Published on Jun 23, 2021 Updated 0 Hours ago

मालदीव के लिए गर्व का ये क्षण लाने वाले मंत्री शाहिद के पास दो सरकारों में विदेश मंत्री के तौर पर काम करने का व्यापक और तरह-तरह का अनुभव है 

UNGA के अध्यक्ष पद पर मालदीव के अब्दुल्ला शाहिद का चुनाव; भारत के साथ कूटनीतिक रिश्ते की महत्वपूर्ण जीत

संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 76वें अध्यक्ष के तौर पर मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद का चुनाव इस द्वीपीय देश के लिए इससे बेहतर वक़्त पर नहीं हो सकता था. अध्यक्ष के तौर पर शाहिद साल भर का अपना कार्यकाल सितंबर में शुरू करेंगे और उम्मीद की जाती है कि उनकी नियुक्ति से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में द्वीप समूह वाले इस देश की प्रतिष्ठा बढ़ेगी. इसकी वजह ये है कि इस वैश्विक संस्था को अमीर और शक्तिशाली देशों के क्लब के तौर पर माना जाता है जबकि मालदीव अमीर और शक्तिशाली देश नहीं है

संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के तौर पर निर्वाचन के ज़रिए मालदीव के लिए गर्व का ये क्षण लाने वाले मंत्री शाहिद के पास दो सरकारों में विदेश मंत्री के तौर पर काम करने का व्यापक और तरहतरह का अनुभव है पहले राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम (2007-08) के साथ और अब 2018 से राष्ट्रपति सोलिह के साथ. इस बीच में वो मालदीव की पहली लोकतांत्रिक संसद के पहले स्पीकर थे. 2008-14 के दौरान लोकतंत्र की ओर बदलाव के उथलपुथल भरे समय में चुनाव हार चुके राष्ट्रपति गयूम की धिवेही रायाथुंगे पार्टी (डीआरपी), जिसका नाम बदलकर अब प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) हो चुका है, के प्रतिनिधि के तौर पर वो स्पीकर थे

शाहिद 2013 के राष्ट्रपति चुनाव की पूर्व संध्या पर मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) में शामिल हुए जिसमें पीपीएम के नुमाइंदे अब्दुल्ला यामीन ने जीत हासिल की जो अब भ्रष्टाचार के बड़े आरोप की वजह से नज़रबंद हैं. इन सभी वजहों से शाहिद को ख़ुद या किसी और को ठेस पहुंचाए बिना संघर्ष से निपटने में अनुभव हासिल है

वैक्सीन समानता

बारी के आधार पर इस साल यूएनजीए की अध्यक्षता एशियापैसिफिक क्षेत्र को मिलनी थी. 7 जून, सोमवार को हुए चुनाव में शाहिद ने अपने इकलौते विरोधी, अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री डॉक्टर ज़लमानी रसूल को 48 के मुक़ाबले 143 वोट के विशाल अंतर से हराया. 191 देशों में से कोई भी देश वोटिंग के दौरान ग़ैरहाज़िर नहीं रहा. इस तरह शाहिद को दोतिहाई से ज़्यादा वोट मिले. हालांकि, इस विशाल बहुमत के बाद भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के तौर पर शाहिद के रोज़ाना के कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन इससे ये पता चलता है कि निर्वाचित अध्यक्ष, उनकी सरकार और देश को किस तरह वैश्विक ख्याति और मंज़ूरी हासिल है

उन्होंने कहा, “जब तक हर कोई सुरक्षित नहीं है तब तक कोई सुरक्षित नहीं है”. इस तरह उन्होंने देश और व्यक्ति के तौर पर अमीर-ग़रीब के बीच बंटवारे की वास्तविकता की ओर ध्यान दिलाया. इस संदर्भ में उन्होंने ‘वैक्सीन समानता’ की अहमियत पर ज़ोर दिया

नतीजों के ऐलान के बाद अपने भाषण में शाहिद ने कहा कि, संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के तौर पर वैश्विक कोविड-19 महामारी से निपटना उनकी पहली प्राथमिकता होगी. उन्होंने कहा, “जब तक हर कोई सुरक्षित नहीं है तब तक कोई सुरक्षित नहीं है”. इस तरह उन्होंने देश और व्यक्ति के तौर पर अमीरग़रीब के बीच बंटवारे की वास्तविकता की ओर ध्यान दिलाया. इस संदर्भ में उन्होंने वैक्सीन समानता की अहमियत पर ज़ोर दिया. शाहिद ने मौजूदा पहल और नज़रिए को आगे बढ़ाते हुए कहा, “मैं अपने लोगों और हमारी अर्थव्यवस्था की सेहत की ओर ध्यान दूंगा.”

शाहिद ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के तौर पर वो ये सुनिश्चित करने का भी काम करेंगे कि महासभा में नौजवानों की आवाज़ सुनी जाए. लैंगिक समानता की ओर काम करने की प्रतिबद्धता जताते हुए उन्होंने इंटरएक्टिव डायलॉग चुनाव से कुछ दिन पहले चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों का महासभा के द्वारा किया जाने वाला तीन घंटे का अनौपचारिक इंटरव्यू में अपना संकल्प दोहराया. उस मौक़े पर शाहिद ने कहा था, “महासभा के अध्यक्ष के तौर पर मैं किसी भी ऐसी समिति में हिस्सेदार नहीं बनूंगा जिसमें महिलाओं की उचित भागीदारी नहीं हो.”

जीत के बाद शाहिद का भाषण उनके तेवर और उनकी शख़्सियत के मुताबिक़ था. पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष तिजानी मुहम्मद बंदे ने विदेश मंत्री के तौर पर शाहिद के भाषण की तारीफ़ की थी. उस वक़्त मालदीव ने लचीले समुदाय के निर्माण के लक्ष्य की ओर केंद्रित टिकाऊ विकास लक्ष्य’ (एसडीजी) को लेकर संयुक्त राष्ट्र की पहल का समर्थन किया था. पिछले साल जेनेवा में मानवाधिकार को लेकर संयुक्त राष्ट्र की सहयोगी संस्था संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति (यूएनएचआरसी) में बोलते हुए विदेश मंत्री शाहिद ने 2018 में राष्ट्रपति मोहम्मद इब्राहिम सोलिह के निर्वाचन के बाद लोकतांत्रिक बदलावों का उनके देश के लिए मतलब बताया था

इसी तरह 2019 में अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में विकासशील देशों के लिए सहयोग को लेकर दूसरे उच्चस्तरीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भी विदेश मंत्री शाहिद ने एक बार फिर सही बातें रखीं. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि विकासशील देशों के लिए सहयोग को आगे बढ़ाया जाए. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के तौर पर शाहिद अब्दुल्ला के चुनाव में वैश्विक महत्व के बड़े मुद्दों पर मालदीव के एक समान नज़रिए की भूमिका रही है. वो भी तब जब महामारी पूरी दुनिया के देशों, अर्थव्यवस्था और लोगों को एक साथ तबाह कर रही है

सोलिह की जीत 

76 साल के इतिहास में छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (एसआईडीएस) में मालदीव संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षता करने वाला सिर्फ़ छठा देश है. एक बेहद छोटे देश मालदीव, जिसकी विश्व स्तर पर ख्याति की एकमात्र वजह समुद्र के बढ़ते स्तर और उसकी वजह से जलवायु मुद्दों को लेकर उसका लोकप्रिय वैश्विक अभियान है, ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षता का चुनाव लड़ने का साहसी क़दम उठाया

मालदीव के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देर से आने के फ़ैसले ने एक तरह से अब्दुल्ला शाहिद की उम्मीदवारी में मदद की. अफ़ग़ानिस्तान इस पद पर 1966-67 में एक बार पहले भी काबिज रह चुका है. ये वो वक़्त था जब जून 1965 में आज़ादी हासिल करने के तीन महीने बाद सितंबर में मालदीव संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुआ था. वोटिंग करते वक़्त दुनिया के देश इन बातों पर भी ध्यान देते हैं

शाहिद ने चुनाव में उतरने के मालदीव के फ़ैसले, उनकी पसंद और चुनाव के लिए राष्ट्रपति सोलिह के प्रति आभार जताया. वो सोलिह जिन्हें घरेलू राजनीति में कमज़ोर माना जाता है. एक ट्वीट के जवाब में शाहिद ने कहा, “इस चुनाव में मालदीव की नुमाइंदगी करने के लिए मुझे मनोनीत करने पर और मुझ पर भरोसे और विश्वास के लिए धन्यवाद राष्ट्रपति.” ट्वीट में उन्होंने जोड़ा, “ये पूरे मालदीव के लिए वाकई में एक सम्मान है और अपने नागरिकों की तरफ़ से ये सम्मान हासिल करने पर मुझे गर्व है.”

मालदीव के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देर से आने के फ़ैसले ने एक तरह से अब्दुल्ला शाहिद की उम्मीदवारी में मदद की. अफ़ग़ानिस्तान इस पद पर 1966-67 में एक बार पहले भी काबिज रह चुका है.

इससे पहले राष्ट्रपति सोलिह ने अपने सबसे प्रमुख राजनयिक को बधाई देने के लिए फ़ौरन ट्विटर का सहारा लिया. अपने विदेश मंत्री को बधाई देते हुए सोलिह ने कहा, “ये मालदीव के लिए बड़ा सम्मान है और मुझे इस बात में कोई शक नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के तौर पर विदेश मंत्री शाहिद हम सबका नाम रोशन करेंगे.”

मालदीव की राजधानी माले में 6 मई को एक बम धमाके में घायल होने की वजह से कई सर्जरी के बाद जर्मनी में स्वास्थ्य लाभ कर रहे मालदीव की संसद के स्पीकर मोहम्मद अन्नी नशीद ने शाहिद को बधाई देते हुए ट्वीट किया और मालदीव के आकार और जलवायु की चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाया. 2008 और 2012 के बीच राष्ट्रपति रहने के दौरान नशीद ने पानी के भीतर कैबिनेट की बैठक करके भी जलवायु चुनौतियों की तरफ़ दुनिया का ध्यान दिलाया था

नशीद ने कहा, “मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मालदीव को संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष चुना गया है. ये हमारे जैसे छोटे और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रहे द्वीपीय देश के लिए बहुत बड़ा दिन है.” नशीद सत्ताधारी एमडीपी के अध्यक्ष भी हैं जिसके सदस्य राष्ट्रपति सोलिह और विदेश मंत्री शाहिद हैं

शाहिद की जीत से निश्चित तौर पर वैश्विक स्तर पर मालदीव की मौजूदगी और सोलिह का वज़न बढ़ेगा. राष्ट्रपति सोलिह 2023 के आख़िर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में दूसरे कार्यकाल के लिए लड़ने को लेकर फ़ैसला करने से पहले इस मौक़े का फ़ायदा उठा सकते हैं. चुनाव के लिए लड़ने का फ़ैसला वो संभवत: शाहिद के संयुक्त राष्ट्र महासभा के कार्यकाल के दौरान लेंगे लेकिन ये फ़ैसला देश में मौजूदा महामारी से निपटने पर ज़्यादा निर्भर है

सत्ताधारी एमडीपी में स्पष्ट तनाव को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष का चुनाव कुछ हद तक घरेलू राजनीति में विदेश मंत्री शाहिद की रचनात्मक भूमिका और उससे जुड़ी संभावनाओं की तरफ़ भी ध्यान दिलाता है लेकिन इसके साथ शर्त ये है कि मालदीव और दुनिया के लिए बेहद महत्वपूर्ण आने वाले साल में संयुक्त राष्ट्र महासभा शाहिद को उनके देश के लिए कितना समय देने में सक्षम होती है. वैसे संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के तौर पर शाहिद को मालदीव के मंत्री पद से इस्तीफ़ा देने की ज़रूरत नहीं है. अभी तक इस बात का कोई संकेत भी नहीं मिला है

शाहिद की उम्मीदवारी को भारत का समर्थन  

पड़ोसी देश मालदीव और शाहिद को बधाई देने वाली अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर शुरुआती लोगों में से हैं. ट्विटर पर जयशंकर ने लिखा, “76वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के तौर पर मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद के निर्वाचन पर उन्हें हार्दिक बधाई.” उन्होंने आगे लिखा, “ये उनकी प्रतिष्ठा के साथसाथ मालदीव की प्रतिष्ठा का भी सबूत है. हमें संयुक्त राष्ट्र के बहुपक्षवाद को मज़बूत करने और बेहद ज़रूरी सुधारों के लिए उनके साथ काम करने का इंतज़ार है.” 

ये याद किया जा सकता है कि भारत पहला देश भी है जिसने शाहिद की उम्मीदवारी का समर्थन किया था. पिछले साल नवंबर में ही भारत ने ये समर्थन दिया था. मालदीव की आधिकारिक यात्रा के दौरान विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने सार्वजनिक तौर पर दोहराया कि भारत अब्दुल्ला शाहिद की उम्मीदवारी का समर्थन करेगा जिसका भरोसा हमारे विदेश मंत्री ने विदेश मंत्री शाहिद अब्दुल्ला के साथ वर्चुअल मीटिंग के दौरान दिया था.” विदेश सचिव श्रृंगला ने ये भी कहा कि व्यापक राजनयिक अनुभवों और नेतृत्व के गुणों के साथ विदेश मंत्री शाहिद इस उथलपुथल भरे समय में महासभा की अध्यक्षता करने की सर्वश्रेष्ठ क्षमता रखते हैं.”

भारत पहला देश भी है जिसने शाहिद की उम्मीदवारी का समर्थन किया था. पिछले साल नवंबर में ही भारत ने ये समर्थन दिया था. मालदीव की आधिकारिक यात्रा के दौरान विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने सार्वजनिक तौर पर दोहराया कि “भारत अब्दुल्ला शाहिद की उम्मीदवारी का समर्थन करेगा

ख़बरों के मुताबिक़ मालदीव ने राष्ट्रपति सोलिह के निर्वाचन के कुछ ही समय बाद 2018 में ही विदेश मंत्री शाहिद की उम्मीदवारी का ऐलान किया था. इस चुनाव में एशियापैसिफिक क्षेत्र के किसी और उम्मीदवार के नहीं आने की वजह से भारत के समर्थन का फ़ैसला समय और मक़सद दोनों हिसाब से ठीक था. अफ़ग़ानिस्तान ने डॉक्टर रसूल की उम्मीदवारी का ऐलान इस साल जनवरी में किया. ऐसे में भारत को सार्क के अपने एक और संवेदनशील दोस्त अफ़ग़ानिस्तान को ये बताने में कोई झिझक नहीं हुई कि वो अपने फ़ैसले पर फिर से विचार नहीं कर सकता है क्योंकि महीनों तक इंतज़ार करने के बाद भी किसी दूसरे देश ने औपचारिक या अनौपचारिक तरीक़े से उससे संपर्क नहीं किया

अभी से लेकर सितंबर तक, जब शाहिद औपचारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी संभाल लेंगे और पहले सत्र की अध्यक्षता करेंगे, वो अपनी टीम को चुनने में व्यस्त रहेंगे. संयुक्त राष्ट्र के स्थायी प्रतिनिधि (पीआर) कार्यालय में पहले से काम करने वाले दूसरे दर्जे के एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक के बारे में ख़बर है कि वो अध्यक्ष शाहिद के मुख्य सहयोगी बनने जा रहे हैं. चुनाव के फ़ौरन बाद संयुक्त राष्ट्र में भारतीय स्थायी प्रतिनिधि के कार्यालय ने एक ट्वीट के ज़रिए शाहिद को उनकी मज़बूत जीत के लिए बधाई दी

सॉफ्ट पॉवर का दीदार

द्विपक्षीय मोर्चे पर सोलिह की अगुवाई में द्वीपीय देश में कई विकास परियोजनाओं को लेकर  महीनों तक बहुपक्षीय सहयोग के बावजूद भारतमालदीव के संबंधों में हाल के दिनों में झटके लगे हैं. दूसरे मामलों के अलावा दूरदराज़ के द्वीपीय क्षेत्र लक्षद्वीप में पर्यटन विकास को लेकर भारत का विवादित फ़ैसला अच्छे संबंधों में बाधक है. इससे बचा जा सकता था

व्यापक ‘पड़ोसी’ नज़रिए से शाहिद का चुनाव और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मालदीव की तरक़्क़ी इस बात की मौन स्वीकृति है कि अभी तक पांच स्थायी सदस्य देशों की तरह ‘वीटो पावर’ के बिना भी संयुक्त राष्ट्र में भारत के सॉफ्ट पावर का डंका बजता है.

मालदीव के लगभग हर नागरिक, विशेष तौर पर मालदीव के उत्तर में रहने वाले लोगों, को ऐतिहासिक कारणों से लक्षद्वीप के एक द्वीप मिनिकॉय से विशेष लगाव है. ये ऐसा भारतीय द्वीप है जहां धिवेही, मूल रूप से मालदीव की, आधिकारिक भाषा के तौर पर इस्तेमाल की जाती है हालांकि यहां इसका नाम महल है. मौजूदा चिंता ये है कि लक्षद्वीप के विकास के लिए भारत की योजना साझा सांस्कृतिक धरोहर की सराहना के बिना मिनिकॉय से इस भाषा को ख़त्म कर देगी. मालदीव में भारत से जुड़े दूसरे मुद्दों में दक्षिणी मालदीव के शहर अड्डू में वाणिज्य दूतावास खोलने के भारत के ऐलान से जुड़ा है. इसे भारत का अपरिपक्व फ़ैसला बताया जा रहा है

सोलिह सरकार के विपक्षी आलोचक, और उनसे भी ज़्यादा वहां मौजूद भारत विरोधी समूह, भारत के इन दो फ़ैसलों के ज़रिए पिछले साल से मृतप्राय हो चुके भारत को बाहर करो अभियान में जान फूंकने में लगे हैं. इससे द्विपक्षीय संबंधों में तनाव आ सकता है जैसा कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की सरकार के दौरान हुआ था ख़ास तौर पर तब जब मालदीव में 2023 में राष्ट्रपति चुनाव का अभियान ज़ोर पकड़ने वाला है.

ऐसे में ये देखा जाना बाक़ी है कि मालदीव की मौजूदा सरकार और सत्ताधारी पार्टी शाहिद के चुनाव और इसमें भारत की मूक भूमिका के मौक़े का इस्तेमाल घरेलू मोर्चे पर हमले को कमज़ोर करने के लिए कैसे करती हैं. इसके विपरीत, संयुक्त राष्ट्र महासभा चुनाव के घरेलू राजनीति पर संभावित असर को देखते हुए अब प्रत्यक्ष और खुले तौर पर सोलिह और शाहिद पर पहले से ज़्यादा निशाना साधने की कोशिश की जा सकती है.

व्यापक पड़ोसी नज़रिए से शाहिद का चुनाव और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मालदीव की तरक़्क़ी इस बात की मौन स्वीकृति है कि अभी तक पांच स्थायी सदस्य देशों की तरह वीटो पावर के बिना भी संयुक्त राष्ट्र में भारत के सॉफ्ट पावर का डंका बजता है. आकार के मामले में पड़ोसी देशों की अयोग्यता को देखते हुए इसी तरह का समर्थन पड़ोसी देश भारत से चाहते हैं लेकिन पहले से अलग हाल के वर्षों और दशकों में इस पर सवाल उठाए जा रहे थे

इस प्रक्रिया में, शीत युद्ध के बाद 21वीं शताब्दी की वैश्विक परिस्थिति के दौरान, दुनिया दक्षिण एशिया को अब भारतीय असर का परंपरागत क्षेत्र नहीं मानती है. इसके बदले अमेरिका जैसे भारत के नये दोस्त इस क्षेत्र को खुले भू-राजनीतिक, भू-सामरिक कूटनीतिक क्षेत्र के तौर पर देखते हैं जहां वो अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ दखल दे सकते हैं. पिछले साल नवंबर में मालदीव के साथ रक्षा सहयोग पर अमेरिका का संरचना समझौता दक्षिण एशिया में ऐसे कई समझौतों में से एक है जहां इस क्षेत्र के बाहर के एक दोस्त देश, जो फिलहाल दुनिया की इकलौती महाशक्ति है, ने भारत के परंपरागत असर को भले ही ख़त्म नहीं किया लेकिन उसे चुनौती दी

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.