Published on Sep 29, 2023 Updated 0 Hours ago
मालदीव में राष्ट्रपति चुनाव के महत्वपूर्ण रुझान: एक विश्लेषण

 9 सितंबर 2023 को मालदीव के बहु-प्रतीक्षित राष्ट्रपति चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत ज़रूरी वोट नहीं मिल सका. अब मालदीव में 30 सितंबर को दूसरे दौर का चुनाव होना है, जिसमें पहले चरण के दौरान सबसे ज़्यादा वोट पाने वाले दो उम्मीदवारों- प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (PPM) एवं पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (PNC) के बीच गठजोड़ से बने प्रोग्रेसिव अलायंस के मोहम्मद मोइज्जु और मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) के नेता एवं मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह- के बीच भिड़ंत होगी. वैसे तो चुनाव के अगले दौर को लेकर अनिश्चितता का ख़तरा मंडरा रहा है लेकिन प्राइमरी राउंड के नतीजे ऐसे रुझानों के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं जो इस देश के राजनीतिक परिदृश्य में निर्णायक भूमिका अदा करते रहेंगे. 

राजनीतिक दलों में बढ़ते इस विभाजन का नतीजा मतदाताओं के बीच निराशा में बढ़ोतरी की अटकलों के रूप में निकला है. प्राइमरी राउंड के दौरान 79 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया जो कि 2008 में लोकतंत्र की तरफ मालदीव के बदलाव के बाद सबसे कम था.

राजनीतिक बंटवारा

2013 से लेकर 2018 तक पूर्व राष्ट्रपति यामीन के द्वारा लोकतंत्र पर आघात के बाद मालदीव लोकतंत्र की सामान्य स्थिति का संकेत दे रहा है और राजनीतिक फैलाव एवं अवसर को व्यापक कर रहा है. ध्यान देने की बात है कि राष्ट्रपति चुनाव के पहले दौर में देश के इतिहास में पहली बार आठ उम्मीदवारों की भागीदारी देखी गई. लेकिन ये घटनाक्रम मालदीव में ऐसे रुझानों का संकेत दे रहा है जिसे बदला नहीं जा सकता है जैसे कि मालदीव के राजनीतिक परिदृश्य में बढ़ता राजनीतिकरण, गुटबाज़ी और विभाजन. राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले लगभग सभी राजनीतिक दलों में पहले दौर के पहले बंटवारा हुआ; जम्हूरी पार्टी (JP) से अलग होकर मालदीव नेशनल पार्टी (MNP) बनी और MDP से अलग होकर डेमोक्रैट्स का गठन हुआ. 

राजनीतिक दलों में बढ़ते इस विभाजन का नतीजा मतदाताओं के बीच निराशा में बढ़ोतरी की अटकलों के रूप में निकला है. प्राइमरी राउंड के दौरान 79 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया जो कि 2008 में लोकतंत्र की तरफ मालदीव के बदलाव के बाद सबसे कम था. 2008, 2013 और 2018 के पिछले चुनावों में क्रमश: 86 प्रतिशत, 87 प्रतिशत और 89 प्रतिशत वोट डाले गए थे. संयोग से MDP ने पहले चरण में अपने ख़राब प्रदर्शन के लिए कम मतदान को ज़िम्मेदार ठहराया है और वो दूसरे चरण में वोटिंग प्रतिशत को बढ़ाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में मतदाताओं की मायूसी और वोटिंग प्रतिशत दूसरे दौर के चुनाव का नतीजा तय करेगा. 

इसके साथ-साथ राजनीतिक बंटवारे ने मालदीव में स्विंग वोटर्स (किसी एक पार्टी से जुड़ा वोटर नहीं) की संख्या में बढ़ोतरी की है. मालदीव में फिलहाल 2,82,395 मतदाता हैं जिनमें से 1,55,821 किसी-न-किसी पार्टी के साथ रजिस्टर्ड हैं जबकि बाकी 1,26,574 स्विंग वोटर्स हैं. लेकिन इस चुनाव में जम्हूरी पार्टी (JP), प्रोग्रेसिव अलायंस और डेमोक्रैट्स के लिए वोटिंग का पैटर्न (तालिका 1 देखें) इशारा करता है कि रजिस्टर्ड वोटर्स भी स्विंग वोटर्स बनने को तरजीह दे रहे हैं. इस प्रकार से पार्टियों में बढ़ते विभाजन ने परंपरागत वोट आधार को बांट दिया है. इसकी वजह से अनिश्चितता की स्थिति बन गई है और ये हालत पार्टियों को मजबूर कर रही है कि वो ढीले-ढाले गठबंधन और समझौतों को बढ़ावा दें. इस तरह से धीरे-धीरे भविष्य में राजनीतिक अस्थिरता का रास्ता तैयार हो रहा है. बढ़ता विभाजन और गुटबाज़ी मालदीव के आने वाले चुनाव में एक महत्वपूर्ण रुझान है. वैसे प्रोग्रेसिव अलायंस और MDP अपने वैचारिक और ऐतिहासिक मतभेदों के बावजूद दूसरे उम्मीदवारों को अपने साथ लाने की कोशिशों में जुटी हुई है. 

उम्मीदवार रजिस्टर्ड सदस्य वोट वोट % 
मोहम्मद मोइज्जु (PPM-PNC) 41,970 (c) 101,635 46.06 %
इब्राहिम सोलिह (MDP) 77,857 (c) 86,161 39.04 %
इलियास लबीब (डेमोक्रैट्स) 3,560 15,839 7.17 %
उमर नसीर (निर्दलीय) NA 6,343 2.87 %
कासिम इब्राहिम (JP) 22,705 5,460 2.47 %
फरीस मामून (निर्दलीय) NA 2,979 1.35 %
मोहम्मद नाजिम (MNP) 9,729 1,907 0.86 %
हसन जमील (निर्दलीय) NA 327 0.14 %
कुल 155,821 220,651

(तालिका 1. प्राइमरी राउंड का चुनाव नतीजा) 

स्रोत: मालदीव चुनाव आयोग; लेखक के द्वारा संकलित

नोट: C पूरे गठबंधन की नुमाइंदगी करता है, किसी एक पार्टी की नहीं 

नए किंगमेकर 

मालदीव के चुनाव का दूसरा महत्वपूर्ण रुझान है नए किंगमेकर के तौर पर डेमोक्रैट्स का उदय. राजनीतिक मुकाबले में बढ़ोतरी के साथ इस चुनाव में आठ में से पांच उम्मीदवार 3 प्रतिशत वोट पाने में भी नाकाम रहे. लेकिन डेमोक्रैट्स- एक पार्टी जिसका गठन पूर्व राष्ट्रपति नशीद की अगुवाई में चुनाव से कुछ ही महीने पहले हुआ था- न सिर्फ़ अपने रजिस्टर्ड सदस्यों की तुलना में तीन गुना से ज़्यादा मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रही बल्कि दूसरी पार्टियों के चुनावी भविष्य को भी नुकसान पहुंचाने में कामयाब रही. ये स्थिति तब है जब डेमोक्रैट्स के प्रमुख नेता नशीद ये चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. 7 प्रतिशत वोट के साथ डेमोक्रैट्स कासिम की जम्हूरी पार्टी को पीछे छोड़ते हुए नए किंगमेकर के तौर पर उभरी है.     

डेमोक्रैट्स- एक पार्टी जिसका गठन पूर्व राष्ट्रपति नशीद की अगुवाई में चुनाव से कुछ ही महीने पहले हुआ था- न सिर्फ़ अपने रजिस्टर्ड सदस्यों की तुलना में तीन गुना से ज़्यादा मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रही बल्कि दूसरी पार्टियों के चुनावी भविष्य को भी नुकसान पहुंचाने में कामयाब रही.

वास्तव में डेमोक्रैट्स ने गठबंधन के लिए अपने विकल्प खुले रखे हैं. शायद वो प्रोग्रेसिव अलायंस से संसदीय प्रणाली की तरफ बदलाव और भारत विरोधी रवैये में कमी के वादे की उम्मीद का इंतज़ार कर रही है. वहीं MDP से डेमोक्रैट्स शायद इस बात का इंतज़ार कर रही है कि सोलिह मेल-मिलाप की कोशिश करेंगे और उसे ज़्यादा राजनीतिक लाभ एवं सत्ता में भागीदारी और संसदीय प्रणाली की तरफ बदलाव का वादा करेगी. बहरहाल, चुनाव में डेमोक्रैट्स के असरदार प्रदर्शन ने MDP और प्रोग्रेसिव अलायंस के लिए उसकी मांग बढ़ा दी है क्योंकि दोनों चुनाव के अगले दौर में ज़्यादा वोट हासिल करना चाहते हैं और संसद में अपनी साझेदारी को मज़बूत करना चाहते हैं. ध्यान देने की बात है कि डेमोक्रैट्स भले ही प्रोग्रेसिव अलायंस को तरजीह दे रही हो लेकिन MDP भी नशीद के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव को वापस लेकर उसे लुभाने की कोशिश कर रही है. 

एंटी-इनकंबेंसी

पहले दौर के चुनाव को लेकर एक और महत्वपूर्ण राय ये है कि मालदीव में एंटी-इनकम्बेंसी (सत्ता का विरोध) अभी भी ज़िंदा है और ये ज़ोर पकड़ रही है. एंटी-इनकम्बेंसी दो स्तरों पर बनी हुई है. सत्ता का विरोध सबसे पहले मतदाताओं के बीच है जिसके तहत मौजूदा सरकार की अच्छी तरह पड़ताल की जाती है. उदाहरण के लिए, कोविड-19 मैनेजमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के मामले में राष्ट्रपति सोलिह की कामयाबी के बावजूद प्रशासन, नई नौकरियों और भ्रष्टाचार के मामले में उनके काम-काज को लेकर उन्हें परखा गया है. कर्ज़ में बढ़ोतरी, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी और बढ़ते राजस्व घाटे ने भी शायद सोलिह के फिर से चुनाव जीतने की कोशिशों को नुकसान पहुंचाया है. 

प्रोग्रेसिव अलायंस का इंडिया आउट अभियान सोशल मीडिया, मीडिया संगठनों, राजनीतिक दलों और चीन के बीच दुष्प्रचार की इस सांठगांठ का महज़ एक उदाहरण है.

एंटी-इनकम्बेंसी का दूसरा स्तर राजनीतिक पार्टियों और विरोधियों के बीच मौजूद है. मालदीव में चुनाव के दौरान हमेशा ये देखा गया है कि ज़्यादातर दल सरकार को घेरने के लिए आपस में तालमेल और सहयोग करते हैं. मौजूदा सरकार के मामले में उसके गठबंधन के साझेदार- डेमोक्रैट्स, JP और MRM- अलग हो गए और उन्होंने अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया. इन दलों ने प्रोग्रेसिव अलायंस के साथ मिलकर सरकार की राजनीति और साझेदारी की आलोचना की. इन पार्टियों के एकजुट होने से सरकार के द्वारा वोट जुटाने, आलोचनाओं का मुकाबला करने और संभावित गठबंधन बनाने की क्षमता को नुकसान हुआ. ये नुक़सान ख़ास तौर पर इसलिए हुआ क्योंकि विपक्ष की पार्टियां सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए कई महीनों से एक-दूसरे के साथ सहयोग कर रही थीं. MDP अभी भी गठबंधन के साझेदारों की तलाश करने में संघर्ष कर रही है लेकिन विपक्ष ने MNP को अपने पाले में करके बढ़त बना ली है. सत्ता विरोधी रुझान के इन दो स्तरों से पार पाना मालदीव में किसी भी मौजूदा राष्ट्रपति के लिए एक चुनौती रही है. ये ऐसा रुझान है जो मालदीव के भविष्य को तय करता रहेगा. 

दुष्प्रचार

चुनाव का चौथा महत्वपूर्ण निष्कर्ष है मालदीव में उत्तेजक दुष्प्रचार अभियानों का स्वरूप. 2018 में यामीन के सत्ता से बेदखल होने के साथ हाल के वर्षों में दुष्प्रचार की सीमा और इसके इकोसिस्टम में काफी बढ़ोतरी हुई है. देश में राजनीतिक बंटवारे और एंटी-इनकम्बेंसी के सामान्य स्तर के साथ इस रुझान में और तेज़ी आई है. प्रोग्रेसिव अलायंस का इंडिया आउट अभियान सोशल मीडिया, मीडिया संगठनों, राजनीतिक दलों और चीन के बीच दुष्प्रचार की इस सांठगांठ का महज़ एक उदाहरण है. ये दुष्प्रचार अभियान प्रदर्शनों की अपील, फर्ज़ी दस्तावेज़ों को लीक करके और बिना प्रमाणित (अनवेरिफाइड) कंटेंट के ज़रिए सरकार को बदनाम करने का रूप ले रहा है. 

इसके अलावा, चुनाव से पहले प्रोग्रेसिव अलायंस, डेमोक्रैट्स, MNP और निर्दलीय उम्मीदवार उमर नसीर के कुछ सोशल मीडिया हैंडल के बीच दुष्प्रचार को लेकर करीबी सहयोग शुरू हो गया था. ये उम्मीदवार भ्रष्टाचार और देश की संप्रभुता के उल्लंघन को लेकर सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं. सरकार के पास अपना सोशल मीडिया और मीडिया कैंपेन होने के बावजूद इस दुष्प्रचार का मुकाबला करने में उसे जूझना पड़ा है और राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह के ख़राब चुनावी प्रदर्शन में इसने योगदान दिया है. इसकी वजह शायद व्यापक सत्ता विरोधी भावना और विपक्ष का अच्छी तरह से तैयार दुष्प्रचार का इकोसिस्टम है. दुष्प्रचार के इस इकोसिस्टम का ज़्यादातर हिस्सा अभी भी मौजूद है और ये आने वाले चुनाव में गलत जानकारी फैलाकर, ध्रुवीकरण को बढ़ाकर और बंटवारे में तेज़ी लाकर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. ये एक ऐसा रुझान है जो आने वाले वर्षों में मालदीव की राजनीति के भविष्य को तय करता रहेगा. 

राष्ट्रवाद और विदेश नीति

आख़िरी और सबसे महत्वपूर्ण रुझान ये है कि मालदीव की विदेश नीति का राजनीतिकरण अब मौसमी विषय से स्थायी विषय में तब्दील हो गया है. मालदीव में राजनीतिक पार्टियों ने अक्सर विदेशी किरदारों के साथ सरकार के करीबी संबंधों की आलोचना करके और सरकार पर भारत या चीन के हाथों संप्रभुता बेचने का आरोप लगाकर राष्ट्रवादी भावनाओं का सहारा लिया है. इससे उन्हें अक्सर राष्ट्रवादी भावनाओं को इकट्ठा करने और उनका चुनावी फायदा उठाने में मदद मिली है. वास्तव में ये रुझान 2008 में मालदीव के लोकतांत्रिक बदलाव के समय से ही मौजूद रहा है, ख़ास तौर पर चुनाव के दौरान, लेकिन समय-समय पर ये रुझान आता था और फिर गायब भी हो जाता था. मगर पिछले पांच वर्ष संकेत देते हैं कि विदेश नीति का राजनीतिकरण ऐसा रुझान हो गया है जो आगे भी बना रहेगा. मिसाल के तौर पर, इंडिया आउट अभियान की शुरुआत आधिकारिक तौर पर अक्टूबर 2020 में हुई थी यानी चुनाव के लगभग तीन साल पहले. 

बढ़ते राजनीतिक विभाजन ने राजनेताओं को राष्ट्रवादी भावनाओं का इस्तेमाल करने के लिए ही मजबूर किया है. ज़ोरदार टक्कर वाले राष्ट्रपति चुनाव की रेस में हर उम्मीदवार ने भारत और सोलिह की विदेश नीति की आलोचना करके दूसरे उम्मीदवार को पीछे छोड़ने की कोशिश की है.

बढ़ते राजनीतिक विभाजन ने राजनेताओं को राष्ट्रवादी भावनाओं का इस्तेमाल करने के लिए ही मजबूर किया है. ज़ोरदार टक्कर वाले राष्ट्रपति चुनाव की रेस में हर उम्मीदवार ने भारत और सोलिह की विदेश नीति की आलोचना करके दूसरे उम्मीदवार को पीछे छोड़ने की कोशिश की है. इसका नतीजा ये निकला है कि भारत के लिए दोस्ताना राय रखने वाली डेमोक्रैट्स, अतीत में तटस्थ रहने वाली MNP एवं JP और भारत विरोधी गुट जैसे कि उमर नसीर और प्रोग्रेसिव अलायंस ने भारत पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता और मालदीव की संप्रभुता से समझौता करने का आरोप लगाकर सरकार की आलोचना की है. इस तरह पहले दौर में प्रोग्रेसिव अलायंस की जीत के साथ ‘विदेश नीति के राजनीतिकरण’ की रणनीति की इस प्रायोगिक सफलता में मालदीव के लिए ख़राब मिसाल पेश करने का जोखिम है. राजनीतिक परिदृश्य के और अधिक विभाजन की स्थिति में राजनीतिक दलों को किसी भी तरह के सहयोग को सियासी रूप देने और सरकार पर देश की संप्रभुता को बेचने का आरोप लगाने के लिए बढ़ावा मिलेगा, भले ही भारत और चीन को लेकर सरकार की नीति कुछ भी हो. जमकर मुकाबले वाले इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में, जहां मालदीव को अपनी तरफ खींचने की होड़ लगी हुई है, विदेश नीति का ये राजनीतिकरण वहां की घरेलू राजनीति को तय कर सकता है और साथ ही वहां की भू-राजनीति को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है. 

30 सितंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे दौर की तरफ बढ़े मालदीव में अनिश्चितता का ख़तरा मंडरा रहा है. पिछले पांच वर्षों के दौरान मालदीव ने लोकतांत्रिक सीमा और प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी देखी है लेकिन इसके साथ-साथ राजनीतिक बंटवारे, दुष्प्रचार अभियानों और विदेश नीति के राजनीतिकरण को भी देखा है. देश के नए किंगमेकर और एंटी-इनकम्बेंसी की भावना के साथ ये रुझान भविष्य में मालदीव के राजनीतिक परिदृश्य, जिसमें दूसरे दौर का चुनाव भी शामिल है, में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी रखेंगे.


आदित्य गोदारा शिवामूर्ति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.

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Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with ORFs Strategic Studies Programme. He focuses on broader strategic and security related-developments throughout the South Asian region ...

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