Author : Ankit K

Published on Mar 13, 2024 Updated 0 Hours ago

डीप टेक में निवेश को बढ़ावा देने के पीछे सरकार का मक़सद, रक्षा क्षेत्र के तकनीकी औज़ारों और सुरक्षा के मूलभूत ढांचों को मज़बूत करना है, जो सही दिशा में उठाया गया क़दम है.

2024 का रक्षा बजट और डीप टेक में भारत की छलांग

इस साल के रक्षा बजट में उन्नत तकनीक में निवेश को बढ़ावा देने पर काफ़ी ज़ोर दिया गया है. ये सरकार केआत्मनिर्भरताको बढ़ावा देने के मज़बूत इरादों के अनुरूप ही है. दुनिया भर के देशों की सेनाओं ने रक्षा संबंधी चुनौतियों का नई तकनीकों से समाधान तलाशने के लिए अपने डीप टेक स्टार्टअप इकोसिस्टम की मदद लेनी शुरू कर दी है. अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश, और यूरोपीय संघ (EU) जैसे समूह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), रोबोटिक्स, ऑग्मेंटेड रियलिटी जैसी उभरती हुई तकनीकों में सैन्य इस्तेमाल की संभावनाएं बड़ी सक्रियता से तलाश रहे हैं. AI, बिग डेटा एनालिटिक्स, ब्लॉकचेन, रोबोटिक्स और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी डीप टेक तकनीकों में ऐसे बहुत सारे उपयोग हैं, जिनका उपयोग रक्षा व्यवस्थाओं और सुरक्षा के मूलभूत ढांचे को मज़बूत बनाने में किया जा सकता है. भारत के पास-पड़ोस में युद्ध के बदलते मिज़ाज को देखते हुए ऐसी तकनीकों में निवेश का फ़ैसला बहुत सही समय पर लिया गया है, जो एक सामरिक क़दम है और इससे केवल भारत को अपने दुश्मनों से आगे निकलने में मदद मिलेगी, बल्कि भविष्य के युद्ध क्षेत्रों में भी बढ़त हासिल होगी. हालांकि, डीप टेक तकनीकें विकसित करने के लिए युवाओं और कंपनियों को लंबी अवधि के लिए एक लाख करोड़ रुपए का क़र्ज़ देना, बिल्कुल सही दिशा में बढ़ाया गया क़दम है. लेकिन, अभी भी कोई भविष्यवाणी करना जल्दबाज़ी होगा, क्योंकि डीप टेक और विशेष रूप से रक्षा क्षेत्र में निवेश की स्थिति अभी भी अस्पष्ट है.

 भारत के पास-पड़ोस में युद्ध के बदलते मिज़ाज को देखते हुए ऐसी तकनीकों में निवेश का फ़ैसला बहुत सही समय पर लिया गया है, जो एक सामरिक क़दम है और इससे न केवल भारत को अपने दुश्मनों से आगे निकलने में मदद मिलेगी, बल्कि भविष्य के युद्ध क्षेत्रों में भी बढ़त हासिल होगी. 

रक्षा क्षेत्र में डीप टेक के आविष्कार की प्रासंगिकता

 

रक्षा क्षेत्र में उन्नत तकनीक या डीप टेक की आज बहुत अहमियत है. दुनिया भर की सेनाओं को ये एहसास हो रहा है कि रोबोट के ज़रिए स्वचालित लॉजिस्टिक्स और ड्रोन के झुंड, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से पूर्वानुमान और योजना बनाना और इंसानी दिमाग़ और मशीनों के तालमेल से ऑग्मेंटेड सैनिकों का विकास युद्ध क्षेत्र ही नहीं, इसके बाहर भी सामरिक और रणनीतिक क्षमताओं में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं. इसके अलावा, ड्रोन तकनीक, क्वांटम कंप्यूटिंग, हाइपरसोनिक मिसाइलें लॉन्च करने के सिस्टम वग़ैरह में आविष्कार से दुश्मन की ताक़त से भी निबटा जा सकता है. इन तकनीकों की वजह से सैन्य बल, अपने दुश्मनों से निपटने की बेहतर तैयारी कर सकेंगे. मोटे तौर पर कहें, तो बदलाव लाने वाली इन क्षमताओं की वजह से जो अभूतपूर्व असंतुलन पैदा हुआ है, उसने यूक्रेन जैसे छोटे देश में भी इन तकनीकों में दिलचस्पी पैदा कर दी है.

 अगली पीढ़ी की तकनीकों का तेज़ी से स्वदेशीकरण और उनका लचीलापन भारत के बजट और क्षमता, दोनों के नज़रिए से एक सामरिक प्राथमिकता बन गया है.

अगर हम विशेष रूप से भारत की बात करें, तो उसके मामले में डीप टेक, उसआत्मनिर्भरताके लक्ष्य से पूरी तरह मेल खाती है, जिस पर रक्षा बजट में बहुत ज़ोर दिया गया था. इस तरह से आयात का बोझ कम किया जा सकेगा. उभरती हुई स्टार्टअप कंपनियों को AI से संचालित सैटेलाइट विश्लेषण, लॉजिस्टिक्स के स्वचालित ड्रोन और सुरक्षित क्वांटम कम्युनिकेशन सिस्टम जैसे क्षेत्रों में नए औज़ार विकसित करने के लिए प्रोत्साहन दिया जा सकता है, जो सेना की किसी ख़ास ज़रूरत वाली समस्या और चुनौतियों का समाधान कर सकें. रगेड इलेक्ट्रॉनिक्स, बचाव के औज़ार और ठंडे मौसम में भी काम करने वाले भरोसेमंद सिस्टम, भारत की भौगोलिक और इलाक़े संबंधी चुनौतियों से पार पाने में मददगार साबित हो सकते हैं. यही नहीं, घातक स्वचालित ड्रोन, उन्नत गोला बारूद, ऊंचाई वाले सेंसर जैसे आविष्कारों से जो बढ़त हासिल होती है, वो भी किसी हथियार की भारी क़ीमत पर ख़र्च किए बग़ैर युद्ध क्षेत्र में बढ़त दिला सकते हैं. इसी वजह से अगली पीढ़ी की तकनीकों का तेज़ी से स्वदेशीकरण और उनका लचीलापन भारत के बजट और क्षमता, दोनों के नज़रिए से एक सामरिक प्राथमिकता बन गया है.

 

भारत के रक्षा आविष्कार के इकोसिस्टम की भूमिका

 

डीप टेक और स्टार्ट-अप को बजट में हाल ही में जो मदद देने का ऐलान किया गया है, वो देश के रक्षा आविष्कार कार्यक्रम जैसे कि iDEX से मेल खाता है, जिसे 2018 में लॉन्च किया गया था. आईडेक्स स्टार्टअप को सहायता देता है और उनको अपने संचालन कर सकने वाली सुविधाओं (incubation facilities) से जोड़ता है. वहीं, दूसरी तरफ़ से सैन्य बलों की तरफ़ से जताई जाने वाली समस्याएं भी इनको बताता है, जिनका इनोवेटिव समाधान इन स्टार्टअप को खोजना होता है. रक्षा उत्पादन विभाग ने रक्षा मंत्रालय के अधीन चलाई जा रही इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस योजना के लिए 2021-22 से अगले पांच साल के लिए 500 करोड़ के फंड को मंज़ूरी दे दी है. इस योजना का लक्ष्य स्टार्टअप, छोटे, मध्यम और लघु उद्योगों और व्यक्तिगत आविष्कारकों को रक्षा आविष्कार संगठन (DIO) के ज़रिए वित्तीय मदद देकर रक्षा तकनीक में इनोवेशन को बढ़ावा देना है.

 

अब रक्षा बजट से डीप टेक में निवेश को विशेष रूप से बढ़ावा देने की संभावनाएं बढ़ गई हैं. ऐसे में iDEX, इंजीनियरिंग के पारंपरिक उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, उभरती हुई तकनीकों जैसे कि AI, क्वांटम, नैनोटेक वग़ैरह में काम कर रही स्टार्टअप को प्रायोजित करने पर ज़ोर दे सकता है. iDEX को चाहिए कि वो रक्षा के पारंपरिक निर्माताओं के आगे अपना दायरा बढ़ाकर, ऐसे जोखिम भरे उद्यमों को मदद दे, जो उन्नत तकनीक के क्षेत्र में नई वैज्ञानिक खोज करने पर काम कर रहे हैं.

  इसी तरह, प्रभावी नतीजे प्राप्त करने के लिए, पूंजी हासिल करने के नियमित असर उपलब्ध कराना, बड़े मिशन मोड वाले प्रोजेक्ट में निरंतरता और विशेषज्ञता को शामिल करने के लिए कॉर्पोरेट साझेदारी के ज़रिए स्टार्ट-अप को सक्रियता से स्थिर करना ज़रूरी है.

परिकल्पनाओं को डिज़ाइन में साझेदारी के ज़रिए फुर्ती से परखने की रूपरेखा और फिर उनका उत्पादन तेज़ी से बढ़ाने से सैन्य बलों में तकनीक को अपनाने की प्रक्रिया तेज़ की जा सकेगी. लेकिन, वाक़ई बदलाव लाने वाले स्वदेशीकरण के लिए नई पीढ़ी की तकनीकों के हर स्तर पर निवेश के बुनियादी क़दम उठाने पड़ेंगे. फिर चाहे वो रिसर्च हो, प्रयोग या फिर लागू करने में मदद हो. इन्हीं मौक़ों पर iDEX जैसी पहलें, भारत में डीप टेक के आविष्कार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं.

 

भारत के डीप टेक में तरक़्क़ी की राह की चुनौतियां

 

डीप टेक की क्षमताओं का अपनी बढ़त के लिए इस्तेमाल करने की भारत की आकांक्षाओं के साथ कई संरचनात्मक और तकनीकी चुनौतियां भी जुड़ी हुई हैं. अंतरिम बजट में एक लाख करोड़ रुपए के जिस शुरुआती निवेश का प्रस्ताव रखा गया है, वो 50 साल के लिए तय किया गया है. ऐसे में अगर हर साल डीप टेक में दो हज़ार करोड़ रुपए का निवेश भी किया जाता है, तो इसके बदले में हासिल होने वाले फ़ायदों का अभी से अंदाज़ा लगा पाना मुमकिन नहीं है. यही नहीं, इस निवेश का ज़ोर मुख्य रूप से असैन्य क्षेत्र में है, जिसमें कारोबारी मक़सद की हिस्सेदारी सबसे अधिक है. इससे ये तो हो सकता है कि रक्षा क्षेत्र में डीप टेक के आविष्कार को बढ़ावा मिले. लेकिन, यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि उच्च तकनीक के हर आविष्कार का दोहरा या सैन्य उपयोग भी हो, ये ज़रूरी नहीं है.

 

बजट की सीमाओं के अतिरिक्त क्वांटम कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और नैनो टेक्नोलॉजी जैसे विशेष क्षेत्रों में कुशल कामगारों की कमी कहीं ज़्यादा बड़ी चुनौती है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में रिसर्च और विकास के सम्मानजनक इकोसिस्टम का निर्माण करना, प्रतिभा के विकास और विचारों को जन्म देने से बहुत नज़दीकी से जुड़ा है. इसी तरह, प्रभावी नतीजे प्राप्त करने के लिए, पूंजी हासिल करने के नियमित असर उपलब्ध कराना, बड़े मिशन मोड वाले प्रोजेक्ट में निरंतरता और विशेषज्ञता को शामिल करने के लिए कॉर्पोरेट साझेदारी के ज़रिए स्टार्ट-अप को सक्रियता से स्थिर करना ज़रूरी है. रिसर्च से उत्पाद के विकास तक व्यापक क्रियान्वयन तो सकारात्मक रूप से उभर रहा है. लेकिन, इसको वक़्त की कसौटी पर खरा उतरना होगा. प्रतिभाओं को पोषित करने से लेकर उन्नत तकनीकी औज़ारों को डिफेंस सिस्टम में शामिल करने में मदद करने तक, पूरी मूल्य संवर्धित श्रृंखला (वैल्यू चेन) से जुड़े मसलों का समाधान निकालना होगा. तभी जाकर डीप टेक में रिसर्च, असली सैन्य क्षमताओं में तब्दील हो सकेगा. अकादमी प्रयासों, निवेश में निरंतरता, कारोबारी लाभ की राह खोलने और निजी क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र के विज़न के बीच तालमेल बिठाना ही वो नुस्खा है, जिससे भारत डीप टेक से फ़ायदों की तलाश वाली अपनी मंज़िल तक पहुंच सकेगा.

 

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