देश के सात प्रदेशों में वर्ष 1995 से राज्य स्तरीय कानून के अंतर्गत गठित राज्य विद्युत नियामक आयोग (एसईआरसी) और बाद में विद्युत नियामक आयोग अधिनियम 1998 (विद्युत अधिनियम 2003 में शामिल होने के बाद) के तहत आने के पश्चात बिजली परिचालन की अधिक लागत और बेतरतीब खुदरा शुल्क संरचना, जो आपूर्ति की लागत के अनुसार नहीं है, जैसी दोनों समस्याओं से समान रूप से निपटने में विफ़ल रहे हैं.
वितरण में औसत तकनीकी और वाणिज्यिक नुकसान (सिस्टम में ऊर्जा इनपुट और ऊर्जा बिल के बीच का अंतर) 21 प्रतिशत (2019–20) था और डिस्कॉम (लाइसेंस प्राप्त बिजली वितरण और खुदरा आपूर्ति कंपनियों या संस्थानों) को सरकार से 1.1 ट्रिलियन रुपये की मदद को लेकर लेखांकन यानी हिसाब-क़िताब के बाद 867 अरब रुपये का नुकसान हुआ. एक हिसाब से देखा जाए तो सरकारी सहायता के बिना घाटा शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत होगा. 19 अगस्त, 2022 तक, डिस्कॉम ने 1.37 ट्रिलियन रुपये के पुराने और भुगतान नहीं किए गए बिल जमा किए हैं. वर्ष 2000 के बाद से डिस्कॉम की वित्तीय हालत में सुधार का चौथा प्रयास चल रहा है, जिसमें नियामक प्रोत्साहन में सुधार के लिए क़ानूनी बदलाव भी शामिल हैं.
बिजली के बड़े उपयोगकर्ताओं के लिए खुली और सीधी पहुंच (ग्राहकों को अपने आपूर्तिकर्ता का चयन करने की इज़ाजत देना) की सुविधा देना. इस बार के सुधार में प्रमुख फोकस आपूर्ति पक्ष के लिए वितरण क्षेत्र के मार्केट को प्रतिस्पर्धा के लिए खोलना है.
केंद्र सरकार ने 8 अगस्त, 2022 को संसद में पेश किए गए एक संशोधन विधेयक के माध्यम से विद्युत अधिनियम 2003 के मौजूदा विधायी प्रावधानों को संशोधित करके सुधार की गति को बढ़ावा देने का प्रस्ताव रखा है.
इससे पहले इसी तरह के सुधार के प्रयासों के तहत खुदरा आपूर्ति के मांग पक्ष पर प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति बनाने को लेकर ध्यान केंद्रित किया गया था. उदाहरण के तौर पर बिजली के बड़े उपयोगकर्ताओं के लिए खुली और सीधी पहुंच (ग्राहकों को अपने आपूर्तिकर्ता का चयन करने की इज़ाजत देना) की सुविधा देना. इस बार के सुधार में प्रमुख फोकस आपूर्ति पक्ष के लिए वितरण क्षेत्र के मार्केट को प्रतिस्पर्धा के लिए खोलना है.
डिस्कॉम का एकाधिकार खत्म करना
ऐसे करने से डिस्कॉम यानी बिजली वितरण कंपनियों का अपने लाइसेंस वाले क्षेत्रों में खुदरा आपूर्ति पर एकाधिकार समाप्त हो जाएगा. वैसे देखा जाए तो एक ही क्षेत्र में अधिक संख्या में विद्युत आपूर्तिकर्ता पहले भी संभव थे. हालांकि, बड़ी बात यह है कि तब डिस्कॉम नई कंपनियों को अपने नेटवर्क का उपयोग के लिए बाध्य नहीं था. समय के साथ-साथ नया नेटवर्क स्थापित करने में आने वाली चुनौतियों के कारण, इसने प्रतिस्पर्धा को लगभग असंभव सा बना दिया. उपयोगकर्ता (व्हीलिंग) शुल्क का भुगतान करने पर नए लाइसेंसधारियों को मौजूदा नेटवर्क का उपयोग करने की अनुमति देकर, अब इस परेशानी को दूर करने का प्रस्ताव किया गया है.
बिजली वितरण तंत्र के बंद होने या उसमें गड़बड़ी की वजह से पैदा होने वाली परेशानी के लिए ग्राहकों को मुआवजे के साथ-साथ, कंपनियों के नुकसान की भरपाई के लिए उन्हें मुआवजे के अलावा दंडात्मक प्रावधानों के लिए भी अधिनियमों की आवश्यकता होगी.
हालांकि, उपयोगकर्ता शुल्क को तर्कसंगत रूप से परिभाषित करना अहम नहीं है, ख़ासकर जब नया लाइसेंसधारी अपनी बिजली आपूर्ति प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए पूर्ण रूप से मदद करने वाली कंपनी के नेटवर्क पर निर्भर होगा. ऐसे में अब नए लाइसेंसधारकों के लिए नेटवर्क निगरानी डेटा तक समान और गैर-भेदभावपूर्ण पहुंच सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी. साथ ही बिजली वितरण तंत्र के बंद होने या उसमें गड़बड़ी की वजह से पैदा होने वाली परेशानी के लिए ग्राहकों को मुआवजे के साथ-साथ, कंपनियों के नुकसान की भरपाई के लिए उन्हें मुआवजे के अलावा दंडात्मक प्रावधानों के लिए भी अधिनियमों की आवश्यकता होगी.
सीईआरसी को मिला बहु-राज्य खुदरा बिजली आपूर्ति के लिए लाइसेंस देने का अधिकार
एक बड़े बदलाव के अंतर्गत केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) अब आवेदकों को एक से अधिक राज्यों में वितरण के लिए लाइसेंस देगा. पहले, लाइसेंस वितरण विशुद्ध रूप से एसईआरसी का कार्य था.
दो आयोगों के नियामक अधिकारों को अलग करने के लिए नियम-क़ानूनों की ज़रूरत होगी. क्या सीईआरसी लाइसेंस जारी करने से पहले संबंधित एसईआरसी से अनापत्ति मांगेगा- जिसे अनुचित रूप से रोका नहीं जाना चाहिए? बिजली वितरण मार्केट की संरचना में कोई बहुत बड़ा बदलाव करने से पूर्व मौजूदा लाइसेंसधारियों और एसईआरसी, दोनों के पक्ष को जानने की आवश्यकता है. अगर वर्तमान डिस्कॉम निजी स्वामित्व में है, ऐसे में यदि सीईआरसी एकतरफा कार्रवाई करता है, तो क़ानूनी मुक़दमों जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है. यह स्पष्ट नहीं है कि कौन सा आयोग लाइसेंस रद्द कर सकता है. लाइसेंस जारी करने वाले सीईआरसी के पास आमतौर पर लाइसेंस रद्द करने का अधिकार भी होना चाहिए. क्या सीईआरसी, एसईआरसी या कोई दूसरी इच्छुक पार्टी की सिफ़ारिशों के आधार पर कार्य करेगा या फिर स्वत: संज्ञान यानी अपने विवेक के आधार पर काम करेगा?
बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) से वर्तमान देनदारियां होंगी साझा
संशोधन विधेयक में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि मौजूदा डिस्कॉम के वर्तमान पीपीए यानी बिजली ख़रीद समझौतों से पैदा होने वाली देनदारियों को मौजूदा और नए खिलाड़ी के बीच आनुपातिक रूप से बांट दिया जाएगा. अधिनियम में इसरे बारे में स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए कि दो डिस्कॉम के बीच वास्तविक (औसत नहीं) लागत कैसे आवंटित की जाएगी यदि उनके लोड प्रोफाइल में महत्वपूर्ण बदलाव आपूर्ति की अलग-अलग लागत दिखाते हैं.
संशोधन विधेयक में नए लाइसेंसधारी को तब तक अतिरिक्त बिजली के लिए अनुबंध करने से रोक दिया गया है, जब तक कि पुराने पीपीए बिजली की मांग को पूरा करने में सक्षम हैं. हालांकि बिजली आपूर्ति के अधिक अनुबंध से बचने के लिए यह एक समझदारी भरा प्रावधान है, लेकिन प्रशासनिक रूप से इसे लागू करना बेहद मुश्किल है. ऐसे में जब नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाया जा रहा है, क्या यह रोक अतिरिक्त नवीकरणीय ऊर्जा के अनुबंध पर लागू होगी? ऐसी स्थिति में क्या होगा यदि नए लाइसेंसधारक को नया पीपीए उस रेट से भी सस्ती दर में मिलता है, जिस पर मौजूदा पीपीए को टर्मिनेट किया गया है? क्या ऐसा करना फ़ायदेमंद नहीं होगा? काफी जांच-पड़ताल के बाद बनाए गए बिजली से जुड़े अधनियमों में नए बिजली अनुबंधों के लिए विस्तार से हर बात का उल्लेख किए जाने की आवश्यकता है.
एक और ध्यान देने वाली बात यह है कि 1 मेगावाट से अधिक लोड वाले उपयोगकर्ता अब अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन सिस्टम तक पहुंच सकते हैं और सीधे बाज़ार से बिजली ख़रीद सकते हैं या फिर थोक बिजली आपूर्तिकर्ता के साथ अनुबंध कर सकते हैं.
यह भी एक बड़ा मुद्दा है कि सभी को सेवा देने के कर्तव्य को कैसे लागू किया जाएगा. दोनों डिस्कॉम घाटे में चल रहे ग्राहकों को कम करने और फ़ायदा पहुंचाने वाले ग्राहकों को अधिक से अधिक बढ़ाने का प्रयास करेंगे. क्या नए अधिनियम क्षेत्र-विशेष को और लागत से कम टैरिफ वाले ग्राहकों की न्यूनतम हिस्सेदारी को सुनिश्चित करने के लिए कुछ करेंगे?
क्रॉस-सब्सिडी फंड
सब्सिडी के लिए ग्राहकों को चुनने के मनमाने तरीक़ों से निपटने के लिए, एक नया और संबद्ध संस्थागत तंत्र प्रस्तावित है, जो क्रॉस सब्सिडी को साझा करेगा. किसी भी लाइसेंसधारी द्वारा एकत्रित “अधिशेष” क्रॉस सब्सिडी (स्वीकृत लागत और निर्धारित टैरिफ के बीच का अंतर) संबंधित राज्य सरकार द्वारा नामित की गई एक सरकारी कंपनी द्वारा संभाले जा रहे क्रॉस-सब्सिडी फंड में जमा किया जाना है. एसईआरसी यह तय करेगा कि इस फंड में बची हुई राशि का उपयोग किस प्रकार किया जाए. इसमें से कुछ फंड को मूल लाइसेंसधारी को लौटाया जा सकता है. शेष राशि से दूसरे डिस्कॉम के नुकसान की भरपाई की जा सकती है या यहां तक कि उस राशि को किसी दूसरे आवश्यकता वाले विद्युत आपूर्ति क्षेत्र में स्थानांतरित किया जा सकता है. ज़ाहिर है कि क्रॉस सब्सिडी एक लिहाज से राजस्व का प्रमुख स्रोत है और इसके प्रबंधन एवं देखभाल को लेकर कई तरह की अनिश्चितिताएं हैं. ऐसे में क्रॉस सब्सिडी फंड के मुद्दे विशेष ध्यान देने और इसके समुचित प्रबंधन के लिए पुख़्ता प्रावधान किए जाने की आवश्यकता है.
इसमें एक बड़ी समस्या यह है कि उच्च दक्षता से जुड़े बेहद कम मुनाफ़े से भी लाइसेंस पाने वाली अन्य कंपनियों के लिए बिजनेस का आकर्षण कम होने की संभावना है. दूसरा, अगर क्रॉस सब्सिडी को आपूर्ति के दूसरे क्षेत्र में डायवर्ट किया जा सकता है, तो क्या इस प्रकार हम क्रॉस सब्सिडी का एक नया वर्ग पैदा नहीं कर रहे हैं? यह किस हद तक तर्कसंगत है कि शुल्क को लागत के मुताबिक़ होना चाहिए?
एसईआरसी अब न्यूनतम और अधिकतम दर निर्धारित करेंगे, जिससे व्यक्तिगत लाइसेंसधारियों को सीमा क्षेत्र के भीतर शुल्क लगाने की स्वतंत्रता मिलेगी. यह योग्य लाइसेंसधारियों को अधिक से अधिक बाज़ार हिस्सेदारी हासिल करने के लिए बिजली दर को कम करने के लिए प्रोत्साहित करेगा. एक और बात है कि टेलीकॉम मॉडल की तरह अलग-अलग तरह के डिस्कॉम टैरिफ प्लान भी बनाए जा सकते हैं. यह क़दम ग्राहकों को उनके हिसाब से सबसे उपयुक्त प्लान चुनने का ना सिर्फ विकल्प देगा, बल्कि उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित भी करेगा.
एक और ध्यान देने वाली बात यह है कि 1 मेगावाट से अधिक लोड वाले उपयोगकर्ता अब अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन सिस्टम तक पहुंच सकते हैं और सीधे बाज़ार से बिजली ख़रीद सकते हैं या फिर थोक बिजली आपूर्तिकर्ता के साथ अनुबंध कर सकते हैं. ऐसे में यह बेहद अहम है कि क्या एसईआरसी सरचार्ज और व्हीलिंग चार्ज को उचित स्तर तक सीमित करके सहयोग करेंगे.
शीर्ष स्तर के सिस्टम ऑपरेटर एनएलडीसी को सशक्त बनाना
एक अच्छा क़दम उठाते हुए क्षेत्रीय (आरएलडीसी) और राज्य स्तरीय लोड डिस्पैच सेंटर (एसएलडीसी) पर नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (एनएलडीसी) को प्राथमिकता दी गई है. ग्रिड के सभी घटक एनएलडीसी के निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं. इससे ग्रिड का अनुशासन बनाए रखने और स्थिरता बनाए रखने में मदद मिलेगी.
इससे पहले एसएलडीसी कार्य करने के दौरान एनएलडीसी एवं आरएलडीसी का सहयोग कर रहे थे और ग्रिड स्थिरता के लिए आवश्यक रियल टाइम कार्रवाई की अनदेखी करते हुए स्टेट ग्रिड कोड पर उनकी रूल बुक की भांति कदमताल कर रहे थे. सरकार की अनुमति के साथ एनएलडीसी अब जनरेटर यानी उत्पादक से बैकअप समर्थन प्राप्त करने के लिए दैनिक नामांकन आधार पर निर्भर होने के बजाय सहायक और बैकअप समर्थन में अनुबंध करने के लिए पीपीए में शामिल होने में सक्षम होगा. यानी कि अब उच्च लागत के कारण प्रेषण संभव नहीं होगा.
संशोधन विधेयक एसईआरसी के लिए मॉडल अधिनियम तैयार करने के उद्देश्य से नियामकों के फोरम की कार्यप्रणाली को व्यापक बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है. इसके साथ ही यह कॉर्पोरेट प्रशासन एवं निष्पादन मानकों के साथ उपयोगिता अनुपालन की निगरानी के लिए नियामक विशेषज्ञों के भीतर एकता एवं सामान्य हितों व ज़िम्मेदारियों की भावना को विकसित करने वाले प्रासंगिक एवं नए संस्थान को सशक्त करता है.
केंद्र सरकार द्वारा ऊपर से लेकर नीचे तक यानी हर स्तर पर हस्तक्षेप में बढ़ोतरी हुई है. अब बहु-राज्य एसईआरसी सिर्फ़ राज्य सरकारों से सलाह करके बनाए जा सकते हैं. इससे पहले इसके लिए आपसी समझौते आवश्यक थे. अफ़सोस की बात यह है कि यह सूक्ष्म प्रबंधन में भी वापस आ गया है. केंद्र सरकार क्रॉस-स्टेट यानी देश में विभिन्न राज्यों में लाइसेंसधारियों के लिए आपूर्ति के क्षेत्रों के लिए मानदंड भी परिभाषित करेगी. इसके लिए राज्य सरकारें पहले इसलिए अधिकृत थीं, क्योंकि वर्ष 2003 में एसईआरसी नए-नए थे. लेकिन अब एसईआरसी और सीईआरसी पूरी क्षमता के साथ कार्य कर रहे हैं. केंद्र सरकार प्रेषण बिजली के लिए भुगतान सुरक्षा तंत्र निर्धारित करेगा. एनएलडीसी के कार्यों को निर्धारित करने के लिए सीईआरसी को अब अधिकृत किए जाने के बावज़ूद केंद्र सरकार ग्रिड को स्थिर करने के लिए एनएलडीसी द्वारा बिजली की ख़रीद को मंज़ूरी देगा. सीईआरसी के प्रतिनिधि नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के अधिकारी एसईआरसी के लिए चयन समिति में बैठेंगे. इसे और अधिक सशक्त बनाने और इसके और एसईआरसी के बीच सहकारी संघवाद की भावना विकसित करने के लिए सभी कार्यों को सीईआरसी को सौंपा जा सकता है.
सरकार की अनुमति के साथ एनएलडीसी अब जनरेटर यानी उत्पादक से बैकअप समर्थन प्राप्त करने के लिए दैनिक नामांकन आधार पर निर्भर होने के बजाय सहायक और बैकअप समर्थन में अनुबंध करने के लिए पीपीए में शामिल होने में सक्षम होगा.
बावज़ूद इसके, सबसे बड़े सार्वजनिक स्वामित्व वाले वितरण और खुदरा आपूर्ति सेगमेंट में सुधार के लिए प्रतिस्पर्धा की निवारक शक्ति का उपयोग करना सराहनीय है. अधिनियमों की प्रभाविकता यह तय करेगी कि विधेयक के उद्देश्यों को व्यवहार और नतीज़ों में मापने योग्य बदलावों में कितनी कुशलता से परिवर्तित किया जाता है. यह अलग बात है कि P शब्द निषेध बना हुआ है. यद्यपि अच्छी तरह से आपूर्ति क्षेत्रों में कई लाइसेंसधारियों के माध्यम से कानून के माध्यम से प्रतिस्पर्धा शुरू करने की तुलना में प्राइवेटाइजेशन यानी निजीकरण, परिचालन सुधार के लिए आज भी बेहतर विकल्प बना हुआ है.
क्रॉस सब्सिडी को समाप्त करने के नियामक उद्देश्य को हटाते हुए वर्ष 2007 में विद्युत अधिनियम 2003 में संशोधन से इस क्षेत्र को बहुत नुकसान हुआ है. क्रॉस सब्सिडी जहां एक तरफ अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाती है, वहीं दूसरी तरफ कार्बन में कमी की गति को धीमा करती है, ज़ाहिर है कि इसे समाप्त किया जाना चाहिए. इसके अलावा, राज्य सरकार द्वारा लक्षित ग्राहकों को आर्थिक मदद सीधे हस्तांतरित की जानी चाहिए, जिससे उन्हें दूरसंचार सेक्टर की भांति अपनी मनपसंद आपूर्ति चुनने की अनुमति मिल सके. कहने का तात्पर्य यह है कि डिस्कॉम यानी बिजली वितरण कंपनियों को व्यावसायिक आधार पर काम करना चाहिए, तभी नए कानून के अनुपालन से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जो ग्राहकों के लिए लाभदायक सिद्ध होगी.
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