का इस्तेमाल बढ़ गया. गैस का भंडार कम होने से यूरोपीय और एशियाई देशों के बीच LNG के आयात को लेकर होड़ मच गई. इससे गैस की क़ीमतों में और उछाल आ गया.
आर्थिक गतिविधियां फिर से पटरी पर आने लगीं. औद्योगिक उत्पादन एक बार फिर से परवान चढ़ने लगा. इन तमाम वजहों से ऊर्जा की मांग में इज़ाफ़ा होने लगा. इस साल गर्मियों का मौसम उम्मीद से ज़्यादा गर्म रहा. नतीजतन घरों में ठंडक बनाए रखने के लिए कूलिंग की मांग बढ़ गई.
यूरोपीय गैस बाज़ार पर अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में होने वाले उतार-चढ़ावों का असर पड़ता है. बाज़ार के तक़रीबन 80 फ़ीसदी हिस्से को गैस की गैस से प्रतिस्पर्धा से मज़बूती मिलती है. हालांकि प्राकृतिक गैस के ज़रिए यूरोप की कुल बिजली आपूर्ति के सिर्फ़ 20 फ़ीसदी हिस्से की पूर्ति होती है. बहरहाल, बिजली की बेतहाशा बढ़ी मांग के कारण गैस से बिजली पैदा करने वाले संयंत्र बिजली की क़ीमतें तय करने में अहम रोल निभाने लगे हैं. कार्बन की ऊंची लागतों के चलते कोयले की जगह गैस के इस्तेमाल का चलन बढ़ गया है. इस वजह से भी यूरोप में गैस की क़ीमतों में बढ़ोतरी देखी जा रही है. हालांकि इन सबके बीच गैस की ऊंची क़ीमतों ने कोयले को प्रतिस्पर्धी बना दिया है. इसका नतीजा ये है कि कार्बन से जुड़ी ऊंची लागतों के बावजूद कोयले की मांग बढ़ने लगी है. 2021 में यूरोप में प्राकृतिक गैस की क़ीमतों में 280 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. इसका अमेरिका पर भी असर हुआ है. अमेरिका में गैस की क़ीमतों में 100 फ़ीसदी का उछाल देखा गया है. रॉयटर्स के मुताबिक नवंबर में उत्तर पूर्वी एशिया में डिलिवर होने वाली LNG की औसत क़ीमत 24-25 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट्स (mmBtu) के आस-पास रहने का अनुमान है. यूरोप में प्राकृतिक गैस की बुनियादी दर साल 2021 की शुरुआत में 6-7 अमेरिकी डॉलर प्रति mmBtu के आसपास थी. फ़िलहाल ये बढ़कर क़रीब 25 अमेरिकी डॉलर प्रति mmBtu तक पहुंच चुकी है.
दुनिया में कोयले से जुड़ा क़िस्सा चीन और भारत के इर्द-गिर्द घूमता है. ये दोनों देश मिलकर दुनिया में कुल 65 फ़ीसदी कोयले का इस्तेमाल करते हैं. भारत और चीन विश्व में कोयले के सबसे बड़े आयातक भी हैं. थर्मल कोयले की क़ीमत अब रिकॉर्ड ऊंचाई के क़रीब पहुंच रही है. चीन और भारत में बिजली की मांग बेतहाशा बढ़ती जा रही है. वहीं दूसरी ओर दुनिया डिकार्बनाइज़ेशन की ओर रुख़ कर रही है. ऐसे में निवेशक कोयला-आधारित बिजली निर्माण की नई क्षमताओं में निवेश करने से हिचक रहे हैं. कोयले की बेंचमार्क क़ीमत (कारोबारी कोयले) सितंबर 2021 की शुरुआत में पिछले 11 साल के उच्चतम स्तर पर (177.50 अमेरिकी डॉलर प्रति टन) थी. 2021 की शुरुआत में कोयले की प्रचलित क़ीमतों के मुक़ाबले ये स्तर दोगुने से भी ज़्यादा है. ग़ौरतलब है कि एक साल पहले इसी कोयले का भाव महज़ 50 अमेरिकी डॉलर प्रति टन हुआ करता था. ज़ाहिर है कि कोयले के दाम में ज़बरदस्त उछाल आया है. कोरोना का असर कम होने के साथ ही आर्थिक गतिविधियों के रफ़्तार पकड़ने और गर्मी के मौसम की प्रचंड तपिश ने भारत और चीन में कोयले की मांग में और इज़ाफ़ा कर दिया. 2020 के पहले सात महीनों के मुक़ाबले 2021 के पहले सात महीनों में चीन में 13 प्रतिशत ज़्यादा बिजली पैदा की गई. सूखे के चलते पनबिजली संसाधनों से बिजली निर्माण में आई गिरावट की भरपाई करने की वजह भी कहीं न कहीं कोयले की मांग में बढ़ोतरी के लिए ज़िम्मेदार रही है. इसका नतीजा ये हुआ कि जुलाई 2021 में चीन ने जुलाई 2020 के मुक़ाबले 16 फ़ीसदी ज़्यादा कोयला आयात किया.
कोरोना का असर कम होने के साथ ही आर्थिक गतिविधियों के रफ़्तार पकड़ने और गर्मी के मौसम की प्रचंड तपिश ने भारत और चीन में कोयले की मांग में और इज़ाफ़ा कर दिया. 2020 के पहले सात महीनों के मुक़ाबले 2021 के पहले सात महीनों में चीन में 13 प्रतिशत ज़्यादा बिजली पैदा की गई.
भारत में वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में अर्थव्यवस्था ने फिर से रफ़्तार पकड़ ली. जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में रिकॉर्ड तेज़ी देखी गई. अगस्त 2021 में बिजली के कुल उत्पादन में 16 प्रतिशत की बढ़त देखने को मिली. कोयले से पैदा होने वाली बिजली में साल 2020 के मुक़ाबले 2021 में 23 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ. रॉयटर्स के मुताबिक भारत के कुल 135 कोयला-आधारित बिजलीघरों में से तक़रीबन आधे के पास अपनी ज़रूरत पूरी करने के लिए एक हफ़्ते से भी कम का कोयला बचा था. छह संयंत्रों के पास कोयला बिल्कुल ख़त्म हो चुका था जबकि 50 बिजलीघरों के पास तीन दिन से भी कम की सप्लाई मौजूद थी. ऐसे माहौल में सरकार ने दख़ल दिया. कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) को प्राथमिकता के आधार पर बिजली उत्पादन संयंत्रों तक कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करने को कहा गया. सरकार ने दो टूक कहा कि एल्युमिनियम, सीमेंट और स्टील प्लांटों को छोड़कर सबसे पहले बिजली संयंत्रों तक कोयला पहुंचाया जाए. इतना ही नहीं बिजली उत्पादकों को कोयला आयात करने को भी कहा गया. 2021 के पहले आठ महीनों में कोयले पर आधारित बिजली निर्माण में क़रीब 19 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई.
मुद्दे
ऊपर बताए तमाम घटनाक्रमों में कुछ बातें साझा हैं. मौसमी बदलावों ने बिजली की मांग बढ़ा दी है. गरम करने या फिर ठंडक पाने की ज़रूरतों के चलते बिजली की मांग में बढ़ोतरी हुई है. इतना ही नहीं इस दौरान पवन, सौर और पनबिजली संसाधनों से बिजली उत्पादन और आपूर्ति में गिरावट देखने को मिली. यूरोपीय और एशियाई बाज़ारों में बिजली की बढ़ी मांग को पूरा करने के लिए मौसमी प्रभावों से स्वतंत्र कोयले और गैस आधारित बिजली निर्माण क्षमता ने निर्णायक भूमिका निभाई. कोयले और गैस के ज़रिए ही बेतहाशा बढ़ती बिजली की मांग को पूरा किया जा सका. यहां विचार योग्य मुख्य मुद्दा यही है कि बाज़ार में अब भी कोयले और गैस को स्वीकार क्यों किया जा रहा है. ये ऐसे ईंधन हैं जिनकी जलवायु के प्रति संवेदनशील दुनिया ने आपराधिक छवि बना दी है.
यूरोपीय और एशियाई बाज़ारों में बिजली की बढ़ी मांग को पूरा करने के लिए मौसमी प्रभावों से स्वतंत्र कोयले और गैस आधारित बिजली निर्माण क्षमता ने निर्णायक भूमिका निभाई. कोयले और गैस के ज़रिए ही बेतहाशा बढ़ती बिजली की मांग को पूरा किया जा सका.
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