Author : Ramanath Jha

Published on Jun 03, 2022 Updated 0 Hours ago

विशेष योजना अथॉरिटी (एसपीए) के स्थापना को लेकर, शहरी स्थानीय निकाय के भौतिक सीमाओं के अंतर्गत जटिलता बढ़ती जा रही है.

#Urban Planning: योजना प्राधिकरण क्षेत्र के अंतर्गत विशेष ‘योजना अथॉरिटी’ के गठन का मसला

राज्य सरकार ने बड़े शहरों में अंतर सरकारी संगठन का निर्माण करने एवं उनको विशेष योजना प्राधिकरण का दर्जा देने की हामी भरी हैं, भले ही वो शहरी स्थानीय निकायों के भौतिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आते हों. इस लेख में चर्चा का विषय एसपीए के गठन की उपयुक्तता है. 

राज्यों के शहरी योजना कानून के अंतर्गत, राज्य सरकारों के अधीन ऐसी शक्तियां है जो किसी अधिसूचित क्षेत्र को एसपीए दर्जा प्रदान कर सके. चाहे वो यूएलबी के अधिकारक्षेत्र के बाहर हो या फिर उनकी भौतिकी सीमा के अंतर्गत. उस प्रकार की घोषणा के उपरांत, वो संस्था जिन्हें एसपीए का दर्जा प्राप्त हो जाता है, वे योजना प्राधिकरण के समतुल्य शक्ति का आनंद ले पाते हैं. वो अधिसूचित क्षेत्र के लिए विकास योजनाओं (डीपी) का मास्टरप्लान तैयार करके उसे अमलीकरण में ला सकते हैं और ज़मीन के इस्तेमाल का निरीक्षण कर पाने और राज्य के शहरी विकास विभाग द्वारा इस डीपी के समग्र सहमति के पात्र हो सकते हैं.   

राज्यों के शहरी योजना कानून के अंतर्गत, राज्य सरकारों के अधीन ऐसी शक्तियां है जो किसी अधिसूचित क्षेत्र को एसपीए दर्जा प्रदान कर सके.

ऐसे किसी हरित क्षेत्रों के लिए एसपीए के सृजन के दौरान, जिन्हें शहरी बस्तियों के तौर पर विकसित किया जा रहा है और जो शहरी स्थानीय संस्था के भौतिक क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं पड़ता है, वो योजना की ज़रूरत बन जाती है, भौतिकी क्षेत्राधिकार के अधीन किसी एसपीए के निर्माण की वांछनीयता को लेकर लोगों के विचार विभाजित हैं. इस मुद्दे के बाबत किसी प्रकार की भी वार्ता, संवैधानिक प्रावधान के तहत शुरू किया जाना चाहिए. यूएलबी के कार्यात्मक डोमेन को परिभाषित करते हुए संविधान के 74वें संसोधन बिल में भारतीय संविधान के अनुसूची 12 की प्रविष्टि हुई, जिनमें निम्नलिखित बातें शामिल हैं:

  • शहरी योजना, जिसमें नगर योजना भी शामिल हो. 
  • भूमि उपयोग और इमारतों के निर्माण का विनियमन. 
  • आर्थिक और सामाजिक विकास की योजना. 

स्पष्ट तौर पर, संविधान के आशय से यह प्रतीत होता है कि शहरी योजना यूएलबी फ़ंक्शन होना चाहिए और यूएलबी को योजना प्राधिकरण’ होना चाहिए. 74वें संशोधन का समग्र ज़ोर, यूएलबी को सशक्त बनाने की थी. ये स्पष्ट तौर पर 74वें संशोधन के उद्देश्यों और कारणों के विवरण में इस उद्देश्य के साथ उल्लेखित है कि  “स्वयं  सरकार की जीवंत लोकतांत्रिक ईकाई” बनायी जा सके.    

संविधान से उल्लेखित प्रावधानों के अनुसार एसपीए का सृजन मुख्यतः ऐसे क्षेत्रों के लिए होना चाहिए, जहां डीपी तैयार किया जा रहा हो, परंतु किसी प्रकार की योजना प्राधिकरण अस्तित्व में ना हो. ऐसी स्थिति में, जैसा पहले कहा गया है, एक विशेष योजना प्राधिकरण का सृजन, कोई विकल्प नहीं हैं; ये एक ज़रूरत बन जाती है. हरित क्षेत्रों की बिल्कुल शुरुआत से ही योजना बनायी जानी चाहिए. नए विकास के लिए नए लक्ष्य और उद्देश्य निहित किए जाने चाहिए और क्षेत्र के लिए योजना की संकल्पना की जानी चाहिए. इसके बाद एक विस्तृत योजना और एक बुनियादी ढांचा योजना तैयार होना चाहिए. एक बार यह योजना तैयार हो जाने के बाद और अनुमति मिल जाने के बाद, इसे दिन-प्रतिदिन के आधार पर प्रशासित करने की आवश्यकता होगी. हालांकि,जहां एक यूएलबी मौजूद है, वो एक योजना प्राधिकरण को सौंपे गए सभी कर्तव्यों की देखरेख करने की क्षमता से संपन्न है. एक क्षेत्र के भीतर  एक एसपीए के निर्माण का अर्थ है कि उस अधिसूचित क्षेत्र के लिए योजना प्राधिकरण के रूप में यूएलबी के अधिकार ख़त्म कर  एसपीए द्वारा आधिपत्य कर लिया जाना. 

संविधान से उल्लेखित प्रावधानों के अनुसार एसपीए का सृजन मुख्यतः ऐसे क्षेत्रों के लिए होना चाहिए, जहां डीपी तैयार किया जा रहा हो, परंतु किसी प्रकार की योजना प्राधिकरण अस्तित्व में ना हो. ऐसी स्थिति में, जैसा पहले कहा गया है, एक विशेष योजना प्राधिकरण का सृजन, कोई विकल्प नहीं हैं

यूएलबी की सीमाओं के अंतर्गत एसपीए का निर्माण, अपरिहार्य अप्रिय स्थितियों से भरा पड़ा है. अब सबसे पहले जो बड़ी परेशानी उत्पन्न हो सकती है वह यह है कि एसपीए द्वारा तैयार की गई योजना, यूएलबी द्वारा बाकी अन्यों के लिए तैयार शेष क्षेत्र के लिए योजना के अनुरूप नहीं हो सकती है. ऐसी संभावना है कि एसपीए का प्लान उस इकाई के – जो एक अन्य संस्था है कथित तौर पर  उसकी ज़रूरतों की सूची से प्रेरित होगी. आगे जो एक परेशानी खड़ी हो सकती है वो यह कि एसपीए, मानक के कोई अन्य विकल्प का इस्तेमाल कर सकती है अथवा सुविधाओं के प्रावधान की जरूरतों के अनुसार छेड़छाड़ कर सकती हैं. उदाहरण के लिए, मुंबई के संदर्भ में ऐसा हो चुका है, जहां मुंबई पोर्ट ट्रस्ट (एमबीपीटी) ने खुद की डीपी ड्राफ्ट की है, जहां नेशनल बिल्डिंग कोड, मुंबई डीपी 2034, सिडको और बाकी अन्य विभिन्न स्त्रोतों के ज़रिए मानक उधार लेकर अपनाया गया है. चुनाव की ऐसी प्रक्रिया ‘चेरी-पिक’ करने के मानकों के मुताबिक दिखती है, जहां अपनी इच्छा पूरी करने की बू आती है. ऐसा अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है.  

इसके अलावा, एसपीए विकास नियंत्रण और पदोन्नति विनियम (डीसीपीआर) का समूह बना सकते हैं, जो एसपीए के क्षेत्रों में डीसीपीआर लागू कर सकता है, जो उस क्षेत्र के लिए काफी नया हो सकता है और यूएलबी के डीसीपीआर का अनुसरण नहीं करता हो. एमसीजीएम डीपी नें ट्रांज़िट ओरिएंटेड विकास (टीओडी) ज़ोन को डीपी द्वारा प्रतिपादित वजहों से नकार दिया है और फॉर्म आधारित कोड को प्रस्तुत नहीं किया है. हालांकि, डीसीपीआर के संदर्भ में, एमबीपीटी द्वारा ड्राफ्ट किए गए डीपी को एमसीजीएम डीसीपीआर 2034 ने मूल दस्तावेज़ के तौर पर स्वीकार कर लिया हैं, उसने टीओडी ज़ोन पेश किए हैं. आगे, फॉर्म आधारित कोड पेश किए गए हैं जो शहरी डिजाइन दिशानिर्देश को अलग कर देगी और उस शहर के अंदर किसी योजना अवधारणा की बहुलता के प्रभाव का मूल्यांकन किया जाना आवश्यक हो जाएगा. 

यूएलबी के क्षेत्र के अधीन एसपीए, ज़िम्मेदारियों का क्रॉस कटिंग करके हमेशा शासन जटिलता को बढ़ावा देती है. अगर किसी छोटी जगह के लिए एसपीए है, तो संभवतः वो इस एरिया के अंतर्गत नगरपालिका के हर प्रकार के कार्य को अपने अधीन नहीं ले पाएंगे.

इसके अलावे, यूएलबी के क्षेत्र के अधीन एसपीए, ज़िम्मेदारियों का क्रॉस कटिंग करके हमेशा शासन जटिलता को बढ़ावा देती है. अगर किसी छोटी जगह के लिए एसपीए है, तो संभवतः वो इस एरिया के अंतर्गत नगरपालिका के हर प्रकार के कार्य को अपने अधीन नहीं ले पाएंगे. उदाहरण के लिए, एक स्वतंत्र जल आपूर्ति एवं निकास प्रणाली का संचालन व उसे फैशन में लाना संभव नहीं हो सकेगा; उन्हे यूएलबी आपूर्ति पर निर्भर रहना पड़ेगा और सिर्फ़ आंतरिक वितरण का प्रबंधन करना पड़ेगा. हो सकता हैं कि वे किसी स्वतंत्र ठोस अपशिष्ट संग्रह केंद्र को ढूंढ नहीं पाए और उन्हें अपना कूड़ा किसी नगरपालिका के जगह पर पंहुचाना पड़े. कई मामलों में, पैमाने की अर्थव्यवस्थाएं किसी प्रशासनिक मशीनरी के बनाये जाने की सलाह नहीं देता है, जो विशेष रूप से एक छोटी एसपीए एरिया के अंतर्गत किसी नगरपालिका के फ़ंक्शन की देखभाल करता हो. ऐसे मुद्दे यूएलबी और एसपीए के बीच अंतर पैदा करते हैं, जिसकी वजह से विभिन्न पक्ष अपने-अपने रुख़ पर सख्त़ हो सकते हैं, और उसके समाधान हेतु सरकारी मध्यस्थता की ज़रूरत पड़ सकती है. 

खासकर ध्यान देने योग्य बात ये है कि राज्य के पेरास्टेटल के मामले में, यूएलबी सीमा रेखा के अंतर्गत बनाए गए एसपीए को संभालना ज्य़ादा सरल है. यूएलबी और एसपीए के बीच पनप रहे मतभेद की वजह से, राज्य इनके बीच आकर इन परेशान कर देने वाली बातों या समस्यायों का हल निकाल सकती है. मतभेद के इन गंभीर मामलों में, दोनों पक्षों की बातों को सुनकर वे आदेश जारी कर सकते हैं. तब दोनों ही पक्षों को फिर इन निर्देशों का पालन करने को बाध्य होना पड़ेगा. हालांकि, जब दोनों पक्षों की संस्थाएं केंद्र और राज्य संस्थाएं हो तो, स्थिति और जटिल हो जाती है.

यूएलबी और एसपीए के बीच पनप रहे मतभेद की वजह से, राज्य इनके बीच आकर इन परेशान कर देने वाली बातों या समस्यायों का हल निकाल सकती है. मतभेद के इन गंभीर मामलों में, दोनों पक्षों की बातों को सुनकर वे आदेश जारी कर सकते हैं.

  

इसलिए, सबसे अच्छा ये प्रतीत होता है, कि एसपीए को उन क्षेत्रों के विकास तक ही रोका जाना चाहिए, जहां योजना प्राधिकरण अस्तित्व में नहीं हैं. महाराष्ट्र सरकार द्वारा सन् 2017 में गठित शहरी स्थानीय निकाय में पारदर्शिता, सक्षमता और ज़िम्मेदारी के संदर्भ में, समिति द्वारा ऐसी ही सिफारिश की गई थी. पैराग्राफ 6.8.15 में, ‘एसपीए की गैर वांछनियता’, शीर्षक में कहा गया है कि, “समिति विशेष तौर पर एमआरटीपी बिल में लिखित प्रावधान का उल्लेख करना चाहेगी, जो विशिष्ट योजना प्राधिकरण के बनाये जाने की अनुमति देती है. इनमें नगरपालिका इकाई के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत एसपीए बनाया जाना भी शामिल है. यूएलबी क्षेत्र के अंतर्गत किए जाने वाले एसपीए का सृजन, क्रॉस कटिंग ज़िम्मेदारियों के निर्माण द्वारा शासन की जटिलताएं उत्पन्न करती है. समिति  ऐसा सिफारिश करती है कि एसपीए को उन क्षेत्रों में जहां कोई योजना प्राधिकरण अस्तित्व में नहीं हैं, वहाँ विकास कार्य करने तक सीमित किया जाना चाहिए. यूएलबी सीमा के अंतर्गत एसपीए, दुर्लभ से दुर्लभ अपवाद होना चाहिए, एक ऐसा विकल्प जिसका इस्तेमाल तभी होना चाहिए जब उसकी अत्यधिक ज़रूरी वजह हो. एक बार जब एसपीए के सृजन के पीछे का उद्देश्य पूर्ण हो जाए, तब एसपीए को वापस ले लिया जाना/समाप्त कर दिया जाना चाहिए और वो क्षेत्र और उसकी योजना का प्रबंधन को संबंधित यूएलबी को वापस सौंप दिया जाना चाहिये. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.