Author : Shivam Shekhawat

Published on Sep 18, 2023 Updated 0 Hours ago

काबुल के पतन के दो साल बाद, एक के बाद दूसरी मुसीबत ने आम अफ़ग़ान नागरिकों की ज़िंदगी तबाह कर डाली है.

अफ़ग़ानिस्तान में अमीरात 2.0: दूसरे तालिबान राज के दो साल

15 अगस्त को ‘काबुल के पतन’ के दो साल पूरे हो गए. दबाव के बावजूद, अफ़ग़ानिस्तान के इस्लामिक अमीरात ने अपनी उग्रवादी और पुरातनपंथी निज़ाम को लागू करने का सिलसिला जारी रखा है. तालिबान की ये सरकार भी, सत्ता में अपने पहले कार्यकाल (1996-2000) के तौर-तरीक़ों पर ही चलने की ज़िद पर अड़ी है. ख़ास तौर से अल्पसंख्यकों और महिलाओं को लेकर तो, तालिबान ने बेहद कट्टरपंथी रवैया अपना रखा है, जिससे उनके सुधारवादी होने की सारी उम्मीदें और अपेक्षाएं ख़त्म हो गई हैं. अब जबकि दुनिया के कई देश, इस उग्रवादी संगठन से दोबारा संवाद शुरू कर रहे हैं, और नए निज़ाम से रिश्तों को लेकर अधिक व्यवहारिक रवैया अपना रहे हैं, तो तालिबान के साथ बातचीत की उपयोगिता और संवाद के स्तर को लेकर आशंकाएं बढ़ती जा रही है. अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों का साया अभी भी मंडरा रहा है, और देश के भीतर के हालात स्थिरता से परे हैं. ऐसे में आम अफ़ग़ान नागरिक अभी भी अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों का साया अभी भी मंडरा रहा है, और देश के भीतर के हालात स्थिरता से परे हैं. ऐसे में आम अफ़ग़ान नागरिक अभी भी अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

तबाही के कगार पर

विश्व बैंक ने अपने ताज़ा अफ़ग़ानिस्तान इकोनॉमिक  मॉनिटर में दिसंबर 2021 से 2023 के बीच, देश में महंगाई की दर में गिरावट आने, डॉलर के मुक़ाबले वहां की मुद्रा अफ़ग़ानी (AFN) के मूल्य में 3.9 प्रतिशत का इज़ाफ़ा होने की तरफ़ इशारा किया है. इसके साथ साथ अफ़ग़ान सरकार की कुल राजस्व वसूली 63 अरब अफ़ग़ानी तक पहुंच गई है. 2023 में अफ़ग़ानिस्तान के कुल राजस्व का 60 प्रतिशत हिस्सा ईरान और पाकिस्तान की सीमा से होने वाले कारोबार से हासिल हुआ. लेकिन, इन सकारात्मक संकेतों के बावजूद, आम अफ़ग़ान नागरिकों के कल्याण की स्थिति अभी भी बेहद ख़राब है. आज अफ़ग़ानिस्तान के 2.92 करोड़ लोगों को सहायता की ज़रूरत है.  2021 में जब तालिबान सत्ता में आए थे, तब ऐसे लोगों की संख्या 1.84 करोड़ ही थी. यानी देश में ग़रीबी में भयावाह तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई है. अंतरराष्ट्रीय मदद में आई भारी कमी से ये हालात और भी जटिल हो गए हैं. 2023 की मानवीय सहायता योजना 3.23 अरब डॉलर की है, और इसमें अभी 2.43 अरब डॉलर की पूंजी की कमी है. सहायता में आई इस कमी ने आम नागरिकों की मदद के लिए काम करने वाली संस्थाओं को उन लोगों की संख्या कम करने को मजबूर कर दिया है, जिनको वो सहायता पहुंचा रही हैं. 2023 की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय राहत एजेंसियां जहां 90 लाख लोगों की सहायता कर रही थीं, वहीं मई में ये संख्या घटकर केवल पचास लाख रह गई है. अफ़ग़ानिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार अभी भी ज़ब्त पड़े हैं. मार्च 2023 में अफ़ग़ानिस्तान का केंद्रीय बैंक  (Da Afghanistan Bank (DAB) अमेरिका द्वारा किए गए ऑडिट पर खरा उतरने में नाकाम रहा था.

पिछले दो वर्षों के दौरान, तालिबान की हुकूमत ने धीरे धीरे महिलाओं के ख़िलाफ़ फ़रमान जारी किए हैं. शायद इसकी एक वजह ये भी रही हो कि वो महिलाओं को धीरे धीरे उनके अधिकारों से वंचित करने के साथ साथ, अपने क़दमों को लेकर देश दुनिया की प्रतिक्रिया देखना चाह रहे हों.

इंसानों की वजह से पैदा हुई इन समस्याओं के साथ साथ अफ़ग़ानिस्तान, जलवायु परिवर्तन के कारण भयंकर प्राकृतिक आपदाओं का क़हर भी झेल रहा है. 2023 में लगभग 16 हज़ार 700 लोग बाढ़ से प्रभावित हुए थे. सिर्फ़ जुलाई महीने में 40 लोगों की जान अचानक आई बाढ़ से चली गई थी. अपने ही मुल्क में दर-बदर 66 लाख अफ़ग़ान नागरिकों में से ज़्यादातर लोगों ने जलवायु परिवर्तन से हो रही तब्दीली से मजबूर होकर, अपना घर-बार छोड़ा है. अफ़ग़ानिस्तान के 34 में से तीन सूबे पानी की समस्याओं से जूझ रहे हैं. एक तरफ़ तो बार बार बाढ़ और ज़लज़ले आ रहे हैं. वहीं, एक साथ कई और चुनौतियां उठ खड़ी होने और उनका कोई समाधान दिखाई न देने की वजह से अफ़ग़ान नागरिकों की ज़िंदगी नर्क हो गई है. अब जबकि सर्दियां आ रही हैं, तो भयंकर ठंड और बर्फ़बारी की वजह से कुछ इलाक़े, के देश के बाक़ी हिस्सों से कट जाएंगे. उससे पहले ज़रूरी सामान का वितरण बेहद महत्वपूर्ण हो गया है.

विचारधारा की लड़ाई जारी है

जुलाई में अफ़ग़ानिस्तान के वाइस एंड वर्चु मिनिस्ट्री   ने देश के सभी ब्यूटी पार्लर बंद करने का ऐलान  किया था. वैसे तो मंत्रालय ने इसकी वजह ये बताई थी कि वो लोगों पर निकाह के आर्थिक बोझ को कम करना चाहता है. क्योंकि शादी से पहले दुल्हन सजने के लिए ब्यूटी पार्लर जाती है, तो उसका ख़र्च दूल्हे के परिवार को उठाना पड़ता है. भले ही ये तर्क बचकाना लगे. मगर, तालिबान ने महिलाओं की आज़ादी और उनके अधिकार छीनने के लिए खुलकर महिला विरोधी तर्कों का इस्तेमाल किया है. पिछले दो वर्षों के दौरान, तालिबान की हुकूमत ने धीरे धीरे महिलाओं के ख़िलाफ़ फ़रमान जारी किए हैं. शायद इसकी एक वजह ये भी रही हो कि वो महिलाओं को धीरे धीरे उनके अधिकारों से वंचित करने के साथ साथ, अपने क़दमों को लेकर देश दुनिया की प्रतिक्रिया देखना चाह रहे हों. सितंबर 2021 से मई 2023 के बीच तालिबान ने सिर्फ़ महिलाओं के ख़िलाफ़ लगभग 50 फ़रमान जारी किए हैं. इन फ़रमानों में महिलाओं की ज़िंदगी का हर पहलू शामिल रहा है- उन्हें स्कूल और कॉलेज जाने से रोका गया, दफ़्तर जाने से मना किया गया, मन बहलाव के लिए मनोरंजन के ठिकानों पर जाने से प्रतिबंधित किया गया और अब तो उन्हें ब्यूटी पार्लर जाने से भी रोक दिया गया है, जबकि इस पेशे में तो महिलाएं ही काम कर रही थीं. महिलाओं को बिना किसी काम के घर से निकलने से रोकने की ये सोची समझी रणनीति है, जिसके तहत उन्हें किसी भी तरह का मन-बहलाव करने से वंचित कर दिया गया है. इससे तालिबान के ‘मर्दों’ की दिल की गहराई में बची वो सोच दिखती है, जिसके चलते वो महिलाओं को किसी भी सूरत में आज़ादी देने के ख़िलाफ़ हैं.

मध्य एशिया के भी कई आतंकवादी संगठन जैसे कि ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी समूह भी अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय हैं.

इस्लामिक अमीरात की महिलाओं को दबाने वाली इन नीतियों के ख़िलाफ़ बहुत सी महिलाओं ने सड़कों पर उतरकर विरोध भी जताया है. लेकिन, तालिबान ने बहुत सख़्ती से इन विरोध प्रदर्शनों को कुचल दिया है. अगस्त 2021 में जब तालिबान ने दोबारा सत्ता हासिल की थी, तो उन्होंने देश के संविधान को ये कहते हुए निलंबित कर दिया था कि उसको इस्लामिक शरीयत के हिसाब से ढालने के बाद लागू किया जाएगा. इस तरह उन्होंने अफ़ग़ान महिलाओं से अपने अधिकारों और शिकायतों की बात करने का इकलौता सहारा भी छीन लिया था. अपनी कठोर नीतियों को वाजिब ठहराने के लिए तालिबानी शासक बार बार ‘इस्लामिक नियम क़ायदों के तहत’ और ‘शरीयत के हिसाब से’ जैसे तर्कों का इस्तेमाल करते रहे हैं. शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने, उसको इस्लामिक और अफ़ग़ानी सिद्धांतों के अनुरूप ढालने के लिए तालिबानी शासक जिन भी सुधारों को लागू करने का इरादा रखते हैं, वो ‘मुल्क के तालिबानीकरण, मज़हबी कट्टरपंथ की प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए होंगे, जिनसे उच्च शिक्षा का इस्तेमाल दूसरी इस्लामिक अमीरात को जायज़ ठहराने और उसे मज़बूती देने के लिए किया जा सके.’ अगस्त 2021 से जून 2023 के दौरान, महिलाओं के अलावा पूर्व सरकारी और सुरक्षा अधिकारियों, क़ैदियों और पत्रकारों को भी तालिबानी हिंसा का शिकार बनाया गया है. ऐसी कम से कम एक हज़ार घटनाएं दर्ज की जा चुकी हैं.

आतंकवादियों के लिए जन्नत

तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवादी नेटवर्कों के फिर से उभरने और ख़ुद को ताक़तवर बनाने को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है. वैसे तो तालिबान ने वादा किया था कि वो सभी आतंकवादी संगठनों से अपने रिश्ते ख़त्म कर लेगा और दूसरे देशों पर हमला करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल नहीं होने देगा. लेकिन जुलाई 2022 में एक ड्रोन हमले में अल क़ायदा के नेता अयमन अल ज़वाहिरी के मारे जाने से तालिबान के आतंकवाद विरोधी दावे को पूरा करने की रही सही उम्मीदें भी ख़त्म हो गईं अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन इस समय दो तबक़ों में बंटे हुए हैं. एक तो वो हैं, जो तालिबान के समर्थक हैं- यानी अल क़ायदा और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP). वहीं दूसरी तरफ़ वो दहशतगर्दी संगठन हैं, जो तालिबान के विरोधी हैं- यानी इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP). इनके अलावा मध्य एशिया के भी कई आतंकवादी संगठन जैसे कि ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी समूह भी अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय हैं.

तालिबान के सदस्यों की तरफ़ से दावा किया जाता है कि इस्लामिक स्टेट खुरासान के आतंकवादियों की तादाद बहुत कम हो गई है. तालिबान हुकूमत के दूसरे साल में ISKP के हमलों में 83 फ़ीसद की कमी आई है और 2023 में सिर्फ़ एक दर्जन हमले हुए हैं. लेकिन, एक ख़बर में बताया गया है कि इस्लामिक स्टेट के हमलों में आई इस कमी की वजह उस संगठन की ताक़त में गिरावट नहीं है. इस्लामिक स्टेट का ख़तरा अभी भी बना हुआ है. अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) के मुताबिक़, अगस्त 2021 से ISKP द्वारा इबादतगाहों, शिक्षण संस्थाओं और उन सार्वजनिक ठिकानों पर IED धमाकों के हमले बढ़ गए हैं, जहां अल्पसंख्यक शिया हज़ारा समुदाय के लोग अक्सर आते-जाते हैं. इन हमलों में बड़ी तादाद में आम नागरिक मारे जा चुके हैं. इस्लामिक स्टेट की प्रोपेगैंडा टीम ने तालिबान विरोधी ताक़तों से संपर्क करके अपने साथ आने की अपील की है, जिससे अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा के हालात और ख़राब हो गए हैं.

एक समावेशी भविष्य के लिए संवाद (हीनता)?

पिछले महीने अमेरिका का एक प्रतिनिधिमंडल ने, अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी और दूसरे सदस्यों से क़तर की राजधानी दोहा में उच्च स्तरीय बातचीत के लिए मुलाक़ात की थी. इनका मक़सद दोनों पक्षों के बीच भरोसा जगाने वाले उपायों पर चर्चा करना था. अफ़ग़ानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि ने तालिबान के साथ कुछ ‘अहम मसलों’ जैसे कि अर्थव्यवस्था, मानव अधिकारों और ड्रग्स की तस्करी पर मिलकर काम करने का संकेत दिया है. तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अमेरिका के किसी भी अधिकारी ने अफ़ग़ानिस्तान का दौरा नहीं किया है; ऐसे में दोहा की ये बैठक बहुत महत्वपूर्ण थी, जो यूरोप के कुछ देशों के उच्च अधिकारियों के अफ़ग़ानिस्तान दौरे के बाद हुई थी.

दोबारा सत्ता पर क़ाबिज़ होने के दो साल बाद तालिबान ने, अंतरराष्ट्रीय समुदाय से किया गया एक भी वादा पूरा नहीं किया है, जो उसने अगस्त 2021 में काबुल पर जीत के बाद किया था. अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा के हालात अभी भी अस्थिर बने हुए हैं.

तालिबानी हुकूमत दक्षिणी एशिया में अपना कूटनीतिक प्रभाव बढ़ाने और ब्रिटेन के धार्मिक नेताओं के साथ बातचीत करने की कोशिश भी कर रही है, ताकि अपने लिए समर्थन या हुकूमत के लिए मान्यता हासिल कर सके. लेकिन, वैसे तो अब तक किसी भी देश ने तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं दी है. लेकिन, कई देशों ने उनके साथ बातचीत ज़रूर शुरू कर दी है. और, तालिबान इस बातचीत का हवाला देकर अपनी छवि ये कहते हुए चमका रहा है कि उससे बातचीत करने के अलावा कोई और रास्ता है नहीं. वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो आरोन वाय. ज़ेलिन द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक़, तालिबान के सत्ता में आने के बाद पहले साल 35 और दूसरे साल 37 देशों ने उनके साथ बातचीत की. यानी दूसरे साल तालिबान से संपर्क साधने वाले देशों की तादाद बढ़ी है. चीन ने तो लगातार तालिबान के साथ संपर्क बनाए रखा है. हाल ही में चीन ने अपना राजदूत भी अफ़ग़ानिस्तान में नियुक्त किया है. तालिबान के दोबारा सत्ता में आने के बाद, अफ़ग़ानिस्तान में राजदूत नियुक्त करने वाला, चीन पहला देश है. चीन के अलावा, तालिबान हुकूमत ने अपने राज के दूसरे साल में रूस और ईरान से भी काफ़ी संपर्क बढ़ाया है. इन संपर्कों से अफ़ग़ानिस्तान को जो फ़ायदे होंगे, उनको छोड़ दिया जाए, तो अब तक किसी भी देश ने तालिबान हुकूमत को मान्यता देने की लक्ष्मण रेखा पार नहीं की है. ये अजीब यथास्थिति है, जिसमें तालिबान की निर्मम सरकार को मान्यता देने की शर्मिंदगी उठाए बग़ैर भी, तमाम देश अपने हित साधने के लिए उसके साथ काम कर रहे हैं. लेकिन, तालिबान के लिए तो अपनी सत्ता को जायज़ ठहराने का एक सहारा भी उसे अपनी कट्टर नीतियों पर चलने का बहाना दे देता है.

दोबारा सत्ता पर क़ाबिज़ होने के दो साल बाद तालिबान ने, अंतरराष्ट्रीय समुदाय से किया गया एक भी वादा पूरा नहीं किया है, जो उसने अगस्त 2021 में काबुल पर जीत के बाद किया था. अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा के हालात अभी भी अस्थिर बने हुए हैं. वहां के नागरिकों की सामाजिक आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब है. और, देश के सभी समुदायों को सत्ता में शामिल करने की मांग को पश्तून मर्दों के दबदबे वाली कार्यकारी सरकार लगातार अनसुना कर रही है. पिछले दो वर्षों में तालिबान ने सत्ता पर अपनी पकड़ मज़बूत करते हुए अपनी स्थिति ऐसी बना ली है कि दुनिया के तमाम देशों को उनके साथ किसी न किसी तरह का संवाद करने को मजबूर होना पड़ा है. लेकिन, इस खींचतान का सबसे बुरा असर तो अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है. बहुत सी अफ़ग़ान महिलाओं को लगता है कि तालिबान उनको ‘मोहरे’ की तरह इस्तेमाल कर रहा है, ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर ख़ुद को मान्यता देने का दबाव बना सके. इन बातों से इतर, बहुत से देश तालिबान से संवाद कर रहे हैं, ताकि अपने हित साध सकें. अब उनके हित, अफ़ग़ानिस्तान की आम जनता से टकरा रहे हैं, तो ये अलग बात होगी.

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Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...

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