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मानवता के इतिहास में कोविड-19 एक ऐसी महामारी के तौर पर दर्ज़ की जाएगी, जिसने पूरी दुनिया को बदल डाला. ये एक ऐसा संकट है, जिससे हर देश की सरकार को बड़ी सावधानी से निपटना होगा.
कोविड-19 की महामारी के बढ़ते वैश्विक प्रभावों के चलते इस बात को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं कि इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट से कैसे निपटा जाए.
इस महामारी का दुनिया पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ा है. अभी तक इसका पूरी तरह से आकलन भी नहीं किया जा सका है कि इस महामारी ने दुनिया के तमाम स्तंभों को किस क़दर हिला कर रख दिया है. फिर भी, इस महामारी के अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, राजनीति और नीति निर्माण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव बिल्कुल स्पष्ट हैं. ‘विकसित’ देशों की ही तरह, इस महामारी की चपेट में आए अफ्रीका पर इसके कुप्रभाव इतने व्यापक हैं कि ये नहीं कहा जा सकता कि इन्हें बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है.
विश्व बैंक, हर दूसरे साल ‘अफ्रीका पल्स’ के नाम से अफ्रीका के सहारा क्षेत्र के देशों की वित्तीय, आर्थिक और कल्याणकारी स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रकाशित करता है. इस रिपोर्ट के ताज़ा आंकड़े देखने पर साफ़ हो जाता है कि कोविड-19 की महामारी के कारण, अफ्रीका के सहारा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पिछले पच्चीस वर्षों में पहली बार सुस्ती के दौर से गुज़र रही है. कोविड-19 के कारण इस इलाक़े का आर्थिक विकास जो वर्ष 2019 में 2.4 प्रतिशत था, वो वर्ष 2020 में घटकर माइनस 2.1 प्रतिशत से माइनस 5.1 प्रतिशत तक गिर गया है.
सहारा क्षेत्र के अफ्रीकी देशों की अर्थव्यवस्था में इस गिरावट की बड़ी वजह ये हो सकती है कि ये देश अपने यहां से कच्चे माल के निर्यात पर बहुत अधिक आश्रित हैं. और इन उत्पादों की क़ीमत कोरोना वायरस का प्रकोप फैलने के साथ ही लगातार गिरती जा रही है. उदाहरण के तौर पर, नाइजीरिया में कोविड-19 महामारी के कारण व्यापार और वैल्यू चेन पर बहुत बुरा असर पड़ा है. जो कुछ महीनों पहले तक, अपना पांव जमाने में यहां बहुत अच्छी स्थिति में थे. यही हाल नाइजीरिया में विदेशी निवेश और वित्त के प्रवाह का भी देखा जा रहा है.
इस महामारी का प्रकोप फैलने से पहले, नाइजीरिया की अर्थव्यवस्था सिर्फ़ एक उत्पाद यानी कच्चे तेल के निर्यात पर निर्भर थी. और वर्ष 2014 के बाद से वैश्विक बाज़ार में कच्चे तेल के दाम में उठा-पटक के चलते, नाइजीरिया की आर्थिक स्थिति पहले से ही डांवाडोल चल रही थी. कच्चे तेल के दाम गिरने के कारण, वर्ष 2019 में नाइजीरिया का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) गिर कर महज़ 2.3 प्रतिशत ही रह गया था. और आज की तारीख़ में नाइजीरिया की अर्थव्यवस्था क़र्ज़ के भारी बोज तले कराह रही है. ऐसे में कोरोना वायरस के कारण पैदा हुईं आर्थिक चुनौतियां उसके लिए और मुश्किलें खड़ी कर रही हैं.
अफ़सोस की बात ये है कि वर्ष 2020 की पहली तिमाही तक नाइजीरिया का तेल से आमदनी का लक्ष्य 940.91 अरब न्यारा से घटकर केवल 125.52 रह गया. नाइजीरिया के वित्त मंत्री ज़ैनब अहमद के अनुसार, इससे नाइजीरिया की सरकार के भयंकर ग़रीबी और बेरोज़गारी दर से निपटने के प्रयास जारी रखने में दिक़्क़त होगी. इस समय नाइज़ीरिया की चालीस फ़ीसद आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे बसर कर रही है. वहीं, नाइजीरिया में वर्ष 2020 के आख़िर तक बेरोज़गारी की दर 49.5 प्रतिशत पहुंचने की आशंका जताई जा रही है.
इस समय नाइज़ीरिया की चालीस फ़ीसद आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे बसर कर रही है. वहीं, नाइजीरिया में वर्ष 2020 के आख़िर तक बेरोज़गारी की दर 49.5 प्रतिशत पहुंचने की आशंका जताई जा रही है.
नाइजीरिया की तल्ख़ आर्थिक हक़ीक़त की पुष्टि विश्व बैंक की रिपोर्ट से भी होती है. जिसमें इस बात की आशंका जताई गई है कि अगस्त 2020 के आख़िर तक नाइजीरिया की अर्थव्यवस्था सुस्ती की शिकार हो जाती है. इस वजह से नाइजीरिया के ग़रीबों की हालत और ख़राब होने का डर है. क्योंकि वित्तीय और आर्थिक विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि नाइजीरिया की अर्थव्यवस्था एक और सुस्ती का झटका नहीं झेल पाएगी.
नाइजीरिया की सरकार के संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है. हालांकि, नाइजीरिया का निजी क्षेत्र, अफ्रीकी देशों के सबसे प्रभावशाली प्राइवेट सेक्टर में से एक माना जाता है. फिलहाल, नाइजीरिया के निजी क्षेत्र ने सरकार के ख़र्च का बोझ उठाने में काफ़ी योगदान दिया है. जिससे कि नाइजीरिया की अर्थव्यवस्था और जनता पर महामारी का बोझ कुछ कम पड़े.
जब मार्च महीने में कोविड-19 की महामारी ने नाइजीरिया ने धावा बोला था, तो देश के केंद्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए एक ख़रब न्यारा के स्टिमुलस पैकेज का एलान किया था. इसके कुछ दिनों बाद, नाइजीरिया की सरकार ने देश की संसद यानी नेशनल असेंबली से कहा था कि वो अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए 500 अरब न्यारा के बजट को मंज़ूरी देने के लिए कहा था. इसके अलावा सरकार ने देश के आपातकालीन फंड से भी 15 करोड़ डॉलर निकाले थे. इसके अलावा सरकार ने ये संकेत भी दिए हैं कि वो कोविड-19 महामारी के प्रभाव से बचने के लिए तमाम बहुपक्षीय संगठनों से 6.9 अरब डॉलर का क़र्ज़ लेगी, ताकि ग़रीबों के कष्ट दूर किए जा सकें. लेकिन, चिंता इस बात की है कि कोविड-19 के कारण नाइजीरिया में जो एक और समस्या बढ़ सकती है, वो है भ्रष्टाचार. नाइजीरिया के संगठनों में पारदर्शिता और जवाबदेही की भारी कमी है.
नाइजीरिया की जनता केवल कोविड-19 महामारी के कारण ही संकट में नहीं फंसी है. सबसे बड़ी चिंता की बात तो ये है कि इस महामारी के कारण देश की स्वास्थ्य व्यवस्था और मेडिकल सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं. संयुक्त राष्ट्र बाल आपात कोष (UNICEF) ने अनुमान लगाया है कि नाइजीरिया में महामारी के स्वास्थ्य सेवाओं पर दुष्प्रभाव के चलते अगले छह महीनों में लगभग एक लाख 71 हज़ार या प्रतिदिन 950 बच्चों की जान जा सकती है.
20 अगस्त तक अफ्रीका महाद्वीप में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की तादाद क़रीब साढ़े ग्यारह लाख थी. जबकि, ये महामारी अफ्रीकी देशों में 27 हज़ार से अधिक लोगों की जान ले चुकी है. हालांकि, अब तक साढ़े आठ लाख से ज़्यादा लोग इस वायरस से मुक्त भी हो चुके हैं.
पार्टनरशिप फॉर एविडेंस बेस्ड रिस्पॉन्स (PERC) की हालिया ख़बरें इशारा करती हैं कि अफ्रीकी देशों द्वारा शुरुआत में ही तेज़ी से क़दम उठाने के कारण कुछ देशों में कोरोना वायरस का प्रकोप उतनी तीव्र गति से नहीं फैला. हालांकि नाइजीरिया की सरकार ने भी कोरोना वायरस का प्रकोप थामने के लिए तेज़ी से क़दम उठाए थे. जैसे कि नाइजीरिया में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर आ रहे लोगों की जांच लागोस शहर में कोविड-19 का पहला मरीज़ मिलने से क़रीब एक महीने पहले ही शुरू कर दी थी. लेकिन, इससे नाइजीरिया में महामारी का प्रकोप रोक पाने में कोई ख़ास सफलता नहीं मिली.
20 अगस्त तक अफ्रीका महाद्वीप में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की तादाद क़रीब साढ़े ग्यारह लाख थी. जबकि, ये महामारी अफ्रीकी देशों में 27 हज़ार से अधिक लोगों की जान ले चुकी है. हालांकि, अब तक साढ़े आठ लाख से ज़्यादा लोग इस वायरस से मुक्त भी हो चुके हैं. स्वास्थ्य के विशेषज्ञ कहते हैं कि अफ्रीका महाद्वीप में अभी ये महामारी अपने शिखर पर नहीं पहुंची है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आशंका जताई है कि अफ्रीका के 47 देशों में इस महामारी से 83 हज़ार से लेकर लेकर एक लाख नब्बे हज़ार लोगों तक की जान जा सकती है. मरने वालों की संख्या इस बात पर निर्भर करेगी कि अफ्रीकी देशों की सरकारें हालात से निपटने के लिए क्या क़दम उठाती हैं.
इस घातक वायरस का नाइजीरिया के स्वास्थ्य कर्मचारियों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है. देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी इसके दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं. और ये चुनौती उस वक़्त सामने खड़ी है, जब देश की स्वास्थ्य सेवाएं संसाधनों, प्रशिक्षित कर्मचारियों और सामान्य कर्मचारियों की भारी कमी का सामना कर रही हैं. नाइजीरिया के ग्रामीण इलाक़ों में तो हालात और भी बुरे हैं.
वर्ष 2001 में अफ्रीकी देशों की सरकारों के प्रमुख, नाइजीरिया की राजधानी अबुजा में जमा हुए थे. तब इन नेताओं ने तय किया था कि वो अपने अपने देशों के कुल बजट का कम से कम 15 प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यय करेंगे. लेकिन, हक़ीक़त ये है कि आज नाइजीरिया के कुल बजट का महज़ 3.9 प्रतिशत हिस्सा ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में आवंटित किया जाता है.
अब नाइजीरिया के अमीर हों या ग़रीब, सबको अपने देश के स्वास्थ्य के सिस्टम पर ही निर्भर रहना है. नाइजीरिया की तमाम सरकारें देश, की स्वास्थ्य व्यवस्था की चुनौतियों से निपटने में कभी भी गंभीर नहीं रहीं.
दिलचस्प बात ये है कि इस महामारी के चलते नाइजीरिया के स्वास्थ्य के क्षेत्र में थोड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. क्योंकि सरकार और उसके साथ कुछ नागरिकों ने हालात सुधारने में अपनी पूरी ताक़त झोंकी हुई है. इस वक़्त, नाइजीरिया में मेडिकल टूरिज़्म को पूरी तरह बंद कर दिया गया है. इसलिए, अब नाइजीरिया के अमीर हों या ग़रीब, सबको अपने देश के स्वास्थ्य के सिस्टम पर ही निर्भर रहना है. नाइजीरिया की तमाम सरकारें देश, की स्वास्थ्य व्यवस्था की चुनौतियों से निपटने में कभी भी गंभीर नहीं रहीं. और आज उसी वजह से हालात इतने ख़राब हैं. जबकि, कोरोना वायरस की महामारी देश पर अपना क़हर ढा रही है.
इस दुविधा के बीच, नाइजीरिया में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो इस महामारी के निदान के लिए हर्बल विकल्पों को आज़माने और इस पर रिसर्च बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में नाइजीरिया के कई वैज्ञानिकों ने हर्बल तरीक़े से कोविड-19 का इलाज करने का दावा किया है. लेकिन, नाइजीरिया के राष्ट्रपति की कोरोना वायरस पर टास्क फ़ोर्स ने केवल तीन हर्बल इलाजों को ही मान्यता दी है. और इन नुस्खों को देश की नेशनल एजेंसी फॉर फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (NAFDAC) के पास भेजा है. जिससे कोविड-19 के हर्बल इलाज के दावों की हक़ीक़त की पड़ताल की जा सके. साथ ही साथ ये पता भी लगाया जा सके कि कहीं इन जड़ी बूटियों के इस्तेमाल से इंसानों को कोई नुक़सान तो नहीं होता. लेकिन, इसका ये अर्थ बिल्कुल नहीं है कि नाइजीरिया ने कोरोना वायरस का इलाज ढूंढ लिया है.
अभी कोविड-19 के कारण पूरी दुनिया में इंसानों की जान और अस्तित्व पर बड़ा ख़तरा मंडरा रहा है. ये किसी को नहीं मालूम है कि ये महामारी कैसे और किन हालात में ख़त्म होगी. मानवता के इतिहास में कोविड-19 एक ऐसी महामारी के तौर पर दर्ज़ की जाएगी, जिसने पूरी दुनिया को बदल डाला. ये एक ऐसा संकट है, जिससे हर देश की सरकार को बड़ी सावधानी से निपटना होगा. ख़ासतौर से तब और, जब तमाम देश धीरे-धीरे अपनी बंद पड़ी अर्थव्यवस्था को खोल रहे हैं.
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Peace Chikodinaka Eze is a Broadcast Journalist with vast knowledge in covering issues of development crisis politics and gender.She is a Co-anchor of one of ...
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