Published on Feb 13, 2019 Updated 0 Hours ago

भारत को निश्चित तौर पर सावधान रहना चाहिए और उन क्षेत्रीय जटिलताओं को कतई कम नहीं आंकना चाहिए जो भारत एवं म्यांमार के आपसी ऊर्जा संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं।

म्यांमार के ऊर्जा क्षेत्र में भारत के लिए असीम संभावनाएं

इस आशय की जानकारियां उभर कर सामने आ रही हैं कि म्यांमार अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए अपने तेल और गैस ब्लॉकों हेतु नई बोलियां खोलने की योजना बना रहा है। पिछले कुछ वर्षों में म्यांमार सरकार ने अपने ऊर्जा क्षेत्र के पुनर्गठन के लिए अनेक ठोस कदम उठाए हैं। यही नहीं, म्यांमार सरकार ने अपने ऊर्जा मास्टर प्लान के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में प्राकृतिक गैस की पहचान की है।

यह निश्चित तौर पर भारत के लिए एक स्‍वागत योग्‍य या उत्‍साहवर्धक सूचना है, क्‍योंकि भारत को म्यांमार के ऊर्जा क्षेत्र में कार्य संचालन का व्‍यापक अनुभव है। इसके अलावा, भारत और म्यांमार दोनों ही ऊर्जा सेक्‍टर में आपसी सहयोग का दायरा बढ़ाने को इच्छुक हैं। जहां तक इससे पहले की अवधि की बात है, वैसे तो भारत काफी प्रयास करने के बावजूद म्यांमार से भारत के पूर्वी क्षेत्र तक एक गैस पाइपलाइन बिझाने का सौदा हासिल नहीं कर पाया था, लेकिन भारत ने अपने इस पूर्वी पड़ोसी के ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े रहने का सिलसिला निरंतर जारी रखा है। उदाहरण के लिए, भारत ने स्‍वयं को चीन-म्यांमार गैस पाइपलाइन में एक महत्वपूर्ण हितधारक के रूप में प्रस्‍तुत किया है।

इस वर्ष ऊर्जा ब्लॉकों के लिए संभावित बोलियों के दौर शुरू होने के संकेत भारत को एक दशक से भी अधिक समय तक म्यांमार में कार्य संचालन करने संबंधी अपने अनुभव का लाभ उठाने का अवसर प्रदान कर सकते हैं। भारत को अब ऊर्जा विकास से जुड़ी राजनीतिक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ म्यांमार में निर्णय लेने की बारीकियों की भी अच्छी समझ हो चुकी है।


हालांकि, यह कहा जाता है कि भारत को निश्चित तौर पर सावधान रहना चाहिए और उन क्षेत्रीय जटिलताओं को कतई कम नहीं आंकना चाहिए जो भारत एवं म्यांमार के आपसी ऊर्जा संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं। वैसे तो रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा ऐतिहासिक रूप से बांग्लादेश और म्यांमार के बीच विद्यमान रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इस समस्या की भयावहता काफी बढ़ गई है। इसके अलावा, भारत और म्यांमार के बीच गैस व्यापार की संभावनाएं म्‍यांमार के पास ‘अधिशेष ऊर्जा की उपलब्धता’ पर निर्भर करेंगी, जैसा कि ओआरएफ की शोधकर्ताओं अनासुआ बसु रे चौधरी और प्रतनाश्री बसु ने अपने शोध पत्र में उल्‍लेख किया है।

रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा कम से कम अभी तो अवश्‍य ही भारत, बांग्लादेश और म्यांमार के बीच किसी भी संभावित त्रिपक्षीय पाइपलाइन के लिए जटिलताएं पैदा कर सकता है। फिर भी, यदि एक त्रिपक्षीय पाइपलाइन परियोजना के निर्माण की संभावनाओं को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, तो वैसी स्थिति में भारत वर्ष 2006 में भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड (गेल) द्वारा पेश की गई संभाव्‍यता रिपोर्ट में उल्लिखित वैकल्पिक मार्ग पर विशेष जोर दे सकता है जिसमें भारत के पूर्वोत्‍तर राज्यों के रास्‍ते भारत और म्यांमार के बीच एक द्विपक्षीय पाइपलाइन बिझाने की परिकल्पना की गई थी। वर्तमान संदर्भ में इस वैकल्पिक परिदृश्य के तहत आगे चलकर भारत की ओर से बांग्लादेश को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करने के तकनीकी विकल्प का भी अवश्‍य पता लगाया जाना चाहिए। वर्ष 2017 में ढाका ट्रिब्यून को दिए अपने साक्षात्कार में बांग्लादेश के ऊर्जा विशेषज्ञ डॉ. बदरुल इमाम ने कहा था कि बांग्‍लादेश को भारतीय राज्य त्रिपुरा से किसी भी अधिशेष या अतिरिक्त प्राकृतिक गैस को हासिल करने के विकल्प पर विचार करना चाहिए। हालांकि, एक आदर्श परिदृश्य, जैसा कि सिंगापुर में बसे ऊर्जा विशेषज्ञ डॉ. मिर्जा सदाकत हुदा ने वर्ष 2013 में अपनी दलील में कहा था, के तहत भविष्य में प्रस्तावित किसी भी त्रिपक्षीय गैस पाइपलाइन के लिए भारत, म्यांमार और बांग्लादेश द्वारा आपस में हाथ मिलाना बिल्‍कुल उचित रहेगा, ताकि वे अपने ऊर्जा और आर्थिक हितों को पूरा करने के साथ-साथ राजनीतिक संबंधों को भी प्रगाढ़ कर सकें।

इसके साथ ही यह उल्लेख भी अवश्‍य किया जाना चाहिए कि वर्ष 2015 में इस लेखक ने म्यांमार में अपने क्षेत्रीय कार्य (फील्‍ड वर्क) के दौरान यह पाया था कि म्यांमार सरकार अपने हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में कार्य संचालन के लिए पश्चिमी देशों की कंपनियों को आमंत्रित करने को लेकर काफी उत्‍सुक है। यह फील्‍ड वर्क राष्ट्रीय उन्नत अध्ययन संस्थान (एनआईएएस), बेंगलुरू की खातिर ‘दक्षिण एशिया में सीमा पार विद्युत व्यापार के लिए संभावनाएं तलाशना’ थीम पर आर्थिक अनुसंधान संस्थानों के दक्षिण एशिया नेटवर्क (एसएएनईआई) द्वारा वित्त पोषित परियोजना के लिए किया गया था।

एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा जिसने ऐतिहासिक रूप से म्यांमार के ऊर्जा निर्यात से जुड़े निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैवह ऊर्जा निर्यात में विविधीकरण से संबंधित है। यह देश पहले से ही अपने दो पड़ोसी मुल्‍कों यथा थाईलैंड और चीन को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करता रहा है।

म्यांमार संभवत: अपनी ऊर्जा निर्यात विविधीकरण रणनीति को मजबूत करने के उद्देश्‍य से ऊर्जा ब्लॉकों के लिए बोलियां आमंत्रित करने के किसी भी आगामी दौर में भारत और बांग्लादेश के बाजारों को अधिशेष गैस का निर्यात करने पर अवश्‍य विचार कर सकता है। उदाहरण के लिए, भारत ने अपने ऊर्जा मिश्रण में प्राकृतिक गैस के योगदान को बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 15 प्रतिशत करने की महत्वाकांक्षी योजनाओं की घोषणा की है। यही नहीं, परिवहन एवं घरेलू क्षेत्रों में और भी अधिक उपभोक्ताओं को गैस की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भारत में घरेलू पाइपलाइनों के नेटवर्क का विस्तार किया जा रहा है। इसी तरह बांग्लादेश में प्राकृतिक गैस की मांग या खपत निरंतर बढ़ती जा रही है, लेकिन सीमित घरेलू उत्पादन के कारण यह देश विवश है।

म्यांमार में चीन की वर्तमान ऊर्जा रणनीति को समझना भी अत्‍यंत आवश्‍यक है। बड़े पैमाने पर प्राकृतिक गैस की ओर उन्‍मुख होने के लिए चीन द्वारा किए जा रहे प्रयासों के मद्देनजर चीन में भी प्राकृतिक गैस की मांग या खपत लगातार बढ़ती जा रही है। अत: यह आश्चर्य की बात नहीं होगी यदि चीन भी ऊर्जा ब्लॉकों के लिए प्रस्तावित बोली दौर में फिर से प्रतिस्पर्धा करता है। इस प्रकार चीन की कंपनियां म्यांमार के ऊर्जा क्षेत्र में भारतीय कंपनियों को कड़ी टक्‍कर देने का सिलसिला आगे भी जारी रख सकती हैं।

 एक अन्‍य कारण से भी म्यांमार में बोली लगाने के आगामी दौर भिन्‍न और प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं। अंतिम दौर (2013-14) से यह पता चला था कि म्यांमार के ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों की निवेश संबंधी दिलचस्पी धीरे-धीरे बढ़ रही है। अत: विदेशी कंपनियों की मौजूदगी बोलियों के आगामी दौर को भारतीय कंपनियों के लिए और भी अधिक प्रतिस्पर्धी बना देगी। ऐसे में भारत को म्यांमार में भविष्य में कोई हिस्‍सेदारी हासिल करने और यहां तक कि भारत तक गैस पाइपलाइन बिछाने के लिए अकेले ही रहकर इस दिशा में कवायद करने या विभिन्न विदेशी कंपनियों से हाथ मिलाने जैसी कई संभावनाएं अवश्‍य तलाशनी चाहिए।

भारत को म्यांमार के ऊर्जा विकास में अधिक हिस्सेदारी पाने के लिए म्यांमार सरकार से सक्रि‍यतापूर्वक निरंतर जुड़े रहना चाहिए और व्यावसायिक दृष्टि से लाभप्रद प्रस्‍ताव उसके समक्ष पेश करना चाहिए। इसे ध्यान में रखना उचित होगा कि भारत एवं म्यांमार के बीच आने वाले वर्षों में ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग केवल बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के विकासकनेक्‍टि‍विटी बढ़ाने और सामाजिक विकास के क्षेत्र में जारी वर्तमान द्विपक्षीय प्रयासों का पूरक साबित होगा।

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