Published on Jul 29, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत के सफ़ल टीकाकरण अभियान और उसकी रणनीतियों में उपयुक्त बदलावों का सकारात्मक परिणाम हमें तीसरी लहर के दौरान देखने को मिल रहा है.

#कोविड19: भारत में कोरोना महामारी की तीसरी लहर: भविष्य में कैसी हैं संभावनाएं
#कोविड19: भारत में कोरोना महामारी की तीसरी लहर: भविष्य में कैसी हैं संभावनाएं

नवंबर 2021 के तीसरे हफ़्ते में, भारत में रोज़ाना 7000 से 9000 कोरोना के मामले आ रहे थे. कोरोना के टीकाकरण में तेज़ी आ रही थी और मांग से अधिक टीके की आपूर्ति थी. ऐसी उम्मीद थी कि 2022 की शुरूआत में, जीवन फिर से सामान्य हो जायेगा. तभी, नवंबर के आख़िरी हफ़्ते में, ओमिक्रॉन (बी.1.1.529) वेरिएंट (जो कोविड-19 वायरस का पांचवां और सबसे नया वेरिएंट है, जिसे चिंताजनक की श्रेणी में रखा गया है) के उभरने से लगभग सब कुछ बदल गया.

भारत अब कोरोना की तीसरी लहर का सामना कर रहा है. नए मामलों में तेज़ी से वृद्धि हुई है और 19 जनवरी 2022 को भारत में कोरोना संक्रमण के लगभग 317,000 नए मामले दर्ज किए गए. भारत के लगभग सभी राज्यों में टेस्ट पॉज़िटिविटी रेट (टीपीआर) का रुझान ऊपर की ओर जाता हुआ दिख रहा है. पुराने नियमों के विपरीत, जहां कोरोना वायरस की सक्रियता की अवधि चौदह दिन मानी गई थी, नए नियमों के तहत इसे घटाकर सात दिन कर दिया गया और इसके बावजूद कोरोना के सक्रिय मामलों की संख्या पिछले सात महीनों में अपने उच्चतर स्तर पर है.

आधिकारिक तौर दर्ज किए गए मामलों में क़रीब 80 से 90 फ़ीसदी मामले बिना लक्षणों वाले या मामूली लक्षणों वाले संक्रमण हैं. अस्पतालों में बेडों (सामान्य के साथ- साथ ऑक्सीजन की सुविधा वाले), आईसीयू वार्डों में भर्ती मरीज़ों की संख्या बेहद कम रही है.

इसके अतिरिक्त, आधिकारिक तौर पर पुष्ट ओमिक्रॉन मामलों की संख्या, 20 जनवरी 2022 तक, केवल 9200 पर अटकी थी. आधिकारिक आंकड़ें उन मामलों पर आधारित हैं, जिनकी जीनोम सीक्वेंसिंग की गई, और ये परीक्षण कोरोना संक्रमण के बहुत कम मामलों के साथ किया जाता है. हालांकि, पिछले कुछ हफ़्तों में, जेनेटिक सीक्वेंसिंग के लिए भेजे गए सभी नमूनों में अधिकांश मामले ओमिक्रॉन वेरिएंट के थे. दिल्ली में जीनोम सीक्वेंसिंग वाले सभी नमूनों में 90 फ़ीसदी ओमिक्रॉन संक्रमण के मामले थे, और मुंबई के लिए यही आंकड़ा 60 फ़ीसदी था. जीनोम सीक्वेंसिंग के आंकड़ों के अनुसार, सभी राज्यों में ओमिक्रॉन के मामले बढ़ते जा रहे हैं. हम यह भी जानते हैं कि भारत में कोरोना की विनाशकारी दूसरी लहर के पीछे डेल्टा वेरिएंट था, और इसलिए इसके कारण तीसरी लहर के पैदा होने की संभावना न्यून है.

हालिया लहर के दौरान कुछ बातें राहत भरी भी हैं. आधिकारिक तौर दर्ज किए गए मामलों में क़रीब 80 से 90 फ़ीसदी मामले बिना लक्षणों वाले या मामूली लक्षणों वाले संक्रमण हैं. अस्पतालों में बेडों (सामान्य के साथ- साथ ऑक्सीजन की सुविधा वाले), आईसीयू वार्डों में भर्ती मरीज़ों की संख्या बेहद कम रही है (जिसे मध्यम से गंभीर बीमारी के रूप में सार्स कोव2 संक्रमण की ‘डी- कपलिंग’ कहा जा रहा है). जिनका पूर्ण टीकाकरण हो चुका है, उनके लक्षणों के साथ बीमार पड़ने की संभावना बेहद कम है. इसके अलावा स्वास्थ्य प्रणाली से जुड़ी कुछ ख़बरें राहत देती हैं. अस्पतालों में कोरोना के मरीज़ भर्ती हैं; लेकिन विशेष रूप से कोरोना संक्रमण के लिए आरक्षित किए गए ज़्यादातर बेड खाली हैं. और, इन बिस्तरों पर भर्ती लोग ‘संयोग’ से संक्रमित पाए गए, जबकि अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के चलते उनकी अस्पताल में भर्ती की गई थी. आईसीयू में भर्ती किए गए लगभग सभी कोरोना मरीज़ ऐसे थे, जिनका अभी टीकाकरण नहीं हुआ था या फिर उन्हें अन्य स्वास्थ्य समस्याएं थीं.

भारत में राज्य और केंद्र सरकारों ने काफ़ी संतुलित तरीके से महामारी के खिलाफ़ कदम उठाया है, जो आंकड़ों के साथ-साथ पब्लिक हेल्थ के आदर्शों पर आधारित है. केंद्र सरकार ने कोरोना संक्रमण की जांच, क्वारंटीन नियमों, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, उपचारों के लिए दिशानिर्देशों और अस्पताल से छुट्टी देने संबंधी चुनिंदा नीतियों में महत्त्वपूर्ण बदलाव किए हैं.

पिछली लहरों के साथ तुलना

महामारी-विज्ञान के तौर पर देखें, तो भारत में कोरोना मामलों के पैटर्न और अस्पताल में भर्ती मरीज़ों की आबादी को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि तीसरी लहर अन्य दो लहरों से भिन्न है. ऐसा क्यों? इसका ज़वाब कई कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें पिछले दो सालों में वायरस के प्राकृतिक संक्रमण की दर और वयस्क आबादी के बीच टीकाकरण (क़रीब 90 फ़ीसदी वयस्क आबादी ऐसी है, जिसने कम से कम एक टीका लगवाया है, वहीं पूर्ण टीकाकरण वाले वयस्कों की संख्या 70 फ़ीसदी है. पिछले एक साल में देश में कुल 157 करोड़ टीके लगाए गए हैं), और उच्च रूप से संक्रामक मगर अपेक्षाकृत कम ख़तरनाक ओमिक्रॉन वेरिएंट का व्यापक प्रसार आदि कारक इसमें शामिल हैं. आंकड़ों से ये साफ़ है कि कोरोना वैक्सीन संक्रमण के परिणाम पर असर डालने में सक्षम हैं, उससे एक व्यक्ति को गंभीर बीमारी, अस्पताल में भर्ती कराने की मजबूरी और मौत से बचाया जा सकेगा. हालिया लहर के दौरान हम कोरोना वैक्सीनों की प्रभाविता को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं.

इसके अलावा ये समझना ज़रूरी है कि कोरोना वैक्सीन (जिन्हें भारत द्वारा अपनाया गया है) संक्रमण के प्रसार को रोकने में सीमित है. इसलिए टीकाकरण के बावजूद कोई व्यक्ति संक्रमित हो सकता है. संक्रमण से बचने और वायरस के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक है कि टीकाकरण के बावजूद एक व्यक्ति सार्वजनिक जगहों पर मास्क लगाकर जाए. यहां तक कि, डेल्टा वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन के तीन से चार गुना ज़्यादा संक्रामक होने के कारण ये पहले भी कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो गया है कि लोग मास्क से जुड़े नियमों का सख्ती से पालन करें. लोगों को सही तरह का मास्क चुनने और अपने परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के साथ उठने बैठने के दौरान कमरे के भीतर और बाहर दोनों जगह लगातार मास्क पहनना ज़रूरी है. 

मौजूदा लहर के दौरान, कुछ अपवादों के बावजूद, भारत में राज्य और केंद्र सरकारों ने काफ़ी संतुलित तरीके से महामारी के खिलाफ़ कदम उठाया है, जो आंकड़ों के साथ-साथ पब्लिक हेल्थ के आदर्शों पर आधारित है. केंद्र सरकार ने कोरोना संक्रमण की जांच, क्वारंटीन नियमों, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, उपचारों के लिए दिशानिर्देशों और अस्पताल से छुट्टी देने संबंधी चुनिंदा नीतियों में महत्त्वपूर्ण बदलाव किए हैं. अब कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग पर ज़ोर कम है. संक्रमित पाए जाने के बाद क्वारंटीन में रहने की अवधि को घटाकर सात दिन कर दिया गया है बशर्ते आखिरी तीन दिन से बुखार न आ रहा हो. कोरोना परीक्षण से जुड़ी भारत की नवीनतम नीतियां बिना व्यक्तियों की घरों में संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने या सामुदायिक स्थलों पर बिना लक्षणों वाले संक्रमित व्यक्तियों की जांच पर ज़ोर नहीं देती है. पिछले 16 महीनों में पहली बार परीक्षण नियमों में बदलाव किया गया है, जिसके कारण परीक्षण केंद्रों पर पड़ने वाले दबाव में कमी आई है, जिससे थोड़े गंभीर लक्षणों वाले मरीज़ों की समय पर जांच कर पाना आसान हुआ है. इन नियमों में संशोधन के चलते दस दिनों के भीतर ही (जनता में) भय के माहौल में कमी आई और इसके कारण महामारी- प्रबंधन और सरकारी कार्रवाईयों को प्रभावित किए बिना प्रतिबंधों में ढिलाई देना और स्कूलों को फिर से खोलना आसान हो गया.

इस बात को लेकर आम सहमति है कि ओमिक्रॉन की लहर “अचानक आई बाढ़” की तरह है. दो से तीन हफ़्तों में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ेंगे और ठीक उसी गति से दो से तीन हफ़्तों में ये मामले ढलान पर होंगे. ऐसा दक्षिण अफ्रीका और अन्य देशों में देखा गया है.

कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और परीक्षण से जुड़े नई नीतियों और अस्पताल में भर्ती होने से संक्रमण में कम आने के बाद, हमें कोरोना संक्रमण से जुड़े संकेतकों को नए सिरे से देखने की ज़रूरत है ताकि उसके आधार पर हम जवाबी कार्रवाई कर सकें. 2021 के अंत तक, जिस संकेतक को सबसे ज़्यादा प्रयोग में लाया जा रहा था वे कोरोना संक्रमण के नए मामले थे, लेकिन संशोधित नियमों की रोशनी में वह अब एक उपयोगी मानदंड नहीं है. इसलिए, कोरोना महामारी से जुड़ी नीतियों और रणनीतियों का निर्धारण ऐसे संकेतकों के आधार पर करना होगा, जो मौजूदा समय के लिए उपयोगी हैं. जैसे कि अस्पताल और आईसीयू में भर्ती होने की दर.

लोगों में इस बात को लेकर ख़ासी दिलचस्पी है कि किसी शहर विशेष में कोरोना अपने चरम (तीसरी लहर का) पर पहुंचा या नहीं. जबकि परीक्षण नीतियों को संशोधित किया गया है (और ऐसा करना बिलकुल सही है) और बिना लक्षणों वाले मामलों की पहचान नहीं हो पा रही, ऐसे में लहर के चरम पर पहुंचने का अर्थ बेहद सीमित हो जाता है. वास्तव में, व्यापक संक्रमण के बाद तीसरी लहर के अपने चरम पर पहुंचने या उसकी संभावित अवधि से जुड़े कोई सवाल अब मायने नहीं रखते. हमें बस ये याद रखना होगा कि जब तक किसी जगह से संक्रमण के मामले लगातार सामने आ रहे हैं, हमें महामारी के अनुरूप बर्ताव करना होगा.

भारत में तीसरी लहर का प्रसार

सबसे पहले संक्रमण की लहरों से जुड़े विज्ञान और भारत में मौजूदा लहर से जुड़े प्रभावों को समझना होगा. इस बात को लेकर आम सहमति है कि ओमिक्रॉन की लहर “अचानक आई बाढ़” की तरह है. दो से तीन हफ़्तों में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ेंगे और ठीक उसी गति से दो से तीन हफ़्तों में ये मामले ढलान पर होंगे. ऐसा दक्षिण अफ्रीका और अन्य देशों में देखा गया है. इस आधार पर देखें तो, भारत में तीसरी लहर के दौरान चरम का कोई स्पष्ट बिंदु देखने को नहीं मिलेगा. कोरोना के रोज़ाना आ रहे नए मामले पहले से ही उस बिंदु के आस पास पहुंच गए हैं. ये संभव है कि बड़े शहरों (जहां मामले अब ढलान पर हैं) के बाद नए मामले भारत के छोटे शहरों में देखने को मिलें. इसी तरह, यह संभव है कि जब तक शहरी क्षेत्रों में गिरावट देखने को मिले, तब तक ग्रामीण भारत में मामलों उभरना शुरू हो जाएं. जिसका अर्थ ये होगा कि एक के बाद एक बहुत कम समय तीन अलग-अलग लहरों का प्रकोप देखने को मिलेगा, जो सम्मिलित रूप से तीसरी लहर में शामिल कहलाएंगी और संक्रमण के नए मामलों की संख्या लगातार ऊंचाई पर बनी रहेगी. इस आधार पर देखें, तो पारंपरिक रूप से पहाड़ की चढ़ान और ढलान वाले संक्रमण पैटर्न की संभावना कम ही है. साप्ताहिक औसत में चढ़ाव और उतार के बीच बेहद छोटी सी अवधि में बहुत बड़े अंतराल के पैदा होने से पहले और उसके बाद धीमी धीमी गति से मामलों की संख्या में गिरावट आने से पहले बहुत संभव है कि इस बीच रोज़ाना आ रहे कोरोना संक्रमण के मामले आगे कुछ हफ़्तों तक थोड़े उच्च स्तर पर बने रहें.इस लहर में महामारी वक्र के उल्टे ‘U’ आकार के होने की संभावना अधिक होती है. तमाम मॉडल अध्ययनों और महामारी विज्ञान के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि भारत में कोरोना की चल रही मौजूदा लहर फरवरी के अंत या मार्च 2022 की शुरुआत में समाप्त हो सकती है. जनवरी के मध्य से लेकर फरवरी 2022 के मध्य तक वक्र U की सतह तक पहुंचते हुए दिखाई पड़ेगा.

“शून्य कोविड​​-19 मामले” (Zero-COVID policy) जैसी कोई नीति किसी देश के लिए लक्ष्य नहीं हो सकती, जब तक कि देश एक ऐसा द्वीप नहीं है जो दूसरों से पूरी तरह अलग- थलग है या फिर ‘पूर्ण प्रतिरोधक’ क्षमता प्रदान करके वाले कुछ टीके विकसित नहीं कर लिए जाते.

महामारी-विज्ञान पर आधारित समझ का मतलब है कि राज्यों और जिलों को अपने क्षेत्रों में ओमिक्रॉन मामलों के उभार से निपटने के लिए तैयार रहना होगा. हालांकि कुछ रणनीतियों में पहले ही बदलाव देखे जा चुके हैं, लेकिन अन्य कुछ पुरानी रणनीतियों पर भी नई सरसरी नज़र डालने की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि सप्ताह के अंत और रात में कर्फ्यू लगाने से वायरस के प्रसार को रोका जा सकता है. जबकि ज़्यादातर मामले बिना लक्षणों वाले हैं, और कोरोना का प्रसार बहुत व्यापक है, ऐसे में इन प्रतिबंधों की सीमाएं बेहद स्पष्ट हैं. ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां किसी सार्थक नीतिगत हस्तक्षेप के लिए विज्ञान और महामारी-विज्ञान आधारित समझ को अपनाया जाना चाहिए. महामारी के विरुद्ध एक सामाजिक दृष्टिकोण को अपनाए जाने को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि आर्थिक गतिविधियों और वंचित एवं ग़रीब तबकों पर अतिरिक्त दबाव न पड़े.

क्या महामारी का अंत क़रीब है?

जबकि हम सभी मौजूदा लहर को ख़त्म होते देखना चाहते हैं, लेकिन सभी के मन में सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिरकार कोरोना महामारी कब ख़त्म होगी? हालिया घटनाक्रमों, जहां पहले से टीकाकरण करा चुके लोगों में ओमिक्रॉन संक्रमण के कारण शरीर में एंटीबॉडी का स्तर इतना बढ़ गया है, जो उन्हें भविष्य में डेल्टा संक्रमणों से सुरक्षित रखने में सक्षम है, को देखते हुए ये उम्मीद की जा सकती है कि ये वैश्विक महामारी ख़त्म हो सकती है. फिर, सामान्य रूप से वायरस के विकास की प्रक्रिया के अनुसार, पिछले दो सालों में कोविड-19 के संक्रमण और बाद पिछले एक साल में टीकाकरण और ओमिक्रॉन संक्रमण को देखते हुए ये उम्मीद है कि कोरोना की वैश्विक महामारी 2022 के मध्य या उसके अंत में समाप्त हो सकती है. हालांकि, यहां पर दो बातें खड़ी होती हैं. एक, यह तभी संभव है जब कोई ऐसा नया वेरिएंट न आए, जो पहले से भी कहीं ज़्यादा संक्रामक हो या फिर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को चकमा देने में सक्षम हो. दूसरी बात ये है कि अगर धनी देश अपने पास उपलब्ध टीकों को अन्य देशों के साथ साझा करें और टीकाकरण से जुड़ी असमानता को दूर करें.

फिर, हमें यह याद रखने की ज़रूरत है कि जब महामारी खत्म हो जाएगी, तब भी नए कोरोना के मामले सामने आते रहेंगे. “शून्य कोविड​​-19 मामले” (Zero-COVID policy) जैसी कोई नीति किसी देश के लिए लक्ष्य नहीं हो सकती, जब तक कि देश एक ऐसा द्वीप नहीं है जो दूसरों से पूरी तरह अलग- थलग है या फिर ‘पूर्ण प्रतिरोधक’ क्षमता प्रदान करके वाले कुछ टीके विकसित नहीं कर लिए जाते.

एक बार जब कोरोना महामारी समाप्त हो जायेगी, तो अधिकांश लोगों के लिए उसका संक्रमण कोई बड़ा ख़तरा नहीं होगा. हालांकि, स्वास्थ्य संबंधी उच्च जोख़िम वाले लोगों को भविष्य में भी कुछ अतिरिक्त निवारक उपायों का पालन करने और संभवतः टीकों की नियमित बूस्टर खुराक प्राप्त करने की आवश्यकता होगी. ऐसा चरण, जहां कोरोना के नए मामलों की संख्या न्यूनतम हो और देश की स्वास्थ्य प्रणाणी उच्च स्वास्थ्य जोख़िम वाले लोगों की देखभाल, उपचार में सक्षम हो यानी अस्पतालों में भर्ती मरीज़ों को संभालने के लिए हर तरीके से तैयार हो, उसे संक्रमण का स्थानीय प्रकार कहा जायेगा. इसलिए, अलग-अलग क्षेत्रों में कभी-कभार कोरोना संक्रमण के मामले उभरते हुए देखे जाएंगे, जैसा कि डेंगू और चिकनगुनिया वायरसों के मामलों में देखा जाता है. यानी हर थोड़े अंतराल के बाद कुछ मामले आते रहेंगे.

क्या भविष्य में कोरोना वायरस एक स्थानीय बीमारी तक सीमित रहेगा?

इस सवाल का जवाब देने से पहले हमें समझना होगा कि महामारी- विज्ञान में संदर्भ का विशेष महत्त्व है. वर्तमान में वैश्विक महामारी के दौरान हर देश की स्थिति एक- दूसरे से अलग है, यानी संक्रमण की दर, वैक्सीन- कवरेज और ओमिक्रॉन के प्रसार के मामले में विभिन्न देशों के बीच अंतर को समझना होगा. इसलिए, यह संभव है कि हर देश के लिए कोरोना वायरस के स्थानीय महामारी के रूप में सीमित रह जाने की संभावित अवधि अलग-अलग हो. उदाहरण के लिए, अफ्रीकी महाद्वीप में कोरोना वायरस के संक्रमण की दर अपेक्षाकृत धीमी रही है. आबादी के बेहद बेहद छोटे हिस्से में पूर्ण टीकाकरण संभव हो पाया है, इसलिए वहां कोरोना महामारी का ख़तरा लंबे समय तक बना रह सकता है.

भविष्य में महामारियों से जुड़ा ख़तरा इस बात पर निर्भर करेगा कि दुनिया भर के सभी देश आपसी सहयोग के लिए कितने प्रतिबद्ध और एकजुट हैं. अगर दुनिया के कुछ देश अपनी जनसंख्या को टीके की तीसरी और चौथी डोज देने में व्यस्त हों और वहीं अफ्रीकी लोगों को पहली दो खुराकें भी न मिलें, तब नए वेरिएंट का ख़तरा पैदा होगा और महामारी लंबे समय के लिए खिंच सकती है. इस बात की केवल उम्मीद की जा सकती है कि धनी देश ओमिक्रॉन वेरिएंट के उभार से सबक लेंगे और अपने पास उपलब्ध टीकों को साझा करेंगे. इसके साथ ही, ये संभव है कि विभिन्न देश अपनी परिस्थितियों और स्वास्थ्य प्रणाली की सीमाओं को देखते हुए महामारी के चरणों को परिभाषित करें. 

व्यक्तियों और परिवारों के स्तर पर यह उम्मीद की जा सकती है कि लोग इस महामारी से सबक लेंगे और आगे से मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाने से पीछे नहीं हटेंगे. संभावित और आवश्यक रूप से लोगों को प्रिवेंटिव मेडिसिन और हेल्थ एंड वेलनेस पर और अधिक ध्यान देना चाहिए.

वायरस प्रसार के मौजूदा रुझानों के हिसाब से देखें, तो ऐसा लगता है कि भारत में तीसरी लहर मार्च 2020 के दूसरे हफ़्ते या उसके आख़िर में समाप्त हो जाए. इसलिए, भले ही हर राज्य तीसरी लहर से निपटने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह उसकी स्थानिकता के लिए तैयारी करने का भी समय है. 2022 देश की आज़ादी का 75वां साल है. कोरोना महामारी ने हमारी स्वास्थ्य प्रणाली की सीमितताओं को सामने रखा है. अब समय आ गया है कि भारत का हर राज्य साल 2022 में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत बनाने का काम करे. अब समय आ गया है कि सरकारें हर राज्य में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए पुनः प्रतिबद्ध हों. इसके लिए पहला कदम यह होना चाहिए कि राज्य सरकारें स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च को बढ़ाएं. भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के अनुसार, राज्यों को अपने बजट का आठ प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च करना चाहिए लेकिन वास्तविकता में यह केवल पांच प्रतिशत है. अब समय आ गया है कि सभी राज्य स्वास्थ्य- क्षेत्र को प्राथमिकता दें.

इसके अलावा भी 2022 से कुछ उम्मीदें हैं. यह संभव है कि स्वास्थ्य-क्षेत्र में डिजिटल हेल्थ और टेलीमेडिसिन जैसी नए नीतिगत फ़ैसले और पहलें व्यापक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं के प्रसार में सहयोग करें. यह संभव है कि स्वास्थ्य का मुद्दा राज्यों में चुनाव से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन जाए, जहां मतदाता पिछले पांच सालों में स्वास्थ्य क्षेत्र में किए गए काम के आधार पर सत्ताधारी पार्टियों का चुनाव करेंगे.  व्यक्तियों और परिवारों के स्तर पर यह उम्मीद की जा सकती है कि लोग इस महामारी से सबक लेंगे और आगे से मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाने से पीछे नहीं हटेंगे. संभावित और आवश्यक रूप से लोगों को प्रिवेंटिव मेडिसिन और हेल्थ एंड वेलनेस पर और अधिक ध्यान देना चाहिए.

जबकि हम महामारी के ख़ात्मे के लिए प्रयासरत हैं, तात्कालिक रूप से चिंता का सबसे बड़ा बिंदु ये है कि जहां भी मामलों में गिरावट आ रही है, वहां यह सुनिश्चित किए जाने की ज़रूरत है कि कोरोना से इतर अन्य आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं सामान्य स्तर पर आ जाएं. महामारी से जुड़े किसी भी नीतिगत फैसलों को लेने से पहले निम्न एवं वंचित वर्ग को ध्यान में रखना चाहिए. सबसे ज़रूरी बात तो है, कि स्कूलों को तत्काल खोले जाने की आवश्यकता है. बच्चों मे कोरोना संक्रमण के चलते गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा बहुत कम है. हालांकि, स्कूल लगभग दो सालों से बंद रहे हैं, इसलिए ये कहा जा सकता है कि महामारी के कारण भारत में स्कूली शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव सबसे ज़्यादा है.

मौजूदा लहर में सभी राज्य बेहतर काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं. अब बस ज़रूरी है कि कुछ और अवैज्ञानिक दृष्टिकोणों को बदलने और विज्ञान आधारित प्रयासों को अपनाए जाने की आवश्यकता है, और महामारी से निपटने के प्रयासों के केंद्र में पब्लिक हेल्थ को रखा जाना चाहिए, और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि लोग और कुछ हफ़्तों तक कोरोना संक्रमण से जुड़ी व्यावहारिकता का पालन करें. जबकि विश्व के ज़्यादातर धनी महामारी से निकलने की कोशिशें कर रहे हैं, ऐसे में भारत एक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर सकता है.

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