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अपने तीसरे कार्यकाल में भी मोदी सरकार एक मज़बूत घरेलू रक्षा उद्योग विकसित करने की प्रतिबद्धता के प्रति वफ़ादार बनी हुई है.
2024 के आम चुनाव के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना पहला पूर्ण बजट पेश कर दिया है. बजट से पहले मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में ये अपेक्षा थी कि रक्षा के लिए अधिक बजट आवंटन होगा. हालांकि, बजट ने वैसे तो इस मामले में पूरी तरह निराश नहीं किया है. 2024-25 के लिए रक्षा बजट के मद में किए गए आवंटन का एक बड़ा हिस्सा अभी भी राजस्व व्यय के खाते में जा रहा है. फिर भी, वित्त वर्ष 2024-25 के अंतर्गत कुल ख़र्च, पिछले वित्त वर्ष (2023-24) की तुलना में केवल 4.8 प्रतिशत बढ़ा है. अगर हम रक्षा बजट की बारीक़ी से पड़ताल करें, तो ये पता चलता है कि ये 2024-25 के कुल बजट का 12.9 प्रतिशत है और ये देश के सामने खड़े तमाम ख़तरों से निपटने या फिर सैन्य बलों की ज़रूरतें पूरे करने के लिहाज़ से अपर्याप्त है. वास्तविकता तो ये है कि इस बार का रक्षा बजट 2023-24 की तुलना में कम है. क्योंकि पिछला रक्षा बजट, पूरे आम बजट का 13.18 प्रतिशत हिस्सा था.
2024-25 के लिए रक्षा बजट के मद में किए गए आवंटन का एक बड़ा हिस्सा अभी भी राजस्व व्यय के खाते में जा रहा है. फिर भी, वित्त वर्ष 2024-25 के अंतर्गत कुल ख़र्च, पिछले वित्त वर्ष (2023-24) की तुलना में केवल 4.8 प्रतिशत बढ़ा है.
हो सकता है कि इस कमी के पीछे एक वजह गठबंधन सरकार की मजबूरियां भी हों, जिनकी वजह से वित्त मंत्री को सरकार के प्रमुख सहयोगियों जैसे कि तेलुगू देशम पार्टी (TDP) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) को ज़्यादा रियायतें देनी पड़ी हों. सरकार के कुल ख़र्च के वित्तीय संतुलन को बनाए रखने का प्रयास भी एक कारण है, जिसकी वजह से मोदी सरकार ने रक्षा व्यय में बढ़ोत्तरी को बहुत सीमित रखा है. एक अहम क़दम के तौर पर सरकार ने रक्षा क्षेत्र में आविष्कार पर अपना ख़र्च बढ़ा दिया है और एसिंग डेवेलपमेंट ऑफ इनोवेटिव टेक्नोलॉजीस विद iDEX (ADITI) योजना के ज़रिए अतिरिक्त 400 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं.
आइए हम एक नज़र रक्षा क्षेत्र की पेंशन पर डाल लेते हैं, जिनकी वजह से पिछले कई वर्षों से रक्षा बजट में व्यय की प्राथमिकताएं उल्टी पुल्टी रही हैं. इस ख़र्च की वजह से नए हथियार और संसाधन ख़रीदने और रक्षा क्षेत्र में रिसर्च और विकास (R&D) के हिस्से का व्यय भी घट जाता है. रक्षा क्षेत्र की पेंशन के लिए मोदी सरकार ने 2021-22 के वित्त वर्ष में 1.17 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए थे, जो इस साल (वित्त वर्ष 2024-25) के बजट में बढ़कर 1.41 लाख करोड़ पहुंच गया है, यानी ख़र्च में 20.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. हालांकि, अगर आप पूर्व सैन्य कर्मियों के योगदान वाली स्वास्थ्य योजना (ECHS) के ख़र्च को भी जोड़ लें, ये रक़म और ज़्यादा हो सकती है. 2024-25 के बजट में इस मद में 6,968 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. अगर इसको जोड़कर पेंशन के ख़र्च का हिसाब लगाएं, तो ये कुल रक्षा बजट का 26.5 प्रतिशत बैठता है. कुल मिलाकर, वेतन और भत्ते का ख़र्च 30.68 प्रतिशत और पेंशन 22.72 फ़ीसद होती है और ये दोनों मिलाकर मौजूदा बजट में रक्षा बजट का 53.38 प्रतिशत होता है. यही वजह है कि रक्षा बजट की प्राथमिकताएं अलग होती हैं, और इन बातों का असर भारत की दूरगामी रक्षा योजनाओं पर भी पड़ता है.
अगर आप पूर्व सैन्य कर्मियों के योगदान वाली स्वास्थ्य योजना (ECHS) के ख़र्च को भी जोड़ लें, ये रक़म और ज़्यादा हो सकती है. 2024-25 के बजट में इस मद में 6,968 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है.
अब एक नज़र रक्षा बजट के पूंजीगत व्यय पर भी डाल लेते हैं, जो 1.72 लाख करोड़ और रक्षा बजट के एक तिहाई से भी कम यानी लगभग 27.67 प्रतिशत है. वित्त वर्ष 2023-24 में रक्षा बजट के इसी हिस्से से जंगी जहाज़, पनडुब्बियां, लड़ाकू विमान और दूसरे नए हथियार ख़रीदने का पैसा दिया गया था. सरकार का दावा है कि पूंजीगत व्यय का 75 प्रतिशत हिस्सा, सेनाओं के आधुनिकीकरण के लिए है, जो सरकार के 1,05,518.43 करोड़ रुपए के आंकड़े के उलट 1.29 लाख करोड़ है. ये रक़म घरेलू रक्षा उद्योगों से ख़रीद की मद में ख़र्च की जाएगी. यहां सरकार ने रक्षा बजट के पूंजीगत व्यय का एक बड़ा हिस्सा घरेलू उद्योग से ख़रीदने के लिए आवंटित करके बहुत बड़ा भरोसा दिखाया है, ताकि घरेलू मैन्युफैक्चरिंग, उत्पादन और इनोवेशन को बढ़ावा दिया जा सके. ये क़दम सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल के अनुरूप ही है, जिसे 2020 में शुरू किया गया था. बाक़ी के 43 हज़ार करोड़ रुपए आयात से जुड़े पूंजीगत व्यय में ख़र्च किए जाएंगे.
फिर भी, 2024-25 के बजट से पहले उप वायुसेनाध्यक्ष (VCAS) ए पी सिंह ने कहा था कि आत्मनिर्भर भारत, देश की रक्षा और सुरक्षा की क़ीमत पर नहीं बन सकता है. अहम तकनीकों और हथियारों के विकास और उत्पादन से लेकर उन्हें तैनात करने तक में काफ़ी समय लग जाता है. क्योंकि, भारत के दुश्मन बहुत तेज़ी से अपनी क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं, और उनसे मुक़ाबला करने के लिए घरेलू उद्योगों और भारत के डिफेंस इकोसिस्टम को समय पर बेहतरीन संसाधन मुहैया कराने होंगे. इसके बावजूद, रक्षा बजट के पूंजीगत व्यय को विदेशों से हथियार ख़रीदने पर ख़र्च करने और घरेलू रक्षा उद्योग के लिए आवंटन करने के बीच, सरकार ने घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने का विकल्प चुना है. अब ये तो वक़्त ही बताएगा कि आत्मनिर्भर भारत की पहल कितनी सफल रहती है. भारत के सामने जितने बड़े ख़तरे आज खड़े हैं, उनको देखते हुए सही समय पर सैन्य बलों को हथियार मुहैया कराना बहुत ज़रूरी है. क्योंकि युद्ध तो कभी भी, बिना किसी चेतावनी के छिड़ सकते हैं. ऐसे में सैन्य बलों को चीन और पाकिस्तान के साथ अपर्याप्त या घटिया हथियारों के साथ युद्ध लड़ना पड़ सकता है.
यही नहीं, बजट से ये बिल्कुल साफ है कि राजस्व व्यय का एक बड़ा हिस्सा रख-रखाव, मरम्मत और संचालन (MRO), पेंशन, वेतन और भत्तों में ख़र्च होने से होने वाली तोड़-मरोड़ में हाल फिलहाल कोई सुधार आने की उम्मीद कम ही है. इसकी वजह से सैन्य बलों की क्षमताओं में काफ़ी कमियां रह जाने का डर है. अगर प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, तो अग्निपथ जैसी योजनाएं व्यय के इस असंतुलन को दुरुस्त करने में पूरी नहीं, तो काफ़ी अहम भूमिका ज़रूर निभाएंगी. लेकिन, इससे सैन्य बलों द्वारा की जाने वाली पूंजीगत ख़रीद के लिए पैसे बचाने में समय लगेगा. इसके बावजूद, अग्निपथ योजना पर बहुत दबाव है, और विपक्ष तो विशेष रूप से इसे सियासी मुद्दा बनाकर सरकार पर हमले कर रहा है.
अगर प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, तो अग्निपथ जैसी योजनाएं व्यय के इस असंतुलन को दुरुस्त करने में पूरी नहीं, तो काफ़ी अहम भूमिका ज़रूर निभाएंगी. लेकिन, इससे सैन्य बलों द्वारा की जाने वाली पूंजीगत ख़रीद के लिए पैसे बचाने में समय लगेगा.
अपने तीसरे कार्यकाल में भी मोदी सरकार एक मज़बूत घरेलू रक्षा उद्योग विकसित करने की प्रतिबद्धता पर डटी हुई है. ये बात रक्षा बजट में किए गए संसाधनों के आवंटन से बिल्कुल साफ़ हो जाती है. लेकिन, रक्षा बजट में पूंजीगत व्यय में बहुत मामूली बढ़ोत्तरी में काफ़ी जोखिम भी है. सरकार का संतुलन साधने का ये प्रयास आने वाले समय में भी उसकी रक्षा नीति की दशा दिशा तय करता रहेगा.
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Kartik Bommakanti is a Senior Fellow with the Strategic Studies Programme. Kartik specialises in space military issues and his research is primarily centred on the ...
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