Published on Feb 26, 2023 Updated 0 Hours ago
सार्वजनिक स्वास्थ्य व आपदा सह पाने युक्त मूलभूत ढांचे का प्रशासन: अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका!

फरवरी 2023 में 7.8 तीव्रता के एक भयंकर भूकंप ने तुर्किए और सीरिया में ज़बरदस्त तबाही मचाई, जिसमें 46,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई. हर गुज़रते दिन के साथ इन दोनों देशों में मौत का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. सीरिया में तो हालात ख़ास तौर से चिंताजनक हैं, क्योंकि वहां युद्ध के शिकार ऐसे कई इलाक़े हैं, जो बाग़ी समूहों के क़ब्ज़े में हैं और जहां अभी भी मदद का इंतज़ार हो रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ट्रेडोस अदनोम घेब्रेयसस के मुताबिक़, विश्व स्वास्थ्य संगठन को अब तक बाग़ियों के क़ब्ज़े में जाने कीहरी झंडीनहीं मिली है. इसलिए भूकंप ने उस इलाक़े के लोगों की परेशानी को और भी बढ़ा दिया है, जो पहले ही युद्ध के संकट, कोविड-19 महामारी, हैजा और आर्थिक पतन की चुनौती का सामना कर रहे थे. मौजूदा तबाही ने सार्वजनिक स्वास्थ्य को मुश्किल में डाल दिया है, जिसके चलते अंत में मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.

भूकंप सबसे डरावनी प्राकृतिक आपदा माने जाते हैं, क्योंकि उनसे तबाही का एक सिलसिला शुरू हो जाता है, जिसे हम Figure 1 के ज़रिए समझ सकते हैं. भूकंप के बाद पैदा होने वाले हालात आम तौर पर बहुत कठिन होते हैं और इनसे बीमारी फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है, जिससे आख़िरकार अर्थव्यवस्था और मानव संसाधन को और भी नुक़सान होता है.

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Figure 1: अलग अलग आपदाओं से हर साल होने वाली औसत मौतें (2001-2020)

Source: Website of the “The United Nations Office for Disaster Risk Reduction

आपदाओं के प्रकार से होने वाली वार्षिक औसत मृत्यु

भूकंपों से अधिक मृत्यु दर को देखते हुए, नियंत्रण और बचाव के उपाय विकसित करने के लिए बहुक्षेत्रीय नज़रिए की आवश्यकता थी. 1985 में मेक्सिको और 1988 में आर्मेनिया में आए भयंकर भूकंपों के बाद, 1991 में 15 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा मिलकर इंटरनेशनल सर्च एंड रेस्क्यू एडवाइजरी ग्रुप (INSARAG) का गठन किया गया था. इसका मक़सद तालमेल, तैयारी और तबाही के वक़्त मदद पहुंचाने के प्रयासों में सुधार लाना था. अपने गठन के बाद से पिछले तीन दशकों में INSARAG नियमित बैठक करता रहा है, ताकि प्राकृतिक आपदाओं के बदलते स्वरूप से निपटने के लिए नए उपायों को अपनाया जा सके. संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 57/150 ने इसके दिशा-निर्देशों पर मुहर लगाते हुए इन्हें क्षेत्र के विशेषज्ञों के लिए मुख्य संदर्भ क़रार दिया था. इसी तरह INSARAG का नेटवर्क घटना के स्थान पर अभियान के समन्वय केंद्रों (OSOCC) के माध्यम से देशों के बीच सहयोग के नए अवसर भी उपलब्ध कराता है.

तबाहियों के असर को कम करने के लिए एक और बहुपक्षीय मंच का उदाहरण, कोएलिशन फॉर डिज़ास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (CDRI) है. जो देशों की राष्ट्रीय सरकारों, संयुक्त राष्ट्र की अलग अलग एजेंसियों और बहुपक्षीय विकास बैंकों का गठबंधन है. ये पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी, जिसका मक़सद जोखिम के प्रबंधन, संकट से उबरने और व्यवस्था के लिए पूंजी जुटाने के मामले में रिसर्च करना और उपलब्ध ज्ञान आपस में साझा करना था. CDRI का मक़सद अपने सदस्य देशों के नीतिगत ढांचे में बदलाव लाना है, जिससे आपका को झेलने में सक्षम मूलभूत ढांचे का विकास किया जा सके, जिससे आख़िरकार किसी आपदा की सूरत में आर्थिक बोझ कम करने में मदद मिल सके. CDRI में इस वक़्त 31 देश और 8 संगठन शामिल हैं. भारत की ये पहले 2015 में अपनाए गए और संयुक्त राष्ट्र महासभा से समर्थित, आपदा के जोखिम को घटाने वाले सेंडाई फ्रेमवर्क को मदद मिलती है. आपदा की रोकथाम की तैयारी करने के साथ साथ, स्वास्थ्य सेवाओं और स्कूल जैसे अहम मूलभूत ढांचे को आपदा झेल सकने लायक़ बनाने पर भी ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है. इस मामले में ये समझना होगा कि किसी भूकंप या अन्य प्राकृतिक आपदा से होने वाली तबाही और नुक़सान इस बात पर निर्भर करते हैं कि अस्पतालों और स्कूलों को इनसे कितनी क्षति पहुंचती है. जोखिम कम करने के लिए एकीकृत रणनीति बनाने के लिए कई रूप-रेखाएं, प्रस्ताव और नीतिगत फ़ैसले स्वीकृत की गई है. मिसाल के तौर पर सेंडाई फ्रेमवर्क और 2030 के एजेंडे में आपदा का जोखिम कम करने की ऐसी योजनाएं बनाने पर ज़ोर दिया गया है, जिनका व्यापक आधार हो और जिनमें अलग अलग क्षेत्रों के अवयव शामिल हों. इन रूप-रेखाओं के आपस में टकराने की स्थिति को देखते हुए अलग अलग भागीदारों द्वारा आपसी तालमेल से एक सामूहिक कार्य योजना पर काम करने की आवश्यकता है.

कोई भूकंप आने से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है क्योंकि इससे मौतें होती हैं. लोग ज़ख़्मी होते हैं और स्वास्थ्य सेवा के केंद्र भी भूकंप के शिकार होते हैं. किसी भूकंप के बाद अगर स्वास्थ्य के मूलभूत ढांचे को भी भारी नुक़सान पहुंचता है, तो इससे आपदा से पैदा हुआ संकट और लोगों की मौत का आंकड़ा, दोनों बढ़ जाते हैं. नीचे दी गई तस्वीर में 6 से अधिक तीव्रता वाले उन 526 ज़लज़लों का आंकड़ा दिया गया है जो 2018 से अब तक पूरी दुनिया में आए हैं. पिछले एक वर्ष में औसतन सौ से अधिक भूकंप आए हैं. ऐसे में पूरी दुनिया में स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्थाओं को चाहिए कि वो आपदा को झेल पाने और उसके बाद की स्थिति से निपटने के लिए बेहतर तैयारी करें

Figure 2: 2018 से अब तक 6 से अधिक तीव्रता वाले भूकंपों की स्थिति (संख्या=526)

Data Source: United States Geological Survey, 2023

भूकंप से होने वाली तबाही को सीमित करने के लिए कुछ आपातकालीन गतिविधियां संचालित करनी जरूरी होती हैं. इनमें आपदा से पहले की तैयारी और आपदा के बाद की स्थिति में नुकसान कम करने और रिकवरी की पहलें शामिल हैं. इसमें अंतरराष्ट्रीय संगठनों, जिसमें विदेशी सरकार, ग़ैर सरकारी संगठनों (NGOs) और विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे दूसरे बहुराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. इन संगठनों की भूमिका को आम तौर पर रोकथाम और नियंत्रण के उपाय करने जागरूकता के कार्यक्रम चलाने और भूकंप की अधिक आशंका वाले क्षेत्रों, विशेष रूप से सबसे ज़्यादा ख़तरे वाले सबसे कम विकसित देशों में तबाही झेल सकने वाले मूलभूत ढांचे के निर्माण में योगदान के तौर पर देखा जाता है. इसके अतिरिक्त, जिन क्षेत्रों को मेडिकल सेवा की ज़रूरत होती है, उनकी पहचान में भी अंतरराष्ट्रीय सहयोग काम सकता है, जिससे ये सुनिश्चित हो सके कि बचाव दल और स्वास्थ्य के अन्य पेशेवर, फ़ौरन तबाही वाले इलाक़े में पहुंच सकें. वैसे तो इसके लिए बहुपक्षीय मंचों और संयुक्त राष्ट्र द्वारा कई रूप-रेखाएं, समझौते और प्रस्ताव तैयार किए गए हैं. मगर इन नीतियों के प्रभावी होने पर प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं. इसलिए, अब ऐसी व्यापक नीतियां बनाने की आवश्यकता है, जिनसे इन व्यवस्थाओं को असरदार ढंग से लागू किया जा सके.

आपदा को झेल सकने लायक़ मूलभूत ढांचे को लेकर नज़रिया एक जटिल परिकल्पना है, जिसके लिए अलग अलग क्षेत्रों की पहलें शामिल की जाती हैं. इसीलिए ज़रूरी है कि विज्ञान, नीति और राजनीति को मिलाकर एक ऐसी रूपरेखा तैयार की जाए, जो कमजोरियों को दूर करके, समयानुकूल बदलाव की क्षमता विकसित कर सकें. चूंकि प्राकृतिक आपदाओं का संबंध जलवायु परिवर्तन से भी है, तो ये ज़रूरी हो जाता है कि आपदा से निपट सकने की क्षमता विकसित करने के प्रभावी उपाय किए जाएं. ये लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है, अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा विकसित की गयी तमाम रूप-रेखाएं, समझौते और प्रस्तावों के बीच ठोस तालमेल हो. मिसाल के तौर पर टिकाऊ विकास के लक्ष्य, पेरिस समझौते और सेंडाई फ्रेमवर्क के बीच आपसी तालमेल की संभावना की पड़ताल की जा सकती है. स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDGs) में लक्ष्य 11 शहरों को सुरक्षित, लचीला और समावेशी बनाने की बात करता है, वहीं लक्ष्य 13 जलवायु परिवर्तन से नुकसान और उसके असर को कम करने की बात कही गई है. पेरिस समझौता भी अपनी धारा 7 और 8 में स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन और आपदा के जोखिम को कम करने की बात कहता है. इसकी प्रस्तावना में एक पैराग्राफ तो आपदा के जोखिम के पीछे जलवायु परिवर्तन की भूमिका को अहम बताता है. इसीलिए, ये स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन और आपदा का जोखिम कम करना दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और इनके बीच समन्वय बिठाकर, इस चुनौती का सामना किया जा सकता है.

वैसे तो आपदा को झेल सकने में अधिक सक्षम मूलभूत ढांचा बनाने के लिए रूप-रेखाएं तैयार करने और प्रशासन की व्यवस्था बनाने के लिए गठबंधनों और बहुराष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है. लेकिन उनका असरदार होना आम तौर पर इन सबको लागू करने पर निर्भर होता है. देशों को चाहिए कि वो राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर किसी क्षेत्र में किसी आपदा के आने की अधिक आशंका के आधार पर रणनीतियां विकसित करें. ऐसी नीतियां विकसित करने से सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं को उनकी जिम्मेदारी सौंपने में मदद मिलेगी, जो नीतियां लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं. इससे ये भी सुनिश्चित हो सकेगा कि आपदा के जोखिम का प्रशासन जहां किसी विशेष भौगोलिक इलाक़े के अनुरूप हो, वहीं वो अंतरराष्ट्रीय रूप-रेखा द्वारा प्रदान किए गए संस्थागत ढांचे से बख़ूबी मेल भी खाता हो. CDRI जैसी पहलें या फिर स्वतंत्र दानदाता देश भी उन विकासशील देशों में आपदा झेल सकने में सक्षम मूलभूत ढांचे के निर्माण में मदद दे सकते हैं, जहां प्राकृतिक आपदाओं का ख़तरा अधिक होता है. उदाहरण के लिए, CDRI के ज़रिए भारत, आपदा के दौरान मानवीय क्षति को सीमित रखने का अपना अनुभव दूसरे देशों को उपलब्ध कराता है. वही, जापान भयंकर मौसम की स्थिति में संपत्ति और मूलभूत ढांचे को बचाने में अपने तकनीकी अनुभव का लाभ देता है. मिसाल के तौर पर ग्लासगो जलवायु सम्मेलन (COP 26) के दौरान, ‘लचीले द्वीपीय देशों के लिए मूलभूत ढांचाकी पहल का मक़सद छोटे द्वीपीय विकासशील देशों को आपदा और जलवायु परिवर्तन से निपट सकने में सक्षम मूलभूत ढांचा बनाने में तकनीकी मदद उपलब्ध कराना है.

देशों को चाहिए कि वो व्यक्तिगत स्तर पर अपनी योजना को मज़बूत बनाए, जिससे आपदाओं की स्थिति में उन्हें नुक़सान कम हो. इसके लिए वो अंतरराष्ट्रीय सहमति वाली रूप-रेखाओं को संदर्भ के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि, ये लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है, जब राजनीति प्रतिबद्धताओं को जोखिम कम करने में निवेश को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया जाए और इसमें लिए आपदा झेल सकने लायक़ और टिकाऊ व्यवहार को भी शामिल किया जाए. जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली तबाही की मात्रा बढ़ने के कारण इनके सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण संबंधी प्रभाव का दायरा भी बढ़ता जा रहा है. इन संकटों के माध्यम से दुनिया को ये याद दिलाया जा रहा है कि अपने अपने स्तर पर प्रयास करने के साथ साथ देशों, क्षेत्रों और पूरी दुनिया के बीच मिलकर साझा प्रयास करने की ज़रूरत भी बढ़ती जा रही है.

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Authors

Aniruddha Inamdar

Aniruddha Inamdar

Aniruddha Inamdar is a Research Fellow at the Centre for Health Diplomacy, Department of Global Health Governance, Prasanna School of Public Health, Manipal Academy of ...

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Viola Savy Dsouza

Viola Savy Dsouza

Miss. Viola Savy Dsouza is a PhD Scholar at Department of Health Policy Prasanna School of Public Health. She holds a Master of Science degree ...

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