Published on Nov 03, 2022 Updated 0 Hours ago

भू-राजनीति के प्रतिस्पर्धी कोष्ठागारों (साइलोज़, यानी ऐसी प्रणालियां जो एक-दूसरे से अलगाव में काम करती हैं) में खंडित होने के मद्देनज़र ‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं’ (CBDC) को एक एकीकृत वैश्विक दृष्टिकोण की ज़रूरत है.

CBDC यानी केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा संबंधित एकीकृत वैश्विक दृष्टिकोण की ज़रूरत पर ज़ोर!

‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा’ या सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) वैश्विक एवं घरेलू भुगतान व सेटलमेंट के लिए एक नयी परिसंपत्ति श्रेणी और प्रणाली है. इसे लेकर तक़रीबन 2015 से ही सक्रिय अनुसंधान एवं विकास कार्य चल रहा है. विचित्र रूप से, अमेरिका इस दौड़ में शामिल होने को लेकर किसी हड़बड़ी में नज़र नहीं आता है.

गंवा दिये गये वक़्त की भरपाई करता अमेरिका

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने संस्थानिक इत्मीनान दिखाते हुए, जनवरी 2021 में कहा, ‘सर्वप्रथम होने की कोई इच्छा या ज़रूरत हम महसूस नहीं करते… [अमेरिकी डॉलर के] रिजर्व करेंसी होने की वजह से हमारे पास फर्स्ट-मूवर होने का लाभ पहले से मौजूद है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘फेड को CBDC जारी करने से पहले महीनों नहीं, बल्कि वर्षों का समय लग सकता है.’ यह आत्मविश्वास भरा दृष्टिकोण ज़्यादा दिन नहीं चला. 

 चीन एक इंटर-ऑपरेबल होलसेल CBDC के लिए प्रोटोटाइप विकसित करने के लिये संयुक्त अरब अमीरात, थाईलैंड, और हांगकांग में बैंक ऑफ इंटरनल सेटलमेंट्स (बीआईएस) हब के साथ मिलकर काम कर रहा है. प्रतिस्पर्धी बहु CBDC प्रणालियां स्विफ्ट के वर्चस्व को ख़त्म कर सकती हैं.

9 मार्च, 2022 को, यूक्रेन संकट की आंच में, राष्ट्रपति बाइडेन ने सात महीने के अंदर अमेरिकी डिजिटल डॉलर के लिए डिज़ाइन और इस्तेमाल में लाने के विकल्पों की तैयारी का आदेश दिया. इसमें आवश्यक विधायी प्रस्ताव लाना, और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में अमेरिका के लगातार क़ायम नेतृत्व की दावेदारी के लिए वैश्विक CBDC फोरमों में संलग्नता को बढ़ाना शामिल था. ग़ौरतलब है कि जी-7 के 2020 के अध्यक्ष के रूप में, अमेरिका ने CBDC, स्टेबल क्वाइन्स और डिजिटल भुगतान के दूसरे मुद्दों पर चर्चा के लिए ‘जी-7 डिजिटल भुगतान विशेषज्ञ समूह’ का गठन किया था.

अचानक यह उलटा रुख़ अपनाना क्या डिजिटल फिएट मनी (सरकारी मुद्रा जो सोने-चांदी इत्यादि से समर्थित नहीं होती है) – ‘पैसे के भविष्य’ पर नियंत्रण को लेकर अलग-थलग रह जाने के डर से प्रेरित था? या फिर यह देर से हुआ एहसास था कि पश्चिमी गठबंधन द्वारा मार्च 2022 में रूस पर लगाये गये प्रतिबंध, रूस और उसके सहयोगियों को प्रतिबंधों के आर्थिक असर से बचने के लिए बहु CBDC, सीमा-पार भुगतान प्रणाली में चीन के साथ शामिल होने की दिशा में प्रेरित करेंगे? ‘एमब्रिज प्रोजेक्ट’ के तहत, चीन एक इंटर-ऑपरेबल होलसेल CBDC के लिए प्रोटोटाइप विकसित करने के लिये संयुक्त अरब अमीरात, थाईलैंड, और हांगकांग में बैंक ऑफ इंटरनल सेटलमेंट्स (बीआईएस) हब के साथ मिलकर काम कर रहा है. प्रतिस्पर्धी बहु CBDC प्रणालियां स्विफ्ट के वर्चस्व को ख़त्म कर सकती हैं. स्विफ्ट ब्रुसेल्स आधारित, सीमा-पार भुगतान के लिए पेमेंट इंस्ट्रक्शन कैरियर और आईडी जारीकर्ता है, जिसका इस कारोबार के 50 प्रतिशत पर क़ब्ज़ा है.

रूस की उलटी चाल

इसके विपरीत, पारंपरिक रूप से क्रिप्टो करेंसियों के पक्ष में नहीं दिखने वाले रूस ने एक वैकल्पिक भुगतान कार्यप्रणाली मुहैया कराने के लिए 2020 में CBDC पर अनुसंधान शुरू किया. मार्च 2022 में प्रतिबंधों के बाद, उसने विदेशी व्यापार भुगतानों के लिए एक अंतरिम, वैकल्पिक कार्यप्रणाली के रूप में निजी क्रिप्टो करेंसियों के इस्तेमाल की क़वायद शुरू की. इसके साथ-साथ उसने डिजिटल रूबल पर काम करना तेज़ किया है, जिसे 2024 में लाने का लक्ष्य है.

भविष्य के लिए चीन की योजनाएं

चीन ने ई-युआन पर 2014 में अनुसंधान शुरू किया. 2017 तक, उसने विकास और परीक्षण शुरू किया और 2020 में पायलट चरण में प्रवेश किया – ऐसा करने वाला वह पहला बड़ा देश था. फरवरी 2022 में, ई- युआन बीजिंग विंटर ओलंपिक में आये लोगों के लिए वॉलेट के ज़रिये उपलब्ध था. यह एक केंद्रीय बैंक फिएट मनी है, जिसका इस्तेमाल खुदरा और थोक लेन-देन के लिए किया जा सकता है. जनता के लिए इसमें मध्यवर्ती का काम (इंटरमीडिएशन) तय संस्थाओं द्वारा, पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना की पूर्ण निगरानी में किया जाता है. इसके लिए एकाउंटिंग का इस्तेमाल किया जाता है (अपेक्षाकृत गुप्त पहचान वाले ‘टोकन’ रूप के उलट तौर पर) – यानी सभी लेन-देन रिकॉर्ड और मॉनिटर किये जाते हैं. पायलट चरण के दौरान, 26.1 करोड़ वॉलेट पंजीकृत किये गये हैं, और 10,000 लेन-देन प्रति सेकेंड (टीपीएस) की लेन-देन गति हासिल कर ली गयी है, जबकि 3,00,000 टीपीएस का लक्ष्य है. इस तुलना में, वीजा 1,700 टीपीएस, हैमिल्टन प्रोजेक्ट (जो बोस्टन फेड-एमआईटी की पहल है) 1,70,000 से लेकर 17 लाख टीपीएस तक संभालता है, जबकि अलीपे और टेनपे ने 2019 में 5,44,000 टीपीएस तक की गति दर्ज की. चीनी ई-युआन के लॉन्च होने की तारीख़ अभी तक बतायी नहीं गयी है. 

धीरे-धीरे प्रगति करता ईयू

अक्टूबर 2020 में डिजिटल यूरो पर एक रिपोर्ट के बाद, आगे की छानबीन यह पुष्टि करती है कि त्वरित भुगतान के लिए यूरोसिस्टम के मौजूदा बुनियादी ढांचे – टारगेट इंस्टैंट पेमेंट सेटलमेंट (टिप्स) – और डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर तकनीक को, हर साल यूरो क्षेत्र में लगभग 300 अरब खुदरा लेन-देन के स्तर तक बढ़ाया जा सकता है. मार्च 2021 में, यूरो शिखर सम्मेलन के सदस्यों ने डिजिटल करेंसी की दिशा में काम जारी रखने का अनुमोदन किया. ईयू ने 2025 में ई-यूरो लॉन्च करने का लक्ष्य रखा है.

CBDC के लिए मची होड़

CBDC पर विचार कर रहे 100 देशों में से महज़ 10 ने इसे लॉन्च किया है. बहामास (21 द्वीपों में फैला 40 लाख आबादी वाला देश) ‘सैंड डॉलर’ लॉन्च करने वाला पहला देश था. सैंड डॉलर एक CBDC है, जो अंतर-द्वीपीय कनेक्टिविटी के मसलों को देखते हुए ऑफलाइन भी काम करती है. पूर्वी कैरेबियन में आठ देशों ने इसका अनुसरण किया.

नाइजीरिया ने अक्टूबर 2021 में खुदरा इस्तेमाल के लिए ई-नाइरा (एक केंद्रीय बैंक फिएट करेंसी) लॉन्च की. यह काम एक इंटरमीडिएटेड, पूर्ण एकाउंटिंग ढांचे के साथ किया गया, ताकि अंतरराष्ट्रीय भुगतान और ट्रांसफर के लिए निजी क्रिप्टो करेंसियों को व्यापक तौर पर अपनाये जाने से बैंक डिसइंटरमीडिएशन (बैंक की किसी मध्यवर्ती भूमिका से मुक्ति) का जो ख़तरा पैदा हुआ है, उससे निपटा जा सके. जमैका ने सबसे हाल में जैम-डेक्स (JAM-DEX) नामक CBDC लॉन्च की है.

मौजूदा विकल्पों के मुक़ाबले CBDC नियामक और नीतिगत पाबंदियों को बेहतर ढंग से लागू कर सकती हैं. नागरिकों को बैंकों के ज़रिये डिजिटल मनी के रूप में अनुदानों के सशर्त ट्रांसफर का बाद में यह ऑडिट किया जा सकता है कि पैसे को किस तरह ख़र्च किया गया. 

15 देश एडवांस्ड पायलट प्रोजेक्ट चरण में हैं. इनमें स्वीडन (जो अपने नागरिकों को निजी डिजिटल करेंसियों से विमुख करने के लक्ष्य के साथ 2017 में इस दौड़ में आगे था), चीन, रूस, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, मलेशिया व दक्षिण अफ्रीका (बाद वाले तीन देश प्रोजेक्ट डनबार के तहत साथ काम कर रहे हैं), थाईलैंड और यूक्रेन शामिल हैं.

ईयू, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत, ईरान, तुर्की, कनाडा, वेनेजुएला और ब्राजील समेत 26 देश अभी विकास के चरण में हैं. 46 अन्य देशों के साथ अमेरिका अभी अनुसंधान की श्रेणी में ही बना हुआ है.

CBDC के लिए यह होड़ आख़िर क्यों?

पहली बात, नक़द फिएट मनी के उलट, CBDC लचीली हैं. उन्हें खुदरा, और थोक (घरेलू या सीमा-पार) भुगतान जैसे विशिष्ट उद्देश्यों के लिए सस्ते और प्रभावकारी ढंग से डिज़ाइन किया जा सकता है. मौजूदा विकल्पों के मुक़ाबले CBDC नियामक और नीतिगत पाबंदियों को बेहतर ढंग से लागू कर सकती हैं. नागरिकों को बैंकों के ज़रिये डिजिटल मनी के रूप में अनुदानों के सशर्त ट्रांसफर का बाद में यह ऑडिट किया जा सकता है कि पैसे को किस तरह ख़र्च किया गया. भुगतानों को कैपिटल स्टॉक या लेन-देन की संख्या से संबंधित मूल्य के अनुसार सीमित किया जा सकता है (जैसा कि चीन में है), और निर्दिष्ट वस्तुओं व सेवाओं, जैसे भोजन, स्वास्थ्य देखभाल या शिक्षा, सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं या कर भुगतान, तक पहुंच को सक्षम बनाया जा सकता है.

दूसरी बात, CBDC लेन-देन ट्रैक किये जा सकते हैं; यह नक़द पैसे के उलट है जो अपने पीछे ऑडिट के लिए निशानी नहीं छोड़ता. यह वरदान भी है और दु:स्वप्न भी. वरदान इसलिए कि यह अवैध गतिविधियों पर लगाम लगाता है. दु:स्वप्न इसलिए कि अगर मज़बूत सुरक्षा प्रावधान बनाये और लागू नहीं किये जाएं , और प्रभावकारिता के लिए समय-समय पर उनका ऑडिट नहीं किया जाए, तो यह व्यक्तिगत निजता की बलि चढ़ाता है. जिन अधिकार-क्षेत्रों (ज्यूरिडिक्शन्स) में राज्य की जवाबदेही कम है, वहां नागरिक अधिकारों का संभावित अतिक्रमण एक बड़ा नकारात्मक कारक है.

तीसरी बात, CBDC में सीमा-पार पेमेंट सेटलमेंट तेज़ करने की क्षमता है. अभी असमान क़ानून, प्रक्रियाओं, मूल्यांकन (ड्यू डिलिजेंस) विधियों और यहां तक टाइम ज़ोन में अंतर की वजह से देर होती है और लागत बढ़ती है. सभी संप्रभु अधिकार-क्षेत्रों में शुरुआती चरण की संस्थानिक और नियामकीय एकरूपता हासिल किये जाने से भावी कार्यकुशलता में काफ़ी बढ़ोतरी होगी. जी-20 पिछले कुछ समय से बीआईएस और फाइनेंशियल स्टेबिलिटी बोर्ड के साथ मिलकर इस बारे में काम कर रहा है. ये दोनों ही अंतरराष्ट्रीय संगठन हैं, जिनमे से पहला केंद्रीय बैंकों के अधीन है, जबकि दूसरे की स्थापना 2009 के पश्चिमी वित्तीय संकट के बाद की गयी.

भारत की राह

भारत का ध्यान एक ‘यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस’ प्लेटफार्म पर बहु तकनीकी डिजिटल भुगतान प्रणालियों (बैंक, पेमेंट ऐप और वॉलेट) तक नागरिकों की पहुंच बढ़ाने पर केंद्रित रहा है. वित्तीय वर्ष 2022 में 78 अरब रुपये मूल्य के 45 अरब लेन-देन और वित्तीय वर्ष 2023 के लिए 1 अरब लेन-देन के लक्ष्य के साथ अब यह प्लेटफार्म परिपक्व हो चुका है. 

1 फरवरी 2022 को, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा, ‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) डिजिटल अर्थव्यवस्था को बड़ा प्रोत्साहन देगी, जिससे एक ज़्यादा कार्यकुशल और सस्ती मुद्रा प्रबंधन प्रणाली का जन्म होगा… ब्लॉकचेन और दूसरी तकनीकों का उपयोग करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा डिजिटल रुपया 2022-23 से जारी किया जायेगा.’ यह बहुत ज़्यादा दबाव वाला टाइम टेबल है. जहां दूसरे देशों ने अनुसंधान, विकास, पायलट चरण से लेकर लॉन्च तक पांच साल लगने की संभावना दिखायी है, वहीं भारत ने महज़ एक साल की. यह जल्दबाजी इसलिए हो सकती है कि 2023 में जी-20 की अध्यक्षता मिलने तक वह CBDC की कार्यक्षमता प्रदर्शित करना चाहता हो.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण के आठ महीने बाद, भारतीय रिजर्व बैंक ने 7 अक्टूबर, 2022 को एक कॉन्सेप्ट नोट जारी किया, जिसमें इसे क्रियान्वित करने की तुरंत ज़रूरत का कोई स्वर मौजूद नहीं था. कुछ प्राथमिक सिफ़ारिशें ये हैं कि ई-रुपया एक फिएट करेंसी, एक बिना ब्याज वाली परिसंपत्ति होगा, जिसका इस्तेमाल खुदरा और थोक दोनों तरह के लेन-देन के लिए हो सकेगा. यह ‘इंटरमीडिएशन’ ढांचे का समर्थन करता है (आरबीआई द्वारा ‘सीधे जारी’ किये जाने को संस्थागत बनाने और लगातार इनोवेशन के लिए इस इंस्ट्रुमेंट को बैंकिंग व वित्तीय उद्योग – सरकारी व निजी दोनों – में पूरी तरह समाविष्ट किये जाने की ऊंची लागत को देखते हुए, इसे आरबीआई द्वारा जारी किया जायेगा और वित्तीय संस्थाओं द्वारा वितरित). 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण के आठ महीने बाद, भारतीय रिजर्व बैंक ने 7 अक्टूबर, 2022 को एक कॉन्सेप्ट नोट जारी किया, जिसमें इसे क्रियान्वित करने की तुरंत ज़रूरत का कोई स्वर मौजूद नहीं था. कुछ प्राथमिक सिफ़ारिशें ये हैं कि ई-रुपया एक फिएट करेंसी, एक बिना ब्याज वाली परिसंपत्ति होगा, जिसका इस्तेमाल खुदरा और थोक दोनों तरह के लेन-देन के लिए हो सकेगा.

वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के वास्ते खुदरा इस्तेमाल के लिए ‘टोकन’ रूप (जिसे ऑफलाइन भी उपयोग किया जा सकता है) पर भी विचार किया जा सकता है. थोक इस्तेमाल के लिए, केंद्रीकृत ‘एकाउंट्स’ मेथड को तरजीह दी जाती है. पहचान गुप्त रहने की अच्छाइयों को स्वीकार करते हुए, एक हाइब्रिड, ग्रेडेड दृष्टिकोण (कम मूल्य, उच्च गोपनीयता और इसका उलटा) का सुझाव दिया जाता है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यह मुश्किल है, क्योंकि मोबाइल ऐप्स के लिए आज कम-से-कम पते की किसी पहचान या टेलीफोन नंबर की ज़रूरत तो है ही. CBDC और संबंधित मामलों की ख़ातिर अधिदेश (मैंडेट) को विस्तृत करने के लिए, आरबीआई अधिनियम 1932 में विधायी बदलावों की भी सिफ़ारिश की गयी है.

आरबीआई भारत में भुगतान कार्यप्रणाली के रूप में निजी क्रिप्टो करेंसियों को वैध बनाने के पक्ष में कभी नहीं था. उसे डर था कि बचत का एक बड़ा हिस्सा उस अस्थिर परिसंपत्ति श्रेणी की ओर मुड़ सकता है जो मध्य-2021 तक ‘फटाफट धन’ का एकतरफा रास्ता था. साथ में यह ख़तरा भी जुड़ा था कि आरबीआई मौद्रिक नीति पर से नियंत्रण खो सकता है.

आरबीआई भारत में भुगतान कार्यप्रणाली के रूप में निजी क्रिप्टो करेंसियों को वैध बनाने के पक्ष में कभी नहीं था. उसे डर था कि बचत का एक बड़ा हिस्सा उस अस्थिर परिसंपत्ति श्रेणी की ओर मुड़ सकता है जो मध्य-2021 तक ‘फटाफट धन’ का एकतरफा रास्ता था. साथ में यह ख़तरा भी जुड़ा था कि आरबीआई मौद्रिक नीति पर से नियंत्रण खो सकता है. उच्चतम स्तर पर हस्तक्षेप के बिना, ई-रुपया भारतीय शासन बंदोबस्त को टुकड़ों में बांटने वाले कोष्ठागारों (साइलोज़ यानी ऐसी प्रणालियां जो एक-दूसरे से अलगाव में काम करती हैं) के बीच शायद नष्ट हो जायेगा. अफ़सोस की बात है कि भू-राजनीति के प्रतिस्पर्धी कोष्ठागारों में खंडित होने को देखते हुए, डिजिटल मुद्रा के लिए एक एकीकृत वैश्विक दृष्टिकोण की संभावनाएं इससे बेहतर नहीं हैं. केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राएं वैश्वीकरण की संतानें हैं. केवल वैश्विक नेतृत्व ही उन्हें जन्म के साथ अनाथ होने से बचा सकता है.

‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा’ या सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) वैश्विक एवं घरेलू भुगतान व सेटलमेंट के लिए एक नयी परिसंपत्ति श्रेणी और प्रणाली है. इसे लेकर तक़रीबन 2015 से ही सक्रिय अनुसंधान एवं विकास कार्य चल रहा है. विचित्र रूप से, अमेरिका इस दौड़ में शामिल होने को लेकर किसी हड़बड़ी में नज़र नहीं आता है.

गंवा दिये गये वक़्त की भरपाई करता अमेरिका

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने संस्थानिक इत्मीनान दिखाते हुए, जनवरी 2021 में कहा, ‘सर्वप्रथम होने की कोई इच्छा या ज़रूरत हम महसूस नहीं करते… [अमेरिकी डॉलर के] रिजर्व करेंसी होने की वजह से हमारे पास फर्स्ट-मूवर होने का लाभ पहले से मौजूद है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘फेड को CBDC जारी करने से पहले महीनों नहीं, बल्कि वर्षों का समय लग सकता है.’ यह आत्मविश्वास भरा दृष्टिकोण ज़्यादा दिन नहीं चला. 

 चीन एक इंटर-ऑपरेबल होलसेल CBDC के लिए प्रोटोटाइप विकसित करने के लिये संयुक्त अरब अमीरात, थाईलैंड, और हांगकांग में बैंक ऑफ इंटरनल सेटलमेंट्स (बीआईएस) हब के साथ मिलकर काम कर रहा है. प्रतिस्पर्धी बहु CBDC प्रणालियां स्विफ्ट के वर्चस्व को ख़त्म कर सकती हैं.

9 मार्च, 2022 को, यूक्रेन संकट की आंच में, राष्ट्रपति बाइडेन ने सात महीने के अंदर अमेरिकी डिजिटल डॉलर के लिए डिज़ाइन और इस्तेमाल में लाने के विकल्पों की तैयारी का आदेश दिया. इसमें आवश्यक विधायी प्रस्ताव लाना, और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में अमेरिका के लगातार क़ायम नेतृत्व की दावेदारी के लिए वैश्विक CBDC फोरमों में संलग्नता को बढ़ाना शामिल था. ग़ौरतलब है कि जी-7 के 2020 के अध्यक्ष के रूप में, अमेरिका ने CBDC, स्टेबल क्वाइन्स और डिजिटल भुगतान के दूसरे मुद्दों पर चर्चा के लिए ‘जी-7 डिजिटल भुगतान विशेषज्ञ समूह’ का गठन किया था.

अचानक यह उलटा रुख़ अपनाना क्या डिजिटल फिएट मनी (सरकारी मुद्रा जो सोने-चांदी इत्यादि से समर्थित नहीं होती है) – ‘पैसे के भविष्य’ पर नियंत्रण को लेकर अलग-थलग रह जाने के डर से प्रेरित था? या फिर यह देर से हुआ एहसास था कि पश्चिमी गठबंधन द्वारा मार्च 2022 में रूस पर लगाये गये प्रतिबंध, रूस और उसके सहयोगियों को प्रतिबंधों के आर्थिक असर से बचने के लिए बहु CBDC, सीमा-पार भुगतान प्रणाली में चीन के साथ शामिल होने की दिशा में प्रेरित करेंगे? ‘एमब्रिज प्रोजेक्ट’ के तहत, चीन एक इंटर-ऑपरेबल होलसेल CBDC के लिए प्रोटोटाइप विकसित करने के लिये संयुक्त अरब अमीरात, थाईलैंड, और हांगकांग में बैंक ऑफ इंटरनल सेटलमेंट्स (बीआईएस) हब के साथ मिलकर काम कर रहा है. प्रतिस्पर्धी बहु CBDC प्रणालियां स्विफ्ट के वर्चस्व को ख़त्म कर सकती हैं. स्विफ्ट ब्रुसेल्स आधारित, सीमा-पार भुगतान के लिए पेमेंट इंस्ट्रक्शन कैरियर और आईडी जारीकर्ता है, जिसका इस कारोबार के 50 प्रतिशत पर क़ब्ज़ा है.

रूस की उलटी चाल

इसके विपरीत, पारंपरिक रूप से क्रिप्टो करेंसियों के पक्ष में नहीं दिखने वाले रूस ने एक वैकल्पिक भुगतान कार्यप्रणाली मुहैया कराने के लिए 2020 में CBDC पर अनुसंधान शुरू किया. मार्च 2022 में प्रतिबंधों के बाद, उसने विदेशी व्यापार भुगतानों के लिए एक अंतरिम, वैकल्पिक कार्यप्रणाली के रूप में निजी क्रिप्टो करेंसियों के इस्तेमाल की क़वायद शुरू की. इसके साथ-साथ उसने डिजिटल रूबल पर काम करना तेज़ किया है, जिसे 2024 में लाने का लक्ष्य है.

भविष्य के लिए चीन की योजनाएं

चीन ने ई-युआन पर 2014 में अनुसंधान शुरू किया. 2017 तक, उसने विकास और परीक्षण शुरू किया और 2020 में पायलट चरण में प्रवेश किया – ऐसा करने वाला वह पहला बड़ा देश था. फरवरी 2022 में, ई- युआन बीजिंग विंटर ओलंपिक में आये लोगों के लिए वॉलेट के ज़रिये उपलब्ध था. यह एक केंद्रीय बैंक फिएट मनी है, जिसका इस्तेमाल खुदरा और थोक लेन-देन के लिए किया जा सकता है. जनता के लिए इसमें मध्यवर्ती का काम (इंटरमीडिएशन) तय संस्थाओं द्वारा, पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना की पूर्ण निगरानी में किया जाता है. इसके लिए एकाउंटिंग का इस्तेमाल किया जाता है (अपेक्षाकृत गुप्त पहचान वाले ‘टोकन’ रूप के उलट तौर पर) – यानी सभी लेन-देन रिकॉर्ड और मॉनिटर किये जाते हैं. पायलट चरण के दौरान, 26.1 करोड़ वॉलेट पंजीकृत किये गये हैं, और 10,000 लेन-देन प्रति सेकेंड (टीपीएस) की लेन-देन गति हासिल कर ली गयी है, जबकि 3,00,000 टीपीएस का लक्ष्य है. इस तुलना में, वीजा 1,700 टीपीएस, हैमिल्टन प्रोजेक्ट (जो बोस्टन फेड-एमआईटी की पहल है) 1,70,000 से लेकर 17 लाख टीपीएस तक संभालता है, जबकि अलीपे और टेनपे ने 2019 में 5,44,000 टीपीएस तक की गति दर्ज की. चीनी ई-युआन के लॉन्च होने की तारीख़ अभी तक बतायी नहीं गयी है. 

धीरे-धीरे प्रगति करता ईयू

अक्टूबर 2020 में डिजिटल यूरो पर एक रिपोर्ट के बाद, आगे की छानबीन यह पुष्टि करती है कि त्वरित भुगतान के लिए यूरोसिस्टम के मौजूदा बुनियादी ढांचे – टारगेट इंस्टैंट पेमेंट सेटलमेंट (टिप्स) – और डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर तकनीक को, हर साल यूरो क्षेत्र में लगभग 300 अरब खुदरा लेन-देन के स्तर तक बढ़ाया जा सकता है. मार्च 2021 में, यूरो शिखर सम्मेलन के सदस्यों ने डिजिटल करेंसी की दिशा में काम जारी रखने का अनुमोदन किया. ईयू ने 2025 में ई-यूरो लॉन्च करने का लक्ष्य रखा है.

CBDC के लिए मची होड़

CBDC पर विचार कर रहे 100 देशों में से महज़ 10 ने इसे लॉन्च किया है. बहामास (21 द्वीपों में फैला 40 लाख आबादी वाला देश) ‘सैंड डॉलर’ लॉन्च करने वाला पहला देश था. सैंड डॉलर एक CBDC है, जो अंतर-द्वीपीय कनेक्टिविटी के मसलों को देखते हुए ऑफलाइन भी काम करती है. पूर्वी कैरेबियन में आठ देशों ने इसका अनुसरण किया.

नाइजीरिया ने अक्टूबर 2021 में खुदरा इस्तेमाल के लिए ई-नाइरा (एक केंद्रीय बैंक फिएट करेंसी) लॉन्च की. यह काम एक इंटरमीडिएटेड, पूर्ण एकाउंटिंग ढांचे के साथ किया गया, ताकि अंतरराष्ट्रीय भुगतान और ट्रांसफर के लिए निजी क्रिप्टो करेंसियों को व्यापक तौर पर अपनाये जाने से बैंक डिसइंटरमीडिएशन (बैंक की किसी मध्यवर्ती भूमिका से मुक्ति) का जो ख़तरा पैदा हुआ है, उससे निपटा जा सके. जमैका ने सबसे हाल में जैम-डेक्स (JAM-DEX) नामक CBDC लॉन्च की है.

मौजूदा विकल्पों के मुक़ाबले CBDC नियामक और नीतिगत पाबंदियों को बेहतर ढंग से लागू कर सकती हैं. नागरिकों को बैंकों के ज़रिये डिजिटल मनी के रूप में अनुदानों के सशर्त ट्रांसफर का बाद में यह ऑडिट किया जा सकता है कि पैसे को किस तरह ख़र्च किया गया. 

15 देश एडवांस्ड पायलट प्रोजेक्ट चरण में हैं. इनमें स्वीडन (जो अपने नागरिकों को निजी डिजिटल करेंसियों से विमुख करने के लक्ष्य के साथ 2017 में इस दौड़ में आगे था), चीन, रूस, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, मलेशिया व दक्षिण अफ्रीका (बाद वाले तीन देश प्रोजेक्ट डनबार के तहत साथ काम कर रहे हैं), थाईलैंड और यूक्रेन शामिल हैं.

ईयू, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत, ईरान, तुर्की, कनाडा, वेनेजुएला और ब्राजील समेत 26 देश अभी विकास के चरण में हैं. 46 अन्य देशों के साथ अमेरिका अभी अनुसंधान की श्रेणी में ही बना हुआ है.

CBDC के लिए यह होड़ आख़िर क्यों?

पहली बात, नक़द फिएट मनी के उलट, CBDC लचीली हैं. उन्हें खुदरा, और थोक (घरेलू या सीमा-पार) भुगतान जैसे विशिष्ट उद्देश्यों के लिए सस्ते और प्रभावकारी ढंग से डिज़ाइन किया जा सकता है. मौजूदा विकल्पों के मुक़ाबले CBDC नियामक और नीतिगत पाबंदियों को बेहतर ढंग से लागू कर सकती हैं. नागरिकों को बैंकों के ज़रिये डिजिटल मनी के रूप में अनुदानों के सशर्त ट्रांसफर का बाद में यह ऑडिट किया जा सकता है कि पैसे को किस तरह ख़र्च किया गया. भुगतानों को कैपिटल स्टॉक या लेन-देन की संख्या से संबंधित मूल्य के अनुसार सीमित किया जा सकता है (जैसा कि चीन में है), और निर्दिष्ट वस्तुओं व सेवाओं, जैसे भोजन, स्वास्थ्य देखभाल या शिक्षा, सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं या कर भुगतान, तक पहुंच को सक्षम बनाया जा सकता है.

दूसरी बात, CBDC लेन-देन ट्रैक किये जा सकते हैं; यह नक़द पैसे के उलट है जो अपने पीछे ऑडिट के लिए निशानी नहीं छोड़ता. यह वरदान भी है और दु:स्वप्न भी. वरदान इसलिए कि यह अवैध गतिविधियों पर लगाम लगाता है. दु:स्वप्न इसलिए कि अगर मज़बूत सुरक्षा प्रावधान बनाये और लागू नहीं किये जाएं , और प्रभावकारिता के लिए समय-समय पर उनका ऑडिट नहीं किया जाए, तो यह व्यक्तिगत निजता की बलि चढ़ाता है. जिन अधिकार-क्षेत्रों (ज्यूरिडिक्शन्स) में राज्य की जवाबदेही कम है, वहां नागरिक अधिकारों का संभावित अतिक्रमण एक बड़ा नकारात्मक कारक है.

तीसरी बात, CBDC में सीमा-पार पेमेंट सेटलमेंट तेज़ करने की क्षमता है. अभी असमान क़ानून, प्रक्रियाओं, मूल्यांकन (ड्यू डिलिजेंस) विधियों और यहां तक टाइम ज़ोन में अंतर की वजह से देर होती है और लागत बढ़ती है. सभी संप्रभु अधिकार-क्षेत्रों में शुरुआती चरण की संस्थानिक और नियामकीय एकरूपता हासिल किये जाने से भावी कार्यकुशलता में काफ़ी बढ़ोतरी होगी. जी-20 पिछले कुछ समय से बीआईएस और फाइनेंशियल स्टेबिलिटी बोर्ड के साथ मिलकर इस बारे में काम कर रहा है. ये दोनों ही अंतरराष्ट्रीय संगठन हैं, जिनमे से पहला केंद्रीय बैंकों के अधीन है, जबकि दूसरे की स्थापना 2009 के पश्चिमी वित्तीय संकट के बाद की गयी.

भारत की राह

भारत का ध्यान एक ‘यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस’ प्लेटफार्म पर बहु तकनीकी डिजिटल भुगतान प्रणालियों (बैंक, पेमेंट ऐप और वॉलेट) तक नागरिकों की पहुंच बढ़ाने पर केंद्रित रहा है. वित्तीय वर्ष 2022 में 78 अरब रुपये मूल्य के 45 अरब लेन-देन और वित्तीय वर्ष 2023 के लिए 1 अरब लेन-देन के लक्ष्य के साथ अब यह प्लेटफार्म परिपक्व हो चुका है. 

1 फरवरी 2022 को, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा, ‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) डिजिटल अर्थव्यवस्था को बड़ा प्रोत्साहन देगी, जिससे एक ज़्यादा कार्यकुशल और सस्ती मुद्रा प्रबंधन प्रणाली का जन्म होगा… ब्लॉकचेन और दूसरी तकनीकों का उपयोग करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा डिजिटल रुपया 2022-23 से जारी किया जायेगा.’ यह बहुत ज़्यादा दबाव वाला टाइम टेबल है. जहां दूसरे देशों ने अनुसंधान, विकास, पायलट चरण से लेकर लॉन्च तक पांच साल लगने की संभावना दिखायी है, वहीं भारत ने महज़ एक साल की. यह जल्दबाजी इसलिए हो सकती है कि 2023 में जी-20 की अध्यक्षता मिलने तक वह CBDC की कार्यक्षमता प्रदर्शित करना चाहता हो.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण के आठ महीने बाद, भारतीय रिजर्व बैंक ने 7 अक्टूबर, 2022 को एक कॉन्सेप्ट नोट जारी किया, जिसमें इसे क्रियान्वित करने की तुरंत ज़रूरत का कोई स्वर मौजूद नहीं था. कुछ प्राथमिक सिफ़ारिशें ये हैं कि ई-रुपया एक फिएट करेंसी, एक बिना ब्याज वाली परिसंपत्ति होगा, जिसका इस्तेमाल खुदरा और थोक दोनों तरह के लेन-देन के लिए हो सकेगा. यह ‘इंटरमीडिएशन’ ढांचे का समर्थन करता है (आरबीआई द्वारा ‘सीधे जारी’ किये जाने को संस्थागत बनाने और लगातार इनोवेशन के लिए इस इंस्ट्रुमेंट को बैंकिंग व वित्तीय उद्योग – सरकारी व निजी दोनों – में पूरी तरह समाविष्ट किये जाने की ऊंची लागत को देखते हुए, इसे आरबीआई द्वारा जारी किया जायेगा और वित्तीय संस्थाओं द्वारा वितरित). 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण के आठ महीने बाद, भारतीय रिजर्व बैंक ने 7 अक्टूबर, 2022 को एक कॉन्सेप्ट नोट जारी किया, जिसमें इसे क्रियान्वित करने की तुरंत ज़रूरत का कोई स्वर मौजूद नहीं था. कुछ प्राथमिक सिफ़ारिशें ये हैं कि ई-रुपया एक फिएट करेंसी, एक बिना ब्याज वाली परिसंपत्ति होगा, जिसका इस्तेमाल खुदरा और थोक दोनों तरह के लेन-देन के लिए हो सकेगा.

वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के वास्ते खुदरा इस्तेमाल के लिए ‘टोकन’ रूप (जिसे ऑफलाइन भी उपयोग किया जा सकता है) पर भी विचार किया जा सकता है. थोक इस्तेमाल के लिए, केंद्रीकृत ‘एकाउंट्स’ मेथड को तरजीह दी जाती है. पहचान गुप्त रहने की अच्छाइयों को स्वीकार करते हुए, एक हाइब्रिड, ग्रेडेड दृष्टिकोण (कम मूल्य, उच्च गोपनीयता और इसका उलटा) का सुझाव दिया जाता है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यह मुश्किल है, क्योंकि मोबाइल ऐप्स के लिए आज कम-से-कम पते की किसी पहचान या टेलीफोन नंबर की ज़रूरत तो है ही. CBDC और संबंधित मामलों की ख़ातिर अधिदेश (मैंडेट) को विस्तृत करने के लिए, आरबीआई अधिनियम 1932 में विधायी बदलावों की भी सिफ़ारिश की गयी है.

आरबीआई भारत में भुगतान कार्यप्रणाली के रूप में निजी क्रिप्टो करेंसियों को वैध बनाने के पक्ष में कभी नहीं था. उसे डर था कि बचत का एक बड़ा हिस्सा उस अस्थिर परिसंपत्ति श्रेणी की ओर मुड़ सकता है जो मध्य-2021 तक ‘फटाफट धन’ का एकतरफा रास्ता था. साथ में यह ख़तरा भी जुड़ा था कि आरबीआई मौद्रिक नीति पर से नियंत्रण खो सकता है.

आरबीआई भारत में भुगतान कार्यप्रणाली के रूप में निजी क्रिप्टो करेंसियों को वैध बनाने के पक्ष में कभी नहीं था. उसे डर था कि बचत का एक बड़ा हिस्सा उस अस्थिर परिसंपत्ति श्रेणी की ओर मुड़ सकता है जो मध्य-2021 तक ‘फटाफट धन’ का एकतरफा रास्ता था. साथ में यह ख़तरा भी जुड़ा था कि आरबीआई मौद्रिक नीति पर से नियंत्रण खो सकता है. उच्चतम स्तर पर हस्तक्षेप के बिना, ई-रुपया भारतीय शासन बंदोबस्त को टुकड़ों में बांटने वाले कोष्ठागारों (साइलोज़ यानी ऐसी प्रणालियां जो एक-दूसरे से अलगाव में काम करती हैं) के बीच शायद नष्ट हो जायेगा. अफ़सोस की बात है कि भू-राजनीति के प्रतिस्पर्धी कोष्ठागारों में खंडित होने को देखते हुए, डिजिटल मुद्रा के लिए एक एकीकृत वैश्विक दृष्टिकोण की संभावनाएं इससे बेहतर नहीं हैं. केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राएं वैश्वीकरण की संतानें हैं. केवल वैश्विक नेतृत्व ही उन्हें जन्म के साथ अनाथ होने से बचा सकता है.

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