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द क्वॉड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग (Quad) भारत-प्रशांत क्षेत्र में आने वाले चार प्रमुख और लोकतांत्रिक देशों - भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान तथा यूनाइटेड स्टेट्स - का समूह है. यह समूह 2004 में हिंद महासागर में आए भूकंप तथा सुनामी के बाद मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) को बढ़ावा के लिए बनाया गया था. लेकिन इसके काफ़ी बाद 2017 में इसमें शामिल चार देशों ने दोबारा बातचीत शुरू करते हुए भारत-प्रशांत क्षेत्र में खुली और स्वतंत्र व्यवस्था को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया था. यक़ीनन यह समूह इस इलाके में बदल रहे स्ट्रैटेजिक डायनैमिक्स का जवाब देते हुए इस अहम भू-राजनीतिक क्षेत्र में मौजूद अवसरों का मिलकर लाभ उठाना चाहता था.
क्वॉड देश एक-दूसरे के क़रीब क्यों आते हैं? अनेक हितों के मुद्दों पर साफ़ दिखाई देने वाले मतभेदों के बावजूद क्वॉड के सदस्य देशों में भारत-प्रशांत क्षेत्र को खुला और स्वतंत्र इलाका बनाए रखने को लेकर जो साझा प्रतिबद्धता है वह ही इन्हें एक-दूसरे के क़रीब लाती है. इसे दो तरीकों से देखा जा सकता है. पहला यह कि भारत-प्रशांत क्षेत्र के इलाके को खुला और स्वतंत्र रखने का मतलब यह है कि ये सभी देश इस इलाके में चीन की आक्रामक तथा एकतरफा गतिविधियों का प्रतिकार करना चाहते हैं. चीन की हरकतों के कारण भारत-प्रशांत क्षेत्र में नौपरिवहन की स्वतंत्रता के साथ-साथ समुद्र-आधारित व्यापार और समुद्र के अन्य व्यापक उपयोगों पर ख़तरा मंडरा रहा है. दूसरे तरीके से इसे ऐसे समझा जा सकता है कि ये चारों देश भारत-प्रशांत क्षेत्र में अहम राजनीतिक तथा आर्थिक खिलाड़ी हैं, जो इस क्षेत्र में मौजूद अवसरों का लाभ उठाने के लिए अपने प्रयासों के बीच तालमेल स्थापित करना चाहते हैं. यह इलाका अब वैश्विक भू-राजनीति का केंद्र बिंदु बनकर उभरता जा रहा है. इसमें से पहला तरीका भले ही मौन हो, लेकिन वहां स्पष्टता दिखाई देती है. हां, इस समूह ने खुद को सकारात्मक रूप से परिभाषित करने की कोशिश की है. यह समूह इस बात को नहीं दर्शाना चाहता कि वह किसी के ख़िलाफ़ काम कर रहा है.
ये चारों देश भारत-प्रशांत क्षेत्र में अहम राजनीतिक तथा आर्थिक खिलाड़ी हैं, जो इस क्षेत्र में मौजूद अवसरों का लाभ उठाने के लिए अपने प्रयासों के बीच तालमेल स्थापित करना चाहते हैं.
आलोचकों का हमेशा से तर्क रहा है कि इस समूह के पास एक अर्थपूर्ण सुरक्षा एजेंडे का अभाव है. क्वॉड के लिए मजबूत सुरक्षा एजेंडा होने की आवश्यकता को यह कहकर आगे किया जाता है कि भारत-प्रशांत में सिक्योरिटी डायनैमिक्स यानी सुरक्षा गतिविज्ञान लगातार बदल रहा है. अनेक बातों को देखकर यह साफ़ है कि चीन की भारत-प्रशांत क्षेत्र में मौजूदगी बढ़ रही है. चीन इस इलाके में अंतरराष्ट्रीय कानून का भी अनादर कर रहा है. ऐसे में उसका यह रवैया भारत-प्रशांत क्षेत्र में खुली एवं स्वतंत्र व्यवस्था बनाए रखने की कोशिशों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. इस तर्क को एक जैसी सोच रखने वाले देशों के बीच स्थापित होने वाले नए समूहों के कारण और भी बल मिला है. इसमें AUKUS (ऑस्ट्रेलिया-UK-US) त्रिपक्षीय और हाल ही में बने स्क्वॉड (जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और फिलीपींस) का समावेश है. इन समूहों ने सुरक्षा को लेकर एक केंद्रित दृष्टिकोण पेश किया है. एक ओर जहां AUKUS का लिखित लक्ष्य ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा बलों को आठ न्यूक्लियर-पॉवर्ड सबमरीन (SSNs) देना है. ये सबमरीन देने का उद्देश्य यह है कि तेजी से अस्थिर होते जा रहे भारत-प्रशांत क्षेत्र में संभावित युद्ध को रोका जा सके. इसके साथ ही स्क्वॉड के गठन की ज़रूरत इसलिए महसूस की गई, क्योंकि चीन की ओर से ईस्ट तथा साउथ चाइना सी क्षेत्र में लगातार आक्रामक बर्ताव किया जा रहा है. यह अक्सर कहा जाता है कि एक आधिकारिक सुरक्षा संधि में हितधारक बनने को लेकर भारत की हिचकिचाहट ही क्वॉड को एक संधि जैसा मॉडल बनने से रोक रही है. इसके बावजूद इस मुद्दे से दूर रहते हुए क्वॉड ने परिपक्वता का परिचय दिया है. इस समूह ने भारत के रणनीतिक फ़ैसलों को इसके बावजूद स्वीकार किया है कि उसके पास खुद को सुरक्षा संधि के रूप स्थापित करने का प्रलोभन मौजूद है.
हालांकि क्वॉड के पास अपना कोई सुरक्षा एजेंडा नहीं है इस तर्क को लेकर भी परीक्षण किया जाना चाहिए. यह सच है कि AUKUS तथा स्क्वॉड की तरह क्वॉड के पास कोई नियमित विस्तृत सुरक्षा लक्ष्य नहीं है. लेकिन यह तर्क देना कि क्वॉड के पास कोई सुरक्षा एजेंडा ही नहीं है गलत तर्क देने जैसा होगा. भारत-प्रशांत क्षेत्र में मौजूद रणनीतिक तथा सुरक्षा मजबूरियां क्वॉड को इस समुद्री इलाके में बदल रहे गतिविज्ञान को लेकर चर्चा करने पर बाध्य करती हैं. यह तर्क दिया जा सकता है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र को शांतिपूर्ण एवं स्थिरता वाला इलाका बनाने को लेकर क्वॉड देशों के बीच सहमति ही उन्हें एकजुट करती है. भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता को लेकर क्वॉड की प्राथमिकता एक मानक सुरक्षा दृष्टिकोण के साथ जुड़ी हुई है. क्वॉड के लिए खुले और स्वतंत्र भारत-प्रशांत क्षेत्र के क्या मायने हैं? 2017 में दोबारा सक्रिय होने के बाद से ही क्वॉड ने इस बात पर जोर दिया है कि वह भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक स्वतंत्र और खुली व्यवस्था का पक्षधर है. इसका अर्थ यह है कि वह इस इलाके में नौवहन की आजादी को सुनिश्चित करते हुए शांति एवं स्थिरता बनाए रखने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन कर किसी भी तरह के बल का उपयोग कर उठाए गए कदम का विरोध करेगा. यह समूह चीन का नाम लेने में हिचकिचा रहा है, लेकिन यह एकदम साफ़ है कि उसका ध्यान बीजिंग के आक्रामक दांव-पेंचों और नियमित रूप से अंतरराष्ट्रीय कानून की अनदेखी किए जाने पर ही केंद्रीत है.
एक ओर जहां चीन की साउथ चाइना सी क्षेत्र में चल रही गतिविधियों को लेकर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने की वकालत करते हुए खुली और आजाद व्यवस्था की पैरवी करने वाले देश आलोचना करते हैं, वहीं बीजिंग की ओर से हिंद महासागर में होने वाली घुसपैठ को किसी तरह का महत्व नहीं दिया जाता.
हालांकि भारत-प्रशांत में क्वॉड का चीन की ओर इशारा इसमें शामिल सदस्य देशों की इस क्षेत्र में रणनीतिक मजबूरियों को प्रबंधित करने वाले सूक्ष्म दृष्टिकोण को उजागर करता है. क्वॉड सदस्य देशों के बीच साझा होने वाले भूगोल में हिंद तथा प्रशांत सागर दोनों का ही समावेश है. एक ओर जहां चीन की साउथ चाइना सी क्षेत्र में चल रही गतिविधियों को लेकर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने की वकालत करते हुए खुली और आजाद व्यवस्था की पैरवी करने वाले देश आलोचना करते हैं, वहीं बीजिंग की ओर से हिंद महासागर में होने वाली घुसपैठ को किसी तरह का महत्व नहीं दिया जाता. हालिया वर्षों में चीन ने हिंद महासागर में अनेक अनुसंधान जहाज भेजे हैं, जिन्होंने श्रीलंका तथा मालदीव देशों में लंगर डाला है. इस हरकत के कारण भारत तथा उसके जैसे विचार करने वाले देशों में संदेह के बीज उत्पन्न हुए हैं. लेकिन इस मर्तबा बात साउथ चाइना सी क्षेत्र में होने वाले संघर्षों जितनी नहीं बिगड़ी है.
यह मान लेना सही नहीं होगा कि क्वॉड का मौजूद समुद्री सुरक्षा एजेंडा मजबूत नहीं है. क्वॉड की ओर से जारी होने वाले संयुक्त बयानों पर नज़र डालने से यह साफ़ हो जाता है कि इस समूह ने साउथ चाइना सी में चीनी कार्रवाइयों की आलोचना को लगातार तेज किया है. समूह ने इस क्षेत्र में विवादित पॉकेट्स यानी क्षेत्र में बढ़ते सैन्यीकरण के कारण ख़राब होती स्थिति को लेकर अपनी चिंताओं को सार्वजनिक किया है. साउथ चाइना सी में विवाद को लेकर क्वॉड की ओर से जारी संयुक्त बयानों के कुछ अंशों का संकलन यह साफ़ कर देता है कि इस इलाके में चीन की ओर से जबरन की जाने वाली हरकतों को लेकर क्वॉड के दृष्टिकोण में निरंतर बदलाव आया है. इसका कारण यह है कि चीन की हरकतों की वजह से इस क्षेत्र में खुली एवं स्वतंत्र व्यवस्था पर अहम प्रभाव पड़ रहा है.
क्वॉड के संयुक्त बयानों के कुछ अंश
2021
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हम अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करते रहेंगे. विशेषत: जैसा UN कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ सी (UNCLOS) में प्रतिबिंबित होता है. ऐसा करते हुए हम समुद्री इलाके में नियम-आधारित व्यवस्था के सामने पैदा होने वाली चुनौतियों से निपटेंगे. इसमें ईस्ट तथा साउथ चाइना सी का इलाका भी शामिल होगा.
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2022
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हम अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करते रहेंगे. विशेषत: जैसा UN कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ सी (UNCLOS) में प्रतिबिंबित होता है. ऐसा करते हुए हम नौवहन तथा ओवरफ्लाइट के अधिकार को अबाधित रखते हुए समुद्री इलाके में नियम-आधारित व्यवस्था के समक्ष उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निपटेंगे. इसमें ईस्ट तथा साउथ चाइना सी का इलाका भी शामिल होगा. हम यथास्थिति को बदलने के लिए किसी भी तरह के बल का उपयोग करते हुए भड़काऊ अथवा एकतरफा कार्रवाई का जमकर विरोध करते हुए इस इलाके में तनाव को बढ़ने से रोकेंगे. इसमें विवादित फीचर्स यानी इलाकों का सैन्यीकरण, कोस्ट गार्ड वाहनों तथा समुद्री मिलिशिया यानी सेना के ख़तरनाक उपयोग के साथ-साथ अन्य देशों के ऑफ-शोर यानी अपतटीय अन्वेषण गतिविधियों में डाली जाने वाली रुकावट शामिल है.
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2023
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हम भारत-प्रशांत क्षेत्र के समुद्री इलाके में शांति एवं स्थिरता को बनाए रखने को लेकर प्रतिबद्ध हैं. हम किसी भी तरह की अस्थिरता पैदा करने वाली एकतरफा कार्रवाई, जो यथास्थिति में परिवर्तन के उद्देश्य से जबरन अथवा बलपूर्वक की जाएगी का विरोध करेंगे. हम अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करते रहेंगे. विशेषत: जैसा UN कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ सी (UNCLOS) में प्रतिबिंबित होता है. ऐसा करते हुए हम नौवहन तथा ओवरफ्लाइट के अधिकार को अबाधित रखते हुए समुद्री इलाके में नियम-आधारित व्यवस्था के समक्ष उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निपटेंगे. इसमें ईस्ट तथा साउथ चाइना सी का इलाका भी शामिल होगा. हम विवादित फीचर्स यानी क्षेत्रों के सैन्यीकरण को लेकर अपनी चिंता सार्वजनिक कर रहे हैं. इसके अलावा कोस्ट गार्ड वाहनों तथा समुद्री मिलिशिया यानी सेना के ख़तरनाक उपयोग के साथ-साथ अन्य देशों के ऑफ-शोर यानी अपतटीय अन्वेषण गतिविधियों में डाली जाने वाली रुकावट को लेकर भी हमारी चिंताएं साफ़ हैं. हम इस बात पर बल देते हैं कि सारे विवादों का निपटारा शांतिपूर्वक तथा अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार किया जाना चाहिए. विवादों का हल करने के लिए किसी भी तरह के बल अथवा धमकी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए.
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2024
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नेताओं के रूप में हम इस बात पर भरोसा करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन होना चाहिए. इसके अलावा क्षेत्रीय संप्रभुता और एकता का सम्मान करते हुए समुद्री क्षेत्र में शांति, सुरक्षा तथा स्थिरता बनाए रखी जानी चाहिए. इन बातों पर चलकर ही भारत-प्रशांत क्षेत्र में सस्टेनेबल विकास हासिल कर संपन्नता अर्जित की जा सकती है. हम एक बार पुन: अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेषत: UN कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ सी (UNCLOS) में प्रतिबिंबित होने वाले आशय के अनुसार वैश्विक समुद्री क्षेत्र में पैदा होने वाली चुनौतियों से निपटने की वकालत करते हैं ताकि यहां नियम-आधारित व्यवस्था को बनाए रखा जा सके. हम ईस्ट तथा साउथ चाइना सी में मौजूदा स्थिति को लेकर बेहद चिंतित हैं. हम साउथ चाइना सी में जबरन अथवा बलपूर्वक विवादित इलाकों के सैन्यीकरण को लेकर अपनी चिंताओं को जारी करते हुए धमकाने वाले किसी भी पैंतरेबाजी को लेकर आगाह करते हैं. हम कोस्ट गार्ड जहाजों के साथ ही समुद्री सेना का उपयोग करते हुए अपतटीय अन्वेषण को प्रभावित करने की किसी भी कोशिश की निंदा करते हैं. हम यह मानते है कि समुद्र के किसी भी विवाद का हल अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषत: UNCLOS के चार्टर के तहत किया जाना चाहिए. हम यह भी साफ़ कर देते हैं कि UNCLOS का उपयोग करके ही समुद्री विवादों को शांतिपूर्वक निपटाया जा सकता है. हम एक बार फिर नौवहन तथा ओवरफ्लाइट के अधिकार को बनाए रखने की अहमियत पर बल देते हुए समुद्र के गैरकानूनी उपयोग को अस्वीकार करते हैं. हमारा यह भी मानना है कि समुद्री व्यापार अंतरराष्ट्रीय कानून के दायरे में ही होना चाहिए. हम बार फिर UNCLOS के एकीकृत चरित्र तथा वैश्विक उपयोगिता को स्वीकार करते हुए यह साफ़ कर देते हैं कि UNCLOS में ही एक ऐसा ढांचा मौजूद है जो समुद्री गतिविधियों को संचालित करने की अनुमति देता है. हम यह भी मानते है कि 2016 में साउथ चाइना सी को लेकर दिया गया मध्यस्थता अवार्ड/पंचाट का फ़ैसला इस दिशा में एक मील का पत्थर है और यह भविष्य में भी विभिन्न पक्षों के बीच किसी भी विवाद को हल करने में अहम साबित होगा.
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भारत-प्रशांत में चीन की कार्रवाइयों को लेकर अपनी चिंताएं जाहिर करने के अलावा क्वॉड ने अपने समुद्री सुरक्षा एजेंडा को विस्तारित करने के लिए सहयोग को मजबूत करने की बात को ध्यान में रखकर नई पहलों की घोषणा की है. समूह ने 2022 में गैर-पारंपरिक समुद्री सुरक्षा मोर्चे पर दो नई पहलों की घोषणा की थी. इसमें इंडो-पसिफ़िक पार्टनरशिप फॉर मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (IPMDA) तथा भारत-प्रशांत में क्वॉड पार्टनरशिप फॉर ह्यूमेनिटेरियन असिस्टेंस एंड डिजास्टर रिलीफ (HADR) का समावेश है. जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत-प्रशांत क्षेत्र पर मंडरा रहे तात्कालिक ख़तरे और इस इलाके में मौजूद देशों की क्षमताओं में काफ़ी विसंगतियां है. इसे देखते हुए क्वॉड की ओर से HADR पहल पर दिया जा रहा जोर अहम हो जाता है. HADR की ओर से इस क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग और समन्वय को बढ़ाने में सहायता होगी. इसके अलावा मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (MDA) भी समुद्र सुरक्षा संबंधी प्रयासों को बढ़ाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इस पहल के माध्यम से क्वॉड अपने क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ सहयोग में इज़ाफ़ा करना चाहता है. वह सदस्य देशों को समुद्र में होने वाली अवैध गतिविधियों का लगभग रियल टाइम अपडेट मुहैया कराएगा. इसके साथ ही 2023 में समूह ने अपनी MDA साझेदारी के कवरेज को बढ़ाने की मंशा व्यक्त की है. वह चाहता है हिंद महासागर क्षेत्र को इसमें शामिल किया जाए ताकि इस पहल पर नियमित रूप से ध्यान केंद्रित किया जा सके.
2024 के क्वॉड शिखर सम्मेलन में भी अनेक महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई. IPMDA का, साउथ ईस्ट एशिया के पैसिफिक आइलैंड फोरम फिशरिज एजेंसी (PIFFA) तथा हिंद महासागर में इंर्फोमेशन फ्यूजन सेंटर-इंडियन ओशन रीजन (IFC-IOR) के साथ तालमेल स्थापित करते हुए इसे उन्नत किया गया.
2024 के क्वॉड शिखर सम्मेलन में भी अनेक महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई. IPMDA का, साउथ ईस्ट एशिया के पैसिफिक आइलैंड फोरम फिशरिज एजेंसी (PIFFA) तथा हिंद महासागर में इंर्फोमेशन फ्यूजन सेंटर-इंडियन ओशन रीजन (IFC-IOR) के साथ तालमेल स्थापित करते हुए इसे उन्नत किया गया. इस पहल को मैरीटाइम इनिशिएटिव फॉर ट्रेनिंग इन द इंडो-पैसिफिक (MAITRI) से सहयोग मिलने की उम्मीद है. MAITRI का उद्देश्य MDA के प्रयासों को मजबूती देने के लिए तकनीक और साधनों का विकास करना है. समुद्री रक्षा और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के प्रयासों को मजबूत प्रदान करते हुए इंटरऑपरेबिलिटी मुहैया कराने के लिए क्वॉड के चारों सदस्यों की कोस्ट गार्ड सेवा की संयुक्त पहल - द क्वॉड-एट-सी शिप ऑर्ब्जवर मिशन - की भी घोषणा की गई. HADR के मोर्चे पर क्वॉड ने क्वॉड इंडो-पैसिफिक लॉजिस्टिक्स नेटवर्क के लांच की घोषणा की, जो प्राकृतिक आपदाओं के दौरान एयर-लिफ्ट क्षमताओं में इज़ाफ़ा करेगा.
2020
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ऑस्ट्रेलिया की मालाबार अभ्यास में वापसी*
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2021
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COVID 19 महामारी के कारण स्वास्थ्य सुरक्षा पर ही ध्यान केंद्रित रहा था
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2022
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इंडो-पसिफ़िक पार्टनरशिप फॉर मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (IPMDA) तथा भारत-प्रशांत में क्वॉड पार्टनरशिप फॉर ह्यूमेनिटेरियन असिस्टेंस एंड डिजास्टर रीलिफ (HADR) पहल की शुरुआत.
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2023
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IPMDA का हिंद महासागर में विस्तार किया गया. इसका उद्देश्य सहयोगी क्षेत्रीय साझेदारों को अवैध समुद्री गतिविधियों को रोकने में सहायता करना है. इसके अलावा अवैध, अनियंत्रित एवं अनजाने में किये जाने वाले मछली पालन पर ध्यान रखना तथा जलवायु संबंधित मानवीय घटनाओं पर नज़र रखना है.
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2024
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IPMDA को PIFFA और IFC-IOR तथा MAITRI पहल के साथ तालमेल स्थापित करते हुए उन्नत किया गया. इससे साधन और उपकरणों का विकास संभव होगा. इसके अलावा समुद्री रक्षा और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के प्रयासों को मजबूत प्रदान करते हुए
इंटरऑपरेबिलिटी मुहैया कराने के लिए क्वॉड के चारों सदस्यों की कोस्टगार्ड सेवा की संयुक्त पहल-द क्वॉड-एट-सी शिप ऑर्ब्जवर मिशन-की भी घोषणा की गई. इंडो-पैसिफिक लॉजिस्टिक्स नेटवर्क के लांच की घोषणा की गई, जो प्राकृतिक आपदाओं के दौरान एयर-लिफ्ट क्षमताओं में इज़ाफ़ा करेगी.
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*मालाबार नौसैनिक अभ्यास में चार क्वाड नौसेना शामिल होती हैं, लेकिन यह नौसैनिक अभ्यास क्वाड समूह की पहल नहीं है।
अत: गैर-परंपरागत क्षेत्रों में सहयोग को कई गुणा बढ़ाने को लेकर क्वॉड की ओर से किए जा रहे प्रयासों में ही उसका एक प्रमुख सुरक्षा एजेंडा पुख़्ता तरीके से अंतर्निहित है. चीन तथा साउथ चाइना सी के सवाल पर भी यह समूह बीजिंग की ओर से समुद्र में की जाने वाली आक्रामक गतिविधियों की वजह से शांतिपूर्ण एवं स्थिर व्यवस्था के समक्ष उत्पन्न होन वाले तत्कालीन ख़तरे को लेकर भी मुखरता से अपनी बात रखता आया है. क्वॉड का समुद्री सुरक्षा एजेंडा उसके सदस्य देशों की रणनीतिक और सुरक्षा संबंधी मजबूरियों को ध्यान में रखकर विकसित हो रहा है. हालांकि क्वॉड के समुद्री सुरक्षा को लेकर सहयोग बढ़ाने की दिशा में की जा रही कोशिशों पर बारीक निगाह डाले जाने पर यह साफ़ हो जाता है कि इस समूह की ओर से सुरक्षा को लेकर अपनाए जाने वाले कैलिब्रेटेड यानी संतुलित दृष्टिकोण को पूरी तरह नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता.
सायंतन हालदार, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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