बांग्लादेश में हाल ही संपन्न हुए 12वें संसदीय चुनाव के एक महीने के भीतर ही 28 जनवरी 2024 को बांग्लादेश में चीन के राजदूत याओ वेन ने शेख हसीना सरकार में नवनियुक्त विदेश मंत्री हसन महमूद से भेंट की थी. विदेश मंत्री के साथ हुई इस बैठक के दौरान चीनी राजदूत ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को चीन के आधिकारिक दौरे के लिए आमंत्रित किया, ताकि दोनों देशों के बीच पारस्परिक समझबूझ और द्विपक्षीय सहयोग को सशक्त किया जा सके. जिस प्रकार के बांग्लादेश और चीन के बीच प्रगाढ़ रिश्ते हैं, उनके मद्देनज़र यह कोई हैरान करने वाली बात नहीं थी. यानी चीन द्वारा दिए गए आमंत्रण पर प्रधानमंत्री हसीना की मंजूरी में कुछ भी नया नहीं है. ज़ाहिर है कि बीजिंग द्वारा कई मौक़ों पर 'बांग्लादेश में बाहरी हस्तक्षेप का विरोध' करने को लेकर खुलकर आवाज़ उठाई जाती रही है. बांग्लादेश में संसदीय चुनाव से कुछ समय पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि चीन बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करने में बांग्लादेश का समर्थन करेगा और इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ खड़ा रहेगा. बांग्लादेश में निष्पक्ष 'लोकतांत्रिक चुनाव' सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका ने कई प्रतिबंध लगाए थे. इस मुद्दे पर पिछले साल ही अमेरिका और बांग्लादेश के रिश्तों की तल्खी खुलकर सामने आ गई थी. एक तरफ शेख हसीना ने अपने देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को लेकर अमेरिका को आड़े हाथों लिया था, वहीं दूसरी तरफ बांग्लादेश के संसदीय चुनावों में व्यापक गड़बड़ी का मुद्दा उठाते हुए अमेरिका ने चिंता जताई थी. उल्लेखनीय है कि ऐसी परिस्थितियों में बांग्लादेश में अमेरिकी प्रभाव कम होने से जो खालीपन आ रहा है, उसे भरने के लिए चीन की ओर से बांग्लादेश के साथ अपने रिश्तों को मज़बूत करने की अटकलें लगाई जा रही हैं. अगर चीन और बांग्लादेश की नज़दीकी बढ़ती है, तो निश्चित रूप से इससे नई दिल्ली और ढाका के संबंध प्रभावित होंगे.
अगर चीन और बांग्लादेश की नज़दीकी बढ़ती है, तो निश्चित रूप से इससे नई दिल्ली और ढाका के संबंध प्रभावित होंगे.
दक्षिण एशिया के देशों में हाल के वर्षों में जिस प्रकार से चीन ने अपने दबदबा क़ायम किया है, उससे भारत के पड़ोसी देशों में चीनी प्रभुत्व लगातार बढ़ता जा रहा है. भारत अपने पड़ोसी देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है. बांग्लादेश दक्षिण एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसके साथ ही समुद्र में आवाजाही के लिहाज़ से बेहद अहम है. इतना ही नहीं, बंगाल की खाड़ी में हाइड्रोकार्बन का अकूत भंडार मौज़ूद है और उसकी भौगोलिक स्थिति भी रणनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण है. इन्हीं सब खूबियों के चलते बांग्लादेश के साथ प्रगाढ़ रिश्ते चीन के लिए काफ़ी फायदेमंद हैं. भारत के लिए भी बांग्लादेश बेहद मायने रखता है, क्योंकि यह भारत का सबसे नज़दीकी पूर्वी पड़ोसी है और इसके साथ भारत दुनिया की पांचवीं सबसे लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करता है. कुल मिलाकर भारत और चीन के लिए बांग्लादेश काफ़ी अहमियत रखता है और यही वजह है कि दोनों देश ढाका के साथ विभिन्न क्षेत्रों में अपने रिश्तों को सशक्त करने में जुटे हुए हैं. इस तरह से देखा जाए, तो भारत और चीन कहीं न कहीं बांग्लादेश के विदेशी निवेश में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं. वास्तविकता यह है कि अपनी तरक़्क़ी और समृद्धि के लिए बांग्लादेश विदेश से आने वाली धनराशि पर अत्यधिक निर्भर है. चीन न केवल बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है, बल्कि तीसरा सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) करने वाला और दूसरा सबसे बड़ा विदेशी मदद मुहैया कराने वाला देश भी है. वहीं भारत की बात की जाए तो, बांग्लादेश के साथ व्यापार करने के मामले में भारत का नंबर चीन के बाद आता है. इसके अलावा, बांग्लादेश में एफडीआई करने वाले शीर्ष दस देशों में भारत भी शामिल है, साथ ही गैर-सहायता समूह देशों से बांग्लादेश को मिलने वाली द्विपक्षीय विदेशी सहायता में भारत तीसरे नंबर पर है. बांग्लादेश को मिलने वाली विदेशी सहायता में खाद्य सहायता, वस्तुओं की सहायता और परियोजना सहायता प्रमुख हैं. इनमें से परियोजना सहायता बांग्लादेश के विकास साझीदार राष्ट्रों का सबसे पसंदीदा क्षेत्र है. परियोजना सहायता के अंतर्गत बांग्लादेश में इंफ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाएं संचालित की जाती हैं और इससे न सिर्फ़ इन देशों के लिए ढाका के साथ कूटनीतिक रिश्तों को सशक्त करने का मार्ग प्रशस्त होता है, बल्कि बांग्लादेश की अहम व्यावसायिक, भू-राजनीतिक एवं संसाधन क्षमता का उपयोग करने का अवसर भी उपलब्ध होता है. ऐसे में देखा जाए तो, एशिया के दो बड़े देशों यानी भारत और चीन की ओर से बांग्लादेश को जो मदद मुहैया कराई जाती है, उसमें विकास से जुड़े बुनियादी ढांचे के निर्माण की परियोजनाओं का हिस्सा सबसे अधिक होता है.
बांग्लादेश में चीन और भारत के बीच ज़बरदस्त होड़
हिंद महासागर क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों के दौरान हुए घटनाक्रमों पर नज़र डालें तो यहां चीन और भारत के बीच गलाकाट प्रतिस्पर्धा देखने को मिली है. दोनों देशों की यह होड़ कहीं न कहीं इस क्षेत्र की भू-राजनीति का अहम हिस्सा बन चुकी है. बांग्लादेश में इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी कुछ परियोजनाओं में भी भारत और चीन के बीच मची इस होड़ का असर दिखाई देता है. उदाहरण के तौर पर चीन ने वर्ष 2016 में बांग्लादेश में 27 परियोजनाएं विकसित करने पर सहमति जताई थी. इनमें मोंगला में बंदरगाह का विकास भी शामिल था, जो कि वहां का दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह था. मोंगला बंदरगाह के विकास में निवेश का ऐलान करने के बावज़ूद दिसंबर 2022 तक बीजिंग ने उसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. इधर, भारत की ओर से भी मोंगला बंदरगाह में निवेश किया जा रहा था और जब भारत ने यहां चीन द्वारा विकसित की जाने वाली परियोजनाओं में दिलचस्पी दिखाई और इसके लिए एजिस इंडिया कंसल्टिंग इंजीनियर्स को काम सौंपा, तो चीन के कान खड़े हो गए और उसने कुछ ही दिनों में इस परियोजना के लिए फंडिंग देने का ऐलान कर दिया. मोंगला पोर्ट अथॉरिटी के मुताबिक़ बंदरगाह पर चीन और भारत द्वारा विकसित की जाने वाली परियोजनाएं अलग-अलग हैं. उल्लेखनीय है कि बीजिंग द्वारा मोंगला पोर्ट में दो कंटेनर टर्मिनलों और डिलीवरी यार्ड के निर्माण के लिए वित्तपोषण किया गया है, जबकि नई दिल्ली द्वारा यहां जेटी, सड़क, पार्किंग, कार्यालय और एक आवासीय परिसर के निर्माण का काम किया जा रहा है. मोंगला पोर्ट को लेकर जिस प्रकार से भारत की दिलचस्पी के तुरंत बाद चीन ने फंडिंग का ऐलान किया है, उससे साफ ज़ाहिर होता है कि बांग्लादेश में दोनों देशों के बीच भू-राजनीतिक होड़ चरम पर है.
मोंगला पोर्ट को लेकर जिस प्रकार से भारत की दिलचस्पी के तुरंत बाद चीन ने फंडिंग का ऐलान किया है, उससे साफ ज़ाहिर होता है कि बांग्लादेश में दोनों देशों के बीच भू-राजनीतिक होड़ चरम पर है.
बांग्लादेश में ऐसे वाकये पहले भी हो चुके हैं. बांग्लादेश ने सोनादिया में गहरे समुद्र के बंदरगाह के विकास को वित्तपोषित करने की चीनी योजना को मंजूरी नहीं दी थी. बताया जाता है कि बांग्लादेश ने ऐसा भारत की आपत्ति के बाद किया था, क्योंकि बंगाल की खाड़ी में बीजिंग की बढ़ती मौज़ूदगी को लेकर भारत ने चिंता जताई थी. हालांकि, आधिकारिक तौर पर बांग्लादेश ने चीन की योजना को नामंजूर करने के लिए उस अध्ययन का सहारा लिया था, जिसमें पोर्ट के निर्माण से पर्यावरण पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव को लेकर आगाह किया गया था. इतना ही नहीं, बांग्लादेश ने दूसरी तरफ जापान के साथ मिलकर गहरे समुद्र में मतारबारी पोर्ट और भारत समेत कई अन्य देशों के साथ मिलकर पेरा डीप-सी पोर्ट विकसित करने का काम शुरू किया था. इन तमाम उदाहरणों के उलट भी कई उदाहरण मौज़ूद हैं. जैसे कि बीजिंग द्वारा बांग्लादेश के डेल्टा क्षेत्र में कई पुलों का निर्माण किया गया है, लेकिन उसने उन पुलों का निर्माण रोक दिया है, जो भारत के साथ बांग्लादेश की कनेक्टिविटी बढ़ा सकते हैं. बावज़ूद इसके इन इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को ठंडे बस्ते में डालने के पीछे चीन और भारत के बीच भू-राजनीतिक होड़ को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया गया है. इतना ही नहीं जिस तरह से चीन ने बांग्लादेश में तीस्ता नदी पर बैराज के निर्माण के लिए निवेश किया है, इसे भी दोनों एशियाई ताक़तों के बीच प्रतिस्पर्धा का उदाहरण माना जा सकता है.
तीस्ता नदी जल विवाद
गौरतलब है कि भारत और बांग्लादेश के बीच 54 नदियां बहती हैं, इन्हीं में एक तीस्ता नदी भी है. तीस्ता नदी का उद्गम भारत के सिक्किम राज्य के पहाड़ों से होता और यह नदी उत्तरी पश्चिम बंगाल से गुजरते हुए दक्षिण दिशा की ओर बहती है. तीस्ता नदी रंगपुर डिवीजन के ज़रिए बांग्लादेश में प्रवेश करती है. तीस्ता नदी बांग्लादेश की चौथी सबसे बड़ी नदी है और इसके साथ ही यह बांग्लादेश के उत्तरी क्षेत्रों में बहने वाली प्रमुख नदी है. देखा जाए तो तीस्ता नदी बांग्लादेश में कृषि के लिए सिंचाई की ज़रूरतों को पूरा करने के लिहाज़ से बेहद अहम है. इसके अलावा, बांग्लादेश की एक करोड़ से ज़्यादा आबादी इस पर निर्भर है, साथ ही देश की कुल कृषि उपज के 14 प्रतिशत हिस्से का उत्पादन इसी नदी के पानी से होता है. बांग्लादेश के विशेषज्ञों के मुताबिक़, भारत ने अपने क्षेत्र में तीस्ता नदी पर जिन बांधों का निर्माण किया है, उनकी वजह से नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है, जिससे बांग्लादेश में आते-आते पानी की गति बहुत कम हो जाती है. नदी में पानी का बहाव कम होने की वजह से बांग्लादेश में 100,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि को सींचने में दिक़्क़त होती है. विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि बांग्लादेश को 5,000 क्यूसेक (घन फीट प्रति सेकंड) पानी के प्रवाह की ज़रूरत होती है. जब भारत में तीस्ता नदी पर बांध नहीं बने थे, तब बांग्लादेश को 6,710 क्यूसेक तक पानी मिल जाता था, जिससे उसकी पानी की ज़रूरतें आराम से पूरी हो जाती थीं. हालांकि शुष्क मौसम के दौरान बांग्लादेश को सिर्फ़ 1,200 से 1,500 क्यूसेक पानी ही मिल पाता है, जो कभी-कभी घटकर 200 से 300 क्यूसेक तक पहुंच जाता है.
भारत और बांग्लादेश के बीच पारस्परिक संबंध तेज़ी से मज़बूत हो रहे हैं, लेकिन तीस्ता नदी विवाद की वजह से दोनों के बीच तनाव के हालात बने रहते है. वर्ष 1983 में हालांकि ज्वाइंट रिवर कमीशन यानी संयुक्त नदी आयोग (JRC) की बैठक में तीस्ता नदी के जल बंटवारे पर एक विशेष व्यवस्था पर दोनों देश रजामंद हुए थे, जिसके मुताबिक़ बांग्लादेश को तीस्ता के पानी का 36 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा, लेकिन ऐसा अभी तक हो नहीं पाया है. इसके बाद वर्ष 2011 में दोनों देशों के बीच तीस्ता जल बंटवारे को लेकर एक और समझौता हुआ. इस समझौते में कहा गया था कि बांग्लादेश को तीस्ता नदी का 37.5 प्रतिशत और भारत को 42.5 प्रतिशत पानी मिलेगा. परंतु पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा नदी का बहाव कम होने की बात कहकर इस समझौते का पुरज़ोर विरोध किया गया, जिसके परिणामस्वरूप यह समझौता परवान नहीं चढ़ पाया. ज़ाहिर है कि तीस्ता नदी के प्रवाह में कमी आने की कई वजहें हैं, जैसे कि पश्चिम बंगाल के गाजोलडोबा में तीस्ता बैराज प्रोजेक्ट से पानी को तीस्ता-महानंदा सिंचाई नहर के ज़रिए मोड़ दिया जाता है, ताकि राज्य के सिलीगुड़ी और जलपाईगुड़ी जैसे शहरों की बढ़ती पानी की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके. इसके अलावा धान की खेती में भी इस पानी का उपयोग किया जाता है. इतना ही नहीं, सिक्किम में तीस्ता नदी पर लगभग 30 पनबिजली परियोजनाएं संचालित हैं. इस सबकी वजह से तीस्ता नदी का प्रवाह बहुत कम हो गया है. भारत की बात की जाए, तो यहां तीस्ता नदी का मुद्दा केंद्र और राज्य की राजनीति में बुरी तरह उलझ कर रह गया है. केंद्र चाहकर भी इसमें ज़्यादा दख़ल नहीं दे सकता है, क्योंकि भारतीय संविधान के अनुसार नदियां राज्य के अधिकार क्षेत्र में आती हैं. इस कारण भारत सरकार के लिए तीस्ता नदी जल विवाद का कोई ऐसा समाधान निकालना, जो सभी हितधारकों को मंजूर है, बेहद मुश्किल हो गया है. इसीलिए, तीस्ता नदी को लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच अनेकों चर्चाओं के बावज़ूद अभी तक इस मुद्दे पर कोई ख़ास प्रगति नहीं हो पाई है.
तीस्ता नदी के प्रवाह में कमी आने की कई वजहें हैं, जैसे कि पश्चिम बंगाल के गाजोलडोबा में तीस्ता बैराज प्रोजेक्ट से पानी को तीस्ता-महानंदा सिंचाई नहर के ज़रिए मोड़ दिया जाता है, ताकि राज्य के सिलीगुड़ी और जलपाईगुड़ी जैसे शहरों की बढ़ती पानी की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके. इसके अलावा धान की खेती में भी इस पानी का उपयोग किया जाता है. इतना ही नहीं, सिक्किम में तीस्ता नदी पर लगभग 30 पनबिजली परियोजनाएं संचालित हैं. इस सबकी वजह से तीस्ता नदी का प्रवाह बहुत कम हो गया है. भारत की बात की जाए, तो यहां तीस्ता नदी का मुद्दा केंद्र और राज्य की राजनीति में बुरी तरह उलझ कर रह गया है.
भारत ने मार्च 2023 में तीस्ता नदी के पानी को मोड़ने के लिए दो और नहरें बनाने का फैसला लिया है. इस फैसले ने एक बार फिर तीस्ता जल विवाद को हवा दे दी है. कहा जा रहा है कि अगर भारत द्वारा ऐसा किया जाता है, तो यह संयुक्त नदी आयोग की वर्ष 2010 में हुई 37वीं मीटिंग के दौरान भारत द्वारा जताई गई प्रतिबद्धता का सरासर उल्लंघन होगा. इस बैठक में भारत द्वारा कहा गया था कि लघु सिंचाई योजनाओं, पेयजल आपूर्ति और औद्योगिक उपयोग को छोड़कर पश्चिम बंगाल में तीस्ता नदी पर बने गाजोलडोबा बैराज से पानी मोड़ने के लिए कोई बड़ी नहर परियोजना नहीं बनाई जाएगी. बताया गया है कि इस पूरे प्रकरण पर अपना विरोध दर्ज़ कराने के लिए ढाका की ओर से नई दिल्ली को एक पत्र भेजा जाने वाला था, लेकिन पिछले साल के अंत में वहां संसदीय चुनाव की गतिविधियों की वजह से इसे टाल दिया गया था. गौरतलब है कि बांग्लादेश ने वर्ष 2022 में चीन के साथ मिलकर तीस्ता नदी पर एक बहुउद्देशीय बैराज बनाने का कार्य शुरू किया है, साथ ही वह तीस्ता नदी के बड़े हिस्से को खोदने और तटबंध बनाने के लिए काम कर रहा है, ताकि एक एकल प्रबंधनीय चैनल बनाया जा सके, जिससे वहां पानी का स्तर काफ़ी ऊपर हो जाएगा. बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के लिहाज़ से भी तीस्ता नदी चीन के लिए बहुत मायने रखती है, क्योंकि बांग्लादेश भी चीन की इस पहल का सदस्य है. भारत द्वारा अपनी सुरक्षा चिंताए जताने के बाद हालांकि, इस प्रोजेक्ट का निर्माण रोक दिया गया है. भारत की चिंता यह है कि इस परियोजना के बनने से चीन उसके बॉर्डर के एकदम क़रीब आ जाएगा, यानी 100 किलोमीटर की परिधि के भीतर चीन की मौज़ूदगी हो जाएगी. इसके अलावा, चीन संकरे सिलीगुड़ी कॉरिडोर के भी नज़दीक पहुंच जाएगा. ज़ाहिर है कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर राजनीतिक रूप से संवेदनशील पूर्वोत्तर क्षेत्र के साथ देश का इकलौता ज़मीनी संपर्क है. हालांकि, चीन को उम्मीद है कि इस परियोजना पर ज़ल्द ही दोबारा काम शुरू हो जाएगा.
पड़ोसी देशों को प्राथमिकता
भारत और चीन के बीच होड़ की वजह से जिस प्रकार का भू-राजनीतिक परिदृश्य बन रहा है, उसमें बांग्लादेश के लिए दोनों देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाने में फूंक-फूंक कर कदम रखना और ‘कूटनीतिक संतुलन’ बनाना बहुत ज़रूरी हो गया है. चीन के साथ मिलकर बनाई जाने वाली तीस्ता परियोजना को रोक कर बांग्लादेश ने इसी कूटनीतिक संतुलन का परिचय दिया है. इतना ही नहीं, ढाका द्वारा इस मुद्दे पर भारत के साथ हाल ही में हुई वार्ता के दौरान भी कूटनीतिक कौशल दिखाया गया है. बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने चीनी राजदूत से मुलाकात के तुरंत बाद नई दिल्ली में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाक़ात की थी. इस मुलाक़ात के दौरान दोनों विदेश मंत्रियों के बीच कई मुद्दों पर चर्चा हुई, जिसमें तीस्ता जल बंटवारा समझौता का मुद्दा भी शामिल था. बांग्लादेश के विदेश मंत्री हसन महमूद ने उम्मीद जताई है कि भारत में लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद ज़ल्द ही तीस्ता विवाद का हल निकल जाएगा.
ज़ाहिर है कि तीस्ता नदी जल बंटवारे का मसला न केवल भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए सिरदर्द बन गया है, बल्कि तमाम चुनौतियां खड़ी करते हुए उनके राष्ट्रीय हितों पर भी असर डाल रहा है.
ज़ाहिर है कि तीस्ता नदी जल बंटवारे का मसला न केवल भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए सिरदर्द बन गया है, बल्कि तमाम चुनौतियां खड़ी करते हुए उनके राष्ट्रीय हितों पर भी असर डाल रहा है. कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसा नहीं है कि भारत और बांग्लादेश मज़बूत द्विपक्षीय रिश्तों के बावज़ूद तीस्ता विवाद का समाधान नहीं निकालना चाहते हैं, बल्कि सच्चाई यह है कि दोनों देशों में इस मुद्दे को लेकर तमाम उलझनें हैं और इस पर किसी मुकम्मल समझौते तक पहुंचने से पहले इन उलझनों को सुलझाना बेहद ज़रूरी है. भारत और बांग्लादेश के बीच विवादों का एक लंबा इतिहास रहा है. इन विवादों का समाधान निकालने में वक़्त ज़रूर लगा, लेकिन समय के साथ-साथ इनका शांतिपूर्ण तरीक़े से हल निकाला गया है. जैसे कि दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा समझौता होने में 43 वर्ष, भूमि सीमा समझौता होने में 44 वर्ष और गंगा जल बंटवारा समझौता होने में 25 वर्ष लग गए. हालांकि, जिस प्रकार से चीन तीस्ता विवाद में कूद पड़ा है और बांग्लादेश में चुनाव होने के बाद वहां जिस तरह से बीजिंग का दख़ल बढ़ने की संभावना दिखाई दे रही है, उसने न सिर्फ़ भारत की चिंता बढ़ा दी है, बल्कि भारत के दृष्टिकोण से इस मुद्दे में अब एक भू-राजनीतिक पहलू भी जुड़ गया है. ऐसे में तीस्ता जल बंटवारे से जुड़े विवाद का प्राथमिकता के आधार पर ज़ल्द से ज़ल्द समाधान निकालना ही भारत के हित में है. ऐसा होने से न केवल भारत की चिंताएं दूर होंगी, बल्कि बांग्लादेश में उसकी साख और प्रतिष्ठा भी क़ायम रहेगी.
सोहिनी बोस ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
अनसुइया बसु राय चौधरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.
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