Published on Aug 05, 2022 Updated 26 Days ago

यौन कार्य को लेकर बनाए गए नियमों के परे जाकर ऐसे लोगों के बारे में सोचना होगा, जिन्हें इस कार्य में जबरन धकेला गया है, वहीं उन लोगों के बारे में भी विचार करना होगा जो अपनी इच्छा से इस पेशे में प्रवेश करते हैं.

भारत में यौनकर्मियों (Sex Workers) का विस्थापन और निगरानी!

मई 2022 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस बर्बरता के खिलाफ़ यौनकर्मियों को सुरक्षा प्रदान करने का आदेश पारित किया. इस आदेश के मूल में यौन कार्य को एक पेशे के रूप में कानूनी वैधता थी. हालांकि दलाली, वेश्यालय चलाना और पैसा देकर सेक्स की मांग करना अब भी ग़ैरक़ानूनी ही है. इस आदेश के बावजूद यौन कर्मियों को ‘अश्लील कृत्यों’ और ‘सार्वजनिक उपद्रव’ से जुड़े कानूनों के तहत गिरफ्त़ार किए जाने की शिकायतें आती रहती है.

भारत में यौन कार्य को वैध माना गया है, लेकिन इस पेशे को लेकर कानून में आए बदलाव के बावजूद ऐतिहासिक तौर पर इस पेशे से जुड़ा कलंक और उत्पीड़न बदस्तूर जारी है. इसकी मुख्य वजह यह है कि कामुकता व्यक्त करने वाली महिलाओं (और हाशिए पर धकेली गई जातियां, वर्गों सहित अन्य कमजोर समूहों) को लेकर उत्सुकता बनी हुई है.

भारत में यौन कार्य को वैध माना गया है, लेकिन इस पेशे को लेकर कानून में आए बदलाव के बावजूद ऐतिहासिक तौर पर इस पेशे से जुड़ा कलंक और उत्पीड़न बदस्तूर जारी है. इसकी मुख्य वजह यह है कि कामुकता व्यक्त करने वाली महिलाओं (और हाशिए पर धकेली गई जातियां, वर्गों सहित अन्य कमजोर समूहों) को लेकर उत्सुकता बनी हुई है. यह उत्सुकता ही समाज के ‘मासूम’ वर्ग को इससे रूबरू करवाती है जो डिजिटल युग में भी जारी हैं. जहां कामुकता को ऑनलाइन व्यक्त और उपयोग करने के अधिकारों की निगरानी, किसी भी रूप में और विशेष रूप से ऑनलाइन, अब भी नैतिकता से जुड़े स्थानीय विचारों के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है. इसी कलंक की वजह से यौन कर्मियों को व्यक्तिगत बातचीत और नियमानुसार ग़ैर-समावेशी नियमों के कारण गिरफ्त़ारी और उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है.

डाटा निर्भरता और राज्य निगरानी में वृद्धि के कारण ही यौनकर्मियों की स्थिति में फिलहाल सुधार नहीं हो पा रहा है. अपने मौलिक अस्तित्व में यौन कार्य के लिए इंटरनेट या भौतिक स्थान तक पहुंच की आवश्यकता होती है. इसके साथ ही स्वास्थ्य बीमा या कम से कम स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच भी आवश्यक होती है. 

मर्ज़ी से चुना गया पेशा

लड़कियों की दलाली और पैसा देकर सेक्स की मांग करने को लेकर बनाए गए कानून में ही यौन कार्य को ‘अनैतिक’ माना जाता है. भारतीय कानून का अति महत्वपूर्ण दृष्टिकोण यौनकर्मियों का ‘नैतिक’ व्यवसायों में पुनर्वास करना है. ऐसे में वेश्यालयों को बंद करने अथवा यौनकर्मियों के आवास को ढहाने का फैसला इस धारणा से लिया जाता है कि यौनकर्मियों को ऐसे क्षेत्रों में रहने अथवा काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. यह रवैया यौनकर्मियों को आमतौर पर विस्थापन की ओर ले जाता है.

यह सोच कि सभी यौनकर्मियों को जबरन इस पेशे में धकेला गया है, अपनी इच्छा से इस पेशे को अपनाने वाले लोगों को कमज़ोर बनाती है. इतना ही नहीं इस धारणा को लेकर बनाए गए कानून उन लोगों को भी कमज़ोर बनाते हैं, जो इस पेशे में धकेले जाने के बाद यहां से निकलकर ‘सामान्य’ और सामाजिक रूप से स्वीकार्य पेशे में काम नहीं पा सकते

यह सही है कि मानव तस्करी एक गंभीर समस्या है. इसमें असामान्य रूप से महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाया जाता है. लेकिन यह सोच कि सभी यौनकर्मियों को जबरन इस पेशे में धकेला गया है, अपनी इच्छा से इस पेशे को अपनाने वाले लोगों को कमज़ोर बनाती है. इतना ही नहीं इस धारणा को लेकर बनाए गए कानून उन लोगों को भी कमज़ोर बनाते हैं, जो इस पेशे में धकेले जाने के बाद यहां से निकलकर ‘सामान्य’ और सामाजिक रूप से स्वीकार्य पेशे में काम नहीं पा सकते या फिर समाज के मुख्य प्रवाह अथवा अपने परिवार के साथ नहीं जुड़ पाते. ऐसी मान्यताएं महिलाओं और पारलैंगिक लोगों की अनदेखी कर देती हैं, जो इस पेशे में अपनी मर्जी से आये हैं और जिन्हें इस पेशे में जबरन धकेले अथवा तस्करी करने के बाद इसमें शामिल गए लोगों की तरह ही सुरक्षा की आवश्यकता होती है.

पुलिस बर्बरता के अलावा सुरक्षा का एक और क्षेत्र है जो इनके लिए आवश्यक है और वह है राज्य की ओर से पहचान मिलने का. आधार कार्ड के उपयोग को लेकर काफी विवाद हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद यह आज भारतीय नागरिकों, विशेष रूप से यौनकर्मियों की आम जिंदगी में बेहद महत्वपूर्ण हो गया है. सरकार की ओर से आधार कार्ड को लेकर उठाए जा रहे ठोस कदमों की वजह से अब यह कार्ड डिजिटल भुगतान सेवा, औपचारिक बैंकिंग, हॉस्पिटल केयर, स्वास्थ्य बीमा, मकान खरीद जैसी सेवाओं के आवेदन के लिए ज़रूरी हो गया है. यौनकर्मियों, विशेष रूप से ट्रांससेक्सुअल सेक्स वर्कर जो अपने बायो-लॉजिकल डाटा के साथ अपनी पहचान नहीं कर सकते हैं, या जिनके पास अपनी पहचान साबित करने के लिए दस्तावेज उपलब्ध नहीं होते. ऐसे लोगों के लिए कामकाज की इन बुनियादी बातों तक पहुंच बनाना मुश्किल हो जाता है. इसी वजह से अक्सर इस ‘वैध’ पेशे में स्वायत्ता हासिल करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है. 

आधार कार्ड में पंजीकरण प्रक्रिया में तीन लिंग संभावनाओं की अनुमति देकर सरकार ने एक सराहनीय कदम उठाया है. लेकिन यह अक्सर उन लोगों को बाहर कर देता है जो ट्रांस-सेक्सुअल यौनकर्मी होते हैं. क्योंकि इस समुदाय के लोग गुरू-चेला प्रणाली की वजह से यह पेशा अपनाते हैं या फिर इसलिए यह पेशा अपनाते है कि बैंकिंग अथवा स्वास्थ्य देखभाल जैसा पेशा वे नहीं अपना सकते क्योंकि वहां पहचान संबंधी दस्तावेज़ो के अभाव में उन्हें पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते. कुछ बैंकिंग सेवाओं की अंतर्गत नीतियों में कुछ वेबसाइटस को कथित रूप से ‘घिनौना’ अथवा ‘अश्लील’ (पोर्नोग्राफिक) चिह्नित किया गया है. ऐसे में यह बैंक ऐसी वेबसाइट के साथ लेनदेन नहीं करता. ऐसे में ट्रांससेक्सुअल यौनकर्मियों के सामने मौजूद विकल्प और भी सीमित हो जाते हैं.

पारदर्शिता, सुरक्षा और रक्षा के नाम पर राज्य की ओर से की जाने वाली निगरानी के तहत नागरिकों, विशेषत: कमजोर वर्ग के नागरिकों को लेकर यह धारणा है कि वे स्वयत्त तौर पर अपने अस्तित्व की देखभाल कर ही नहीं सकते. यह न केवल इस पेशे के लिए बल्कि निगरानी में रहने वाली एजेंसी के लिए भी एक चुनौती है. 

शहर के बीच कुछ बस्तियों से ही यौन कार्य को जोड़कर देखा जाता है. इस पेशे से जुड़े लोगों को वहां पर ही आवासीय सुविधा मिलती है, क्योंकि उन्हें या तो समाज से बहिष्कृत समझा जाता है या उन्हें “उच्च वर्ग” समझे जाने वाले इलाकों में आवास उपलब्ध नहीं हो पाते. इसका कारण यह है कि उन्हें ऐसे क्षेत्रों में अनेक स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है. यह भेदभाव भले ही उनके कलंकित पेशे, वित्तीय स्थिति, समाज अथवा उनकी वैवाहिक स्थिति से क्यों न जुड़ा हो. इन बस्तियों को अनेक आर्थिक विसंगतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि यह आमतौर पर अनौपचारिक बस्तियां होती हैं. इस वजह से वहां बिजली, सफाई, स्वच्छ जल तक की पहुंच नहीं होती और स्कूल तथा बैंकिंग अधिकारी इसे अनौपचारिक रूप से ही  ब्लैक लिस्ट में डाल देते हैं. यदि कोई यौनकर्मी इन सामाजिक सुविधाओं से लैस इलाकों में बसने की कोशिश भी करते हैं तो वे शहरों के अधिक शहरीकृत क्षेत्रों में महिलाओं और वहां के नागरिकों की अनुमानित सुरक्षा के लिए लगाए गए सीसीटीवी के निगरानी तंत्र (यदि अनुमति दी गई हो तो) की निगाह में आ जाते हैं. 

व्यवस्था में भेदभाव

पारदर्शिता, सुरक्षा और रक्षा के नाम पर राज्य की ओर से की जाने वाली निगरानी के तहत नागरिकों, विशेषत: कमजोर वर्ग के नागरिकों को लेकर यह धारणा है कि वे स्वयत्त तौर पर अपने अस्तित्व की देखभाल कर ही नहीं सकते. यह न केवल इस पेशे के लिए बल्कि निगरानी में रहने वाली एजेंसी के लिए भी एक चुनौती है. इससे जुड़ी मानहानि भी एक ऐसा मुद्दा है, जिसे लेकर यौन कार्य, विशेषत: वेश्यावृत्ति की चर्चा करने वाले कानून के तहत अभी विचार नहीं किया गया है. अनेक मामलों में विशेष रूप से टियर एक शहरों में ऐसी बस्तियों को अंतत: कोई बड़ा बिल्डर खरीद लेता है और वहां शरीफों की बस्ती बसा दी जाती है. ऐसा होने पर न केवल वहां काम करने वाले यौनकर्मियों को, बल्कि उनके कोई बच्चा हो तो उसे और उसके परिवारों को विस्थापना का शिकार होना पड़ता है.

वेश्यालयों में यौनकर्मियों की मौजूदगी, उनकी आवास और व्यवसायिक इलाकों को लेकर मौजूद अस्पष्ट नीतियों की वजह से ऐसा लगा कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तक पहुंच उनके लिए सुरक्षित स्थान हो सकता है. लेकिन यह सुरक्षित स्थान काफी कम वक्त के लिए उपलब्ध हुआ, क्योंकि आईटी एक्ट और भारतीय दंड संहिता दोनों में ही ऑनलाइन यौन सामग्री को प्रतिबंधित किया गया है. विशेषत: पोर्नोग्राफिक सामग्री की रिकॉर्डिंग और इसका प्रकाशन प्रतिबंधित है. पैसे की ऐवज में सेक्स की डिमांड करना सभी प्लेटफार्मों पर पहले से ग़ैरकानूनी है. चूंकि, इन कानूनों का उद्देश्य कमज़ोर यौनकर्मियों को वेश्यालय संचालकों के अपमानजनक और शोषणकारी रवैये अथवा मानव तस्करों से बचाना था, लेकिन अब इनके प्रभाव की वजह से ही यौनकर्मियों को प्रौद्योगिकी और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तक पहुंचने की हिम्मत मिली. इस वजह से अब वे राज्य की निगरानी व्यवस्था में आ गए और उनके खिलाफ़ पैसा लेकर यौन सेवा उपलब्ध करवाने की जवाबदेही तय होने लगी. इन कानूनों में महिलाओं की सहमति की बात तो की गई है, लेकिन सहमति की अवधारणा को केवल निष्क्रिय भागीदारी तक सीमित रखा गया है. अर्थात इसमें केवल उन लोगों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध जबरन पोर्नोग्राफिक सामग्री दिखाई जाती है. यह कानून ऑनलाइन प्रारूप में यौन कर्म को लेकर चुप्पी साध लेते हैं.

जो कानून यौन कार्य को नियंत्रित करते हैं और जो लोग इन कानूनों पर ज़मीनी तौर पर कार्य करते हैं, वे दोनों ही यह नहीं मानते कि यह पेशा भी एक ऐसा पेशा है, जिसे कोई स्वत: अपनी मर्जी से अपना सकता है. ऐसे में यौन कर्मी समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियां सुनियोजित अथवा व्यवस्था से जुड़ी हुई और भेदभावपूर्ण हैं.

यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि जो कानून यौन कार्य को नियंत्रित करते हैं और जो लोग इन कानूनों पर ज़मीनी तौर पर कार्य करते हैं, वे दोनों ही यह नहीं मानते कि यह पेशा भी एक ऐसा पेशा है, जिसे कोई स्वत: अपनी मर्जी से अपना सकता है. ऐसे में यौन कर्मी समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियां सुनियोजित अथवा व्यवस्था से जुड़ी हुई और भेदभावपूर्ण हैं.

ऐसे में यह विचार करना महत्वपूर्ण है कि इस पेशे से संबंधित कानूनों को न केवल इसमें जबरन धकेले गए लोगों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए, बल्कि उनके लिए भी उपयुक्त माहौल बनाना चाहिए, जो इस पेशे को अपनी मर्जी से चुनते हैं. ऐसा होने पर ही हम भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में लिखे गए उन शब्दों के साथ न्याय कर सकेंगे, जिसमें यौन कर्म को एक कानूनी पेशा कहा गया है. इसके अलावा कानून लागू करने वाली एजेंसियों एवं सामाजिक ढांचा बुनने वाले अधिकारियों को भी यह समझना होगा कि सेक्स वर्क डिजिटल स्पेस और शहरी इलाकों में घूमने की आजादी पर ही निर्भर करता है. जब तक प्रौद्योगिकी नीतियों और शहरीकरण के परिणामों में उपरोक्त बातों का विचार नहीं होता तब तक इसे एक सामान्य पेशे के रूप में नहीं देखा जा सकता.

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