पिछले कुछ वर्षों के दौरान ये साफ हो गया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) निकट भविष्य (इस बात की भी पूरी संभावना है कि लंबे समय तक भी) में महत्वपूर्ण तकनीकों में से एक बन जाएगा. वैसे AI अपने आप में एक गतिहीन चीज़ नहीं है बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों और उससे भी आगे हमेशा विकसित होने वाली बहुत सारी प्रासंगिक तकनीक और एप्लिकेशन है. यही वजह है कि पहले से ही व्यापक रूप से इस्तेमाल होने के बावजूद AI को अभी भी एक ‘उभरती’ तकनीक के रूप में रखा जाता है. इसका एक कारण ये भी है कि AI के विकास की प्रवृत्ति अभी भी बहुत ज़्यादा और लगातार बनी हुई है. ये देखते हुए कि AI का विकास और इस्तेमाल लगभग पूरी तरह से अनजान परिस्थितियों में हो रही है और इसका प्रभाव सामयिक एवं भौगोलिक क्षेत्रों पर पड़ेगा, ये कहना सही होगा कि दुनिया अब एक रोमांचक और चुनौतीपूर्ण AI के युग में प्रवेश कर गई है.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसका इशारा 2017 में ही कर दिया था जब उन्होंने कहा कि “जो भी AI की रेस में आगे रहेगा वो दुनिया पर राज करेगा”. तब से हर साल ये धारणा और ज़्यादा मज़बूत हो रही है और AI के इर्द-गिर्द नियमित रूप से दिमाग को चकरा देने वाली तरक्की हो रही है.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसका इशारा 2017 में ही कर दिया था जब उन्होंने कहा कि “जो भी AI की रेस में आगे रहेगा वो दुनिया पर राज करेगा”. तब से हर साल ये धारणा और ज़्यादा मज़बूत हो रही है और AI के इर्द-गिर्द नियमित रूप से दिमाग को चकरा देने वाली तरक्की हो रही है. कई देश AI टेक्नोलॉजी का एक हिस्सा पाने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं. वैसे तो दूसरे कई देशों के मुकाबले भारत AI की रेस में देर से शामिल हुआ है लेकिन इसके बावजूद भारत ने इस मामले में बहुत तेज़ी से प्रगति की है और अब वैश्विक AI के परिप्रेक्ष्य में भारत की मान्यता एक उभरती ताकत के तौर पर है. भारत ने सार्वजनिक सेवा से लेकर रक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, वित्त और क्रिएटिव प्रोफेशन तक- लगभग सभी उद्योगों में AI के उपयोग की संभावना को तलाश किया है.
भारत में AI की महत्ता
इस आधुनिक कायापलट के एक बड़े हिस्से को जहां सरकारी पहल और उसकी वजह से संस्थागत समर्थन के ज़रिये आगे बढ़ाया गया है, वहीं कई तरह के बदलाव प्राइवेट और बिग टेक कंपनियों एवं बहुत से स्थानीय AI स्टार्टअप्स के द्वारा भी लाये गये हैं. भारतीय बाज़ार और मानव पूंजी भी खुद को इस बदलाव के मुताबिक ढाल रही है और भारत अब AI स्किल और AI टैलेंट के मामले में पहले पायदान पर है, दूसरे सभी G20 देशों से इस मामले में भारत आगे हैं. अनुमान है कि डेटा और AI 2025 तक भारत की GDP में लगभग 500 अरब अमेरिकी डॉलर जोड़ेंगे और AI से जुड़े नये जॉब अगले पांच वर्षों में भारतीय बाज़ार को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं.
लेकिन बड़े पैमाने पर AI के आने के साथ भारत के विशाल इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IT) सेक्टर, जो कि अभी भी अत्याधुनिक रिसर्च और इनोवेशन की क्षमता की तुलना में निचले स्तर के AI टैलेंट से भरा है, में नौकरियों के खत्म होने के संबंध में चिंताएं भी खड़ी हो गई हैं. ओपन AI के द्वारा पिछले साल के अंत में जारी बेहद लोकप्रिय लैंग्वेज मॉडल चैट GPT की वजह से आगे बढ़े जेनरेटिव AI के वर्तमान युग में इसको लेकर ख़ास तौर पर सोचना होगा. किसी भी दूसरे नये तकनीकी आयाम की तरह जेन-AI भी उन देशों को कई अवसर और पहले आगे बढ़ने से जुड़े फायदे मुहैया कराता है जिनके पास उनमें निवेश करने और उन्हें विकसित करने की क्षमता है लेकिन भारत इस मामले में आगे बढ़ने में धीमा रहा है. इसकी एक बड़ी वजह फंडिंग की कमी और सरकारों एवं निवेशकों के द्वारा इस तकनीक को लेकर एक धुंधली समझ है.
अगर भारत AI के मोर्चे पर आगे बढ़ने को बरकरार रखना चाहता है तो वो अपने इकोसिस्टम में जेन-AI को शामिल करने के बढ़ते महत्व को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता. साथ ही भारत को AI जैसी तकनीक के आस-पास ज़्यादा शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम को संस्थागत रूप देने की ज़रूरत है. इसके साथ-साथ अलग-अलग सेक्टर और एप्लिकेशन के लिए AI सिस्टम बनाने वाली देसी तकनीकी कंपनियों को सरकारी और प्राइवेट फंडिंग बढ़ाना भी महत्वपूर्ण है ताकि AI के मामले में अगली बड़ी सफलता भारत को मिले. इसके अलावा, भारत के लिए AI से जुड़े व्यापार एवं विकास के मामले में अपने सामरिक साझेदार देशों और बहुपक्षीय संगठनों के साथ सहयोग करना भी एक प्राथमिकता होनी चाहिए. इस फेहरिस्त में फिलहाल अमेरिका, रूस, यूरोपियन यूनियन (EU) और क्वॉड समेत कुछ अन्य पक्ष हैं. लेकिन इसका विस्तार होना चाहिए.
भारत अब AI स्किल और AI टैलेंट के मामले में पहले पायदान पर है, दूसरे सभी G20 देशों से इस मामले में भारत आगे हैं. अनुमान है कि डेटा और AI 2025 तक भारत की GDP में लगभग 500 अरब अमेरिकी डॉलर जोड़ेंगे और AI से जुड़े नये जॉब अगले पांच वर्षों में भारतीय बाज़ार को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं.
भारत में AI क्रांति के लिए रोज़गार के अनुकूल और सफलतापूर्वक सकारात्मक बदलाव लाने के लिए जो पहला कदम उठाने की ज़रूरत है वो है AI के इर्द-गिर्द नीतिगत प्रक्रियाओं और नतीजों को मज़बूत करना और उन्हें विविधतापूर्ण बनाना ताकि भारत में एक व्यापक कार्य योजना तैयार रहे. इसको लेकर रचनात्मक काम की शुरुआत 2018 में हुई थी जब नीति आयोग ने AI पर भारत की राष्ट्रीय रणनीति को जारी किया था. लेकिन पांच वर्षों में AI में काफी प्रगति को देखते हुए ये रणनीति अब पुरानी हो गई है. इसमें फेरबदल की ज़रूरत है और ये मौजूदा परिस्थितियों के मुताबिक होनी चाहिए. उस समय से किसी विशेष सेक्टर, डेमोग्राफिक्स और मंत्रालय के लिए कई दूसरी राष्ट्रीय AI नीतियां बन चुकी हैं लेकिन ये अलग-अलग कोशिशें हैं जिनका सीमित इस्तेमाल और असर हो सकता है. साथ ही इन नीतियों के लिए कोई आधिकारिक निगरानी और मूल्यांकन का तौर-तरीका नहीं है या AI को लेकर कोई राष्ट्रीय सर्वोच्च संस्था नहीं है जो ज़मीनी वास्तविकता में उसके बदलाव पर नज़र रख सके.
आगे आने वाले समय में भारत को उभरती AI ताकत के रूप में अपनी मौजूदा स्थिति को बरकरार रखने, उसे मज़बूत करने और आगे बढ़ाने के लिए अपने AI इकोसिस्टम के भीतर बहुत सारी कोशिशें करने की ज़रूरत है.
इस साल ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन AI (GPAI) की अध्यक्षता भारत के पास है. इसे देखते हुए ये भारत के पास सामान्य उद्देश्य वाली AI तकनीकों के इर्द-गिर्द अंतर्राष्ट्रीय संवाद का नेतृत्व करने और ज़िम्मेदार एवं समावेशी AI, जो कि भारत के लिए नीतिगत प्राथमिकता रही है, को बढ़ावा देने का मौका है. सरकार को ये एहसास भी है कि AI को लेकर उसका कामकाज अलग-थलग होकर नहीं किया जा सकता है और उसे AI पर जानकारी तैयार करने वाले समुदायों के समर्थन और भागीदारी की आवश्यकता है. यही वजह है कि सरकार ने इस साल दिसंबर में होने वाले GPAI शिखर सम्मेलन से पहले पिछले दिनों लोगों से राय देने की अपील जारी की.
आगे की राह
आगे आने वाले समय में भारत को उभरती AI ताकत के रूप में अपनी मौजूदा स्थिति को बरकरार रखने, उसे मज़बूत करने और आगे बढ़ाने के लिए अपने AI इकोसिस्टम के भीतर बहुत सारी कोशिशें करने की ज़रूरत है. भारत को अपने मूल AI सिद्धांतों और रोडमैप को एक सर्वोच्च संस्था एवं राष्ट्रीय नीति के तहत लाना होगा, वहीं अलग-अलग क्षेत्रों के लिए गाइडलाइन, स्टैंडर्ड और स्ट्रेटजी तैयार करनी होगी ताकि विभिन्न स्तरों पर प्रभावी नीतिगत विचारों और उन्हें अमल में लाने को सुनिश्चित किया जा सके. सरकार, उद्योग, शिक्षा जगत और सिविल सोसायटी के बीच मिली-जुली साझेदारी से इस संरचनात्मक ढांचे को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही नयी और उभरती AI आधारित तकनीकों की नियमित समीक्षा और इसको लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाना चाहिए. इससे AI के ज़माने में भारत का नज़रिया किस भी नाकामी से सुरक्षित और भविष्य के अनुसार रहेगा.
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