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भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को लेकर अक्सर ये सवाल पूछा जाता है कि आखिर भारत 'स्पेस प्रोग्राम' क्यों चलाता है? क्या इसका मक़सद सिर्फ अपने बुद्धिजीवियों की वैज्ञानिक जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए है? क्या इसका लक्ष्य देश के कारोबारियों को अप्रत्याशित आर्थिक लाभ (विंडफॉल गेन) दिलाना है. अगर अंतरिक्ष कार्यक्रम के उद्देश्य सिर्फ इतने ही हैं तो भारतीय अंतरिक्ष आयोग का मौजूदा संगठनात्मक ढांचा बिल्कुल सही है. इसमें किसी तरह के बदलाव की ज़रूरत नहीं है. आपको बता दें कि स्पेस कमीशन अंतरिक्ष से जुड़े मामलों पर फैसला लेने वाला सर्वोच्च संगठन है. लेकिन अगर आप दो और सामान्य सवाल पूछें कि भारत की अंतरिक्ष संपत्तियों की रक्षा कौन करता है? ऑर्बिटल और आउटर स्पेस में भारत के संप्रभु क्षेत्र में पैदा हो सकने वाले संभावित रणनीतिक और सामरिक ख़तरों से कौन बचाता है तो फिर ये कहा जा सकता है कि भारत के अंतरिक्ष आयोग की संरचना में बदलाव की ज़रूरत है.
ये बात सही है कि डिफेंस स्पेस एजेंसी अभी अपनी शुरूआती चरण में है लेकिन क्या इसका ये मतलब निकाला जाए कि अंतरिक्ष आयोग में इसकी कोई जगह नहीं बनती?
इंटिग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (आईडीएस) के तहत 2019 में भारत ने डिफेंस स्पेस एजेंसी (डीएसए) की स्थापना की. इसके अलावा दो अन्य एजेंसियों, आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल ऑपरेशन डिवीज़न और डिफेंस साइबर एजेंसी का भी गठन किया गया. हालांकि ये बात सही है कि डिफेंस स्पेस एजेंसी अभी अपनी शुरूआती चरण में है लेकिन क्या इसका ये मतलब निकाला जाए कि अंतरिक्ष आयोग में इसकी कोई जगह नहीं बनती? इस सवाल पर अब देश के सुरक्षा विचारक और योजना बनाने वाले भी विचार करने लगे हैं. ये वो लोग हैं, जिन्हें भारत की व्यापक सुरक्षा ज़रूरतों की निगरानी का काम सौंपा गया है. उनका मानना है कि रक्षा मंत्रालय और अंतरिक्ष आयोग के बीच जो गैप है, वो ख़तरनाक है. इसलिए उसे तेज़ी से भरा जाना चाहिए.
अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार की दरकार
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार के काम बहुत दिनों से लंबित थे. 2020 में भारत सरकार ने कुछ साहसिक कदम उठाते हुए इस क्षेत्र में सुधार के लिए ज़रूरी फैसले लिए. इन सुधारों के तहत अंतरिक्ष आयोग ने अपने सदस्यों का विस्तार किया. इस संगठन में कुछ नए प्रतिनिधि जोड़े गए. इंडियन स्पेस प्रमोशन और ऑथोराइजेशन सेंटर (IN-SPACe), विदेश सचिव, डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (DPIIT) के सचिव, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) की स्थायी समिति के चेयरमैन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को इसमें निमंत्रित किया गया. अपने गठन के बाद से, अंतरिक्ष आयोग का चरित्र नागरिक यानी सिविलियन रहा है. इसके ज़्यादातर सदस्य सिविलियन बैकग्राउंड जैसे कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से रहे हैं. 2020 में अंतरिक्ष आयोग में सुधार और नए सदस्यों को लाने के बाद भी स्पेस कमीशन में अब भी सिविलियंस का प्रभुत्व है, क्योंकि इसके अध्यक्ष अंतरिक्ष विभाग के सचिव और इसरो के चेयरमैन भी हैं. इससे भी ज़्यादा चिंता की बात ये है कि इसरो 'स्पेस डिफेंस' के उपायों को क्रियान्वित करने की स्थिति में नहीं है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि ऐसी गतिविधियां सैन्यीकरण के दायरे में आ सकती हैं. इसरो या अंतरिक्ष आयोग नहीं चाहते है कि उन्हें ऐसे संस्थानों के तौर पर भी पहचाना जाए, जिसकी एक विशेषता सैन्यीकरण भी है. डीएसए संरचनात्मक रूप से अंतरिक्ष विभाग का हिस्सा नहीं है, जैसा कि समझा जाता है. फिर भी यह समझना मुश्किल है कि इसे अंतरिक्ष आयोग का हिस्सा बनाने की कोशिशें क्यों नहीं हो रही हैं. अंतरिक्ष आयोग में आईडीएस या डीएसए से प्रतिनिधित्व की स्पष्ट अनुपस्थिति यह सवाल उठाती है कि क्या आयोग डिजाइन द्वारा एक नागरिक-आर्थिक निकाय है.
डिफेंस स्पेस एजेंसी अंतरिक्ष विभाग का हिस्सा नहीं है. ऐसा क्यों है? ये बात समझी जा सकती है, लेकिन फिर भी ये समझना मुश्किल है कि इसे अंतरिक्ष आयोग का हिस्सा बनाने की कोशिशें क्यों नहीं हो रही हैं. इंटिग्रेटेड डिफेंस स्टाफ या डिफेंस स्पेस एजेंसी को अंतरिक्ष आयोग में बाहर रखने से ये सवाल खड़ा होता है कि क्या स्पेस कमीशन सिर्फ नागरिक-आर्थिक ईकाई है? क्या रक्षा से इसका कोई लेना-देना नहीं है? अगर ऐसा ही है कि तो हमें ये मान लेना चाहिए कि भारत में ऐसा कोई पावरफुल कमीशन नहीं है, जहां कई विभागों के सचिव, शिक्षाविद और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एक साथ बैठ सकें. डीएसए और आईडीएस को 'स्पेस डिफेंस' के लिए ज़रूरी संपत्तियों के निर्माण में मदद कर सकें. उन्हें गाइडेंस दे सकें.
भारत में ऐसा कोई पावरफुल कमीशन नहीं है, जहां कई विभागों के सचिव, शिक्षाविद और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एक साथ बैठ सकें. डीएसए और आईडीएस को 'स्पेस डिफेंस' के लिए ज़रूरी संपत्तियों के निर्माण में मदद कर सकें. उन्हें गाइडेंस दे सकें.
अगर मौजूदा 'सिविलियन' स्पेस कमीशन में डीएसए या आईडीएस के लिए कोई जगह नहीं है, तो फिर एक अलग रक्षा 'अंतरिक्ष आयोग' बनाया जाना चाहिए. अगर दो 'अंतरिक्ष आयोग' बनाने व्यावहारिक नहीं हैं, तो फिर हर हाल में स्पेस कमीशन में सुधार किया जाना चाहिए. सिविलियन और कमर्शियल सेक्टर के अलावा मिलिट्री फील्ड से जुड़े लोगों को भी बराबर का प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए. अगर इस तरह का सुधार किया जाता है तो सबसे पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ को इसका सदस्य बनाया जाना चाहिए. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ही डीएसए के ज़रिए अपने रणनीतिक सुझाव दे सकते हैं. इसके बाद इंडियन स्पेस कमांड और इंडियन स्पेस फोर्स को अंतरिक्ष आयोग में लाया जाना चाहिए. अब सवाल ये है कि स्पेस कमीशन में डिफेंस मिनिस्ट्री से जुड़े लोगों को लाने का मुद्दा अभी क्यों उठा? इसके तीन कारण हैं.
यह मुद्दा क्यों उठा?
पहली वजह, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने अक्टूबर 2024 में अंतरिक्ष-आधारित निगरानी परियोजना के तीसरे चरण को मंजूरी दी. इस प्रोजेक्ट के पहले फेज़ में चार और दूसरे फेज़ में छह 'जासूसी' उपग्रहों के सेट की लॉन्चिंग शामिल थी. तीसरे फेज़ में 52 'स्पाई सेटेलाइट' लॉन्च किए जाने हैं. इन सभी का प्रबंधन राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनएससीएस) के माध्यम से आईडीएस (डीएसए पढ़ें) द्वारा किया जाता है. ये एक तथ्य है कि आम तौर पर सिविलियन स्पेस एजेंसी कभी भी ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करने वाले उपग्रहों का निर्माण नहीं करतीं. हाल ही में, रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO) ने 'प्रोजेक्ट कौटिल्य' के तहत इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस सेटेलाइट का निर्माण किया गया था. 52 उपग्रहों के भी घरेलू कमर्शियल स्पेस मार्केट में आने की संभावना है.
दूसरी वजह, भारत की जो भी रक्षा संपत्तियां हैं, रक्षा मंत्रालय तेज़ी से उनका लीडिंग इंड-यूजर (अंतिम उपयोगकर्ता), कस्टमर और ऑपरेटर बनकर उभर रहा है. डिफेंस मिनिस्ट्री एक इकोसिस्टम विकसित कर रहा है. स्पेस सेक्टर में काम करने वाले कमर्शियल संस्थान और राष्ट्रीय स्तर की अग्रणी रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैब को इससे जोड़ा जा रहा है. इस इकोसिस्टम को विकसित करने के लिए जो इसरो के नागरिक दायरे से अलग एक और बुनियादी ढांचे की ज़रूरत महसूस की जा रही है. पिछले कुछ साल में रक्षा मंत्रालय ने डिफेंस एक्सीलेंस में इनोवेशन की स्कीम के तहत कई स्पेस कंपनियों को फाइनेंस किया है. डिफेंस मिनिस्ट्री की इस योजना को IDEX स्कीम के रूप में जाना जाता है. 2022 में शुरू किए गए इस 'मिशन डेफस्पेस चैलेंज' में कई कंपनियां जुड़ी हैं. लेकिन अभी ये सिर्फ शुरुआत है. कुछ महीनों या साल के बाद भारत की कमर्शियल स्पेस इंटरप्राइजेज को डीएसए और सशस्त्र बलों से बड़े कारोबारी ऑर्डर मिलने शुरू हो जाएंगे.
तीसरी वजह, नागरिक और सैन्य अंतरिक्ष क्षेत्र एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी नहीं बल्कि पूरक हैं. इसका सबसे सटीक उदाहरण तब दिखेगा, जब अगले कुछ साल में भारत अपने अंतरिक्ष अभियान में मनुष्यों को भेजेगा. भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन में भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना की सक्रिय भूमिका है. गगनयान मिशन के तहत जिन चार अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भेजने के लिए चुना गया है, वो सभी इंडियन एयरफोर्स के सैनिक हैं. ये संबंध और मज़बूत होंगे क्योंकि गगनयान के साथ-साथ भविष्य में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का काम भी ठोस आकार लेने लगेगा.
ये बात याद रखनी चाहिए कि स्पेस टेक्नोलॉजी हमेशा दोहरे इस्तेमाल (नागरिक और सैन्य उपयोग) वाली होती है. इसीलिए अंतरिक्ष तकनीकी के विकास पर निगरानी रखने वाले, इसकी तैनाती और व्यावसायिक पक्ष की देखरेख करने वाले कमीशन में रक्षा मामलों से जुड़े लोगों को रखना चाहिए. डिफेंस सेक्टर स्पेस टेक्नोलॉजी का एक बड़ा इंड यूजर है. जब अंतरिक्ष आयोग की स्थापना की गई थी, तब से लेकर हालात काफ़ी बदल चुके हैं. तब इसरो और सरकार का अंतरिक्ष विभाग ही स्पेस टेकनोलॉजी के सारे प्रोजेक्ट्स की प्लानिंग और संचालन करते थे. लेकिन अब इसमें उसका एकाधिकार नहीं रहा. डिफेंस सेक्टर भी एक मुख्य खिलाड़ी बनकर उभरा है. ऐसे में अंतरिक्ष आयोग में 'रक्षा' क्षेत्र का प्रतिनिधित्व बहुत ज़रूरी और समय की मांग है.
चैतन्य गिरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रैटेजी और टेक्नोलॉजी में फेलो हैं.
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