अफ्रीका के डिजिटल बदलाव का एजेंडा
जैसे-जैसे अफ्रीका अपने एजेंडा 2063 की आकांक्षाओं को हासिल करने के लिए प्रमुख क्षेत्रीय पहल में आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे डिजिटल बदलाव अहम होता जा रहा है. अफ्रीका के लिए डिजिटल बदलाव की रणनीति (DTS) (2020-2030) को अफ्रीकन यूनियन कमीशन (AUC) ने फरवरी 2020 में अपनाया था. DTS का उद्देश्य आर्थिक विकास, ग़रीबी उन्मूलन एवं सामाजिक विकास को तेज़ करने की तरफ़ डिजिटलाइज़ेशन के फ़ायदों को आगे ले जाना और 2030 तक एक ‘संपूर्ण और समावेशी’ डिजिटल समाज के लिए कोशिश करना है. समावेशन DTS का एक प्रमुख मार्गदर्शक सिद्धांत है क्योंकि DTS में स्पष्ट रूप से ये कहा गया है कि इसका मक़सद “हर किसी के लिए, हर जगह किफ़ायती और सर्वव्यापी डिजिटल बदलाव को सुनिश्चित करना है, अवसरों तक समान पहुंच का रास्ता तैयार करना है और किसी के छूटने के जोखिम को कम करना है”. DTS का उद्देश्य डिजिटल विभाजन को कम करना, अफ्रीका की डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ाना और डिजिटल तकनीकों के फ़ायदों का इस्तेमाल करके अफ्रीका का कायापलट करना है. अफ्रीकन यूनियन कमीशन की मौजूदा पहल और प्रमुख परियोजनाओं जैसे कि अफ्रीकन कॉन्टिनेंटल फ्री ट्रेड एरिया (AfCFTA), डिजिटल सिंगल मार्केट (DSM), सिंगल अफ्रीकन एयर ट्रांसपोर्ट मार्केट (SAATM) और पॉलिसी एंड रेगुलेटरी इनिशिएटिव फॉर डिजिटल अफ्रीका (PRIDA) के साथ अफ्रीका के लिए समावेशी डिजिटल बदलाव होना तय है.
DTS का उद्देश्य डिजिटल विभाजन को कम करना, अफ्रीका की डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ाना और डिजिटल तकनीकों के फ़ायदों का इस्तेमाल करके अफ्रीका का कायापलट करना है.
अभी तक अफ्रीका के डिजिटल बदलाव को हासिल करने का दृष्टिकोण लोकतांत्रिक, समावेशी और पारदर्शी नहीं रहा है और इस बात के लिए लगातार अपील की जाती रही है कि अफ्रीका एक ऐसे डिजिटल बदलाव के एजेंडे पर ध्यान दे जिसमें डिजिटल समावेशन को प्राथमिकता दी जाती है. ये वास्तविकता है कि अफ्रीका के डिजिटल बदलाव की रणनीति में अपर्याप्त डिजिटल क्षमता और डिजिटल भागीदारी में असमानता निश्चित रूप से एक चुनौती बनेगी. इसके अलावा अफ्रीका के द्वारा अभी भी अपेक्षित मानक के अनुसार साइबर सुरक्षा को तरजीह देना बाक़ी है. जब साइबर सुरक्षा को आंका जाता है तो अफ्रीका अभी भी कमज़ोर बना हुआ है; उदाहरण के लिए, अफ्रीका के कई देश साइबर सुरक्षा की संपूर्णता के स्तर को लेकर अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) के वैश्विक साइबर सुरक्षा इंडेक्स के मूल्यांकन में कमज़ोर बने हुए हैं. अफ्रीका में साइबर सुरक्षा के तौर-तरीक़ों और दृष्टिकोण के असर को लेकर अनिश्चितता इस क्षेत्र में प्रभावशाली ढंग से समावेशी डिजिटल बदलाव को हासिल करने की क्षमता को सीमित करती है.
साइबर सुरक्षा को समावेशी डिजिटल बदलाव से जोड़ना
समावेशी डिजिटल बदलाव हासिल करने के लिए साइबर सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है. चूंकि अलग-अलग देश डिजिटल बदलाव पर लगातार ध्यान दे रहे हैं, ऐसे में सुरक्षित और समावेशी डिजिटल बदलाव सुनिश्चित करने में साइबर सुरक्षा की अहमियत पर ज़ोर देना जारी है. डिजिटल बदलाव अफ्रीका के लिए बहुत ज़्यादा सामाजिक-आर्थिक फ़ायदे लेकर आएगा लेकिन ये बदलाव उचित साइबर शासन व्यवस्था और असरदार साइबर सुरक्षा नीतियों के बिना हासिल नहीं किया जा सकता है. अफ्रीका की डिजिटल बदलाव रणनीति[1] में अफ्रीका के लिए साइबर सुरक्षा पर ध्यान देने के महत्व के बारे में बताया गया है. इसमें साइबर ख़तरे की पहचान करने एवं उसे कम करने के लिए क्षमता के निर्माण की आवश्यकता के बारे में भी बताया गया है लेकिन अफ्रीका के डिजिटल बदलाव के एजेंडे में साइबर सुरक्षा को अभी भी मुख्यधारा में नहीं रखा गया है. साइबर सुरक्षा को अफ्रीका की डिजिटल बदलाव रणनीति के बुनियादी खंभे के तौर पर नहीं रखा गया है बल्कि इसका ज़िक्र एक अतिरिक्त मुद्दे के तौर पर किया गया है. भले ही साइबर सुरक्षा को अफ्रीकन यूनियन एजेंडा 2063 में प्रमुख परियोजना के तौर पर अपनाया गया है लेकिन जब निष्पक्षता से साइबर सुरक्षा के परिदृश्य का आकलन किया जाता है तो समावेशी डिजिटल बदलाव के लिए तैयारी अस्पष्ट दिखती है. डिजिटल बदलाव की रणनीति में 2020 तक साइबर सुरक्षा और व्यक्तिगत डाटा सुरक्षा पर अफ्रीकी संघ के 2014 के समझौते (मलाबो कन्वेंशन) को लागू करने की महत्वाकांक्षा दिखाई गई है और अफ्रीकी संघ के सभी सदस्य देशों ने इस समझौते के अनुकूल माहौल बनाते हुए साइबर सुरक्षा को लेकर क़ानून को अपनाया है. लेकिन अफ्रीका इस लक्ष्य को अभी तक हासिल नहीं कर सका है जबकि डिजिटल रणनीति में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है कि “सहयोगपूर्ण ICT नियामक उपाय और औज़ार डिजिटल बदलाव से आने वाले अवसरों का ज़्यादा-से-ज़्यादा लाभ उठाने में नियामकों एवं नीति निर्माताओं के लिए नये मोर्चे हैं”.
साइबर सुरक्षा को अफ्रीका की डिजिटल बदलाव रणनीति के बुनियादी खंभे के तौर पर नहीं रखा गया है बल्कि इसका ज़िक्र एक अतिरिक्त मुद्दे के तौर पर किया गया है.
साइबर सुरक्षा की ओर अफ्रीका का दृष्टिकोण
साइबर सुरक्षा को डिजिटल बदलाव के समानांतर होना ज़रूरी है और नीतियों को बनाने एवं साइबर सुरक्षा के परिणामों को सुनिश्चित करने में क्षेत्रीय संगठनों को जो भूमिका निश्चित तौर पर निभानी चाहिए उस पर ज़्यादा ज़ोर नहीं डाला जा सकता है. अफ्रीकन यूनियन कमीशन (AUC) ने 2014 में मलाबो कन्वेंशन को अपनाने के बाद इस क्षेत्र में साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देने पर ध्यान देना शुरू किया. तब से AUC ने साइबर सुरक्षा की संस्कृति को बढ़ावा देने और अपने सदस्य देशों में साइबर सुरक्षा की क्षमताओं को मज़बूत करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय साझेदारों के साथ सहयोग शुरू किया है. ‘अफ्रीका में इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा’ को लेकर दिशा-निर्देश को AUC ने इंटरनेट सोसायटी के समर्थन से 2017 में विकसित किया और 2018 में अफ्रीकन यूनियन की कार्यकारी परिषद ने इंटरनेट शासन व्यवस्था एवं अफ्रीका की डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास पर अफ्रीकन यूनियन के घोषणापत्र को मंज़ूरी दी. AUC ने अफ्रीकन यूनियन के एजेंडा 2063 में भी साइबर सुरक्षा को प्रमुख परियोजना के रूप में अपनाया है.
इन कोशिशों के बाद भी इस क्षेत्र में साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं मिल पा रही है. ये चिंता की बात है कि अफ्रीका महादेश अपने साइबर सुरक्षा के एजेंडे में पीछे दिखता है. हिस्सेदारों के बीच साइबर सुरक्षा की समस्या का समाधान करने में अफ्रीका के दृष्टिकोण को लेकर स्पष्टता की कमी है. अफ्रीका में साइबर सुरक्षा को लेकर सवालों का जवाब सुरक्षा के परंपरागत विचारों से बढ़कर नहीं हो पाया है. इस तरह सिविल सोसायटी जैसे समूहों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. ये बात इस तथ्य के बावजूद है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव के डिजिटल सहयोग के दिशा-निर्देश में प्रस्तुत प्रमुख कार्य क्षेत्रों में डिजिटल माहौल में समावेशन, विश्वास और सुरक्षा को बढ़ावा देना शामिल है. साइबर सुरक्षा के लिए लोक केंद्रित दृष्टिकोण और मानवाधिकार के लिए सम्मान की आवश्यकता है. अफ्रीका के मामले में ऐसा नहीं हुआ है और शायद ये यहां पर डिजिटल बदलाव को अभी तक साइबर सुरक्षा के नज़रिये से नहीं समझे जाने का एक कारण है.
ये चिंता की बात है कि अफ्रीका महादेश अपने साइबर सुरक्षा के एजेंडे में पीछे दिखता है. हिस्सेदारों के बीच साइबर सुरक्षा की समस्या का समाधान करने में अफ्रीका के दृष्टिकोण को लेकर स्पष्टता की कमी है. अफ्रीका में साइबर सुरक्षा को लेकर सवालों का जवाब सुरक्षा के परंपरागत विचारों से बढ़कर नहीं हो पाया है. इस तरह सिविल सोसायटी जैसे समूहों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है.
अफ्रीका में डिजिटल बंटवारा अभी भी एक चुनौती है और साइबर सुरक्षा को प्रभावशाली ढंग से सुनिश्चित करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, संसाधनों और कौशल की कमी अक्सर उचित मानक के अनुसार साइबर सुरक्षा हासिल करने की राह में आड़े आती है. अफ्रीका के कई देशों ने अभी भी ऐसी समावेशी राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति नहीं अपनाई है जो सही साइबर सुरक्षा मानकों को पूरा कर सके. ऐसे में अफ्रीका के कई देशों की सरकारों के सामने एक बड़ी चुनौती है नीतिगत सामंजस्य की कमी. मलाबो कन्वेंशन के तहत अफ्रीका में साइबर सुरक्षा के लिए एक विश्वसनीय रूप-रेखा स्थापित करने और अफ्रीकन यूनियन के सदस्य देशों के लिए एक संगठित नियामक ढांचे के माध्यम से साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता को स्वीकार करने को बढ़ावा देने की बात की गई है. लेकिन दुर्भाग्यवश ये कन्वेंशन 2014 से अभी तक अमल में नहीं आया है क्योंकि इसके लिए 15 देशों के समर्थन की आवश्यकता है जबकि 13 देशों ने ही इसका समर्थन किया है. हालांकि अफ्रीकन यूनियन साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ समूह (AUCSEG), जिसका उद्देश्य AUC और उसके सदस्य देशों को साइबर सुरक्षा से जुड़ी नीतियों और रणनीतियों के बारे में मार्ग-दर्शन और सिफ़ारिशें मुहैया कराना है, ने मलाबो कन्वेंशन को ज़्यादा समर्थन देने का अभियान जारी रखा है. उसने इस क्षेत्र में नीतिगत सामंजस्य और साइबर सुरक्षा एवं समावेशी डिजिटल शासन व्यवस्था को प्राथमिकता देने को भी बढ़ावा दिया है.
अफ्रीका में सुरक्षित, लचीला और समावेशी डिजिटल बदलाव हासिल करना
समावेशी डिजिटल बदलाव के लिए साइबर सुरक्षा ज़रूरी है. ओपन-एंडेड वर्किंग ग्रुप (OEWG) और संयुक्त राष्ट्र के सरकारी विशेषज्ञों के समूह (GGE) ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि कैसे साइबर स्पेस में सुरक्षा, भरोसा और स्थायित्व को विकसित करना साइबर स्पेस में समावेशी भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए बहुमूल्य है. अगर अफ्रीका साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता दिए बगैर डिजिटल बदलाव की कोशिश करता है तो ये डिजिटल बदलाव काल्पनिक साबित होगा. ये सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि डिजिटल बदलाव का एजेंडा महादेश के स्तर पर साइबर सुरक्षा पर ज़ोर दे. डिजिटल बदलाव के एजेंडे के साथ व्यापक और कार्यकुशल क्षेत्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति को विकसित करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. मार्च 2022 में अफ्रीकी साइबर सुरक्षा शिखर सम्मेलन टोगो के लोम में आयोजित हुआ. सम्मेलन के दौरान इस क्षेत्र में साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देने के लिए प्रभावशाली और कार्यकुशल उपायों पर बातचीत हुई. साइबर सुरक्षा और साइबर अपराध के ख़िलाफ़ लड़ाई पर लोम घोषणापत्र 2022, जिसमें साइबर सुरक्षा की एक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए एक रूप-रेखा स्थापित करने की प्रतिबद्धता जताई गई, में शिखर सम्मेलन के हिस्से के रूप में अफ्रीका के अलग-अलग देशों की सरकारों के प्रमुखों और प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए.
अफ्रीका को सिर्फ़ क़ानून पर ध्यान देने के बदले डिजिटल क्षमता भी बढ़ानी चाहिए. उदाहरण के लिए, मलाबो कन्वेंशन और उसकी मंज़ूरी के विषय को लेकर काफ़ी ज़्यादा बातचीत हुई है लेकिन इसके अमल में आने के बाद लागू करने की योजना को लेकर बहुत कम बात हुई है. साइबर सुरक्षा को लेकर अलग-अलग परिपक्वता के स्तर, स्थानीय संदर्भों और राजनीतिक वास्तविकताओं पर विचार करते हुए अफ्रीका की परिस्थितियों की वजह से साइबर सुरक्षा को लेकर तकनीकी, क़ानूनी और राजनीतिक दृष्टिकोण भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. अफ्रीका के देशों के लिए ये महत्वपूर्ण है कि वो साइबर सुरक्षा की एक संस्कृति को विकसित करें. इसका तात्पर्य होगा साइबर सुरक्षा से जुड़ी नीतियों एवं रणनीतियों के साथ-साथ पारदर्शी साइबर सुरक्षा संस्थानों, जो लोगों को शामिल कर इन नीतियों एवं रणनीतियों को लागू करेंगे, के निर्माण के लिए एक लोक केंद्रित दृष्टिकोण पर ध्यान देना. मॉरिशस और घाना जैसे अफ्रीकी देशों, जो कि दूसरे देशों के मुक़ाबले अपवाद हैं, ने समावेशी डिजिटल बदलाव को हासिल करने के लिए, विशेष रूप से लोगों को जोड़कर साइबर सुरक्षा पहल और गतिविधियों के ज़रिए, साइबर सुरक्षा संस्थानों के महत्व का एक उदाहरण पेश किया है. तकनीकी क्षमता के निर्माण के लिए संसाधनों के आवंटन के बाद लोगों के लिए शिक्षा, जागरुकता और साइबर सुरक्षा कौशल विकास के ज़रिए साइबर सुरक्षा क्षमता के निर्माण पर भी पर्याप्त संसाधन का आवंटन होना चाहिए. ये लोक केंद्रित डिजिटल बदलाव की तरफ़ झुकाव को प्रस्तुत करेगा. साइबर सुरक्षा के मामले में अफ्रीका के अलग-अलग देशों के लिए अलग-अलग कारणों का योगदान होता है. इसलिए अफ्रीका में क्षमता का निर्माण रणनीतिक होना चाहिए और अफ्रीका की शर्तों पर समझा जाना चाहिए. AUC को अलग-अलग हिस्सेदारों की साइबर ज़रूरतों के मूल्यांकन का काम लगातार शुरू करना चाहिए.
मॉरिशस और घाना जैसे अफ्रीकी देशों, जो कि दूसरे देशों के मुक़ाबले अपवाद हैं, ने समावेशी डिजिटल बदलाव को हासिल करने के लिए, विशेष रूप से लोगों को जोड़कर साइबर सुरक्षा पहल और गतिविधियों के ज़रिए, साइबर सुरक्षा संस्थानों के महत्व का एक उदाहरण पेश किया है.
अफ्रीका में डिजिटल बदलाव की व्याख्या सामान्य रूप से व्यापार और आर्थिक प्रगति के रूप में की गई है. ये कोई अचरज की बात नहीं है. AUC ने डिजिटल बदलाव की रणनीति को AUDA-NEPAD, संयुक्त राष्ट्र के अफ्रीका के लिए आर्थिक आयोग, अफ्रीकी क्षेत्रीय आर्थिक समुदाय, विश्व बैंक और अफ्रीकी विकास बैंक जैसे संगठनों के साथ मिलकर विकसित किया है. डिजिटल बदलाव व्यापार और वित्तीय समृद्धि से बढ़कर होता है. ये साफ़ है कि डिजिटल बदलाव को हासिल करने में साइबर सुरक्षा की भूमिका को समझने के लिए अभी भी जागरुकता की आवश्यकता है. इसलिए डिजिटल बदलाव के एजेंडे को समझने, उसमें भागीदारी और उसको लागू करने के लिए साइबर सुरक्षा की क्षमता की ज़रूरत है. साथ ही, साइबर सुरक्षा को अफ्रीका में डिजिटल बदलाव को हासिल करने के भीतर देखने पर भी परंपरागत सुरक्षा केंद्रित समझ, जो कि प्रचलित दृष्टिकोण लगता है, के बदले बहुभागीदार और लोक केंद्रित दृष्टिकोण से साइबर सुरक्षा से जुड़े मुद्दों का समाधान करने में जागरुकता की तब भी ज़रूरत है. ये महत्वपूर्ण है कि मलाबो कन्वेंशन के अनुच्छेद 26 के तहत बहुभागीदार साझेदारी का फ़ायदा उठाया जाए. अफ्रीका के संदर्भ में ये अहम है क्योंकि सिविल सोसायटी संगठनों ने दिखाया है कि लोक केंद्रित दृष्टिकोण के उद्देश्य से नीतियों की वक़ालत करने के लिए वो किस तरह विशिष्ट स्थिति में हैं. अफ्रीका में साइबर सुरक्षा की नीतियों और रणनीतियों के विस्तार में सिविल सोसायटी को शामिल करने से लोक केंद्रित दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलेगा और इससे एक समावेशी डिजिटल बदलाव के एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.
चूंकि अफ्रीका डिजिटल बदलाव का अनुसरण कर रहा है तो AUC को हर हाल में संवाद जारी रखना चाहिए ताकि अफ्रीका में साइबर सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए अवसरों और चुनौतियों पर विचार किया जा सके. साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देना एक सहयोगपूर्ण कोशिश होनी चाहिए. डिजिटल बदलाव को हासिल करने के लिए मुक्त, सामंजस्यपूर्ण और दीर्घकालीन प्रयासों की आवश्यकता है. इसके साथ-साथ व्यापक सहयोग भी चाहिए ताकि साइबर सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए डिजिटल बदलाव से मिलने वाले अवसरों का ज़्यादा-से-ज़्यादा फ़ायदा उठाया जा सके. इस तरह का समावेशी दृष्टिकोण अफ्रीका के डिजिटल बदलाव की आकांक्षाओं को हासिल करने के लिए आवश्यक है.
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