Author : Shruti Jain

Published on Feb 19, 2021 Updated 0 Hours ago

सर्कुलर अर्बन इकोनॉमी की ओर बढ़ने के लिए भारत को पॉलिसी फ्रेमवर्क की ज़रूरत है जो कौशल को विकसित कर सके और औपचारिक रिमैन्युफैक्चरिंग चेन में गैर-पेशेवर मज़दूरों को शामिल कर सके.

2021 की चुनौतियों के मुताबिक ‘डोनट’ शहरों का निर्माण

कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में वैल्यू चेन की व्यवस्था को गहरी चोट पहुंचाई और शहरी अर्थव्यवस्था को संकुचित होने पर मज़बूर कर दिया. इस दौरान शहर ज़्यादा प्रभावित हुए क्योंकि लोगों के रोज़गार ख़त्म हो गए और स्थानीय उद्योग और कारोबारों पर ताला पड़ गया. इतना ही नहीं कोरोना महामारी ने शहरी व्यवस्था को पूरी तरह तार-तार कर दिया और शहरी सुरक्षा से लेकर शहरी रोज़गार और सार्वजनिक ढांचागत सुविधाओं की लोगों तक पहुंच के मौज़ूदा संकट को एक तरह से और बढ़ा ही दिया. ऐसे में दुनिया के सामने अब सबसे बड़ी समस्या जो आने वाली है वो है ऐसे शहरों का निर्माण करना जो सुविधाओं के हिसाब से लचीला हो और समेकित आर्थिक विकास के दायरों से संतुलित भी. और इस समस्या का एक ही समाधान है – सर्कुलर या फिर ‘डोनट’ शहरों का निर्माण करना.

दरअसल, ‘डोनट’ या फिर सर्कुलर शहरों की अवधारणा सर्कुलर इकोनॉमी के सिद्धान्तों से लिया गया है जो सीमा से बंधे शहरी क्षेत्रों में लागू होता है. दिन प्रतिदिन शहरीकरण की बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए सर्कुलर इकोनॉमी के मॉडल इन दिनों बेहद प्रचलित हो रहे हैं. एक सर्कुलर शहर लोकल वेस्ट टू रिसोर्स लूप, स्थानीय खाद्य व्यवस्था और स्थानीय लघु स्तर के मैन्युफैक्चरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधाएं मुहैया करा कर हर तरह से आत्मनिर्भर रहता है. एक सर्कुलर शहर का मक़सद प्रतीकात्मक वस्तुओं को डिजाइन करना होता है जिसमें डिस्मैन्टलिंग, रिफर्बिशिंग, रिसाइकलिंग और रीयूज़ के चक्र को उच्चतम स्तर तक कार्य करने योग्य बनाना होता है. एक सर्कुलर शहर के मॉडल का लक्ष्य ना सिर्फ कच्चे माल पर निर्भरता को कम करना होता है बल्कि जीने योग्य वातावरण मुहैया कराना जिसमें प्रदूषण और कचरे के भार को कम करना भी शामिल है.

दरअसल, ‘डोनट’ या फिर सर्कुलर शहरों की अवधारणा सर्कुलर इकोनॉमी के सिद्धान्तों से लिया गया है जो सीमा से बंधे शहरी क्षेत्रों में लागू होता है. 

दरअसल, एक सर्कुलर इकोनॉमी आर्थिक विकास को उपभोग से अलग रखने के मूल सिद्धांत पर काम करता है. यह मॉडल डिज़ाइन के ज़रिए फिर से खड़ा करने योग्य होता है और इसका ध्यान इस ओर केंद्रित रहता है कि सभी प्रकार के अवशेषों को नए उत्पादन प्रक्रिया के लिए संसाधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सके, जिससे की एक ‘क्लोज़ लूप‘ बनाया जा सके. लीनियर इकोनॉमी के मुक़ाबले एक सर्कुलर इकोनॉमी कीमतों में कमी और उत्पादन की दर को नई तक़नीक़ और इनपुट के सही इस्तेमाल के ज़रिए बढ़ाने की ओर कार्य करता है. फास्ट मूविंग कनज्य़ूमर गुड्स के लिए एक सर्कुलर इकोनॉमी में दुनिया भर में 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर कीमतों में बचत दर्ज़ की जा सकती है. इसके अलावा रिमैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी मज़दूर आधारित रोज़गार और उच्च स्तर के कौशल वाले रोज़गार के मौके बढ़ाने के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ता है. अनुमान है कि भारत में सर्कुलर इकोनॉमी आने वाले दशक में करीब 14 मिलियन रोज़गार पैदा करने की क्षमता रखता है.

तीन वैल्यू चेन पर आधारित, सर्कुलर सिटी मॉडल

अर्थशास्त्री केट रॉवर्थ के डोनट अर्थव्यवस्था के विचार पर आधारित एम्सटर्डम जैसे शहर ने सर्कुलर स्ट्रैटेजी 2020-2025 को अपना लिया जिसका अगला लक्ष्य 2050 तक अपनी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से सर्कुलर बनाना है. एम्सटर्डम सर्कुलर सिटी मॉडल तीन वैल्यू चेन पर केंद्रित है – जिसमें फूड और ऑर्गेनिक वेस्ट, कंज्यूमर गुड्स और बिल्ट एनवायरनमेंट शामिल हैं. इतना ही नहीं इस शहर की मंशा प्राथमिक कच्चे माल के इस्तेमाल को 50 फ़ीसदी कम करना भी है. ऐसे शहरों का लक्ष्य खाद्यान्न उत्पादन के लीनियर फ्लो को ऑर्गेनिक वेस्ट को उत्पादन की कड़ी में वापस ला कर और खाद्यान्नों की बर्बादी को रोक कर इसे तोड़ना है. इसके अतिरिक्त ऐसे शहर की योजना ऐसे बिल्डिंग मुहैया कराने की है जिसके निर्माण में लगी सामग्रियां रिन्यूएबल और वैल्यूएबल हों.

लीनियर इकोनॉमी के मुक़ाबले एक सर्कुलर इकोनॉमी कीमतों में कमी और उत्पादन की दर को नई तक़नीक़ और इनपुट के सही इस्तेमाल के ज़रिए बढ़ाने की ओर कार्य करता है.

फिक्की द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक़ भारत की 697 बिलियन अमेरिकी डॉलर की जीडीपी को सुनिश्चित किया जा सकता है लेकिन इसके लिए साल 2030 तक सर्कुलर बिजनेस मॉडल को अपनाने की ज़रूरत है. भारतीय शहरों में सर्कुलर इकोनॉमी को लागू करने के लिए लोकल पॉलिसी एनवायरनमेंट, नई टेक्नोलॉजी और पार्टनरशिप की आवश्यकता है. समेकित उत्पादों के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जागरूकता उपभोक्ताओं की प्राथमकिताओं में बदलाव कर सकता है, और इसकी पहुंच संसाधन सक्षम विकल्प के तौर पर आसान बना सकता है. सामुदायिक स्तर पर सर्कुलर इकोनॉमी को विकसित करने के लिए उत्पादकों और कारोबारियों के लिए फेवरेबल रेग्यूलेटरी फ्रेमवर्क की ज़रूरत होगी और इसके साथ कलेक्शन, रीसाइक्लिंग और रीयूज़िग को आसान बनाना होगा. उदाहरण के तौर पर द कन्सट्रक्शन एंड डेमोलिशन वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 स्थानीय निकायों को यह अधिकार देता है कि वो म्यूनिसिपल कॉन्ट्रैक्ट के तहत कंस्ट्रक्शन और डेमोलिशन वेस्ट का 20 फ़ीसदी इस्तेमाल कर सकें. सर्कुलर अर्बन इकोनॉमी की ओर बढ़ने के लिए भारत को पॉलिसी फ्रेमवर्क की ज़रूरत है जो कौशल को विकसित कर सके और औपचारिक रिमैन्युफैक्चरिंग चेन में गैर-पेशेवर मज़दूरों को शामिल कर सके. इससे ना सिर्फ़ स्थानीय तकनीक को लागू करने में तेज़ी आएगी बल्कि यह आजीविका की सुरक्षा भी प्रदान करेगा. इसके अतिरिक्त स्थानीय सरकार सर्कुलर इकोनॉमी से जुड़े कदम के लिए बज़ट में वित्त का प्रावधान भी कर सकेगी.

सामुदायिक स्तर पर सर्कुलर इकोनॉमी को विकसित करने के लिए उत्पादकों और कारोबारियों के लिए फेवरेबल रेग्यूलेटरी फ्रेमवर्क की ज़रूरत होगी और इसके साथ कलेक्शन, रीसाइक्लिंग और रीयूज़िग को आसान बनाना होगा.

कोरोना महामारी ने भारतीय शहरों को एक मौका प्रदान किया है कि वो संसाधनों के उच्चतम स्तर के इस्तेमाल, निरंतर रोज़गार पैदा करने, अनावश्यक उपभोग को कम करने और बाहरी आघातों के प्रति लचीलापन विकसित कर सके. निश्चित तौर पर ‘डोनट’ शहरों की तरफ अग्रसर होने से संयुक्त राष्ट्र के समेकित विकास लक्ष्य 11 के लक्ष्यों को भी प्राप्त करने में आसानी हो सकेगी जिसके तहत साल 2030 तक शहरों और इंसानी बस्तियों को इनक्लुसिव, सुरक्षित, लचीला और दीर्घकालिक बनाने की बात कही गई है.

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