Published on Jan 17, 2022 Updated 0 Hours ago

गवर्नेंस के मज़बूत मानकों के साथ ही भारत का कॉरपोरेट क्षेत्र पूंजी के बेहतर प्रवाह और निवेशकों के समर्थन की उम्मीद कर सकता है. 

#Corporate India: भारतीय उद्योग जगत के लिए गवर्नेंस से जुड़ी पहल

ये लेख गवर्नेंस प्रॉपोज़िशन ऑफ़ 2022 सीरीज़ का हिस्सा है.


साल 2020 और 2021 में भारत के कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए नियमों, नियमनों और नीतिगत मसलों में कई तरह की रियायतें दी गईं. इन दोनों वर्षों में नीति निर्माता और नियामक उद्योग जगत की अनेक मांगों और अनुरोधों पर काफ़ी हमदर्दी के साथ पेश आए. बहरहाल, इन रियायतों के बावजूद विकास का इंजन मनमाफ़िक़ रफ़्तार से नहीं दौड़ सका है. ऐसे में हमें इन तमाम व्यवस्थाओं के तहत उन मसलों पर ग़ौर करना चाहिए जिनमें हमें लक्ष्य के मुताबिक कामयाबी नहीं मिल पाई. ख़ासतौर से ESG (पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासन) के दायरों में इस तरह की ख़ामियों पर ध्यान देने की सख़्त आवश्यकता है. ऐसी ही एक अग्निपरीक्षा अगले तीन महीनों में कॉरपोरेट गवर्नेंस के दायरे में होने वाली है. बहरहाल उम्मीद है कि नियमों में छूट दिए जाने को लेकर अब आगे किसी तरह की मांग नहीं उठेगी. भारत दुनिया में विशाल उपभोक्ता बाज़ार वाला एक अहम आर्थिक ताक़त है. ज़ाहिर है भारत को वैश्विक निवेशकों की उम्मीदों के हिसाब से अपने नीतिगत विमर्श तय करने होंगे. साल 2022 में मुख्यधारा के राष्ट्रीय एजेंडे में इनमें से कई मसलों को शामिल किया जा सकता है. इसी संदर्भ में ‘अपने तौर-तरीक़ों पर डटे रहने’ को लेकर नियामकों की क़ाबिलियत को भी सामने रखना होगा.  

भारत दुनिया में विशाल उपभोक्ता बाज़ार वाला एक अहम आर्थिक ताक़त है. ज़ाहिर है भारत को वैश्विक निवेशकों की उम्मीदों के हिसाब से अपने नीतिगत विमर्श तय करने होंगे. साल 2022 में मुख्यधारा के राष्ट्रीय एजेंडे में इनमें से कई मसलों को शामिल किया जा सकता है.

सीएमडी की भूमिकाओं का बंटवारा

कॉरपोरेट गवर्नेंस में सुधार के लिए भारत के उद्योग जगत को चेयरपर्सन और मैनेजिंग डायरेक्टर (एमडी) की भूमिकाओं को सच्चे अर्थों में बांटने की क़वायदों में जुट जाना चाहिए. सिक्योरिटीज़ बाज़ार की नियामक सेबी के बनाए नियम के मुताबिक 1 अप्रैल 2022 से चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर (सीएमडी) के पदों को अलग-अलग करना होगा. बाज़ार पूंजी के हिसाब से शीर्ष की 500 इकाइयों पर ये नियम लागू होगा. मूल रूप से इस नियम को 2020 के मध्य से ही प्रभावी होना था. हालांकि, उद्योग जगत के अनुरोध पर इस नियम की पालना के लिए 2 और वर्षों का समय दिया गया था. 10 जनवरी 2020 को सेबी (LODR) (संशोधन) नियमन 2020 की पालना को लेकर ये रियायत दी गई थी. इस मसले पर सेबी अध्यक्ष के सार्वजनिक बयान के मुताबिक “दोनों किरदारों को अलग किए जाने से एक ही शख़्स के हाथों में ज़रूरत से ज़्यादा शक्तियों के केंद्रीकरण में कमी आएगी.

पारिवारिक कारोबारों को कमज़ोर प्रशासकीय ढांचे से जुड़ी चिंताओं का भी तेज़ गति से निपटारा करना होगा. इनमें रिलेटेड पार्टी ट्रांज़ैक्शन जैसे मुद्दे शामिल हैं. इनके अलावा उन्हें विविधता सुनिश्चित करने वाली पहलों और व्हिसिल ब्लोअर नीतियों को भी सक्रियता के साथ आगे बढ़ाना होगा.

पारिवारिक कारोबार सबसे ऊपर

ग़ौरतलब है कि भारत की शीर्ष 500 कंपनियों में से 300 पारिवारिक कारोबार हैं. उद्योग जगत की एक बड़ी दलील ये है कि इन प्रमोटर-एक्ज़ीक्यूटिव्स ने ज़मीन से आग़ाज़ कर अपने कारोबार को ऊपर पहुंचाया है. लिहाज़ा उनकी दौलत इन्हीं इकाइयों में केंद्रित है. पारिवारिक कारोबारों को कमज़ोर प्रशासकीय ढांचे से जुड़ी चिंताओं का भी तेज़ गति से निपटारा करना होगा. इनमें रिलेटेड पार्टी ट्रांज़ैक्शन जैसे मुद्दे शामिल हैं. इनके अलावा उन्हें विविधता सुनिश्चित करने वाली पहलों और व्हिसिल ब्लोअर नीतियों को भी सक्रियता के साथ आगे बढ़ाना होगा. दरअसल, ऐसे कारोबारों के प्रशासकीय अंदाज़ या तौर-तरीक़ों से मौजूदा दौर की पूंजी बाज़ारों की ज़रूरतें सामने दिखाई देनी चाहिए. इन मानकों की पूर्ति करने और उनसे आगे निकलकर उनके बारे में बेहतर ढंग से सूचनाएं आगे बढ़ाने से मूल्यांकन के दौर में “प्रीमियम” स्तर हासिल किया जा सकता है. इसकी बजाए ‘विरासती’ मसलों को ही आगे बढ़ाने से कोई ख़ास प्रतिक्रिया सामने नहीं आएगी. 

पिछले कुछ वर्षों से भारत के उद्योग जगत में कॉरपोरेट गवर्नेंस से जुड़े पहलुओं को मज़बूत करने के लिए कई तरह के नियामक क़ानून सामने आते रहे हैं. इनमें रिलेटेड पार्टी ट्रांज़ैक्शन से जुड़े मसले भी शामिल हैं. हालांकि, इस रास्ते पर आगे बढ़ने से अब भी कुछ हलकों से हिचक सामने आ रही है. उनको प्रेरित करने के लिए सीएडी के पद का बंटवारा एक अहम कारक साबित हो सकता है. 

संयुक्त सीएमडी पोस्ट की बेलगाम शक्तियां

जब एक ही व्यक्ति के पास दोनों पद होते हैं तो वो प्रभावी तौर पर शक्ति का केंद्र बन जाता है. वो अकेला शख़्स ही हर बात का फ़ैसला करता है. अपने पद की बदौलत वो किसी भी मसले में देरी कर सकता है. चेयरपर्सन आम तौर पर नॉन-एक्ज़ीक्यूटिव (अगर इसके विपरीत बातें स्पष्टता के साथ न लिखी गई हों) होगा. बोर्ड के एजेंडा मसलों पर उसका पूरा इख़्तियार होगा. वो बोर्ड मीटिंगों की गतिविधियों का संचालन करेगा. ज़रूरत पड़ने पर उसके पास बैठक को स्थगित करने का अधिकार भी होगा. बोर्ड से जुड़े मसलों में वो न सिर्फ़ एजेंडा आइटम तय करते हैं बल्कि तमाम प्रश्नों और मुद्दों पर जवाब भी देते हैं. इस संदर्भ में एमडी बोर्ड को ‘रिपोर्ट’ करेगा. चेयरपर्सन ही बोर्ड का पदेन अध्यक्ष होता है. ज़्यादातर आर्टिकल ऑफ़ एसोसिएशनों (AoA) में किसी तरह के गतिरोध की स्थिति में चेयरपर्सन के पास निर्णायक वोटिंग का अधिकार होता है. अगर सीएमडी की भूमिका साझा रूप से रहती है तो किसी तरह के गतिरोध के हालात में उस व्यक्ति के पास दो वोट करने का अधिकार होता है. 

सरकारी मानकों का सही परीक्षण तब होता है जब आगे बताए गए मसलों पर परिचर्चा होती है और फ़ैसले लिए जाते हैं. इनमें अहम प्रबंधकीय कमर्चारियों की नियुक्तियां, रिलेटेड पार्टी ट्रांज़ैक्शन, नए कारोबारों या बिल्कुल ही अलग उत्पाद श्रेणियों के लिए विविधता से जुड़ी योजनाओं जैसे मुद्दे शामिल हैं.

बोर्ड की कई चर्चाएं नियमित कारोबारी और नियम पालना से जुड़े मुद्दों से जुड़ी होती हैं. सरकारी मानकों का सही परीक्षण तब होता है जब आगे बताए गए मसलों पर परिचर्चा होती है और फ़ैसले लिए जाते हैं. इनमें अहम प्रबंधकीय कमर्चारियों की नियुक्तियां, रिलेटेड पार्टी ट्रांज़ैक्शन, नए कारोबारों या बिल्कुल ही अलग उत्पाद श्रेणियों के लिए विविधता से जुड़ी योजनाओं जैसे मुद्दे शामिल हैं. अच्छे नतीजों के लिए बोर्ड की बैठकों में स्वस्थ परिचर्चा से जुड़ी ठोस प्रक्रिया की ज़रूरत होती है. इस प्रक्रिया से पहले संबंधित मुद्दों पर बोर्ड की  विशेष उपसमिति तैयार हो जानी चाहिए. मिसाल के तौर पर मनोनयन और मेहनताने से जुड़ी बोर्ड कमेटी केएमपी से जुड़ी बहालियों पर चर्चा करती है. इस सिलसिले में एक मुनासिब तौर-तरीक़ा तो यही होगा कि एमडी (जो पूर्णकालिक चीफ़ एक्ज़ीक्यूटिव होता है) बोर्ड सदस्यों को प्रक्रिया, गुणों और जोख़िम कारकों के बारे में जानकारी दे और अपनी सिफ़ारिशें सामने रखे. उसके बाद बोर्ड के लिए डेटा प्वांटों के साथ चर्चा करने और तार्किक रूप से कोई फ़ैसला ले पाने की प्रक्रिया व्यावाहरिक रूप ले सकती है. मुद्दे पर मतभेदों के बावजूद बोर्ड की परिचर्चाओं में उन तमाम बिंदुओं को सामने रखने की ये पूरी क़वायद फ़ायदेमंद साबित हो सकती है. 

वैकल्पिक तौर पर अगर बोर्ड में ‘कठपुतली’ चेयरपर्सन हो (बुनियादी रूप से एमडी द्वारा लाया गया) तो चेयरपर्सन और एमडी के किरदारों को अलग-अलग करने की क़वायद बेमतलब की ही साबित होगी. चालाक कंपनियां एक्ज़ीक्यूटिव वाइस-चेयरपर्सन की नियुक्त के ज़रिए या कंपनीज़ एक्ट 2013 के तहत रिश्तेदार की श्रेणी में न आने वाले किसी पारिवारिक सदस्य को चेयरपर्सन के तौर पर नियुक्ति कर इस नियमन को ठेंगा दिखाने की कोशिश कर सकती हैं. इस तरह की किसी भी क़वायद से ऐसे नियमन के बुनियादी मकसद पर ही पानी फिर सकता है. शक्तिशाली एमडी के ख़िलाफ़ खड़े होने का नैतिक साहस और संजीदगी रखने वाले चेयरपर्सन से ही ये नियमन कारगर साबित हो सकता है.  

दीर्घकालिक पूंजी

गवर्नेंस के मज़बूत मानकों के साथ ही भारत का कॉरपोरेट क्षेत्र पूंजी के बेहतर प्रवाह और निवेशकों (पूंजी बाज़ार और निजी निवेशों, दोनों में) के समर्थन की उम्मीद कर सकता है. भारत में पारिवारिक उद्यमों का ही दबदबा है. इन उद्यमों को कारोबार में परिवार के सदस्यों की भूमिकाओं और जवाबदेहियों और परिवार से बाहर के पेशेवर नेतृत्व की प्रशासकीय पहलुओं में संतुलन क़ायम करने की जद्दोजहद करनी होगी. ऐसे में ये देखना होगा कि ऐसे पारिवारिक उद्यम कारोबार की विकास यात्रा के दौरान निर्णय लेने की अपनी रफ़्तार की हिफ़ाज़त कर सकते हैं या नहीं.

भारत के कई पारिवारिक कारोबारों में भारतीय बाज़ारों में एक या दो पीढ़ियों की मौजूदगी रही है. ऐसे में ऊपर बताए गए बदलावों ने पारंपरिक रूप से परिवारों के मालिक़ाना हक़ वाले या परिवार द्वारा प्रबंधित कारोबारों में सोच-विचार के एक नए दौर का आग़ाज़ कर दिया है.

भारत के कई पारिवारिक कारोबारों में भारतीय बाज़ारों में एक या दो पीढ़ियों की मौजूदगी रही है. ऐसे में ऊपर बताए गए बदलावों ने पारंपरिक रूप से परिवारों के मालिक़ाना हक़ वाले या परिवार द्वारा प्रबंधित कारोबारों में सोच-विचार के एक नए दौर का आग़ाज़ कर दिया है. इसके पीछे मुनासिब कारण भी मौजूद हैं. कई शोध अध्ययन लगातार ये दिखाते रहे हैं कि पारिवारिक कारोबारों में परिवार से जुड़े फ़र्म के दीर्घकालिक फ़ैसले लेने और अपने दांव चलने की क़ाबिलियत संस्थागत व्यवस्था वाले फ़र्मों की तुलना में ज़्यादा होती है. परिवार से बाहर के एक्ज़ीक्यूटिव स्तर के प्रबंधकों (non-family C-suites) और स्वतंत्र निदेशकों को बोर्ड में शामिल कर पाने की क्षमता बेहद अहम हो जाती है. कारोबार को आगे बढ़ाने की ज़्यादातर योग्यता या कारोबारी उपायों को प्रासंगिक बनाए रखने से जुड़ी क़वायद इसी धुरी पर टिकी होती है. दरअसल कारोबारी मालिक़ों से “प्रमोटर-शेयरहोल्डर” का किरदार निभाने की उम्मीद की जाती है. ऐसे में चीफ़ एक्ज़ीक्यूटिव के तौर पर अपनी भूमिका को प्रबंधक या व्यवस्थापक के रूप में अपने किरदार से अलग कर पाने की क्षमता काफ़ी महत्वपूर्ण हो जाती है.

हमने पहले ही देखा है कि  ‘बोर्ड रूम में कठपुतली का खेल’ खेले जाने से इन नियमनों के पीछे के असल लक्ष्यों पर ही पानी फिर सकता है. ऐसे में ये वक़्त ही बताएगा कि भारतीय उद्योग जगत के पास इन नए नियमनों को सार्थक बनाने की क़ाबिलियत है या नहीं. 

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