Author : Dhaval Desai

Published on Dec 07, 2021 Updated 0 Hours ago

कोरोना महामारी से निपटने के मुंबई मॉडल ने यह बताया है कि विकेंद्रित, सहयोग, परख और आंकड़ों पर आधारित शासन किसी भी संकट से प्रभावी तरीके से निपट सकता है.

कोविड19: कोरोना महमारी से लड़ने का मुंबई मॉडल; शहरी भारत को मिली मुंबई के प्रयासों से सीख!

अनौपचारिक  तौर पर बसाई गई झुग्गियों की ओईसीडी व्याख्या के आधार पर कई अध्ययनों में यह अनुमान लगाया है कि झुग्गियों में रहने वाले भारत में 37 मिलियन घरों (देश की आबादी का लगभग 50 प्रतिशत) में पानी और स्वच्छता सहित बुनियादी सुविधाएं नाम मात्र की मौजूद हैं.  ये ‘अनौपचारिक तौर पर बसाई गई बस्तियाँ’ शहरों के भीतर केंद्रित हैं, जहां आबादी के बढ़ते घनत्व ने नागरिक सुविधाओं और सेवाओं के प्रावधान पर हमेशा से दबाव डाला है.

जैसा कि 2020 की शुरुआत में कोरोना महामारी ने भारत में दस्तक दी थी तब भारत की घनी आबादी वाले महानगरों में कोरोना के हॉटस्पॉट बनने की आशंका सबसे ज़्यादा प्रबल थी. 

जैसा कि 2020 की शुरुआत में कोरोना महामारी ने भारत में दस्तक दी थी तब भारत की घनी आबादी वाले महानगरों में कोरोना के हॉटस्पॉट बनने की आशंका सबसे ज़्यादा प्रबल थी. भारत ने महामारी की पहली लहर को कुछ हद तक कामयाबी के साथ अपनी प्रबंधन क्षमता से रोका था – इसके लिए लॉकडाउन की लंबी अवधि का विकल्प चुनना एक प्रमुख कारण था, तो 2020 के अंत तक, केंद्र और राज्य दोनों की सरकारों ने अपने बचाव में उठाए कदमों को नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया. हालांकि, दूसरी लहर, जो अप्रैल और मई 2021 में तेजी के साथ चरम पर पहुंच गई थी, इसने इस तरह की अभूतपूर्व संकट से निपटने के लिए भारत की शहरी क्षमता की ख़ामियों को पूरी तरह उजागर कर दिया.

जिस असमानता के साथ शहरी भारत ने महामारी की दूसरी लहर का मुकाबला किया, उसका अंदाजा इसके दो सबसे बड़े शहरी इलाकों, दिल्ली और मुंबई के अनुभव से लगाया जा सकता है. हालांकि महाराष्ट्र कोरोना महामारी से देश में अब तक सबसे बुरी तरह प्रभावित होने वाले राज्यों में से एक था, बावजूद मुंबई की आबादी का 42 प्रतिशत झुग्गी बस्तियों में ज़िदगी जीने की ख़राब स्थिति और एक कमरे के घरों में 57 प्रतिशत परिवारों के रहने की मजबूरी के बीच अपेक्षाकृत कोरोना के प्रकोप को कम करने में काफी हद तक कामयाब रहा.

दिल्ली में मुंबई के मुकाबले स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा बेहतर होने के बावजूद यहां कोरोना विस्फोट के मामलों से निपटने के लिए ज़रूरी  चिकित्सा सुविधाओं की आपूर्ति और अस्पताल में बिस्तरों की अभूतपूर्व कमी दिखाई दी. 

दूसरी ओर, दिल्ली में मुंबई के मुकाबले स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा बेहतर होने के बावजूद यहां कोरोना विस्फोट के मामलों से निपटने के लिए ज़रूरी  चिकित्सा सुविधाओं की आपूर्ति और अस्पताल में बिस्तरों की अभूतपूर्व कमी दिखाई दी. जब अप्रैल-मई 2020 के दौरान कोरोना महामारी शीर्ष पर थी, तब राष्ट्रीय राजधानी में रोज़ाना 28000 कोरोना के मामले सामने आ रहे थे. अस्पतालों से लेकर आईसीयू बेड, ऑक्सीजन और ज़रूरी दवाईयों की मांग में बढ़ोतरी ने इस महामारी से निपटने के लिए सरकारी तैयारियों की सच्चाई पूरी तरह सामने ला दी. इसके बाद शहर दर शहर कोरोना का कहर मौत और तबाही बनकर सामने आने लगा.

ऐसी स्थिति में मुंबई में कुछ चिंताजनक स्थितियों के बावजूद महामारी के सबसे ख़राब हालात के दौरान भी अपेक्षाकृत बेहतर प्रबंधन दिखा. ग्रेटर मुंबई नगर निगम (एमसीजीएम) द्वारा समय पर लिए गए निर्णय और हस्तक्षेप की वजह से रोज़ाना कोरोना के मामलों में लगातार गिरावट आई. इस वजह से ‘मुंबई मॉडल’ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली, जबकि दिल्ली सहित देश के दूसरे राज्यों की सरकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उनकी नाकामियों के लिए फटकार लगाई.

मुंबई मॉडल


एमसीजीएम नेतृत्व की निगरानी में संचालित ऑपरेशन और वार्ड-स्तरीय कोविड वॉर रूम्स द्वारा पूरे शहर में कोरोना महामारी की स्थितियों पर नज़र रखी गयी, मुंबई मॉडल ने एम्बुलेंस, आईसीयू बेड, बिना रोकटोक के ऑक्सीजन सप्लाई और सभी महत्वपूर्ण दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए 360-डिग्री अप्रोच अपनाया.

जैसे ही दूसरी लहर का प्रकोप बढ़ा,  मुंबई में स्थानीय ऑक्सीजन भंडारण क्षमता की कमी होने लगी. ऐसी स्थिति में एमसीजीएम ने 22 क्रायोजेनिक एलएमओ स्टोरेज टैंकों को तैयार किया और हालात से निपटने की अपनी तैयारी का परिचय दिया. 

ऑक्सीजन: समर्पित कोविड स्वास्थ्य केंद्रों (DCHC) और विशेष कोविड अस्पतालों (DCH) को ऑक्सीजन की आपूर्ति, मध्यम से गंभीर और गंभीर रूप से बीमार रोगियों के इलाज़ के लिए, जिन्हें मध्यम से उच्च स्तर की ऑक्सीजन सपोर्ट की ज़रूरत थी,  प्राथमिकता के आधार पर मुहैया कराई गई. यहां तक कि  मई 2020 में एमसीजीएम ने अपने ऑक्सीजन संसाधनों की मैपिंग की और हर अस्पताल की जेनरेशन टू बेड आपूर्ति श्रृंखला की एक सूची तैयार की.

कोरोना की पहली लहर के दौरान ऑक्सीजन संयंत्रों ने सभी सार्वजनिक और निजी अस्पतालों को क्रायोजेनिक टैंकरों में सीधे लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (एलएमओ) की सप्लाई की जो शहर की कुल आवश्यकता का 70 प्रतिशत पूरा करता था, बाकी ज़रूरतों को रिफिलर्स से पूरे किए गए. हालांकि, जैसे ही दूसरी लहर का प्रकोप बढ़ा,  मुंबई में स्थानीय ऑक्सीजन भंडारण क्षमता की कमी होने लगी. ऐसी स्थिति में एमसीजीएम ने 22 क्रायोजेनिक एलएमओ स्टोरेज टैंकों को तैयार किया और हालात से निपटने की अपनी तैयारी का परिचय दिया. 13 अस्पतालों में 13 किलोलीटर टैंक, सात अस्पतालों को 10 किलोलीटर और और दो अस्पतालों को छह किलोलीटर टैंक की सुविधा मुहैया कराई गई. इतना ही नहीं डिजाइन से लेकर इन टैंक को ऑपरेशनल स्टेज में लाने में महज 45 दिन का वक़्त लगा.

एमसीजीएम ने एम्फोटेरिसिन बी की थोक ख़रीद को भी अधिकृत किया, जो म्यूकोर्मिकोसिस या ब्लैक फंगस के इलाज़ के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा है. 

कोरोना की पहली लहर कम होने के साथ ऑक्सीजन की मांग, जो लगभग 150 मीट्रिक टन प्रति दिन (एमटीपीडी) की सामान्य सीमा तक गिर गई थी, वह दूसरी लहर में तेजी आने के साथ बढ़कर 270 एमटीपीडी पर पहुंच गई. एमसीजीएम इस अंतर को पाटने के लिए फौरन हरकत में आया और पड़ोसी रायगढ़ ज़िले के इस्पात संयंत्रों से 50 एमटीपीडी की अतिरिक्त आपूर्ति और गुजरात के जामनगर से 60 एमटीपीडी की सप्लाई को सुनिश्चित कर लिया. मुंबई में छह रणनीतिक स्थानों पर सहायक ऑक्सीजन भंडारण डिपो बनाए गए, जिसमें 25 जंबो टैंकर स्टैंडबाय पर रखे गए. वॉर रूम के समन्वय और लॉजिस्टिक का प्रबंधन बेहतर किया गया.
एमसीजीएम की कस्तूरबा अस्पताल में 500 क्यूबिक मीटर और ट्रॉमा अस्पताल में 1,740 क्यूबिक मीटर की कैप्टिव ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता को इसके सभी 25 अस्पतालों और जंबो केंद्रों में उच्च क्षमता वाले संयंत्रों के साथ बढ़ाने की ज़रूरत पर बल दिया गया था. ये अतिरिक्त प्रेसर स्विंग एब्जॉर्पशन (पीएसए) प्लांट, जिनमें से 16 स्थापित किए जा चुके हैं, उससे मुंबई को अतिरिक्त 45 एमटीपीडी ऑक्सीजन प्रदान करने की उम्मीद की जा सकती है.

दवाईयां: इसी तरह जैसे ही रेमडेसिविर की कमी से देश के कई हिस्से जूझने लगे तो एमसीजीएम ने इन परिस्थितियों में भी तेजी से एक्शन लिया और 200,000 रेमडेसिविर की शीशियों की ख़रीद के लिए टेंडर जारी करने वाला पहला नगर निगम बन गया.  एमसीजीएम ने विपक्षी नेताओं की तमाम आलोचनाओं को नज़रअंदाज़ करते हुए, ‘पहले जीवन बचाने’ का दृष्टिकोण अपनाया और राज्य सरकार द्वारा निर्धारित टेंडर की कीमत के मुकाबले ज़्यादा कीमत पर प्राप्त सिर्फ एक टेंडर को अंतिम रूप दे दिया.

जुलाई 2020 में जब देश भर से टोसीलिज़ुमैब की कमी की जानकारी सामने आई तब भी एमसीजीएम ने दवा के एकमात्र वितरक सिप्ला से सीधे 20,000 खुराकें ख़रीद ली. इसके साथ ही बायोकॉन के साथ इटोलिज़ुमैब की ख़रीद की व्यवस्था भी की गई थी, जिसे ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा प्रतिबंधित आपातकालीन इस्तेमाल के लिए कहा गया था. एमसीजीएम ने एम्फोटेरिसिन बी की थोक ख़रीद को भी अधिकृत किया, जो म्यूकोर्मिकोसिस या ब्लैक फंगस के इलाज़ के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा है. यही नहीं ब्राजील से सबक लेते हुए, जहां तीसरी लहर ने बड़ी संख्या में बच्चों को प्रभावित किया था, एमसीजीएम ने बाल चिकित्सा दवाओं की थोक ख़रीद के उपाय भी किए.

मुंबई मॉडल से सबक

इसमें दो राय नहीं कि मुंबई मॉडल को प्लानिंग, प्रतिनिधिमंडल और सशक्तिकरण, संसाधनों को साझा करने की दक्षता और नेतृत्व जैसी विशिष्ट प्रबंधकीय अवधारणाएं अलग से रेखांकित करती हैं, जिसके विकेंद्रीकृत कार्यान्वयन को शहरी भारत के लिए इसका सबसे बड़ा फायदा मिल सकता है. एमसीजीएम नेतृत्व हमेशा से पूरी तरह नियंत्रण में रहा, पूरी तरह से तैयार 24 घंटे वॉर रूम में एक ऑनलाइन डैशबोर्ड और संचार मंच (यहां तक ​​​​कि पूरे मुंबई में श्मशान के लिए भी) एक दूसरे में विलय कर दिया गया. यहां तक कि वार्ड अधिकारी को भी अपने स्तर पर निर्णय लेने और कार्य करने का अधिकार था जिससे कोरोना के दौरान वॉर रूम ने बड़ी स्वायत्तता के साथ पूरी स्थितियों को संभाला.  हब-एंड-स्पोक मॉडल ने यह सुनिश्चित किया कि कम लक्षणों वाले लोगों को घरेलू उपचार के लिए तैयार किया जाए और केवल सबसे गंभीर रूप से बीमार रोगियों को आईसीयू बेड ही आवंटित किए जाएं.

कोरोना महामारी से निपटने के मुंबई मॉडल ने यह साबित किया कि विकेंद्रित, सहयोग परख और आंकड़ों पर आधारित शासन किसी भी संकट से प्रभावी तरीके से निपट सकता है वह भी ऐसे शहरी इलाके में जहां आबादी का घनत्व बेहद ज़्यादा हो और रहने की परिस्थितियां काफी चिंताजनक हों.

इस प्रकार कोरोना महामारी से निपटने के मुंबई मॉडल ने यह साबित किया कि विकेंद्रित, सहयोग परख और आंकड़ों पर आधारित शासन किसी भी संकट से प्रभावी तरीके से निपट सकता है वह भी ऐसे शहरी इलाके में जहां आबादी का घनत्व बेहद ज़्यादा हो और रहने की परिस्थितियां काफी चिंताजनक हों.

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