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आज जब डॉनल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से अमेरिका की कमान संभाल ली है, तो उनके प्रशासन के जिस पहलू पर बारीक़ी से नज़र रखी जाएगी, वो उनकी विदेश नीति है. अपनी चुनावी रैलियों, मीडिया के साथ संवाद और कैबिनेट के लिए चुने गए साथियों के ज़रिए ट्रंप ने एक अपेक्षित विश्व दृष्टि और ख़ास तौर से अमेरिका के प्रमुख प्रतिद्वंदी चीन के प्रति नज़रिए को सामने रखा है. हालांकि, जब बात अमेरिका की अगुवाई वाली कनेक्टिविटी और अंतरराष्ट्रीय विकास की परियोजनाओं को लेकर ट्रंप के रुख़ की बात है, तो उनका नज़रिया साफ़ नहीं है. हालांकि, विश्लेषकों के लिए ट्रंप का पहला कार्यकाल एक ऐसा असरदार ढांचा है, जिसके माध्यम से वो विदेशी सहायता और कनेक्टिविटी को लेकर ट्रंप की नीतियों और उन नए व्यापारिक मार्गों की प्रासंगिकता का अंदाज़ा लगा सकते हैं, जिनमें अमेरिका शामिल है.
ट्रंप विदेशी सहायता और नए व्यापारिक मार्गों को चीन के साथ उस बड़ी सामरिक और आर्थिक प्रतिद्वंदिता का हिस्सा देखते हैं, जिसके तहत चीन, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच दुनिया की एक प्रमुख ताक़त के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है. अपने मतभेदों के बावजूद, राष्ट्रपति बराक ओबामा, जो बाइडेन और डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका की ‘एशिया पर ध्यान केंद्रित करने’ की नीति की वकालत की है और पिछले 12 वर्षों के दौरान अमेरिका ने एशिया में आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी साझेदारियो का एक नेटवर्क बनाया है, ताकि वो चीन के भू-राजनीतिक दबदबे और आक्रामकता से निपट सके. पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड इन्वेस्टमेंट (PGII), लोबितो कॉरिडोर और भारत मध्य पूर्व आर्थिक गलियारे (IMEC) जैसे अमेरिका की अगुवाई वाले गलियारे, एशिया और हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुक़ाबला करने की व्यापक रणनीति का ही एक हिस्सा हैं.
कनेक्टिविटी और विकास में चीन की बढ़त का मुक़ाबला करने के लिए बाइडेन प्रशासन ने अमेरिका के अटलांटिक पार के साथियों और एशिया के भागीदारों के साथ कनेक्टिविटी की कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय ढांचों वाली परियोजनाओं की शुरुआत की थी. इसके अलावा बाइडेन ने कई मिनीलैटरल सहयोग भी शुरू किए थे. ये पहलें बाइडेन प्रशासन के व्यापक प्रयासों का हिस्सा थीं, जिससे एशिया पर अमेरिका का ध्यान केंद्रित करने को मज़बूती मिली. हालांकि, अब ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में इन परियोजनाओं का भविष्य अधर में लटक गया है. इस लेख में बाइडेन के दौर की कनेक्टिविटी की परियोजनाओं का विश्लेषण करके ट्रंप प्रशासन के दौर में उनके भविष्य की समीक्षा पेश की गई है.
इस लेख में बाइडेन के दौर की कनेक्टिविटी की परियोजनाओं का विश्लेषण करके ट्रंप प्रशासन के दौर में उनके भविष्य की समीक्षा पेश की गई है.
बाइडेन की कनेक्टिविटी बढ़ाने की पहलें
पिछले एक दशक के दौरान मूलभूत ढांचे का विकास और आर्थिक कनेक्टिविटी के क्षेत्र, पश्चिमी देशों और चीन के बीच भू-राजनीतिक मुक़ाबले का नया मोर्चा बनकर उभरे हैं. अमेरिका की घरेलू सियासी हवा 2016 से ही वैश्विक नेतृत्व के ख़िलाफ़ बह रही है. इस बीच जलवायु और कोविड-19 के संकट भी उभरे, तो चीन ने इस मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए मूलभूत ढांचे के विकास और कनेक्टिविटी में सहयोग को तेज़ी दी. मूलभूत ढांचे के अंतरराष्ट्रीय विकास और कनेक्टिविटी के गलियारों को बनाने की कमान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का बहुराष्ट्रीय कनेक्टिविटी के कार्यक्रम बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) ने संभाल रखी है. आज BRI के अंतरराष्ट्रीय निवेश, क़र्ज़ और ठेकों की क़ीमत एक ख़रब डॉलर होने का अंदाज़ा लगाया गया है, जो 140 देशों में फैले हैं. ज़ाहिर है कि किसी भी देश के समर्थन वाले इतने बड़े पैमाने के सहयोग की भू-राजनीतिक क़ीमत भी होगी. BRI के ज़रिए चीन ने ग्लोबल साउथ और विकासशील देशों के बीच अपनी भू-राजनीतिक और आर्थिक हैसियत बहुत बढ़ा ली है.
BRI का मुक़ाबला करने, आपूर्ति श्रृंखलाओं में पड़े खलल से निपटने, ग्लोबल साउथ में आर्थिक विकास में मदद करने और उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से फिर से जुड़ने के लिए प्रेसिडेंट बाइडेन ने PGII की शुरुआत की, जो 2027 तक G7 देशों से 600 अरब डॉलर की सरकारी और निजी फंडिंग जुटाने का लक्ष्य रखता है. यूरोपीय संघ का ग्लोबल गेटवे (308 अरब डॉलर) और अफ्रीका के लिए इटली की मैट्टेई योजना भी पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर इनिशिएटिव (PGII) का ही हिस्सा हैं. अमेरिका, अफ्रीका में लोबितो कॉरिडोर बनाने की भी अगुवाई कर रहा है, जिसके अंतर्गत अंगोला, चारों तरफ़ ज़मीन से घिरे कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) और ज़ैम्बिया के बीच रेलवे के दो गलियारों का निर्माण किया जा रहा है, ताकि अटलांटिक और हिंद महासागर तक पहुंच बनाई जा सके. एशिया में भारत से मध्य पूर्व होते हुए यूरोप तक के लिए आर्थिक गलियारे (IMEC) को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि एशिया से यूरोप के बीच एक नया व्यापारिक मार्ग विकसित किया जा सके. G7 देशों ने 2022 से 2024 के दौरान 38 विकासशील देशों में 120 परियोजनाएं पूरी करने के लिए 60 अरब डॉलर की रक़म जुटाई है.
2020 के अपने चुनाव अभियान के नारे ‘अमेरिका इज़ बैक’ के तहत बाइडेन के अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाने के प्रयास, उनके अंतर्राष्ट्रीयवाद में नई जान फूंकने की कोशिश नज़र आए. ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के साथ क्वाड से लेकर G20 तक बाइडेन ने गठबंधनों और साझेदारियों का जो जाल बुना, उससे क्वाड की आपूर्ति श्रृंखला के लचीलेपन का नेटवर्क बनाने, IMEC और समुद्र के भीतर मूलभूत ढांचे की सुरक्षा के ढांचे जैसी कनेक्टिविटी की कई परियोजनाओं की शुरुआत हुई. आज जब ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका फर्स्ट की विचारधारा के अनुरूप व्यवहारिकता पर आधारित विदेश नीति बनाई जा रही है और रोनाल्ड रीगन के दूसरों को ख़ारिज करके अमेरिका को अलग थलग करने वाले ‘ताक़त से शांति’ के सिद्धांत को अपनाया जा रहा है, तो इन परियोजनाओं के भविष्य पर तलवार लटक सकती है.
ट्रंप के पसंद और नापसंद पर कनेक्टिविटी परियोजनाएं
अपने पहले कार्यकाल में डॉनल्ड ट्रंप, दुनिया में विकास के आयाम को अंतरराष्ट्रीय संबंधों के व्यापक संदर्भ में अमेरिका और चीन के बीच दबदबा क़ायम करने की होड़ के व्यापक संघर्ष के हिस्से के तौर पर देखते थे. हालांकि, 2017 से 2021 के दौरान ट्रंप, अपनी खांचों में बंटी, अनियमित और विरोधाभासी विदेशी सहायता की विरोधाभासी नीतियों की वजह से विरासत में अंतरराष्ट्रीय मंच पर ताक़त का एक ख़ालीपन छोड़ गए थे, जिसको चीन ने BRI को बढ़ावा देने के लिए ख़ूब इस्तेमाल किया. अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय विकास में सहायता की एजेंसी (USAID) के क़र्ज़ देने के बजट में ट्रंप ने 2019 लगभग 22 प्रतिशत या फिर 6 अरब डॉलर की कटौती कर दी थी; उन्होंने कई विकासशील देशों के साथ व्यापार युद्ध छेड़ा और प्रतिबंध लगाए, वहीं BRI को लेकर अमेरिका की लगातार बदलते नीतिगत रुख़ ने चीन को ग्लोबल साउथ के विकास में पसंदीदा साझीदार के तौर पर अपनी हैसियत और मज़बूत करने का मौक़ा दे दिया था.
बाइडेन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ विकास में साझीदार की अमेरिका की भूमिका को दोबारा बहाल किया, ताकि चीन को और फ़ायदा लेने से रोका जा सके. बाइडेन के कार्यकाल में अमेरिका पूरी दुनिया में विकास में द्विपक्षीय सहायता के सबसे बड़े मददगार के तौर पर उभरा जिसके तहत अकेले 2023 में उसने 66 अरब डॉलर का निवेश किया था.
जहां तक PGII और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक गलियारों का सवाल है, तो संभावना इसी बात की अधिक है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भी अमेरिका कनेक्टिविटी में सहयोग को जारी रखेगा.
जहां तक PGII और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक गलियारों का सवाल है, तो संभावना इसी बात की अधिक है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भी अमेरिका कनेक्टिविटी में सहयोग को जारी रखेगा. IMEC, लोबितो और लुज़ोन के गलियारे भू-सामरिक रूप से बेहद अहम कॉरिडोर हैं, जिनमें बड़े भू-राजनीतिक संकेत निहित हैं. ‘व्यवहारिकता’ के सिद्धांतों में विचार, वैश्विक विकास के आयाम में चीन के आर्थिक और भू-राजनीतिक दबदबे को बढ़ने से रोकना, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को लचीला बनाना और अमेरिका के आर्थिक विकास और हरित परिवर्तन के लिए ऊर्जा के नए और पुराने स्रोत और खनिजों को सुरक्षित करना है. ट्रंप से जुड़ा विवादास्पद प्रोजेक्ट 2025 भी यही तर्क देता है कि ‘USAID और अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय विकास वित्त सहयोग (USDFC) को ऐसी परियोजनाओं में पैसे लगाने चाहिए, जिससे सामरिक रूप से अहम देशों में चीन के विशेष प्रयासों से निपटा जा सके और ऐसे किसी भी साझीदार को फंड देना बंद किया जाए जो चीन की संस्थाओं से सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से संबंध रखता है’. प्रोजेक्ट 2025 ये भी कहता है कि ‘अमेरिका और मुक्त बाज़ार के समर्थक देशों जैसे कि जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ साथ ताइवान के बीच विकास में और सहयोग बढ़ाना चाहिए.’ ट्रंप के इस कार्यकाल में क्वाड और उसकी कनेक्टिविटी की पहलों का सिलसिला भी जारी रहना चाहिए, ख़ास तौर से इसलिए क्योंकि आज अमेरिका में आपूर्ति श्रृंखलाओं को लचीला बनाने और समुद्र के भीतर का मूलभूत ढांचा भू-सामरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिकता बनकर उभर रहा है. ट्रंप प्रशासन, यूरोप के अपने साथियों पर भी दबाव बनाएगा कि वो ग्लोबल गेटवे को लेकर अपने वादों को पूरा करें और निवेश और सहायता जुटाएं और यूरोप की निजी कंपनियों को भी PGII में योगदान देने का दबाव बनाएं. बाइडेन प्रशासन के दौर में PGII की रूप-रेखा के तहत G7 देशों ने जो 60 अरब डॉलर की रक़म जुटाई थी उसमें से 45 अरब डॉलर अमेरिका ने इकट्ठे किए थे. यूरोप का नीतियों को लागू करने में ये ढीलापन, ट्रंप को पसंद नहीं आएगा और ग्लोबल साउथ के साथ कनेक्टिविटी में सहयोग के पश्चिम के प्रयासों में इससे बाधाएं आ सकती हैं.
ट्रंप के राज में वैसे तो PGII जैसे कार्यक्रम जारी रहने की उम्मीद है. लेकिन, उनको लागू करने की राह में चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं, ख़ास तौर से बहुपक्षीय तालमेल को बढ़ावा देने और अटलांटिक के उस पार के साझीदारों से अपने वादे पूरे करने के मामले में. आक़िरकार अमेरिका की अगुवाई वाली कनेक्टिविटी की परियोजनाएं भू-राजनीतिक आवश्यकताओं और ग्लोबल साउथ के टिकाऊ और समावेशी विकास के बीच संतुलन बनाने पर निर्भर करेंगी. ये ऐसी चुनौती है, तो ट्रंप प्रशासन की स्थायी साझेदारी बना पाने की क्षमता का इम्तिहान लेगी. ये देखना भी दिलचस्प होगा कि अमेरिका का सरकारी कुशलता का नया विभाग, अमेरिका की वैश्विक विकास में सहायता और कनेक्टिविटी की परियोजनाओं को लेकर क्या रुख़ अपनाता है. क्योंकि, इसके अधिकार क्षेत्र में न केवल सरकार की प्रक्रियाओं और नियमों को सुगम बनाना और प्रशासन को कुशल बनाना है. बल्कि, इस विभाग को ये सुझाव भी देने है कि सरकार का ख़र्च कम करके करदाताओं के मूल्यवान डॉलर को कैसे बचाया जाए.
निष्कर्ष
ट्रंप के राज में अमेरिका के नेतृत्व वाली कनेक्टिविटी की परियोजनाएं शायद चीन के प्रभाव का मुक़ाबला करने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत बनाने पर केंद्रित रहेंगी. हालांकि, इनको लेकर अमेरिका का रवैया इस हाथ ले, उस हाथ दे और अपने हितों को सुरक्षित करने वाला ही रहेगा. ऊपर जिन व्यापारिक गलियारों का ज़िक्र किया गया है, उनकी भू-सामरिक अहमियत बनी रहेगी, जिससे उनको जारी रखना सुनिश्चित होगा. हालांकि, ट्रंप की नीतियां शायद अमेरिका के आर्थिक और सुरक्षा संबंधी हितों को प्राथमिकता देने पर ज़्यादा ज़ोर देंगी, जिससे साझेदारियों और सहायता के कार्यक्रमों का तालमेल उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ की विचारधारा से बिठाया जाएगा.
अब ये गलियारे बदलती प्राथमिकताओं के मुताबिक़ ख़ुद को ढालकर, ग्लोबल साउथ में टिकाऊ विकास को मज़बूती देने के साथ साथ चीन के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला कर सकेंगे या नहीं, इसी के आधार पर ट्रंप के कार्यकाल की विरासत परिभाषित होगी.
आख़िरकार, ये भी हो सकता है कि ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में कनेक्टिविटी की सामरिक पहलों को जारी रखें या फिर उनका विस्तार भी कर सकते हैं. लेकिन, उनको लागू करने में ट्रंप प्रशासन की लेन-देन पर आधारित व्यवहारिकता का असर ज़रूर दिखेगा. इससे ज़्यादा चुनिंदा और इकतरफ़ा रुख़ देखने को मिल सकता है, जिसमें विकास के व्यापक लक्ष्यों के बजाय भू-सामरिक फ़ायदों को प्राथमिकता दी जा सकती है. चुनौती इस बात की होगी कि अमेरिका के हितों को आगे बढ़ाने के साथ साथ ऐसी पहलों की दूरगामी सफलता के लिए ज़रूरी बहुपक्षीय सहयोग के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए. अब ये गलियारे बदलती प्राथमिकताओं के मुताबिक़ ख़ुद को ढालकर, ग्लोबल साउथ में टिकाऊ विकास को मज़बूती देने के साथ साथ चीन के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला कर सकेंगे या नहीं, इसी के आधार पर ट्रंप के कार्यकाल की विरासत परिभाषित होगी.
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