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नई सरकार के कार्यभार ग्रहण करने के लगभग तीन महीने बाद भारत के पड़ोस में एक बार फिर से स्थितियां ख़राब हुई हैं. 4 जून 2024 को नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने. जवाहरलाल नेहरू के बाद ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाले मोदी दूसरे प्रधानमंत्री हैं. भारत के इस घटनाक्रम को लेकर दक्षिण एशिया के अख़बारों में एक से एक रचनात्मक सुर्ख़ियां बनाई गईं, जो इन देशों की भारत के चुनावों को लेकर समझ और सोच का नतीजा थीं. इस लेख में हम दक्षिण एशिया श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान के मीडिया में भारत के आम चुनावों को लेकर चली ख़बरों पर नज़र डालेंगे, ताकि हम 2024 के आम चुनाव को लेकर उनकी कवरेज को समझ सकें. इन देशों के मीडिया द्वारा भारत के आम चुनावों की जो कवरेज की गई, वो ज़्यादातर दो बातों पर आधारित थी: इन देशों के साथ भारत के रिश्ते और इन देशों के अपने घरेलू हालात.
भारत के आम चुनाव की श्रीलंका के मीडिया में कवरेज की मोटे तौर पर दो बड़ी ख़ूबियां नज़र आई थीं: पहली, श्रीलंका के हर मीडिया ने चुनाव को लेकर जो ख़बरें प्रकाशित कीं, उनमें निरपेक्षता की छाप थी और तथ्यों पर कुछ ज़्यादा ही ज़ोर दिया गया था.
श्रीलंका
भारत के आम चुनाव की श्रीलंका के मीडिया में कवरेज की मोटे तौर पर दो बड़ी ख़ूबियां नज़र आई थीं: पहली, श्रीलंका के हर मीडिया ने चुनाव को लेकर जो ख़बरें प्रकाशित कीं, उनमें निरपेक्षता की छाप थी और तथ्यों पर कुछ ज़्यादा ही ज़ोर दिया गया था. ये चलन आम तौर पर श्रीलंका के तमाम अख़बारों में दिखा, फिर चाहे वो किसी भी दल के नज़दीकी क्यों न रहे हों (टेबल-1 देखें). मसलन, सत्ताधारी यूनाइटेड नेशनल पार्टी और मुख्य विपक्षी दल समागी जना बलावेगाया (SJB). दूसरा, श्रीलंका के अख़बारों ने बार बार इस तथ्य पर ज़ोर दिया था कि संसद में बीजेपी को बहुमत हासिल नहीं हुआ था.
टेबल 1. श्रीलंका के अख़बार, सुर्ख़ियां और उनके राजनीतिक संबंध
स्रोत: लेखक का अपना संकलन
श्रीलंका के अख़बारों में भारत के आम चुनाव के ऐसी कवरेज की एक संभावित वजह पिछले एक दशक के दौरान भारत और श्रीलंका के संबंधों का मिज़ाज रहा है. 2014 से संसद में बीजेपी का बहुमत था. इसकी वजह से मोदी सरकार को श्रीलंका के साथ भारत के रिश्तों को तमिल फैक्टर से आगे बढ़ाने और श्रीलंका की सरकार के साथ बहुआयामी रिश्ते क़ायम करने का मौक़ा मिला. इससे श्रीलंका को भी कनेक्टिविटी की कई परियोजनाएं हासिल हुईं और विकास की कई पहलों में साथ आने का मौक़ा मिला. भारत ने पानी की आपूर्ति की परियोजनाओं, आवासीय योजनाओं और अस्पतालों के निर्माण में निवेश किया और उसने श्रीलंका को एंबुलेंस व्यवस्था, टीकाकरण और कोविड-19 के दौरान जिन स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता पड़ी उनमें भी मदद दी. कई मौक़ों पर भारत, श्रीलंका की मदद करने वाले देशों में सबसे आगे भी रहा.
आर्थिक और राजनीतिक संकट के दौरान भारत ने श्रीलंका को चार अरब डॉलर की सहायता उपलब्ध कराई. इसके बाद दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रयासों ने श्रीलंका में भारत विरोधी जज़्बात कम करने और श्रीलंका में भारत विरोधी लॉबी को कमज़ोर करने में मदद की है. वहीं दूसरी तरफ़, एक मज़बूत जनादेश की वजह से भारत सरकार को चीन के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अपनाने और श्रीलंका के ज़रिए उसका विरोध करने का भी मौक़ा दिया.
पिछले एक दशक के दौरान संसद में बीजेपी को हासिल बहुमत के श्रीलंका के लिए अपने फ़ायदे और नुक़सान थे. इन कारणों ने ही श्रीलंका के मीडिया के कवरेज पर भी असर डाला और इसे तथ्यों पर अधिक आधारित बनाया. इस मामले में श्रीलंका के मीडिया का कवरेज लगातार इस बात को रेखांकित करता रहा कि संसद के चुनाव में बीजेपी को बहुमत हासिल नहीं हुआ. शायद श्रीलंका का मीडिया ये अंदेशा जता रहा था कि इससे श्रीलंका को लेकर भारत की नीति और विशेष रूप से चीन और तमिल मसलों पर भी असर पड़ेगा.
पाकिस्तान के मीडिया ने इस बात का जश्न मनाया कि बीजेपी को लोकसभा में बहुमत नहीं हासिल हुआ. इंटरनेशनल न्यूज़ समेत पाकिस्तान के कई अख़बारों ने इस बात को रेखांकित किया कि इस वक़्त जेल में बंद अलगाववादी कश्मीरी नेता भी संसद के चुनाव में जीत गए
पाकिस्तान
पाकिस्तान में भारत के आम चुनाव के कवरेज के दो बड़े ट्रेंड देखने को मिले: पहला, ज़्यादातर कवरेज विचारधारा पर आधारित था और भारत विरोधी जज़्बातों का इज़हार करने वाला था. दूसरा, पाकिस्तान के मीडिया ने इस बात का जश्न मनाया कि बीजेपी को लोकसभा में बहुमत नहीं हासिल हुआ. इंटरनेशनल न्यूज़ समेत पाकिस्तान के कई अख़बारों ने इस बात को रेखांकित किया कि इस वक़्त जेल में बंद अलगाववादी कश्मीरी नेता भी संसद के चुनाव में जीत गए और पाकिस्तानी अख़बारों ने इस बात पर तसल्ली जताई कि भारत की संसद में अलगाववादी ताक़तों की संख्या बढ़ रही है.
टेबल 2. पाकिस्तान के अख़बार उनकी हेडलाइन और जुड़ाव
स्रोत: लेखक का अपना संकलन
पाकिस्तान और भारत के संबंध आज़ादी के बाद से पेचीदा और उथल-पुथल भरे रहे हैं. हालांकि, पिछले एक दशक के दौरान भारत ने पाकिस्तान के प्रति नरम रुख़ छोड़कर कड़ा रवैया अपनाया है, जो पाकिस्तान के लिए मुश्किल भरा रहा है. मोदी सरकार की ‘आतंकवाद और बात साथ साथ नहीं हो सकते’, 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक, 2018 की बालाकोट एयरस्ट्राइक और कश्मीर से धारा 370 हटाने जैसी नीतियों ने पाकिस्तान को मजबूर किया है कि वो भारत के ऊपर दबाव बनाने के लिए आतंकवादी संगठनों को हथियार बनाने की अपनी नीति पर पुनर्विचार करे. इसके अलावा, मोदी सरकार के अमेरिका के साथ बेहतर होते रिश्ते, तालिबान के साथ रिश्तों का प्रबंधन और पूर्वी एवं दक्षिणी पड़ोसी देशों के साथ भारत द्वारा क्षेत्रीय कनेक्टिविटी बढ़ाने पर ज़ोर देने की वजह से पाकिस्तान अप्रासंगिक बन चुका है.
पाकिस्तान के प्रति भारत की इस सख़्त नीति ने वहां के मीडिया को प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करने और बीजेपी द्वारा संसद में बहुमत हासिल करने में नाकाम रहने का जश्न मनाने के लिए प्रेरित किया है. यही नहीं, पाकिस्तान के मौजूदा आर्थिक संकट और वहां लगातार बनी हुई राजनीतिक अस्थिरता के बीच, वहां के मीडिया में भारत की नकारात्मक छवि पेश करने की रफ़्तार बढ़ गई है. पाकिस्तान का मीडिया लोकतंत्र के कमज़ोर होने, अस्थिर अर्थव्यवस्था और अल्पसंख्यकों के अनिश्चित भविष्य के हवाले से ये बताने की कोशिश करता है कि भारत के हालात बिगड़ रहे हैं. इससे वहां के मीडिया को अपने अवाम का ध्यान घरेलू मसलों से हटाने, देश के बंटवारे को लगातर जायज़ ठहराने और भारत के पाकिस्तान के सरकारी मज़हब और इस तरह मुल्क का स्थायी दुश्मन बताने में मदद मिलती है.
बांग्लादेश
बांग्लादेश में भारत के आम चुनाव के कवरेज को लेकर तीन बड़े चलन देखने को मिले. पहला तो ये कि सभी अख़बारों में निरपेक्षता के साथ भारत की ख़बरें पेश की गईं. दूसरा, न्यूज़ के कवरेज में ये रेखांकित किया गया कि इस बार संसद में बीजेपी के पास बहुमत नहीं है. तीसरा ज़ोर इस बात पर था कि भारत में विपक्षी दलों ने एक विश्वसनीय और अच्छी लड़ाई लड़ी. बांग्लादेश के कुछ मीडिया ने ये भी कहा कि भारत के लोकतंत्र की मज़बूती के लिए एक मज़बूत विपक्ष का होना बहुत ज़रूरी है.
टेबल 3. बांग्लादेश के अख़बार, उनकी हेडलाइनें और मालिकाना हक़
स्रोत: लेखक का अपना संकलन
बांग्लादेश में भारत के विपक्षी दल कांग्रेस (INC) को एक ख़ास तबक़े के बीच काफ़ी पसंद किया जाता है. इसकी वजह 1971 में बांग्लादेश को आज़ाद कराने में कांग्रेस सरकार की भूमिका रही है. यही नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने भी भारत के सभी दलों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखे थे. वो कई बार भारत दौरे पर विपक्षी दलों और ख़ास तौर से कांग्रेस के नेताओं से मिला करती थीं. यही वजह है कि बांग्लादेश के मीडिया में कांग्रेस के चुनावी प्रदर्शन की लगातार प्रशंसा देखने को मिलती रही है.
बांग्लादेश के मीडिया में बीजेपी की जीत को लेकर निष्पक्ष कवरेज देखने को मिली. क्योंकि बांग्लादेश को ये उम्मीद है कि मोदी सरकार के अगले पांच साल के कार्यकाल के दौरान बांग्लादेश और बाक़ी के क्षेत्र को आर्थिक विकास की रफ़्तार जारी रखने में मदद मिलेगी.
वहीं दूसरी ओर, पिछले एक दशक के दौरान भारत और बांग्लादेश के आपसी संबंध लगातार बेहतर होते गए हैं. भारत और बांग्लादेश ने सीमा और समुद्री विवादों को लेकर अपने मतभेद सुलझा लिए हैं और मूलभूत ढांचे और कनेक्टिविटी की कई परियोजनाओं में दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं. 2023 तक, इनमें से कनेक्टिविटी की कई परियोजनाओं, विशेष रूप से परिवहन, व्यापार और ऊर्जा क्षेत्र की योजनाओं को पूरा करने के लिए भारत ने बांग्लादेश को 9 अरब डॉलर से ज़्यादा का क़र्ज़ दिया था. पिछले कुछ वर्षों के दौरान बांग्लादेश के आर्थिक विकास की तेज़ गति ने भी उसे भारत के साथ क्षेत्र के भीतर कनेक्टिविटी की परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. इन सकारात्मक बदलावों की वजह से ही बांग्लादेश के मीडिया में बीजेपी की जीत को लेकर निष्पक्ष कवरेज देखने को मिली. क्योंकि बांग्लादेश को ये उम्मीद है कि मोदी सरकार के अगले पांच साल के कार्यकाल के दौरान बांग्लादेश और बाक़ी के क्षेत्र को आर्थिक विकास की रफ़्तार जारी रखने में मदद मिलेगी.
पड़ोसी देशों में ऐसे कवरेज के मायने
भारत में आम चुनाव के नतीजों का एलान होने के बाद, पूरे क्षेत्र के अख़बारों ने इनकी अपने अपने तरीक़े से व्याख्या की थी. इन व्याख्याओं पर पिछले एक दशक के दौरान इनमें से हर देश के साथ भारत के संबंध और इन देशों के अपने घरेलू हालात का असर भी देखने को मिला. कुछ देशों ने सरकार की निरंतरता को एक सकारात्मक नज़रिए से देखा, तो कुछ की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही.
हालांकि, आम चुनाव के तीन महीने बीत जाने के बाद अब भारत ख़ुद को एक मुश्किल हालात में देख रहा है. क्योंकि, श्रीलंका में आम चुनाव होने जा रहे हैं और बांग्लादेश में नई हुकूमत सत्ता में आ गई है. इस वजह से इन देशों के मीडिया में भारत की सकारात्मक छवि और कवरेज पर भी असर पड़ा है. मिसाल के तौर पर बांग्लादेश में अगस्त महीने में शेख़ हसीना के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद से वहां भारत की काफ़ी आलोचना हो रही है. इसी तरह, श्रीलंका के मीडिया घराने कुछ भारतीय परियोजनाओं की लगातार आलोचना करते रहे हैं. ये मीडिया घराने इस ग़लत बात को भी प्रचारित करते हैं कि भारत, श्रीलंका में आने वाले अप्रवासियों को भी नियंत्रित कर रहा है. असल में श्रीलंका के एक नागरिक द्वारा ऐसा आरोप लगाने का वीडियो वायरल हुआ था. इससे ये भी पता चलता है कि पड़ोसी देशों के मीडिया घराने भारत की ख़बरें दिखाते वक़्त आपसी संबंधों और घरेलू हालात को भी ध्यान में रखते हैं. कई बार, जब इन देशों में आम जनता की राय भारत के ख़िलाफ़ होती है, तो इन देशों का मीडिया भी उसका फ़ायदा उठाने से नहीं चूकता और अपने पाठकों/श्रोताओं का दायरा बढ़ाने के लिए भारत विरोधी जज़्बात को उभारता है.
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