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Published on Nov 30, 2024 Updated 1 Hours ago

वैश्विक व्यापार काफ़ी हद तक समुद्र पर निर्भर है और इस लिहाज़ से समुद्र पर आधारित उद्योग या कहें कि शिपिंग उद्योग में डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जाना बेहद अहम हो गया है. हालांकि, इसमें साइबर सुरक्षा से जुड़ी व्यापक चुनौतियां भी हैं, जिनका समाधान करना भी ज़रूरी है.

डिजिटल परिवर्तन से समुद्री व्यापार में क्रांतिकारी बदलाव

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यह लेख “सागरमंथन एडिट 2024” निबंध श्रृंखला का हिस्सा है.


समुद्री उद्योग यानी शिपिंग इंडस्ट्री के बगैर वैश्विक व्यापार की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. दुनिया में जितनी भी वस्तुओं का व्यापार होता है, उसके लगभग 90 प्रतिशत का परिवहन समुद्री जहाजों के ज़रिए किया जाता है, साथ ही वैश्विक स्तर पर कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में ग्लोबल लॉजिस्टिक्स मार्केट की हिस्सेदारी 8 से 12 प्रतिशत. ज़ाहिर है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए समुद्र के माध्यम से होने वाला व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला बेहद महत्वपूर्ण है, साथ ही दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा के लिए एवं ज़रूरी वस्तुओं की निर्बाध आपूर्ति के लिए भी यह बहुत मायने रखता है. देखा जाए तो कोविड-19 महामारी के दौरान जब पूरे विश्व में समुद्री मार्गों के माध्यम से होने वाले व्यापार पर असर पड़ा था, तब यह समझ में आया था कि अगर समुद्र के रास्ते होने वाले माल परिवहन में बाधा आती है, तो इसका आपूर्ति श्रृंखलाओं, वस्तुओं की क़ीमतों, आर्थिक विकास, रोज़गार और व्यापार पर कितना व्यापक प्रभाव पड़ सकता है. इन परिस्थितियों में आज समुद्री आपूर्ति श्रृंखला को सशक्त करने एवं इनकी कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए डिजिटल तकनीक़ों को अपनाना बेहद ज़रूरी हो गया है. समुद्री उद्योग में डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन का मतलब है कि इस इंडस्ट्री से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों को उन्नत तरीक़े से संचालित करना और अलग-अलग तकनीक़ों के बीच तालमेल को बढ़ाना. यानी उन सभी तरह की प्रौद्योगिकियों को एक प्लेटफॉर्म पर लेकर आना, जो इस समुद्री उद्योग के संचालन, लॉजिस्टिक्स प्रबंधन, संचार, एसेट प्रबंधन, सुरक्षा, संरक्षा और इसे पर्यावरण के लिहाज़ से अनुकूल बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं. समुद्र से जुड़े विभिन्न उद्योगों एवं शिपिंग उद्योग में लगातार तेज़ हो रहा यह डिजिटलीकरण देखा जाए तो तमाम चुनौतियां भी खड़ी कर रहा है. ख़ास तौर पर इससे बंदरगाहों और समुद्री संचालन को निशाना बनाकर किए जाने वाले साइबर हमलों जैसे ख़तरे बहुत बढ़ गए हैं, जो कि इससे जुड़े अहम इंफ्रास्ट्रक्चर के सामने व्यापक परेशानियां खड़ी करते हैं. ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि समुद्री उद्योग द्वारा नई-नई डिजिटल तकनीक़ों को अपनाए जाने के साथ-साथ ठोस साइबर सुरक्षा उपाय भी अपनाए जाएं. इसके अलावा, डिजिटल टेक्नोलॉजियों को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए संस्थागत स्तर पर क़दम उठाकर कार्यबल यानी इसमें कार्यरत कर्मचारियों को भी अच्छी तरह से प्रशिक्षित किए जाने की ज़रूरत है.

समुद्र से जुड़े विभिन्न उद्योगों एवं शिपिंग उद्योग में लगातार तेज़ हो रहा यह डिजिटलीकरण देखा जाए तो तमाम चुनौतियां भी खड़ी कर रहा है.

समुद्री सेक्टर से जुड़े उद्योगों को नया स्वरूप प्रदान करने वाली प्रमुख तकनीक़ें

डिजिटल टेक्नोलॉजी और आंकड़ों पर आधारित डिजिटल समाधान समुद्री उद्योग से जुड़े सेक्टर में तेज़ी से परिवर्तन लाने का काम कर रहे हैं. इस डिजिटलीकरण का सबसे बड़ा मकसद इस सेक्टर की क्षमता में वृद्धि करना है, साथ ही तमाम गतिविधियों के दौरान सटीक फैसले लेने की काबिलियत प्रदान करना है. इसके अलावा समुद्री उद्योग में डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने का उद्देश्य कहीं न कहीं इस सेक्टर के प्रदर्शन में व्यापक स्तर पर बदलाव लाना और उसे बेहतर करना है.

 

ज़ाहिर है कि शिपिंग उद्योग का मुख्य काम दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में माल और वस्तुओं का निर्बाध व तेज़ गति से परिवहन करना है. माल परिवहन से जुड़े विभिन्न कार्यों को सुचारू बनाने के लिए शिपिंग सेक्टर द्वारा कई तरह की नई-नई तकनीक़ों को विकसित किया गया है और उनका बंदरगाहों पर उपयोग किया जा रहा है. इन तकनीक़ों में इनोवेटिव पोर्ट ऑपरेशन एवं लॉजिस्टिक्स से जुड़ी प्रौद्योगिकियां शामिल हैं. उदाहरण के तौर पर बंदरगाहों के प्रबंधन और जहाजों के संचालन को सुगम बनाने के लिए ऑटोनॉमस शिप्स एंड अनमैन्ड सरफेस व्हीकल्स (USVs) को विकसित किया गया है. ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित एल्गोरिदम, सेंसर एवं रिमोट-कंट्रोल प्रणाली से लैस होते हैं. इस तनकीक़ में मानव दख़ल ना के बराबर होता है और इसके उपयोग से बंदरगाहों पर तमाम कार्यों को संचालित करने एवं जहाजों के ऑपरेशन में काफ़ी सहूलियत होती है. उदाहरण के लिए, सिंगापुर के पीएसए इंटरनेशनल तुआस पोर्ट में इसी तरह की अत्याधुनिक स्वचालित टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है. तुआस पोर्ट पर विद्युतीकृत स्वचालित यार्ड क्रेन्स और ऑटोमेटेड गाइडेड व्हीकल (AGVs) के ज़रिए यार्ड और जेटी के बीच कंटेनरों की आवाजाही को संभाला जाता है, साथ ही इस पूरे कार्य को दूर स्थित केंद्रीकृत तुआस पोर्ट कंट्रोल सेंटर से नियंत्रित किया जाता है.

आंकड़ों की मदद से समय रहते इस बात का पता लग जाता है कि जहाज में किस उपकरण की मरम्मत किए जाने की ज़रूरत है और इस प्रकार से जहाज की बेहतर देखरेख करने में मदद मिलती है.

इसी प्रकार से डिजिटल टेक्नोलॉजी ने जहाजों के रखरखाव और उनके प्रबंधन के कामकाज को बेहद आसान बना दिया है. तकनीक़ के उपयोग की वजह से जहां जहाजों की उम्र बढ़ गई है, वहीं उनकी देखरेख की लागत में भी काफ़ी कमी आई है. समुद्री जहाजों के विभिन्न हिस्सों में सेंसरों को स्थापित करने की वजह से, जैसे कि उनके इंजनों, प्रोपल्शन सिस्टम यानी जहाज को पानी में चलाने वाली प्रणाली और कार्गो संभालने वाली मशीनों में उन्नत सेंसर तकनीक़ लगाने की वजह से कंपन, तापमान और रगड़ खाने आदि से संबंधित चीज़ों के बारे में रियल टाइम आंकड़े उपलब्ध होते हैं. इन आंकड़ों की मदद से समय रहते इस बात का पता लग जाता है कि जहाज में किस उपकरण की मरम्मत किए जाने की ज़रूरत है और इस प्रकार से जहाज की बेहतर देखरेख करने में मदद मिलती है. उदाहरण के तौर पर रॉटरडैम बंदरगाह और एंटवर्प पोर्ट ने मूरिंग लाइन टेंशन पर लगातार नज़र रखने के लिए सेंसर से लैस "स्मार्ट बोलार्ड्स" स्थापित किए हैं. इससे जहां बंदरगाहों को बड़े जहाजों को सुरक्षित रूप खड़े करने में मदद मिलती है, वहीं बर्थ का भी समुचित इस्तेमाल करने में सहायता होती है. इसके अलावा, डिजिटल ट्विन टेक्नोलॉजी ने तो बंदरगाहों पर जहाजों को संभालने के काम को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है. इस तकनीक़ के ज़रिए जहाज संचालकों को जहाजों की आभासी प्रतिकृतियां मिल जाती हैं, जिससे जहाज ऑपरेशन के दौरान पैदा होने वाली तमाम परिस्थितियों का आकलन करने और क्या क़दम उठाना उचित होगा, इसके बारे में जानकारी हासिल करने में मदद मिलती है. इससे जहाजों का संचालन रोके बगैर मैंटीनेंस और अपग्रेडेशन से पड़ने वाले वास्तविक असर के बारे में सटीक तरीक़े से पता लगाया जा सकता है. यूके का डोवर बंदरगाह एक उन्नत डिजिटल ट्विन बनाने में जुटा हुआ है. इस तकनीक़ के ज़रिए समुद्र में जलस्तर बढ़ने यानी ज्वार आने के समय और साथ ही मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा, जिससे बंदरगाह पर जहाजों के सुरक्षित आवागमन में मदद मिलेगी.

 

डिजिटल तकनीक़ों के उपयोग से बंदरगाहों और जहाजों के परिचालन में तो क्रंतिकारी परिवर्तन आया ही है, साथ ही इससे मैरीटाइम इंडस्ट्री के भीतर कनेक्टिविटी भी बढ़ी है और जानकारी के आदान-प्रदान में भी सुगमता आई है. सिंगापुर के PSA इंटरनेशनल तुआस पोर्ट ने इसके लिए इवेंट-ड्रिवन आर्किटेक्चर (EDA) सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल शुरू किया है. इस सॉफ्टवेयर के ज़रिए जहाज के आवागमन, कंटेनर की आवाजाही और उपकरण की स्थिति में परिवर्तन आदि के बारे में आपस में जुड़ी प्रणालियों, डिवाइसों और प्रक्रियाओं के बीच रियल टाइम जानकारी के आदान-प्रदान की सुविधा उपलब्ध होती है. लॉस एंजिल्स के पोर्ट ने मशीन लर्निंग और डोमेन विशेषज्ञता का इस्तेमाल करके वेबटेक कॉरपोरेशन के क्लाउड-आधारित पोर्ट ऑप्टिमाइज़र के ज़रिए अपने इकोसिस्टम के अलग-अलग आंकड़ों को एकीकृत किया है, ताकि आपूर्ति श्रृंखलाओं की निगरानी और ज़रूरत के मुताबिक़ क़दम उठाने में आसानी हो. इसके अलावा, VSAT (वेरी स्मॉल अपर्चर टर्मिनल) और 5G नेटवर्क जैसी उपग्रह-आधारित संचार प्रणालियों का एकीकरण होने से जहाजों को हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुविधा मिलती है. इतना ही नहीं, सिंगापुर में समुद्री संचार के साथ ही समुद्री जहाजों के यातायात को प्रबंधित करने एवं विभिन्न आंकड़ों का विश्लेषण करने में सुधार लाने के लिए एक माइक्रो सैटेलाइट विकसित किया गया है. इसी तरह से चीन के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक तियानजिन पोर्ट में हुआवेई ने अपने स्वचालित हॉरिजॉन्टल ट्रांसपोर्टेशन सिस्टमों को सुधारने के लिए यानी परिचालन और डिलीवरी को सुव्यवस्थित करने के लिए 5G और क्लाउड-आधारित सेंट्रलाइज्ड डिस्पैचिंग का उपयोग किया है.

 

साइबर सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियां

शिपिंग उद्योग और समुद्री ऑपरेशन्स में डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने से जहां एक तरफ तमाम सुविधाएं और सहूलियत मिली हैं, वहीं दूसरी तरफ कई चुनौतियां भी सामने आई हैं. नेविगेशन सिस्टम में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक़ों में ख़ामियों के चलते इस सेक्टर में साइबर सुरक्षा से जुड़े ख़तरे लगातार बढ़ते जा रहे हैं. इनमें परिचालन संबंधी बाधाएं, आंकड़ों की गोपनीयता को भंग करना और संवेदनशील जानकारी का बाहर आना जैसे साइबर सुरक्षा से जुड़े ख़तरे शामिल हैं. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2023 में जहाज मालिकों, बंदरगाहों और अन्य समुद्री परिचालन से जुड़ी कंपनियों को कम से कम 64 साइबर घटनाओं का सामना करना पड़ा. ख़ास तौर पर दुनिया में भू-राजनीतिक उथल-पुथल बढ़ने की वजह से मैरीटाइम सेक्टर में साइबर सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियां काफ़ी बढ़ गई हैं. ज़ाहिर है कि इन घटनाओं की वजह से ज़बरदस्त आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ता है. देखा जाए तो वर्ष 2022 में समुद्री उद्योग में औसत साइबर हमले की लागत तीन गुना से अधिक बढ़कर 5,50,000 अमेरिकी डॉलर तक हो गई थी.

इन घटनाओं की वजह से ज़बरदस्त आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ता है. देखा जाए तो वर्ष 2022 में समुद्री उद्योग में औसत साइबर हमले की लागत तीन गुना से अधिक बढ़कर 5,50,000 अमेरिकी डॉलर तक हो गई थी.

शिपिंग उद्योग से जुड़े इन जोख़िमों को हल्के में नहीं लिया जा सकता है. क्योंकि अगर इन्हें नज़रंदाज़ किया जाता है, तो इससे न सिर्फ़ बंदरगाहों की सुरक्षा ख़तरे में पड़ सकती है, बल्कि इससे पूरी समुद्री आपूर्ति श्रृंखला पर भी व्यापक ख़तरा मंडरा सकता है. इस मुद्दे को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) ने वर्ष 2017 में साइबर सुरक्षा दिशानिर्देश बनाए थे, ताकि नए-नए साइबर ख़तरों से समुद्री ऑपरेशन यानी बंदरगाहों और जहाजों के संचालन से जुड़ी गतिविधियों को सुरक्षित रखा जा सके. इसके साथ ही IMO ने इन ख़तरों को रोकने, इनके बारे में पता लगाने और इन ख़तरों का सामना करने के लिए एक पुख्ता फ्रेमवर्क स्थापित करने की भी बात कही थी.

 

निष्कर्ष और नीतिगत सिफ़ारिशें

ज़ाहिर है कि आज के दौर में समुद्री इंडस्ट्री के लिए डिजिटल परिवर्तन एक विकल्प नहीं है, बल्कि एक ऐसी अनिवार्य ज़रूरत है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है. निसंदेह तौर पर शिपिंग उद्योग और बंदरगाहों के सुगम संचालन में डिजिटल तकनीक़ बेहद आवश्यक है, इससे जहां क्षमता में इज़ाफा होता है, वहीं सुरक्षा भी बढ़ती है और लागत में भी कमी आती है. शिपिंग सेक्टर में नई टेक्नोलॉजियों का इस्तेमाल करने और उनका फायदा उठाने के लिए देशों को (विशेष रूप से विकासशील देशों) को एक व्यापक रोडमैप तैयार करना चाहिए, साथ ही उसका पालन करना चाहिए. इस दिशा में पहला क़दम मैरीटाइम सिंगल विंडो की सुविधा विकसित करके इलेक्ट्रॉनिक डेटा इंटरचेंज के लिए फैसिलिटेशन (FAL) कमेटी कन्वेंशन के अनिवार्य मापदंडों को हासिल करना है. इसके अलवा, देशों को इस डिजिटल फ्रेमवर्क को स्थापित करते हुए बंदरगाह और लॉजिस्टिक्स प्रक्रियाओं को अनुकूलित एवं स्वचालित करने के लिए एक कार्यात्मक पोर्ट कम्युनिटी सिस्टम बनाना चाहिए. इसके साथ ही, बंदरगाह से जुड़ी सभी गतिविधियों को डिजिटल तकनीक़ों के माध्यम से संचालित और नियंत्रित करने के लिए एक पोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम विकसित करके, इसे और मज़बूत किया जा सकता है. इस प्रकार से उन्नत तकनीक़ी और संस्थागत क्षमताओं वाले बंदरगाहों को एक "स्मार्ट पोर्ट" मॉडल बनाने का प्रयास करना चाहिए. यानी एक ऐसा अत्याधुनिक बंदरगाह बनाने का ठोस प्रयास करना चाहिए, जहां AI, IoT, 5G नेटवर्क और डिजिटल ट्विनिंग जैसी उभरती हुई तकनीक़ों का भरपूर उपयोग किया जाता हो. बंदरगाहों और समुद्री उद्योग के संचालन के क्षेत्र में इस डिजिटल परिवर्तन को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए जहां राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है, वहीं नियम-क़ानूनों में समुचित बदालव करने, सरकारी-निजी सहयोग और इस सेक्टर में कार्यरत कर्मचारियों को तकनीक़ी रूप से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है. लेकिन इतना ही काफ़ी नहीं होगा, समुद्री उद्योग को डिजिटलीकरण की ओर तेज़ी से क़दम बढ़ाने के साथ ही, सामने आने वाले साइबर सुरक्षा से जुड़े ख़तरों से निपटने के लिए मुकम्मल तैयारी करने के बारे में भी गंभीरता से सोचना होगा.


ओउमायमा बोरहिबा पॉलिसी सेंटर फॉर न्यू साउथ में अर्थशास्त्री हैं.

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Oumayma Bourhriba

Oumayma Bourhriba

Oumayma Bourhriba is an Economist at the Policy Center for the New South. ...

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