Author : Rouhin Deb

Published on Jul 19, 2021 Updated 0 Hours ago

राज्य भर में लोगों के जीवन पर कोविड​​-19 महामारी के कहर को देखते हुए असम सरकार ने मानवीय आधार पर कई कल्याणकारी उपाय किए

जीवन और आजीविका के बीच तालमेल: असम मॉडल

देश कोरोना की दूसरी लहर से उबर रहा है, लेकिन राज्यों के सामने सबसे अहम सवाल आर्थिक मोर्चे पर पैदा हुए हैं. समय-समय पर कोरोना के नए स्वरूपों के सामने आने के कारण तीसरी लहर का डर भी स्पष्ट तौर पर दिख रहा है. हालांकि, अर्थव्यवस्था पर पड़ी मार और बढ़ती महंगाई को देखते हुए एक और लॉकडाउन लगभग अकल्पनीय लगता है. महामारी से निपटने के लिए वैकल्पिक तरीक़ा अपनाना या महामारी के साथ ही जीना अब मानदंड से ज़्यादा एक ज़रूरत बन गई है.

दूसरी लहर में देश के विभिन्न राज्यों में मामलों में बेतहाशा वृद्धि देखी गई और इस फैलाव को रोकने के लिए राज्यों के पास लॉकडाउन का एक विकल्प था. हालांकि, तीन करोड़ से अधिक आबादी वाले राज्य असम, जिसकी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सीमाएं सात राज्यों और दो देशों से लगती हैं, ने एक अलग मार्ग को चुना. उसने महामारी के फैलाव को रोकने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें एक तरफ ट्रैक, टेस्ट और ट्रीट (पता करो, जांच करो और इलाज करो) पर काम किया गया, तो दूसरी तरफ आंशिक कर्फ्यू लगाया गया, जिससे कि अर्थव्यवस्था चलती रहे.

असम की कार्ययोजना

असम में अप्रैल के शुरू में कोविड-19 मामलों में वृद्धि देखी गई. उस वक्त सरकार की कार्य योजना बहुत स्पष्ट थी. राज्य लॉकडाउन लगाने का जोखिम नहीं उठा सकता था. ऐसे में दूसरी लहर के दौरान लोगों की जान बचाने और आजीविका के बीच एक सही संतुलन बनाने के लिए सरकार को सटीक कदम उठाने की जरूरत थी. स्वास्थ्य के जुड़े बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर राज्य में पहले से ही आठ ऑक्सीजन संयंत्र थे, जो प्रति दिन 5.25 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन करते थे और अप्रैल तक पांच और संयंत्र तैयार किए जाने थे. ऐसे समय में जब देश के अधिकतर राज्य ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए काफी दबाव में थे, उस वक्त असम एक ऐसा राज्य था, जिसने मणिपुर, अरुणाचल, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में अतिरिक्त ऑक्सीजन भेजकर उनकी सहायता की. इसके साथ राज्य सरकार ने बेहद कम समय में अपने संसाधनों के अलावा डीआरडीओ, भारतीय सेना और पीएसयू की सहायता से अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या बढ़ाई. दूसरी लहर के दौरान असम में कभी भी बिस्तरों और ऑक्सीजन की कमी नहीं होने के पीछे इस इंतज़ाम का अहम योगदान था. इसके अलावा इसने अन्य राज्यों की भी सहायता की. असम ने झारखंड को 2000 रेमडिसिविर इंजेक्शन मुहैया करवाया, वहीं मेघालय के साथ कोविशील्ड (Covisheild) से कोवैक्सीन (Covaxin) वैक्सीन का आदान-प्रदान किया.

दूसरी लहर के दौरान असम में कभी भी बिस्तरों और ऑक्सीजन की कमी नहीं होने के पीछे इस इंतज़ाम का अहम योगदान था. इसके अलावा इसने अन्य राज्यों की भी सहायता की. 

दूसरी तरफ बीते तीन माह के दौरान सुनियोजित कर्फ़्यू और प्रतिबंधों में चरणबद्ध तरीके से ढील दी गई. यह पूरी कवायद मामलों की संख्या और टीपीआर (कुल पॉज़िटिविटी दर) के अनुपात में थी. इसके राज्य में अच्छे नतीजे देखे गए. राज्य में दूसरी लहर के दौरान टीपीआर मुश्किल से 10 प्रतिशत से ऊपर नहीं गया और नवीनतम आंकड़ों के अनुसार यह 1-2 प्रतिशत है. हालांकि, अब भी राज्य सरकार पूरी सावधानी बरत रही है. जांच, टीकाकरण और बच्चों के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े बुनियादी ढांचे में सुधार किया जा रहा है. क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि अगर देश में कोरोना की तीसरी लहर आती है तो बच्चों पर इसका सबसे गहरा प्रभाव पड़ सकता है.

राज्य ने अपनी सामुदायिक निगरानी योजना ‘निश्चयता’ को भी नया रूप दिया है. इसका लक्ष्य पड़ोसी राज्यों और देशों के साथ सीमा साझा करने वाले गांवों सहित 152 ब्लॉकों में 28,000 गांवों के लोगों का टीकाकरण करना है. इसके अलावा, सरकार ने जिन जिलों में कोविड-19 के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी गई, वहां पहले से किसी बीमारी से ग्रसित लोगों के कोरोना पॉज़िटिव होने पर उनके संस्थागत क्वारंटीन को अनिवार्य कर दिया है. इस तरह के सक्रिय क़दम केवल सरकार की दूरदर्शिता और राज्य में बेहतर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे (बेड, वेंटिलेटर, आईसीयू) के कारण ही संभव थे. इस कारण कभी भी बेड की कमी के कारण किसी भी मरीज को इलाज से वंचित नहीं रहना पड़ा. अर्थव्यवस्था भी सामान्य स्थिति में आ रही है क्योंकि राज्य में मामलों की संख्या में तेज़ गिरावट के परिणामस्वरूप चरणबद्ध तरीके से कोविड-19 प्रतिबंधों में ढील दी जा रही है.

चाय बागानों में मामलों में वृद्धि और गिरावट

असम के चाय बागान श्रमिकों का सामाजिक-आर्थिक विकास हमेशा से असम की सभी सरकारों की प्राथमिकता में रहा है. यह समुदाय राज्य की आबादी का लगभग 17 प्रतिशत है. इनमें मई के महीने के दौरान कोविड-19 मामलों में सबसे तेज वृद्धि देखी गई. साल का यह समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध दूसरी बार चाय की पत्तियों (second flush teas) को चुनने का समय होता है. इस समय कोरोना की दूसरी लहर के बीच लगभग 10 लाख चाय श्रमिकों को मजदूरी के लिए बागानों में जाना पड़ा.

सरकार ने तेजी से हस्तक्षेप किया. उसने संक्रमितों के होम आइसोलेशन पर प्रतिबंध लगा दिया. उसने चाय बागानों में तमाम कोविड-19 केंद्र बनाए. पूरे चाय बागानों में जांच को बढ़ाया गया और वाक-इन वैक्सीनेशन की अनुमति दी गई. इसके साथ ही सामुदायिक टीकाकरण प्रोग्राम चलाया गया. 

मई के दूसरे सप्ताह के दौरान इस समुदाय में कोविड-19 मानदंडों के पालन में लापरवाही बरते जाने के कारण पॉजिटिव मामलों में तेज वृद्धि देखी गई. यह समुदाय पहले ही कुपोषण, तपेदिक और तनाव से ग्रस्त रहा है. ऊपर से कोविड-19 संक्रमण के कारण स्थिति अनियंत्रित हो सकती थी. हालांकि, सरकार ने तेजी से हस्तक्षेप किया. उसने संक्रमितों के होम आइसोलेशन पर प्रतिबंध लगा दिया. उसने चाय बागानों में तमाम कोविड-19 केंद्र बनाए. पूरे चाय बागानों में जांच को बढ़ाया गया और वाक-इन वैक्सीनेशन की अनुमति दी गई. इसके साथ ही सामुदायिक टीकाकरण प्रोग्राम चलाया गया. इस तरह सरकार की ओर से समय पर किए गए हस्तक्षेप ने चाय बागानों को कोविड-19 हॉटस्पॉट बनने से रोक दिया और आज की तारीख में चाय बागानों में बहुत कम मामले देखे जा रहे है.

सामाजिक कल्याण के उपाय

राज्य भर में लोगों के जीवन पर कोविड​​-19 महामारी के कहर को देखते हुए असम सरकार ने मानवीय आधार पर कई कल्याणकारी उपाय किए. ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि समाज का सबसे कमज़ोर वर्ग, जिसने कमाई करने वाले अपने सदस्य को खो दिया है, उनकी देखभाल सरकार द्वारा हो. इन उपायों में महामारी के दौरान अपने माता-पिता को खोने वाले अनाथ बच्चों के लिए 3500 मासिक पारितोषिक (stipend) की घोषणा, शादी योग्य युवतियों जिन्होंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है उनके के लिए एक तोला सोना और 50000 रुपये की सहायता, विधवाओं (जिन्होंने कोरोना के कारण अपने पति को खो दिया) और पांच लाख से कम आय वाले परिवारों के लिए एक मुश्त 2.5 रुपये की सहायता जैसे उपाय शामिल हैं. इन कदमों का लाभार्थियों के जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ेगा और उन्हें अपनी क्षति से उबरने में मदद मिलेगी.

निष्कर्ष 

इस तरह के असाधारण समय में सरकार की ओर से असाधारण पहल की ज़रूरत होती है. हिमंत बिस्वा सरमा (इनके पास राज्य में वित्त और स्वास्थ्य दोनों विभागों को चलाने का पर्याप्त अनुभव है) के नेतृत्व में असम सरकार ने अर्थव्यवस्था के चलते रहने और महामारी को रोकने के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है. दूसरी लहर की पूरी अवधि के दौरान बिना पूर्ण लॉकडाउन लगाए तेज़ी से घटते मामले निश्चित रूप से संकेत देते हैं कि सरकार ने सही दिशा में क़दम उठाए हैं.

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