यह आर्टिकल कंप्रिहेंसिव एनर्जी मॉनिटर: इंडिया एंड दि वर्ल्ड श्रृंखला का हिस्सा है.
पीक कोल
कोरोना महामारी के तीन वर्षों के दौरान भारत, चीन और बाक़ी दुनिया से कोयले की मांग में धीमी बढ़ोतरी ने पीक कोल के नैरेटिव को मज़बूत करने का काम किया है. उम्मीद के मुताबिक़ बिजली की मांग की बढ़ोतरी में कमी के साथ ही नीतियों द्वारा समर्थित नवीकरणीय ऊर्जा (RE) से आक्रामक होड़ के साथ, विशेष रूप से सौर ऊर्जा, जिसे ग्रिड तक पहुंचने में प्रमुखता मिलती है, ('मस्ट रन स्टेटस') के फलस्वरूप भारत में कोयले और बिजली की मूल्य श्रृंखला में महत्त्वपूर्ण रूप से अत्यधिक क्षमता वाले हालात पैदा हो गए हैं. भारत में वर्ष 2020 में 100 GW (गीगावाट) की स्वीकृत कोयला आधारित बिजली उत्पादन परियोजनाएं पाइपलाइन में थीं, लेकिन ज़्यादातर अनुमानों के मुताबिक़ इन परियोजनाओं का निर्माण नहीं किया जाएगा, क्योंकि उम्मीद है कि नवीकरणीय ऊर्जा के ज़रिए बिजली की मांग में होने वाली वृद्धि को पूरा किया जाएगा. वर्ष 2010 में भारत के पावर सेक्टर में वार्षिक निवेश अपने उच्चतम स्तर पर था, जबकि बिजली के क्षेत्र में यह सालाना निवेश वर्ष 2019 में आधा रह गया. इसके साथ ही कोयले को लेकर वैश्विक दृष्टिकोण कहीं अधिक हतोत्साहित करने वाला था.
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने वर्ष 2020 में साफ तौर पर कहा था कि वैश्विक कोयले की मांग 2014 में उच्चतम स्तर पर थी और बिजली उत्पादन में कोयले का उपयोग वर्ष 2030 से पहले अपने शीर्ष स्तर पर होने की संभावना है. इतना ही नहीं, चीन में कोयले की खपत, जो कि वैश्विक कोयले की खपत की 50 प्रतिशत है, उसके वर्ष 2025 के आसपास अपने चरम पर होने की उम्मीद है. वैश्विक कोयले की मांग अपने कोविड-19 के पहले के स्तरों पर लौटने की उम्मीद नहीं है और वैश्विक स्तर पर विभिन्न प्रकार के ऊर्जा उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी औद्योगिक क्रांति के बाद पहली बार 20 प्रतिशत से नीचे गिरने की उम्मीद है. दुनिया भर में लॉकडाउन की वजह से वर्ष 2020 में वैश्विक कोयले की मांग में लगभग 7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गई थी, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से वैश्विक स्तर पर बिजली की मांग में कमी आई थी, जिसमें वैश्विक कोयले के उत्पादन का लगभग 65 प्रतिशत इस्तेमाल होता है. कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए बनाई गई नीतियां, सस्ती प्राकृतिक गैस के साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा के लिए समर्थित नीतियों ने भी पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में कोयले की खपत कम करने में योगदान दिया.
हालांकि, भारत में कोयले की मांग निकट भविष्य में बढ़ने का अनुमान लगाया गया था, जो वर्ष 2030 तक वैश्विक मांग का 14 प्रतिशत होगा. ज़ाहिर है कि कोयले की मांग में वृद्धि को लेकर जो अनुमान लगाए गए थे, उन्हें देखा जाए तो पहले जो अनुमान लगाए गए थे, वो काफ़ी कम थे. IEA ने वर्ष 2030 तक भारत में कोयले की मांग (बिजली उत्पादन के लिए) केवल 2.6 प्रतिशत सालाना बढ़ने की उम्मीद जताई थी. कुछ रिपोर्टों के मुताबिक़ भारत में बिजली उत्पादन के लिए कोयले की मांग वर्ष 2018 में चरम पर थी और सरकार द्वारा RE के लिए निर्धारित उच्च लक्ष्य को देखते हुए इसके पूर्व-कोविड-19 स्तरों पर लौटने की संभावना नहीं है. भारत में कोविड के बाद के समय में कोयले की मांग में वृद्धि के रुझानों से स्पष्ट पता चलता है कि यह दृष्टिकोण वास्तविकता के बजाए उम्मीद को प्रकट करता है.
कोयले की मांग में बढ़ोतरी
वर्ष 2014 में, जो कि IEA के मुताबिक़ "पीक-कोल" वाला साल था, उस वर्ष वैश्विक कोयले की मांग 5.680 बिलियन टन (BT) थी, जिसमें बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल होने वाले थर्मल कोयले की हिस्सेदारी 4.347 बिलियन टन, यानी 76 प्रतिशत से ज़्यादा थी. वर्ष 2021 में वैश्विक स्तर पर कोयले की मांग 7.947 बिलियन टन थी, जिसमें थर्मल कोयले की मांग 5.350 BT थी. कोयले की मांग में इस बढ़ोतरी को देखा जाए, तो इसने वर्ष 2014 में किए गए अधिकतम कोयले के उपयोग के अनुमानों को झूठा साबित कर दिया. वर्ष 2021 में कोयले की मांग अपने सर्वकालिक उच्चतम स्तर के क़रीब थी और वैश्विक ऊर्जा से संबंधित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में अब तक की सबसे बड़ी वार्षिक बढ़ोतरी में एक लिहाज़ से इसका अहम योगदान था. IEA के मुताबिक़ वर्ष 2021 में चीन में कोयले की मांग में 4.6 प्रतिशत या 185 MT (मिलियन टन) की वृद्धि हुई, यानी कि विस्तारित लॉकडाउन के दौरान कोयले की मांग 4.230 MT के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई. भारत में कोयले की खपत का आंकड़ा 1.053 बिलियन टन के साथ वर्ष 2021 में 1 BT के आंकड़े को पार कर गया. यह आंकड़ा न केवल अब तक की कोयले की सबसे अधिक खपत को दर्शाता है, बल्कि चीन के अतिरिक्त किसी और देश द्वारा एक साल में कोयले की खपत का सबसे बड़ा आंकड़ा है. देखा जाए तो वर्ष 2020 की तुलना में वर्ष 2021 में भारत में कोयले की खपत में 12 प्रतिशत या 117 MT की वृद्धि हुई. भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021-22 में कोयले की मांग 1.027 बिलियन टन की खपत दर्ज करते हुए 1 बिलियन टन के आंकड़े को पार कर गई. वर्ष 2022-23 की बात करें, तो जनवरी 2023 तक भारत में कोयले की मांग 1.078 बिलियन टन को पार कर गई थी.
भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021-22 में कोयले की मांग 1.027 बिलियन टन की खपत दर्ज करते हुए 1 बिलियन टन के आंकड़े को पार कर गई. वर्ष 2022-23 की बात करें, तो जनवरी 2023 तक भारत में कोयले की मांग 1.078 बिलियन टन को पार कर गई थी.
घरेलू स्तर पर कोयला उत्पादन
भारत सरकार ने वर्ष 2014 में कोयला उत्पादन का लक्ष्य बढ़ाया था। सरकार द्वारा कोयले का उत्पादन वर्ष 2019-2020 तक 1.5 बिलियन टन तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया था, जिसमें कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) और उसकी सहायक कंपनियों की हिस्सेदारी 1 बिलियन टन निर्धारित की गई थी. वर्ष 2019 में कोयला उत्पादन को 1.5 बिलियन टन तक बढ़ाने की लक्ष्य के समय को संशोधित कर वर्ष 2023-24 कर दिया गया था. दिसंबर 2020 में कोयला मंत्रालय (MOC) ने 2023-24 में कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा 1 बिलियन टन कोयला उत्पादन के लक्ष्य को दोहराया. कोयला मंत्रालय के मुताबिक़ कोयले की मांग वर्ष 2019-20 में 955.26 मिलियन टन (MT) से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 1.27 बिलियन टन तक बढ़ने की उम्मीद थी और इसे पूरा करने के लिए एवं कोयला प्रोडक्शन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए देश का कोयला उत्पादन भी बढ़ने की उम्मीद थी. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2022-23 में कोयले की मांग 1.029 बिलियन टन थी.
ज़ाहिर है कि कोयला उत्पादन के 1.5 बिलियन टन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कोयले का घरेलू उत्पादन सालाना स्तर पर लगभग 7 प्रतिशत की दर से बढ़ना चाहिए. यह कोई ऐसा लक्ष्य नहीं है, जिसे हासिल नहीं किया जा सके. वर्ष 2008 से 2010 के बीच घरेलू कोयले के उत्पादन में लगभग 7 प्रतिशत की वार्षिक औसत दर से बढ़ोतरी हुई थी. वर्ष 2001-02 से 2009-10 के दशक में कोयला उत्पादन में औसतन 5 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई. हालांकि, वर्ष 2010-11 से 2019-20 के दशक के दौरान घरेलू कोयला उत्पादन वृद्धि औसतन लगभग 3 प्रतिशत तक गिर गई. वर्ष 2010-19 के दौरान कोयले की आपूर्ति में निवेश लगभग दोगुना होने के बावज़ूद ऐसा हुआ. इसके पीछे के कारणों में अर्थव्यवस्था में आई मंदी एक प्रमुख वजह थी. वर्ष 2019-20 में भारत में कच्चे कोयले का उत्पादन 729.1 MT था, अर्थात इसमें पिछले वर्ष की तुलना में 0.05 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई थी. अप्रैल-अक्टूबर 2020 की अवधि में कोयला उत्पादन साल दर साल 3.3 प्रतिशत घटकर 337.52 MT हो गया. इस दौरान कोयले का आयात बहुत तेजी के साथ बढ़ा. कोयले का आयात वर्ष 2018-19 में 235.35 MT की तुलना में 2019-20 में 5.6 प्रतिशत बढ़कर 248.54 MT हो गया. नॉन-कोकिंग कोयले का आयात 2018-19 में 183.510 MT की तुलना में वर्ष 2019-20 में 7.2 प्रतिशत बढ़कर 196.704 MT हो गया. एक तथ्य यह भी है कि वर्ष 2019-20 और 2022-23 के बीच कोयले की मांग में वार्षिक रूप से औसतन 2.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इतना ही नहीं कोयले की मांग वर्ष 2022-23 से 2029-30 के दौरान 5.8 प्रतिशत के वार्षिक औसत से बढ़कर 1.448 बिलियन टन होने की उम्मीद है. इसके साथ ही आयात सहित कोयले की आपूर्ति वर्ष 2022-23 से 2029-30 के बीच 1.511 बिलियन टन पहुंचने के लिए सालाना तौर पर औसत 7.8 प्रतिशत की दर से तेज़ी के साथ बढ़ने का अनुमान है.
कोल इंडिया लिमिटेड की रिपोर्ट "रोडमैप फॉर एनहैंसमेंट ऑफ कोल प्रोडक्शन" में कोयले का उत्पादन बढ़ाने के लिए आपूर्ति के पक्ष में तकनीक़ी और प्रशासनिक दख़लंदाज़ी की मांग उठाई गई है. रिपोर्ट में घरेलू स्तर पर कोयले का उत्पादन बढ़ाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए रेलवे लाइनों में निवेश, खनन से जुड़े कार्यों का आधुनिकीकरण, त्वरित भूमि अधिग्रहण के साथ-साथ बड़े पैमाने पर कॉन्ट्रैक्ट माइनिंग और तीव्र गति से पर्यावरण एवं राज्य स्तर की मंज़ूरियों को सूचीबद्ध किया गया है.
सरकार का दृष्टिकोण व्यापक है. सरकार द्वारा नियुक्त नीति आयोग के वाइस-चेयरमैन की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति, जिसके पास कोल सेक्टर को उदार बनाने का अधिकार था, के मुताबिक़ कोयले को राजस्व के स्रोत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. इस समिति के अनुसार कोयले को इसकी खपत करने वाले क्षेत्रों के माध्यम से आर्थिक विकास के एक इनपुट के रूप में देखा जाना चाहिए. इस नए बदलाव के अंतर्गत समिति ने सिफ़ारिश की कि सरकार को कोयले के शीघ्र एवं अधिकतम उत्पादन पर ध्यान देना चाहिए और बाज़ार में इसकी अधिक से अधिक उपलब्धता की दिशा में कार्य करना चाहिए. सरकार को उम्मीद है कि कोयले के घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी से देश के 'आकांक्षी इलाक़ों' में तेज़ी के साथ आर्थिक प्रगति होगी. कोयला मंत्रालय के अनुसार घरेलू कोयले का उत्पादन बढ़ने से न केवल इसका आयात कम होगा और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि कोयला संपन्न ग़रीब यानी आर्थिक तौर पर कमज़ोर राज्यों में रोज़गार के अवसर भी पैदा होंगे. सरकार का मानना है कि कोयले की संपदा से समृद्ध राज्यों में निवेश से आर्थिक विकास को गति मिलेगी. सरकार ने निवेश को आकर्षित करने के उद्देश्य से कोयला संसाधनों को व्यावसायिक खनन के लिए खोल दिया है और सरकार को उम्मीद है कि कोयले के व्यावसायिक उत्पादन से स्टील, एल्युमिनियम, उर्वरक एवं सीमेंट के उत्पादन और इनके निर्माण से जुड़े कार्यों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
सरकार निर्यात के माध्यम से और गैर-कोयला व्यवसायों में विविधीकरण के ज़रिए घरेलू कोयले के लिए बाज़ार का विस्तार भी कर रही है. सरकार ने भारत की बड़ी कोल सीम्स यानी चट्टान की परतों के भीतर दिखाई देने वाले गहरे भूरे या काले रंग के कोयले के जमाव से कोल बेड मीथेन (CBM) के दोहन का अधिकार प्राइवेट सेक्टर को दे दिया है. सरकार सिंथेटिक गैस (syngas) के उत्पादन के लिए सरफेस कोल गैसीफिकेशन (कोयले को जलाने की तुलना में एक स्वच्छ विकल्प) को बढ़ावा दे रही है, जिसका उपयोग ऊर्जा ईंधन, जैसे कि मेथनॉल और इथेनॉल, यूरिया (उर्वरक) एवं एसिटिक एसिड, मिथाइल एसीटेट, एसिटिक एनहाइड्राइड, डाई-मिथाइल ईथर, एथिलीन, प्रोपलीन, ऑक्सो केमिकल्स व पॉली ओलेफिन्स जैसे रसायनों के उत्पादन के लिए किया जा सकता है. सरकार ने वर्ष 2030 तक 100 MT कोल गैसीफिकेशन परियोजनाओं का लक्ष्य निर्धारित किया है. दो गैसीफिकेशन प्रोजेक्ट्स, एक पेट कोक के साथ मिले हुए हाई एश वाले कोयले पर (तालचर फर्टिलाइजर प्लांट) आधारित परियोजना और दूसरी कम एश वाले कोयले (दानकुनी मेथनॉल प्लांट) पर आधारित परियोजना पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर स्थापित की गई है.
भारत और दुनिया के अन्य देशों में 2023 में कोयला आधारित बिजली की मांग में बढ़ोतरी का सिलसिला जारी रहने की संभावना है क्योंकि अल-नीनो के प्रभाव की वजह से इस वर्ष रिकॉर्ड गर्मी और हीट वेव्स का अनुमान जताया गया है.
पीक कोल: मुश्किल लक्ष्य
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक़ वर्ष 2022 में पहली बार वैश्विक कोयले का उपयोग 8 बिलियन टन के पार जाता हुआ दिखाई दे रहा है, जो वर्ष 2013 के पिछले रिकॉर्ड को तोड़ने वाला है. वैश्विक ऊर्जा संकट के बीच पूरी दुनिया में प्राकृतिक गैस की उच्च क़ीमतों ने बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भरता बढ़ा दी है. चीन, जो कि दुनिया का सबसे बड़ा कोयला उपभोक्ता है, वहां हीट वेव और सूखे के हालात ने गर्मियों के दौरान कोयला आधारित बिजली उत्पादन को बढ़ाने का काम किया है. यह अलग बात है कि वहां सख्त कोविड-19 प्रतिबंधों ने बिजली की मांग को भले ही कम कर दिया है. भारत में वर्ष 2021 और 2022 में गर्मी के मौसम में हीट वेव्स ने ठंडक और सिंचाई के लिए कोयला आधारित बिजली की मांग में बढ़ोतरी की है. भारत और दुनिया के अन्य देशों में 2023 में कोयला आधारित बिजली की मांग में बढ़ोतरी का सिलसिला जारी रहने की संभावना है क्योंकि अल-नीनो के प्रभाव की वजह से इस वर्ष रिकॉर्ड गर्मी और हीट वेव्स का अनुमान जताया गया है. ऐसे में देखा जाए तो पीक कोल यानी कोयले के उच्चतम उत्पादन को कम करने के प्रयासों को बढ़ती गर्मी और हीट वेव्स की वजह से धक्का लगा है और इसने कहीं न कहीं पीक कोल को बढ़ाने का काम किया है. यानी कहा जा सकता है कि कोयले के उत्पादन को और ऊंचाई पर ले जाने के लिए मज़बूर किया है. इस पर भी विडंबना यह है कि यह दोनों ही जलवायु परिवर्तन से प्रेरित है, या कहा जा सकता है कि क्लाइमेट चेंज की वजह से ही गर्मी बढ़ रही है और कोयले का उत्पादन बढ़ाने की मज़बूरी भी.
स्रोत: कोयला मंत्रालय, भारत सरकार
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Lydia Powellआठ वर्षों से अधिक समय से ओआरएफ़ सेंटर फॉर रिसोर्स मैनेजमेंट के साथ जुड़ी हुई हैं और ऊर्जा एवं जलवायु परिवर्तन को लेकर नीतिगत मुद्दों पर काम कर रही हैं.
Akhilesh Satiके पास ओआरएफ़ की ऊर्जा पहल के प्रोग्राम मैनेजर के रूप में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव है.
Vinod Kumarएनर्जी एंड क्लाइमेट चेंज कंटेंट डेवलपमेंट ऑफ दि एनर्जी न्यूज़ मॉनिटर में असिस्टेंट मैनेजर हैं.
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