Author : Jungho Nam

Expert Speak Raisina Debates
Published on Nov 20, 2024 Updated 0 Hours ago

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान के दोहरे संकट के समाधान के लिए एक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी. 

इंडो-पैसिफिक में समुद्री सहयोग से सुलझेंगे जुड़वां संकट

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यह लेख “सागरमंथन एडिट 2024” निबंध श्रृंखला का हिस्सा है.


इंडो-पैसिफिक रीजन, जो समुद्री संसाधनों से समृद्ध क्षेत्र है, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान के मामले में सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है. लवलॉक एवं अन्य की वैज्ञानिक रिसर्च से पता चलता है कि अध्ययन वाली जगहों में कम ज्वारीय सीमा और कम तलछट आपूर्ति के साथ मैंग्रोव के जंगल 2070 तक गायब हो सकते हैं. यहां समुद्री इकोसिस्टम न केवल क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा एवं आजीविका के लिए बल्कि दुनिया में जलवायु परिवर्तन के असर को हल्का करने के लिए ज़रूरी कार्बन को सोखने में अपनी अहम भूमिका के लिए भी महत्वपूर्ण है. हालांकि पर्यावरण में बदलाव और बढ़ती मानव गतिविधियों के कारण इन इकोसिस्टम को अधिक ख़तरे का सामना करना पड़ रहा है. इसकी वजह से अलग-अलग देशों के बीच तत्काल और मज़बूत सहयोग ज़रूरी हो जाता है. इंडो-पैसिफिक में इस दोहरे संकट को प्रभावी ढंग से हल करने के लिए विशिष्ट सहयोगी रणनीतियों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

अलग-अलग देशों के बीच तत्काल और मज़बूत सहयोग ज़रूरी हो जाता है. इंडो-पैसिफिक में इस दोहरे संकट को प्रभावी ढंग से हल करने के लिए विशिष्ट सहयोगी रणनीतियों में निम्नलिखित शामिल हैं

वैज्ञानिक अनुसंधान के नेटवर्क और डेटा साझा करने को बढ़ाना 

एक मज़बूत वैज्ञानिक अनुसंधान नेटवर्क बनाना और इंडो-पैसिफिक देशों के बीच डेटा साझा करने के तौर-तरीकों में सुधार लाना एक महत्वपूर्ण पहला कदम है. पूरे क्षेत्र के समुद्री वैज्ञानिकों, जीव वैज्ञानिकों और जलवायु विशेषज्ञों को तटीय और समुद्री क्षेत्रों में जैव विविधता के नुकसान और जलवायु परिवर्तन से जुड़े आंकड़े को जमा करने और उसका विश्लेषण करने के लिए तालमेल करना चाहिए. ऐसे प्रयास प्रजातियों के वितरण में बदलाव, समुद्र के बढ़ते तापमान और कोरल के सफेद होने की घटनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे. इस तरह समुद्री इकोसिस्टम के स्वास्थ्य की लगातार निगरानी की सुविधा मिलेगी. दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान), एशिया एवं प्रशांत के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (UNESCAP), एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के क्षेत्रीय समुद्री कार्यक्रम जैसे क्षेत्रीय संगठन डेटा साझा करने का एक प्लैटफॉर्म स्थापित कर सकते हैं. इस तरह अलग-अलग देशों में समन्वित प्रतिक्रिया की रणनीति तैयार करने के लिए वास्तविक समय में सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा मिलती है. 

समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) का विस्तार और कार्बन सिंक की सुरक्षा 

समुद्री जैव विविधता को सुरक्षित रखने और जलवायु परिवर्तन के प्रति इकोसिस्टम के सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) का विस्तार और मज़बूत प्रबंधन आवश्यक है. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में दुनिया के कुछ सबसे जैव विविधता वाले समुद्री इकोसिस्टम हैं जहां व्यापक कोरल रीफ, मैंग्रोव और समुद्री घास के मैदान मौजूद हैं जो कार्बन सोखने का महत्वपूर्ण काम करते हैं. MPA का विस्तार करने और इकोसिस्टम एवं प्रवासी प्रजातियों का संपर्क बनाए रखने वाले अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को तैयार करने के लिए अलग-अलग देश तालमेल कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया और फिलीपींस पहले से ही कोरल ट्राएंगल का मिलकर प्रबंधन कर रहे हैं. सहयोग के इस मॉडल का विस्तार किया जा सकता है और इसे इंडो-पैसिफिक में दूसरे क्षेत्रीय समुद्रों एवं तटों पर लागू किया जा सकता है. इस तरह एक व्यापक क्षेत्रीय इकोसिस्टम पर आधारित MPA नेटवर्क बन सकता है. 

सहयोग के इस मॉडल का विस्तार किया जा सकता है और इसे इंडो-पैसिफिक में दूसरे क्षेत्रीय समुद्रों एवं तटों पर लागू किया जा सकता है. इस तरह एक व्यापक क्षेत्रीय इकोसिस्टम पर आधारित MPA नेटवर्क बन सकता है. 

अनुकूलन और जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए प्रकृति आधारित महासागरीय जलवायु समाधान लागू करना

इंडो-पैसिफिक के देश अपनी जलवायु अनुकूलन और असर कम करने की रणनीतियों के हिस्से के रूप में प्रकृति आधारित जलवायु समाधानों की शुरुआत कर सकते हैं. मैंग्रोव के जंगल को फिर से स्थापित करना, कोरल रीफ का पुनर्वास और समुद्री घास के मैदान का विस्तार कुछ ऐसे हाल हैं जो न केवल समुद्री इकोसिस्टम को फिर से बहाल करते हैं बल्कि कार्बन को अलग करने की उनकी क्षमता को भी बढ़ाते हैं. उदाहरण के लिए, 1971 में स्थापित पैसिफिक आइलैंड फोरम ने पैसिफिक मैंग्रोव इनिशिएटिव (PMI) के तहत मैंग्रोव को फिर से स्थापित करने के कार्यक्रम की शुरुआत की है जो इंडो-पैसिफिक के दूसरे देशों के लिए एक मॉडल के रूप में काम करता है. ये उल्लेख करना भी आवश्यक है कि UNESCAP ने 2023 में महासागर आधारित जलवायु कार्रवाई (OBCA) की शुरुआत की जिससे समुद्री इकोसिस्टम पर जलवायु परिवर्तन के असर को हल्का करने और समुद्री प्रणाली का उपयोग करके शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने में योगदान की उम्मीद की जाती है. इसके अलावा, क्षेत्रीय जलवायु वित्त का तौर-तरीका स्थापित करने से हर देश को प्रभावी ढंग से अपनी समुद्री जलवायु रणनीति को लागू करने के लिए आवश्यक संसाधन मिल सकता है जिससे ऐसे समाधानों को अपनाने में सहायता मिल सकती है. 

स्थानीय समुदायों को शामिल करना और पारंपरिक ज्ञान का उपयोग 

इंडो-पैसिफिक के कई देशों के पास समुद्री संसाधनों के प्रबंधन को लेकर पारिस्थितिकी से जुड़े पारंपरिक ज्ञान का भंडार मौजूद है जिसे अगर वैज्ञानिक निष्कर्षों के साथ जोड़ दिया जाए तो एक बहुमूल्य संपत्ति हो सकता है. स्थानीय समुदायों ने लंबे समय से पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करके समुद्री संसाधनों को बचाए रखा है. जलवायु अनुकूलन और जैव विविधता के संरक्षण की रणनीतियों में उनकी भागीदारी ज़रूरी है. फिलीपींस के समुदाय आधारित MPA और फिजी के स्थानीय रूप से प्रबंधित समुद्री क्षेत्र (LMMA) के मॉडल जैसे लोगों के नेतृत्व वाली समुद्री संरक्षण की पद्धतियों को बढ़ावा देना स्थानीय लोगों और समुदायों को MPA के संरक्षण और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम बनाता है. शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम समुदायों की भागीदारी को और अधिक बढ़ावा दे सकते हैं और समुद्र के संरक्षण के लिए साझा ज़िम्मेदारी की भावना को जन्म देने में मदद कर सकते हैं. 

वित्तीय समर्थन को मज़बूती और तकनीक का हस्तांतरण 

जलवायु और जैव विविधता के संकट का प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिए इंडो-पैसिफिक के विकासशील देशों को सशक्त बनाने में वित्तीय समर्थन और तकनीक का हस्तांतरण महत्वपूर्ण हैं. विकसित देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को वित्तीय सहायता बढ़ानी चाहिए, ये सुनिश्चित करना चाहिए कि 2015 के पेरिस समझौते (विशेष रूप से अनुच्छेद 6), 2015 के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (SDG) (विशेष रूप से SDG 14), 2022 के कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढांचा (GBF) और 2023 की उच्च सागर संधि के तहत अनुकूलन की रणनीतियों को लागू करने के लिए इस क्षेत्र के देशों के पास आवश्यक संसाधन उपलब्ध हों. इसके अलावा समुद्री पर्यावरण की निगरानी और इकोसिस्टम की बहाली के लिए आधुनिक तकनीकों के ट्रांसफर से क्षेत्रीय समुद्री प्रबंधन की क्षमता में बढ़ोतरी होगी. विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक (ADB) और ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) जैसे वैश्विक संस्थान समुद्र के संरक्षण की परियोजनाओं में निवेश की सुविधा के लिए जलवायु अनुकूलन फंड स्थापित कर सकते हैं. प्राइवेट सेक्टर भी पर्यावरण, सामाजिक और शासन व्यवस्था (ESG) के ढांचे के माध्यम से विकासशील देशों को वित्तीय सहायता मज़बूत करने में योगदान कर सकते हैं. 

विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक (ADB) और ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) जैसे वैश्विक संस्थान समुद्र के संरक्षण की परियोजनाओं में निवेश की सुविधा के लिए जलवायु अनुकूलन फंड स्थापित कर सकते हैं.

संक्षेप में कहें तो इंडो-पैसिफिक में जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान के दोहरे संकट के समाधान के लिए एक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है. वैज्ञानिक डेटा को साझा करने में बढ़ोतरी, MPA नेटवर्क की स्थापना, प्रकृति आधारित जलवायु समाधानों को अपनाने, सामुदायिक भागीदारी और मज़बूत वित्तीय एवं तकनीकी समर्थन जैसी सभी सहकारी पहल टिकाऊ समुद्री और तटीय क्षेत्रों के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अभिन्न हैं. ये सहयोगी रणनीतियां समुद्री इकोसिस्टम के स्वास्थ्य को संरक्षित करने और बढ़ते पर्यावरणीय एवं सामाजिक-आर्थिक ख़तरों के सामने लोगों के अस्तित्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होंगी. 


जुंघो नैम कोरिया मैरिटाइम इंस्टीट्यूट (KMI) में सीनियर रिसर्च फेलो हैं. 

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