Originally Published द डिप्लोमैट Published on Apr 20, 2023 Commentaries 0 Hours ago

इस नीति में शामिल अन्य बातों के अलावा स्पेस सेक्टर अर्थात अंतरिक्ष क्षेत्र में अब निजी क्षेत्र को भी सक्रिय रूप से शामिल होने का अवसर प्रदान करने की व्यवस्था की गई है.

हम भारत की नई अंतरिक्ष नीति के बारे में क्या जानते हैं?

केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति ने छह अप्रैल को, भारत की स्पेस पॉलिसी अर्थात अंतरिक्ष नीति को मंजूरी दे दी. द इंडियन स्पेस पॉलिसी, 2023 अर्थात भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023, शीर्षक के साथ जारी इस नीति में इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन अर्थात भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (‌NSIL) और द इंडियन नेशनल स्पेन प्रोमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर अर्थात भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) के साथ-साथ भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भूमिका और ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट किया गया है. सरकार ने अभी तक इस नीति की टेक्स्ट अर्थात लिखित नीति जारी नहीं की है, लेकिन विज्ञान और प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह की मीडिया के साथ की गई बातचीत और विभिन्न मीडिया रिपोर्टों से नीति में किए गए प्रावधानों का विवरण सामने आया है. 

भारत की नई अंतरिक्ष नीति में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को ओपन अर्थात खुला कर दिया गया है. इसमें निजी क्षेत्र को इंडियन स्पेस प्रोग्राम अर्थात भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में विकास करने और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाने का मौका देने की बात की गई है.

भारत की नई अंतरिक्ष नीति में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को ओपन अर्थात खुला कर दिया गया है. इसमें निजी क्षेत्र को इंडियन स्पेस प्रोग्राम अर्थात भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में विकास करने और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाने का मौका देने की बात की गई है. भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में निजी क्षेत्र की बढ़ी हुई भूमिका के कारण अब ISRO को उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास, अंतरिक्ष अन्वेषण और ऐसे अन्य गैर-वाणिज्यिक मिशन जैसे पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने का पर्याप्त मौका मिलेगा.

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में विभिन्न संस्थागत व्यवस्थाओं की भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों की स्पष्ट रूपरेखा को नई नीति के प्रमुख पहलुओं में से एक कहा जा सकता है. निजी क्षेत्र ISRO, ‌NSIL, IN-SPACe की भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों की स्पष्ट रूपरेखा तय करने की मांग लंबे समय से करता आ रहा है. इस नीति में इस बात का उल्लेख होने की वज़ह से निजी क्षेत्र को वह स्पष्टता उपलब्ध करवा दी गई है.

नई अंतरिक्ष नीति

केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने मीडिया को बताया था कि नई अंतरिक्ष नीति ‘‘कॉम्पोनन्ट्स अर्थात स्थापित घटकों (हाल के दिनों में) की भूमिका को लेकर स्पष्टता प्रदान करेगी.’’ उन्होंने कहा कि नई नीति के माध्यम से रॉकेट, उपग्रहों और लॉन्च व्हिकल्स अर्थात वाहनों के निर्माण के साथ-साथ डेटा संग्रह और उद्योग सहित एंड-टू-एंड अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित की गई है.

नई नीति की वज़ह से शिक्षा और अनुसंधान समुदाय के साथ-साथ स्टार्टअप और उद्योग सहित गैर-सरकारी संस्थाओं की अधिक भागीदारी के सहयोग से ISRO के समग्र मिशन्स में इज़ाफ़ा होने की उम्मीद की जा रही है. मंत्री के अनुसार, अंतरिक्ष क्षेत्र के भीतर रणनीतिक गतिविधियों को अंतरिक्ष विभाग के भीतर स्थापित एक संस्थागत संस्था NSIL द्वारा नियंत्रित किया जाएगा. यह संस्था इन गतिविधियों को लेकर ‘‘डिमांड ड्रिवन मोड अर्थात मांग-संचालित मोड" में फ़ैसले लेगी. इसके साथ ही IN-SPACe जैसी हालिया संस्थागत ढांचा अर्थात व्यवस्था सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों के बीच समन्वय में महत्वपूर्ण साबित होगा.

निजी क्षेत्र और ISRO के बीच हाल में हुए सफ़ल सहयोग से ISRO के अध्यक्ष डॉ. एस. सोमनाथ अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को लेकर काफ़ी उत्साहित दिखाई दे रहे है. मीडिया से बात करते हुए, सोमनाथ ने कहा कि भारत की नई अंतरिक्ष नीति में अंतरिक्ष कार्यक्रम में निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों की भागीदारी को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है. ISRO अध्यक्ष ने कहा कि नई नीति में ऐसी व्यवस्था की रूपरेखा तय कर उसका ढांचा तैयार किया गया है, जिसमें एक छोटे अथवा नाममात्र शुल्क के बदले में निजी क्षेत्र को ISRO की सुविधाओं का उपयोग करने का मौका दिया जाएगा. अंतरिक्ष क्षेत्र में नए बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निजी क्षेत्र को अवसर प्रदान करने को लेकर नीति में व्यवस्था की गई है.

SRO अध्यक्ष ने कहा कि नई नीति में ऐसी व्यवस्था की रूपरेखा तय कर उसका ढांचा तैयार किया गया है, जिसमें एक छोटे अथवा नाममात्र शुल्क के बदले में निजी क्षेत्र को ISRO की सुविधाओं का उपयोग करने का मौका दिया जाएगा.

सोमनाथ ने मीडिया को बताया कि नीति में एक और बात की व्यवस्था है, जिसे अहम कहा जा सकता है. सोमनाथ ने कहा कि, ‘‘अब ISRO अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए कोई ऑपरेशनल अर्थात परिचालन और प्रोडक्शन अर्थात उत्पादन से जुड़ा काम नहीं करेगा, बल्कि अब ISRO अपना पूरा ध्यान और ऊर्जा नई तकनीकों, नई प्रणालियों और अनुसंधान और विकास पर केंद्रित करेगा.’’ इसका मतलब साफ़ है कि ISRO अब तक जिस प्रोडक्शन अर्थात उत्पादन और लॉन्च अर्थात प्रेक्षेपन की जिन गतिविधियों में उलझा हुआ था, उसे अब पूरी तरह से निजी क्षेत्र के नियंत्रण में सौंप दिया जाएगा. भारतीय अंतरिक्ष नीति के विश्लेषक इस तरह के बदलाव की लंबे समय से पैरवी करते आ रहे थे. दरअसल, भारतीय अंतरिक्ष संघ के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल एके भट्ट (सेवानिवृत्त) ने कहा था कि ‘‘हम काफ़ी समय से इन बदलावों की प्रतीक्षा कर रहे थे. इसकी घोषणा एक सुखद आश्चर्य है. अब हम उत्सुकता से नीति संबंधी विवरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं, ताकि इसे बेहतर तरीके से समझ सकें.’’ उन्होंने इसके साथ ही यह भी जोड़ा था कि यह ‘‘भारत में अंतरिक्ष से जुड़े निजी क्षेत्र के लिए यह एक अहम क्षण है,’’ जो भारतीय अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र की बेड़ियों को खोलने वाला साबित होगा.

लगभग एक दशक पहले, मैंने (यहां और यहां) तर्क दिया था कि भारत को एक ऐसी खुली अंतरिक्ष नीति की आवश्यकता है, जो वाणिज्यिक और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों आवश्यकताओं को एक संतुलित तरीके से एकीकृत करने में सक्षम साबित हो सके. इसी प्रकार यह नीति भारत के लिए एक सैन्य अंतरिक्ष नीति की आवश्यकता को भी पूरा करने वाली रहें. 1998 में परमाणु परीक्षण करने के बावजूद भारत परमाणु निरस्त्रीकरण के मुद्दों को लेकर प्रतिबद्ध है. इसी तर्ज़ पर भारत बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने वाले अपने एजेंडे से जुड़ा रह सकता है. लेकिन उसे नई वास्तविकताओं का संज्ञान लेकर सेना के लिए अपनी अंतरिक्ष संपत्ति के दम पर अंतरिक्ष का उपयोग करने की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिए. यह अंतरिक्ष क्षेत्र में क्षेत्र के भीतर और बाहर हो रहे बदलाव और तेजी से विकसित होने वाली भू-राजनीति का परिणाम कहा जा सकता है. 

निष्कर्ष

लगभग एक दशक पहले भी एक अन्य लेख में मैंने मित्रों और संभावित दुश्मनों दोनों के लिए एक संदेश उपकरण के रूप में एक ओपन स्पेस पालिसी की मौजूदगी से जुड़े लाभों की ओर ध्यान आकर्षित किया था. इसके अलावा, एक ओपन स्पेस पालिसी का उपयोग भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र से जुड़े भय और चिंताओं को दूर करने, आत्मविश्वास का पुनर्निर्माण करने और भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में आवश्यक और अधिक स्पष्टता लाने के लिए किया जा सकता है. यह विशेष रूप से संस्थागत भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ बेहतर संसाधन आवंटन के संदर्भ में है.

अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत के उद्देश्यों को रेखांकित करने के लिए खुले में नीति की रूपरेखा भी महत्वपूर्ण है; इस संबंध में लघु और दीर्घकालिक दोनों लक्ष्य अहम हैं. आदर्श रूप से राजनीतिक नेतृत्व की ओर से ही इन लक्ष्यों को लेकर स्पष्टता आनी चाहिए. इसका कारण यह है कि राजनीतिक नेतृत्व ही इस बारे में अधिक व्यापक दृष्टिकोण दे सकता है कि वह भारत को अगले 25 वर्षों में कहां पहुंचते हुए देखना चाहता है. इसके अनुसार ही राजनीतिक नेतृत्व अंतरिक्ष संबंधी प्राथमिकताओं को निर्धारित कर सकता है. आज के राजनीतिक नेतृत्व ने एक दशक पहले की तुलना में अंतरिक्ष क्षेत्र का बेहतर स्वामित्व स्वीकार किया है. यह बात इस क्षेत्र के भविष्य की राह के लिए एक सकारात्मक कदम मानी जा सकती है.


यह टिप्पणी मूलत: द डिप्लोमैट में प्रकाशित हुई थी.

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