Author : Sameer Patil

Published on Jul 28, 2023 Updated 0 Hours ago

आतंकवाद के उभरते ख़तरों के मद्देनज़र भारत ने आतंक-निरोध के क्षेत्र में अपने जुड़ावों का आधार व्यापक बना लिया है

Counter-terrorism: आतंक-निरोध के क्षेत्र में भारत का अंतरराष्ट्रीय पटल पर बढ़ता रुतबा!
Counter-terrorism: आतंक-निरोध के क्षेत्र में भारत का अंतरराष्ट्रीय पटल पर बढ़ता रुतबा!

18-19 नवंबर 2022 को भारत ने नई दिल्ली में ‘नो मनी फ़ॉर टेरर‘ के तीसरे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की मेज़बानी की. गृह मंत्रालय द्वारा आयोजित इस मंथन से पहले हालिया वक़्त में भारत दो अन्य अहम बैठकों की मेज़बानी कर चुका है. 28-29 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United nations) की आतंक-निरोधी समिति (CTC) की विशेष बैठक मुंबई और दिल्ली में हुई. जबकि 18-21 अक्टूबर को नई दिल्ली में इंटरपोल (अंतरराष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन) की महासभा की 90वीं बैठक का आयोजन हुआ. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी, फ़ाइनेंसियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) की “ग्रे लिस्ट” से पाकिस्तान को हटाए जाने और वर्चुअल माध्यमों पर आतंकी हिंसा के बढ़ते प्रभाव के बीच इन बैठकों से भारत को सीमा पार आतंकवाद से जंग में अपनी ख़ास चिंताओं को रेखांकित करने का अवसर मिला. साथ ही आतंकवाद से निपटने की क़वायद में भारत के फैलते अंतरराष्ट्रीय जुड़ावों का भी इज़हार होता है. 

2022 की वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (GTI) रिपोर्ट में आतंकवाद के चलते हुई मौतों में 1.2 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई. रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी मौतों की तादाद घटकर 7,142 हो गई. ग़ौरतलब है कि साल 2015 में ऐसी मौतों का आंकड़ा अपने सर्वोच्च स्तर पर था.

2022 की वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (GTI) रिपोर्ट में आतंकवाद के चलते हुई मौतों में 1.2 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई. रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी मौतों की तादाद घटकर 7,142 हो गई. ग़ौरतलब है कि साल 2015 में ऐसी मौतों का आंकड़ा अपने सर्वोच्च स्तर पर था. हालांकि, आतंकी हमलों की तादाद 17 फ़ीसदी बढ़कर 5,226 पर पहुंच गई. 2021 में अकेले दक्षिण एशिया में आतंकवाद के चलते जान गंवाने वालों की संख्या 1,829 दर्ज की गई. ऐसा मुख्य रूप से अफ़ग़ानिस्तान में मची अस्थिरता की वजह से देखने को मिला. 2021 की सबसे भीषण आतंकी वारदात अगस्त में काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हुआ आत्मघाती बम हमला था, जिसमें 170 लोगों की जान चली गई थी. GTI रिपोर्ट में कोविड-19 महामारी के चलते आतंकी गतिविधियों में गिरावट का अनुमान जताया गया, हालांकि महामारी से जुड़ी पाबंदियों में वैश्विक रूप से ढिलाई दिए जाने के चलते ऐसी आतंकी ताक़तें दोबारा अपना सिर उठा सकती हैं.  

उभरती प्रौद्योगिकी, फैलता आतंकवाद

संगठित आतंकी समूह कुंद पड़ चुके हैं. ऐसे में धुंधले मिज़ाज वाले आतंकवाद का ख़तरा पनपने लगा है. क़ानून की तामील कराने वाली और ख़ुफ़िया एजेंसियों के सामने ये विकराल चुनौती है और वैश्विक स्तर पर इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है. चरमपंथी विचारों से प्रभावित ऐसे लोग ही गाहे-बगाहे आतंकी हिंसा को अंजाम दे रहे हैं. इन्हें ‘लोन वुल्फ़्स’ या ‘DIY’ या ‘फ्रीलांसर’ आतंकवादी कहा जाता है. इनका स्थापित आतंकी संगठनों से कोई औपचारिक नाता या खुला संपर्क नहीं होता. ऐसे लोग अपने दुष्प्रचार और उग्रवादी गतिविधियों के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया की ताक़त का भरपूर इस्तेमाल करने लगे हैं. जून 2022 में उदयपुर में सिर कलम करने की बर्बर घटना से आतंकवाद का ये बेढब रूप उभरकर सामने आया. 

हाल के वर्षों में FATF और दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की नियामक क़वायदों में औपचारिक वित्तीय तंत्र को सचेत करने पर ज़ोर दिया गया है. इनमें बैंकिंग जगत और विदेशों में रकम भेजने वाले प्रतिष्ठान शामिल हैं. ये क़दम काफ़ी कारगर रहे हैं.

उधर आतंकवादियों और आतंकी संदिग्धों ने द ओनियन राउटर (TOR) की मदद से संचालित डार्कनेट का इस्तेमाल बढ़ा दिया है. वो अपने दुष्प्रचार के लिए इसका जमकर प्रयोग कर रहे हैं. साथ ही सुरक्षा एजेंसियों की निग़ाह से परे इन्क्रिप्टेड चैट फ़ोरम्स और प्लेटफ़ॉर्मों पर लोगों की भर्तियों के काम को अंजाम दे रहे हैं. इसके साथ ही विकसित होती और उभरती प्रौद्योगिकियां, आतंकियों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के नए साधन और संभावनाएं मुहैया करवा रही हैं. इनमें ऑटोनॉमस सिस्टम्स, 3डी प्रिंटिंग और डीप फ़ेक प्रौद्योगिकियां शामिल हैं. 

मुंबई और दिल्ली में CTC की बैठकों की विदेश मंत्रालय ने सह-अध्यक्षता की. ये मंथन कई मायनों में अहम रहा. इसमें नई और उभरती प्रोद्योगिकियों के आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल की वारदातों से निपटने पर ज़ोर दिया गया. इन बैठकों में सदस्य देशों को इस क्षेत्र में उभरते रुझानों से सचेत किया गया. साथ ही बेहतरीन तौर-तरीक़े साझा करने से जुड़े अवसर भी मुहैया करवाए गए. 20 अक्टूबर को बैठक के अंत में पारित “दिल्ली घोषणापत्र” में इन चुनौतियों से निपटने के लिए ग़ैर-बाध्यकारी दिशानिर्देशक सिद्धांत तैयार करने की योजनाओं का एलान किया गया. इनमें बेहतरीन तौर-तरीक़ों का संग्रह होगा और उन्हीं प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल किया जाएगा जिनका आतंकी संगठन दुरुपयोग करते हैं. इससे भी अहम बात ये है कि घोषणापत्र में आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह की मौजूदगी पर चिंता जताई गई. अप्रत्यक्ष रूप से ये पाकिस्तान की ओर इशारा था. इसे सीमा पार आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत के जंग को लेकर संयुक्त राष्ट्र की दो टूक नसीहत के तौर पर समझा जा सकता है. 

दिल्ली घोषणापत्र में आतंकी वित्त के प्रवाह को रोकने की अहमियत पर भी ज़ोर दिया गया. दरअसल ये सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. हाल के वर्षों में FATF और दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की नियामक क़वायदों में औपचारिक वित्तीय तंत्र को सचेत करने पर ज़ोर दिया गया है. इनमें बैंकिंग जगत और विदेशों में रकम भेजने वाले प्रतिष्ठान शामिल हैं. ये क़दम काफ़ी कारगर रहे हैं. इस कड़ी में हम पाकिस्तान की मिसाल ले सकते हैं, जिसको भारत-विरोधी आतंकी समूहों से अपना समर्थन वापस लेने (कम से कम सार्वजनिक तौर पर) पर मजबूर होना पड़ा. हालांकि ऐसी सख़्ती ने इन समूहों को अनौपचारिक वित्तीय प्रणालियों (जैसे हवाला) पर ज़्यादा निर्भर रहने को प्रेरित किया है. जुमे की नमाज़ के बाद दिए जाने वाले सदक़ात (Friday prayers donations), मजहबी ख़ैरात, ज़कात और नशीले पदार्थों की बिक्री जैसे आपराधिक कारनामों से मिलने वाले फ़ंड्स की लॉन्ड्रिंग बढ़ी है. आतंकी संगठनों को हवाला के ज़रिए रकम मुहैया कराए जाने की कार्रवाइयों से भारत एक लंबे समय से जूझता आ रहा है. इसी कड़ी में दूसरे छोर पर क्रिप्टोकरेंसियों जैसे तौर-तरीक़े शामिल हैं. आतंकी संगठन अपनी गतिविधियों के लिए रकम जुटाने के मक़सद से इनका धड़ल्ले से इस्तेमाल करते रहे हैं. अगस्त 2020 में सुर्ख़ियों में छाए ऐसे ही एक मामले में अमेरिकी न्याय विभाग ने अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़े तीन आतंकी नेटवर्कों की कमर तोड़ डाली थी. ये समूह अपनी गतिविधियों के लिए फ़ंड जुटाने के मक़सद से क्रिप्टोकरेंसी के ज़रिए ख़ैरात जुटाने की कोशिशों में लगे थे. 

क्रिप्टोकरेंसियों के संदर्भ में ख़ुफ़िया और क़ानून-व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों को ब्लॉकचेन लेन-देनों की टोह रखने और उनपर निगरानी रखने की व्यवस्था को मज़बूत बनाना होगा. इसके लिए फ़ॉरेंसिक, निगरानी प्रणालियों और प्रशिक्षण से जुड़ी क़वायदों की बेहतरीन व्यवस्था की दरकार होगी.

‘नो मनी फ़ॉर टेरर’ सम्मेलन, आतंकी संगठनों और आतंकवादियों के लिए फ़ंडिंग के पारंपरिक और अत्याधनिक स्रोतों से निपटने और उनका तोड़ निकालने से जुड़ी चर्चाओं के लिए एक अहम मंच साबित हुआ है. हालांकि इस कड़ी में ये बात बिलकुल सच है कि हवाला नेटवर्क अपने आप में बेहद मज़बूत साबित हुआ है. ये इतनी जल्दी और तत्काल ख़त्म होने वाला नहीं है, हालांकि इसको कमज़ोर करने के लिए क़दम उठाए जा सकते हैं. इसके लिए सुरक्षा एजेंसियों को हवाला से पैदा ख़तरों और दक्षिण एशियाई आतंकी समूहों को धन मुहैया कराने में इसकी भूमिका के बारे में क्षेत्रीय और वैश्विक समझ सुधारने पर तवज्जो देना होगा.

चूंकि रकम के हस्तांतरण की ये व्यवस्था भरोसे पर काम करती है, लिहाज़ा सुरक्षा एजेंसियों को इस क़वायद की काट निकालने और इसकी लानत-मलानत करने के लिए “लीक से हटकर” सोचना होगा. दरअसल, प्रवासियों का एक समुदाय विदेशों से अपनी रकम वतन भेजने के लिए हवाला व्यवस्था पर निर्भर करता है. इस समूह को औपचारिक वित्तीय प्रणालियों का इस्तेमाल करने को प्रेरित करना होगा. इसके लिए वित्तीय क्षेत्र के किरदारों से तालमेल बिठाने की ज़रूरत पड़ेगी ताकि विदेशों से रकम भेजने की लागत घटाई जा सके और इस प्रक्रिया के वैकल्पिक साधनों का ख़ात्मा किया जा सके.

क्रिप्टोकरेंसियों के संदर्भ में ख़ुफ़िया और क़ानून-व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों को ब्लॉकचेन लेन-देनों की टोह रखने और उनपर निगरानी रखने की व्यवस्था को मज़बूत बनाना होगा. इसके लिए फ़ॉरेंसिक, निगरानी प्रणालियों और प्रशिक्षण से जुड़ी क़वायदों की बेहतरीन व्यवस्था की दरकार होगी. इससे ये सुनिश्चित किया जा सकेगा कि आतंकवादी उभरती प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल कर नुक़सान पहुंचाने में कामयाब ना हो सकें. इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग से तालमेल भरा रुख अपनाए जाने की आवश्यकता है. एक-दूसरे के बेहतरीन तौर-तरीक़ों से सबक़ लेकर उनका इस्तेमाल करते हुए आगे बढ़ने की दरकार होगी. इनमें जोख़िम का आकलन करने से लेकर साझा मानक स्थापित करने तक की क़वायदें शामिल हैं. हाल ही में संपन्न ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन, ऐसे तालमेल क़ायम करने के लिहाज़ से एक अहम मंच साबित हुआ. 

अच्छा और बुरा आतंकवाद

इंटरपोल के तवज्जो का दायरा आतंक-निरोधी गतिविधियों से परे है. इसके बावजूद आतंकवाद और उससे जुड़ी आपराधिक गतिविधियों से निपटने के लिए ये संस्था बेहद अहम है. पिछले कुछ सालों से इंटरपोल की पड़ताल का ज़्यादा ज़ोर आपराधिक गतिविधियों पर रहा है. बहरहाल, नई दिल्ली में संपन्न ताज़ा बैठक की मेज़बानी के ज़रिए भारत ने इस संगठन के एजेंडे को नया आकार दे दिया है. अब इसके दायरे में आतंकवाद और आपराधिक करतूतों के बीच के संपर्कों की पड़ताल का एजेंडा भी जुड़ गया है. साथ ही नार्को-टेरर, साइबर माध्यमों से चरमपंथी बनाने की क़वायदों, संगठित आपराधिक गिरोहों और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े क्षेत्रों पर भी तवज्जो देना तय हो गया है.

ऐसे वैश्विक जमावड़े हिंदुस्तान को सुरक्षा और क़ानून का पालन सुनिश्चित करने वाली दूसरी एजेंसियों के साथ आतंक-निरोधी सहयोग में मज़बूती लाने का मौक़ा देते हैं. इतना ही नहीं, भारत अपने कार्यक्रमों (जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर समग्र सम्मेलन) की ओर भी उनका ध्यान खींचने में कामयाब होता है.

दिल्ली में महासभा ने वित्तीय अपराध और भ्रष्टाचार पर तालमेल से जुड़े प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी. इसके तहत अवैध वित्तीय प्रवाहों को कम करने और आगे चलकर पूरी तरह से समाप्त करने पर ज़ोर दिया गया है. यही वित्त, आतंकवादी और आपराधिक गतिविधियों की बुनियाद मुहैया कराता है. इसी मक़सद से सदस्य-राष्ट्रों ने फ़ाइनेंसियल क्राइम एनालिसिस फ़ाइल में अपने योगदान को और मज़बूती बनाने की प्रतिबद्धता जताई. दरअसल, यही दस्तावेज़ वित्तीय अपराध और संगठित आपराधिक गतिविधियों के ख़िलाफ़ कारगर ख़ुफ़िया जानकारियां तैयार करता है और समय-समय पर उनसे जुड़े ख़तरों का आकलन करता है. इसके अलावा सदस्य-राष्ट्रों ने इंटरपोल के डेटाबेस को अपने राष्ट्रीय वित्तीय ख़ुफ़िया सूचना इकाइयों तक पहुंच मुहैया कराने पर भी हामी भर दी है. इनमें SLTD डेटाबेस (यात्रा और पहचान दस्तावेज़) शामिल हैं. इस क़वायद से विभिन्न क्षेत्राधिकारों में आने-जाने के लिए जाली यात्रा दस्तावेज़ों का इस्तेमाल करने वाले आतंकवादियों और अपराधियों से जुड़े मामलों की पड़ताल आसान हो जाएगी. 

ऐसे वैश्विक जमावड़े हिंदुस्तान को सुरक्षा और क़ानून का पालन सुनिश्चित करने वाली दूसरी एजेंसियों के साथ आतंक-निरोधी सहयोग में मज़बूती लाने का मौक़ा देते हैं. इतना ही नहीं, भारत अपने कार्यक्रमों (जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर समग्र सम्मेलन) की ओर भी उनका ध्यान खींचने में कामयाब होता है. साथ ही पहले से ज़्यादा प्रभावी आतंकनिरोधी उपायों की संरचना तैयार करने के लिए आतंकवाद को परिभाषित करने की ज़रूरत भी उभरकर सामने आती है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इंटरपोल की मीटिंग में यही विचार सामने रखे. उनके मुताबिक “सभी देशों को आतंकवाद और आतंकवादी की स्पष्ट परिभाषा पर रज़ामंद होना चाहिए. एक ओर अगर आतंकवाद से मिलकर लड़ने की प्रतिबद्धता है लेकिन दूसरी ओर ‘अच्छे आतंकवाद, बुरे आतंकवाद’ और ‘आतंकी हमलों को बड़ा या छोटा’ बताने का रुख़ जारी रहा तो दोनों विमर्श साथ-साथ नहीं चल पाएंगे.”  

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