Published on Jul 29, 2023 Updated 0 Hours ago

सबको बिजली उपलब्ध कराने के स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDG) को हासिल करने और इसकी रफ़्तार में आई कमी दूर करने के लिए, फौरी तौर पर ऑफ ग्रिड समाधानों को अपनाया जाना चाहिए.

बिजली तक लोगों की पहुंच पर कोविड-19 महामारी का असर
बिजली तक लोगों की पहुंच पर कोविड-19 महामारी का असर

दुनिया में आज भी लगभग 77.1 करोड़ लोगों को बिजली की सुविधा मयस्सर नहीं है. सिर्फ़ बिजली के तार खींचकर बुनियादी सुविधा देने भर से ही स्थायी विकास संभव नहीं है. इसके लिए ऐसी बिजली की अच्छी आपूर्ति भी ज़रूरी है, जो पर्यावरण के लिहाज़ से भी अच्छी हो और उपभोक्ताओं की जेब पर भी भारी न पड़े. स्थायी विकास के लक्ष्य (SDG) नंबर 7 के तहत एक ये भी है कि वर्ष 2030 तक दुनिया के सभी लोगों को सस्ती दरों पर बिजली की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित की जाए. इस दिशा में दुनिया ने काफ़ी प्रगति भी की है. वर्ष 2019 तक विश्व की 90 प्रतिशत आबादी तक बिजली की सुविधा पहुंच चुकी थी. जबकि साल 2000 तक दुनिया के केवल 83 प्रतिशत लोगों को बिजली मिल रही थी. हालांकि 2021 की सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल्स संबंधी रिपोर्ट इशारा करती है कि बिजली आपूर्ति के विस्तार की मौजूदा रफ़्तार को देखते हुए, साल 2030 तक दुनिया भर में लगभग 66 करोड़ लोग, बिजली की सुविधा से महरूम रह जाएंगे. इसके साथ-साथ, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) का कहना है कि, कोविड-19 महामारी (Covid_19 Pandemic) ने बिजली की सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में हासिल की गई प्रगति को पीछे धकेल दिया है. SDG 7, सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से स्थायी विकास के अन्य लक्ष्यों को हासिल करने में सहयोग देता है. ऐसे में बिजली की सुविधा मुहैया कराने की रफ़्तार धीमी होने का असर, अन्य लक्ष्यों को हासिल करने में हुई प्रगति पर भी पड़ने वाला है. इस लेख में हम बिजली की उपलब्धता, उसकी खपत और आपूर्ति पर कोविड-19 महामारी के असर के बारे में चर्चा करेंगे.

वर्ष 2019 तक विश्व की 90 प्रतिशत आबादी तक बिजली की सुविधा पहुंच चुकी थी. जबकि साल 2000 तक दुनिया के केवल 83 प्रतिशत लोगों को बिजली मिल रही थी.

हमने बिजली की उपलब्धता पर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संस्थाओं, संयुक्त राष्ट्र और एल्सवियर ऐंड वाइली जर्नल द्वारा साल 2020 और 2021 में प्रकाशित रिसर्च और संक्षिप्त रिपोर्ट्स और रिसर्च पेपर्स का विश्लेषण किया है. इस विश्लेषण के आधार पर बिजली की उपलब्धता पर कोविड-19 के बार बार पड़ने वाले छह प्रभावों का ज़िक्र Figure नंबर 1 में किया गया है.

Figure 1: बिजली की उपलब्धता पर कोविड-19 महामारी का असर

स्रोत: लेखिका का ख़ुद का विश्लेषण (संबंधित पेपर्स पर आधारित)

लॉकडाउन में बिजली की खपत बढ़ी

कोविड-19 महामारी के चलते पूरी दुनिया में लोगों की नौकरियां गईं. उनके रोज़गार छिन गए. आमदनी में कमी आई. इसका सबसे बुरा असर असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों पर पड़ा. दुनिया भर में क़रीब 8.5 करोड़ लोगों, जिनमें मुख्य रूप से विकासशील एशियाई देशों के नागरिक शामिल हैं, ने नियमित बिजली आपूर्ति सेवा को छोड़कर बस बुनियादी बिजली कनेक्शन का इस्तेमाल करना शुरू किया. इसकी बड़ी वजह यही थी कि वो नियमित बिजली आपूर्ति की सुविधा का इस्तेमाल करने का ख़र्च उठा सकने की स्थिति में नहीं रह गए थे. ग़रीबी के बढ़ते स्तर के चलते, एशिया और अफ्रीका के विकासशील देशों के 2.5 करोड़ लोगों के लिए, बिजली का ख़र्च उठाना मुमकिन नहीं रह गया था. लॉकडाउन के चलते पूरी दुनिया में बिजली की मांग और खपत में कमी आई, क्योंकि आर्थिक गतिविधियां और निर्माण ठप हो गया था. कई देशों की सरकारों ने या तो उपभोक्ताओं के बिजली के बिल माफ़ कर दिए या उनके भुगतान में रियायत दे दी. मिसाल के तौर पर, अफ्रीकी देश सेनेगल ने ग़रीब परिवारों के तीन महीने के बिजली के बिल स्थगित कर दिए. वियतनाम की सरकार ने भी कोविड-19 से प्रभावित परिवारों के बिजली के बिल घटा दिए. हालांकि, विकसित देशों में रिहाइशी क्षेत्र की स्थिति अलग थी. अमेरिका के अलग-अलग राज्यों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि लॉकडाउन के दौरान घरों में बिजली की खपत में 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.

ग़रीबी के बढ़ते स्तर के चलते, एशिया और अफ्रीका के विकासशील देशों के 2.5 करोड़ लोगों के लिए, बिजली का ख़र्च उठाना मुमकिन नहीं रह गया था.

बिजली की घटी हुई खपत और इसकी दरों की चिंता ने आपूर्ति पर भी असर डाला. अंतरराष्ट्रीय वित्त सहयोग (IFC) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बिजली की आपूर्ति करने वाली कई कंपनियों ने बिजली बनाने वाली कंपनियों के साथ अपने सौदे इसलिए रद्द कर दिए, क्योंकि बिजली की मांग और खपत में काफ़ी कमी आ गई थी, और ग्राहक बिजली के बिल का भुगतान कर पाने की स्थिति में नहीं थे. भारत में ज़्यादा भुगतान करने वाले उपभोक्ताओं द्वारा बिजली की कम मांग करने से बिजली वितरण कंपनियों की बकाया रक़म काफ़ी बढ़ गई.

उपभोक्ताओं और बिजली आपूर्ति करने वालों की तरफ़ से लगे इन झटकों के अलावा सरकार ने भी जनता के स्वास्थ्य के संकट पर ध्यान देने के चलते, सब लोगों तक बिजली पहुंचाने के अभियान को धीमा कर दिया था. उदाहरण के लिए, बांग्लादेश की सरकार को अपने TR-Kabita कार्यक्रम (जिसका मक़सद ग्राहकों तक सौर ऊर्जा ऑफ-ग्रिड तकनीक के ज़रिए बिजली पहुंचाना है) के फंड को काफ़ी कम कर दिया था, जिससे कि कोविड-19 और अंफन तूफान से प्रभावित लोगों की मदद की जा सके. इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का कहना है कि जो देश अपने सभी नागरिकों को बिजली पहुंचाने के मामले में सबसे पीछे हैं, उनके लिए क़र्ज़ की लागत बढ़ने के चलते, बिजली सेवा के विस्तार पर ध्यान देना मुश्किल हो गया.

कम लागत में सभी लोगों तक बिजली पहुंचाने का एक तरीक़ा ऑफ़-ग्रिड तकनीकों का इस्तेमाल है. ग़रीब देशों में सौर ऊर्जा की ऑफ-ग्रिड तकनीक, क़तार के अंतिम छोर पर खड़े लोगों को को बिजली उपलब्ध कराने का सबसे लोकप्रिय तरीक़ा है. हालांकि, महामारी ने ऑफ-ग्रिड सेवाएं देने वाली कंपनियों की आर्थिक सेहत पर भी बुरा असर डाला है. इसके साथ-साथ, ज़रूरी उपकरणों की आपूर्ति भी महामारी से बाधित हुई. अफ्रीकी देश बर्किना फासो की सरकार ने ग्रामीण घरों के लिए सोलर किट के दाम में 50 प्रतिशत की कटौती की. वहीं, नाइजीरिया में ऑफ ग्रिड नवीनीकरण योग्य ऊर्जा की आपूर्ति करने वाली कंपनियों को 5 लाख डॉलर के राहत फंड का एलान किया गया. पावर अफ्रीका कार्यक्रम ने ग्रामीण और अर्ध शहरी स्वास्थ्य केंद्रों तक बिजली पहुंचाने वाली कंपनियों को दूसरे मद के 41 लाख डॉलर के फंड उपलब्ध कराए.

इस दौरान, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के बाज़ार को लेकर IEA की रिपोर्ट में जिस अच्छी बात का ज़िक्र किया गया है, वो ये है कि 2019 की तुलना में 2020 में नवीनीकरण योग्य स्रोतों से बिजली उत्पादन 45 फ़ीसद ज़्यादा बढ़ा. ये बढ़ोत्तरी मुख्य रूप से चीन, अमेरिका और वियतनाम में दर्ज की गई. हालांकि, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के नए बिजलीघरों की स्थापना का संबंध, कोविड महामारी से पहले तय कई गई बिजली की दरों और कर से जुड़ा था. मिसाल के तौर पर वियतनाम में सौर ऊर्जा के फीड इन टैरिफ (FiT) कार्यक्रम का समापन होने से पहले नए केंद्रों की स्थापना में तेज़ी आई. भारत में फरवरी से मई 2020 के दौरान नवीनीकरण योग्य ऊर्जा केंद्रों की स्थापना 0.75 प्रतिशत बढ़ी. हालांकि, इन केंद्रों से बनाई जा रही बिजली के ख़रीदार न मिलने की चुनौती खड़ी हो गई है.

भारत में फरवरी से मई 2020 के दौरान नवीनीकरण योग्य ऊर्जा केंद्रों की स्थापना 0.75 प्रतिशत बढ़ी.  

बिजली की मांग और खपत में कमी

कुल मिलाकर, अभी हालात ऐसे हैं जहां आर्थिक गतिविधियों में कमी आने के चलते बिजली की मांग और खपत में कमी का चक्र चल रहा है. ये बात बिजली बनाने और उसका वितरण करने वाली कंपनियों की आर्थिक सेहत पर बुरा असर डाल रही है. इस समस्या का निपटारा, देशों द्वारा नीतियों नियमों और अन्य पहल के ज़रिए किया जाना चाहिए. इसके लिए उन्हें बिजली का उत्पादन और वितरण करने वाली कंपनियों की वित्तीय सेहत की समीक्षा भी करनी चाहिए और आर्थिक गतिविधियों का भी विश्लेषण करना चाहिए.

2.4 प्रतिशत परिवार सिर्फ़ इसलिए बिजली से महरूम रहते हैं, क्योंकि वो बिजली कनेक्शन लगवाने का ख़र्च नहीं उठा सकते हैं.

आर्थिक कारणों से महामारी का एक और बड़ा असर ये हुआ है कि बिजली उपलब्ध कराने की गति धीमी हो गई है. ख़ास तौर से एशिया और अफ्रीका के ग़रीबों को. सहारा क्षेत्र के अफ्रीकी देशों में रहने वाले तीन करोड़ लोग अब बिजली की बुनियादी सेवा का ख़र्च उठा पाने की स्थिति में नहीं हैं. 2020 में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले समय में भी इसमें सुधार की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है. बिजली की उपलब्धा की दर में आई ये गिरावट चिंता का विषय है. ख़ास तौर से तब और जब स्थायी विकास के लक्ष्य (SDGs) हासिल करने में अब एक दशक से भी कम का वक़्त बचा है. कोविड-19 महामारी से बिजली की उपलब्धा पर जो छह असर पड़े हैं, उनमें से तीन सीधे तौर पर ग़रीबों तक बिजली पहुंचाने पर बुरा प्रभाव डालने वाले हैं; (1) बिजली बिल चुका पाने की हैसियत में कमी, (2) ऑफ-ग्रिड कंपनियों का अपनी सेवा जारी रख पाने की स्थिति में न होना, और (3) बिजली उपलब्ध कराने के लिए आवंटित पैसे का किसी और मद में इस्तेमाल होना.

Figure 2: ग़रीबों तक बिजली पहुंचाने पर कोविड-19 महामारी का असर

स्रोत: लेखिका का अपना विश्लेषण

बिजली और ऊर्जा की अन्य सेवाओं का नियमित इस्तेमाल की राह में इन सेवाओं की लागत कम होना एक बड़ा मसला है. यहां तक कि महामारी न भी हो, तो भी लोगों के लिए बिजली की सेवा पर ख़र्च कर पानी की चुनौती बनी रहती है. वर्ष 2020 में सेंटर फॉर एनर्जी, एनवायरमेंट ऐंड वाटर (CEEW) द्वारा पूरे भारत में 15 हज़ार लोगों पर किए गए सर्वे की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 2.4 प्रतिशत परिवार सिर्फ़ इसलिए बिजली से महरूम रहते हैं, क्योंकि वो बिजली कनेक्शन लगवाने का ख़र्च नहीं उठा सकते हैं. बिजली की अलग अलग दरें, इन पर सब्सिडी, मुफ़्त में कनेक्शन जैसे उपायों से पूरी दुनिया में ग़रीबों के लिए बिजली का उपयोग आसान बनाया जाता है. इसे तेज़ करने का एक कम लागत वाला तरीक़ा ये भी हो सकता है कि घरों में ऑफ़-ग्रिड बिजली उपलब्ध कराई जाए. चुनौती के इस दौर में ऑफ-ग्रिड सेवा से बिजली उपलब्ध कराना, उन देशों के लिए अच्छा विकल्प हो सकता है, जहां की एक बड़ी आबादी अभी भी बिजली की उपलब्धता से महरूम है. अगर हम कोविड-19 के चलते बिजली सेवा के विस्तार की रफ़्तार और आर्थिक गतिविधियां धीमी होने से निपटना चाहते हैं, तो हमें निकट भविष्य में सबको बिजली उपलब्ध कराने के लिए ऑफ ग्रिड कंपनियों और प्रयासों को मज़बूत करना होगा. कम अवधि के दौरान, ऑफ-ग्रिड सेवा के विकल्प में ये संभावना दिखती है कि वो पर्यावरण के लिए मुफ़ीद तरीक़े से बिजली उपलब्ध कराने और ग़रीबी घटाने के स्थायी विकास के लक्ष्य (SDG) हासिल करने में मददगार साबित हों. हालांकि, दूरगामी अवधि में ग्रिड से बिजली कनेक्शन देने का विकल्प ही बेहतर होगा.

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