Published on Jun 21, 2023 Updated 0 Hours ago
दिलो-दिमाग़ की लड़ाई में जुटे चीन के फ़ौजी जनरल

चीन के साम्राज्यवादी सैन्य सिद्धांत का एक प्रमुख नियम है कि अगर कोई अपनी ताक़त और दुश्मन की मज़बूती के बारे में जानता है तो फिर उसे सैकड़ों लड़ाई के नतीजे को लेकर भी डरने की ज़रूरत नहीं है. लेकिन इस कहावत में ये हिदायत दी गई है कि अपने मज़बूत पक्ष को जानने और दुश्मन के मज़बूत पहलू से अनजान होने पर लड़ाई में कम समय के लिए ही बढ़त मिल सकती है. 

इस तरह चीन, जो ऐसा देश है जिसने चार दशक से ज़्यादा समय से कोई लड़ाई नहीं लड़ी है, उसके लिए यूक्रेन संघर्ष न सिर्फ़ क़ीमती ज्ञान की तरह है बल्कि उससे भी बढ़कर ऐसा सबक़ है जिसे वो सीखना चाहेगा. वैसे तो चीन के इरादों के बारे में उसके सिस्टम की जटिलता की वजह से पता नहीं चल पाता है लेकिन अब एक ऐसी विचारधारा है जो इरादे की जगह क्षमताओं को ज़्यादा महत्व देती है. आधुनिक युद्ध को लेकर चीन का सरकार प्रायोजित संवाद उसकी सामरिक कमज़ोरियों का भंडा फोड़ती है. ऐसी स्थिति में हमें आधुनिक युद्ध, प्राथमिकताओं और कमज़ोरियों को लेकर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के बड़े अधिकारियों के पूर्वानुमान के विश्लेषण की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए. 

चीन, जो ऐसा देश है जिसने चार दशक से ज़्यादा समय से कोई लड़ाई नहीं लड़ी है, उसके लिए यूक्रेन संघर्ष न सिर्फ़ क़ीमती ज्ञान की तरह है बल्कि उससे भी बढ़कर ऐसा सबक़ है जिसे वो सीखना चाहेगा.

इस विषय पर PLA के एक मौजूदा अधिकारी जनरल वांग हाइजिंग के द्वारा प्रकाशित एक दस्तावेज़ चीन के अभिजात वर्ग (एलिट) की सोच के बारे में बताता है. सबसे पहले, ये दस्तावेज़ राष्ट्रपति शी जिनपिंग- जो सबसे बड़े रक्षा संस्थान सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रमुख भी हैं- के उन विचारों को दोहराता है कि चीन, अमेरिका की अगुवाई वाले गठबंधन के द्वारा दमन और नियंत्रण के अभियानों की वजह से कठिन चुनौतियों का सामना कर रहा है. जनरल वांग आशंका जताते हैं कि किसी भी समय हालात काबू से बाहर हो सकते हैं. दूसरा, जनरल वांग के दस्तावेज़ में कहा गया है कि आधुनिक युद्ध न सिर्फ़ सेना की मज़बूती की थाह लेता है बल्कि देश की पूरी ताक़त का भी इम्तिहान लेता है. इसके अलावा, दस्तावेज़ में लंबे समय तक चलने वाले युद्ध के लिए व्यापक स्तर पर राष्ट्रीय मज़बूती की तैयारी पर भी ज़ोर दिया गया है. इसके लिए दस्तावेज़ में दलील दी गई है कि चीन को सामरिक राष्ट्रीय क्षमता को मज़बूत करने के लिए अपने ग़ैर-सैन्य पहलुओं जैसे कि अर्थव्यवस्था और विज्ञान एवं तकनीक को ठीक करने की ज़रूरत है. तीसरा, दस्तावेज़ में चेतावनी दी गई है कि संघर्ष को सिर्फ़ युद्ध के मैदान तक सीमित करना संभव नहीं है; संघर्ष निस्संदेह दूसरे ग़ैर-परंपरागत क्षेत्रों जैसे कि साइबर स्पेस, तकनीक और यहां तक कि वित्तीय प्रणाली तक भी फैल जाएगा. चौथा, दस्तावेज़ में सुझाव दिया गया है कि चीन को लगातार सैन्य अभ्यासों, विदेशों में शांति मिशन जैसे कर्तव्यों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) समेत अत्याधुनिक तकनीकों को शामिल करके अपनी ताक़त को बढ़ाना चाहिए. 

दस्तावेज़ में ये हिदायत भी दी गई है कि ग़ैर-सैन्य तत्वों के साथ सैन्य ख़तरा ज़्यादा मज़बूत होगा और ये साइबर संपत्तियों पर हमले, आर्थिक दबाव एवं ग़ैर-सरकारी सैन्य समूहों का रूप ले लेगा. 

दिलो-दिमाग़ की जंग 

हालांकि PLA और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC) के मन में दुष्प्रचार को लेकर बहुत ज़्यादा डर है. वांग ख़ास तौर पर ये चेतावनी देते हैं कि आधुनिक युद्ध छेड़ने वाली ताक़तें सबसे पहले किसी शासन व्यवस्था को अस्थिर करने के लिए लोगों के दिमाग़ में शक का बीज बोकर समाज को कमज़ोर करने की कोशिश करेंगी. इस बेचैनी को चीन के शासन व्यवस्था से जुड़े दूसरे संस्थान जैसे कि साइबर स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ चाइना (CAC) भी मज़बूत करते हैं. अपनी आधिकारिक रिपोर्ट में चीन के इंटरनेट रेगुलेटर ने चेतावनी दी है कि नई तकनीकें जैसे कि वेब 3.0, क्वॉन्टम कंप्यूटिंग, सैटेलाइट कम्युनिकेशन और जेनरेटिव AI चीन के गवर्नेंस के सामने बड़ी चुनौती पेश करते हैं. जनरल वांग की दलील को दोहराते हुए रिपोर्ट ख़ास तौर पर ‘जियाझी शेन‘ यानी ‘मूल्यों का इस्तेमाल करके समाज में घुसपैठ’ से कम्युनिस्ट शासन को ख़तरे का ज़िक्र करती है. ये विश्लेषण उस वक़्त आया है जब चीन और अमेरिका के बीच संबंधों में गिरावट आई है और ताइवान एवं साउथ चाइना सी जैसे संभावित विवाद के मुद्दों को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है. इनसे पता चलता है कि PLA के जनरल यूक्रेन संघर्ष को किस रूप में देखते हैं और चीन की सेना भविष्य की लड़ाई को लेकर कैसे तैयारी कर सकती है.

सोच से निपटना

किसी भी सरकार के लिए युद्ध पेचीदा काम होता है. सोच मायने रखती है लेकिन इसके साथ-साथ लोगों को ये विश्वास दिलाने की क्षमता भी मायने रखती है कि युद्ध की वजह सही है. 60 के दशक में अमेरिका में युद्ध के ख़िलाफ़ आंदोलन अमेरिकी आबादी के एक वर्ग के बीच उस सोच का नतीजा था कि वियतनाम में अमेरिका का दखल नैतिक आधार पर ठीक नहीं है. इसकी वजह से लोगों और सरकार के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए और इसका संघर्ष को लेकर अमेरिका के विचार पर असर पड़ा था. युद्ध के ख़िलाफ़ प्रदर्शन और उसके बाद वियतनाम में अमेरिका की हार ने ये सुनिश्चित किया कि अमेरिकी सेना 90 के दशक की शुरुआत में खाड़ी युद्ध से पहले तक किसी भी विदेशी ज़मीन पर युद्ध लड़ने के लिए नहीं गई. 

वांग ख़ास तौर पर ये चेतावनी देते हैं कि आधुनिक युद्ध छेड़ने वाली ताक़तें सबसे पहले किसी शासन व्यवस्था को अस्थिर करने के लिए लोगों के दिमाग़ में शक का बीज बोकर समाज को कमज़ोर करने की कोशिश करेंगी.

इसी तरह एक तानाशाही शासन व्यवस्था में अभिजात वर्ग और आम लोगों को सरकार के युद्ध अभियानों के समर्थन में बड़ी संख्या में उतरने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. 2022 में CPC के राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान ताइवान को लेकर शी जिनपिंग के इस दावे का ज़ोरदार स्वागत किया गया कि “चीन ताक़त के इस्तेमाल से परहेज नहीं करेगा और अलगाववादी आंदोलन पर रोक लगाने के लिए सभी क़दम उठाएगा.”

हालांकि चीन के अभिजात वर्ग और आम लोगों की आकांक्षाएं अलग-अलग हैं. शिक्षा जगत से जुड़े एडम वाई. लियू और शियाओजून ली “ताइवान के साथ (ग़ैर) शांतिपूर्ण एकीकरण के लिए लोगों के समर्थन का आकलन: चीन में राष्ट्रव्यापी सर्वे का प्रमाण” शीर्षक वाले दस्तावेज़ में लिखते हैं कि चीन के द्वारा ताइवान के सशस्त्र एकीकरण के लिए महज़ 55 प्रतिशत लोगों (ज़्यादातर शहरी) का समर्थन है. इसके अलावा सर्वे में शामिल चीन के लगभग 33 प्रतिशत लोग ताइवान के एकीकरण के लिए ताक़त के इस्तेमाल के पूरी तरह ख़िलाफ़ हैं. चीन के मेनलैंड में रहने वाले लगभग 57 प्रतिशत लोग आर्थिक प्रतिबंधों का समर्थन करते हैं जबकि 58 प्रतिशत लोग पूरी तरह संघर्ष से कम उपायों का समर्थन करते हैं. वहीं, लगभग 55 प्रतिशत लोग मौजूदा यथास्थिति को प्राथमिकता देते हैं. 

  आंकड़े को नज़दीकी पूर्ण अंक तक लिखा गया है

अब इस आंकड़े की तुलना 2022 में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ चेंगची, ताइवान में प्रकाशित एक पोल से कीजिए जिसमें चीन के आक्रमण के ख़िलाफ़ युद्ध की इच्छा रखने वाले ताइवान के लोगों की संख्या आश्चर्यजनक तौर पर 73 प्रतिशत थी. लगता है कि ताइवान के ज़बरदस्ती एकीकरण के पक्ष में लोगों का बेहद कम समर्थन ही चीन के द्वारा अपने लोगों को युद्ध के लिए तैयार करने के पीछे की वजह है. अभी अनुमान लगाना जल्दबाज़ी होगी लेकिन पिछले दिनों चीन में एक स्टैंड-अप कॉमिक के दौरान PLA का मज़ाक़ उड़ाने की घटना शी जिनपिंग के द्वारा युद्ध के लिए तैयारी के ख़िलाफ़ एक ख़ामोश नाराज़गी दिखाती है. 

चीन के सैन्य रणनीतिकारों ने इस तथ्य को भी शामिल किया हो सकता है कि, उसके लोगों को ज़बरदस्ती ताइवान का एकीकरण एक सही युद्ध की तरह देखना होगा. इसके अलावा चीन को ताइवान के साथ लंबे संघर्ष की स्थिति के लिए भी तैयारी करनी होगी. 

चीन के सैन्य रणनीतिकारों ने इस तथ्य को भी शामिल किया हो सकता है कि, उसके लोगों को ज़बरदस्ती ताइवान का एकीकरण एक सही युद्ध की तरह देखना होगा. इसके अलावा चीन को ताइवान के साथ लंबे संघर्ष की स्थिति के लिए भी तैयारी करनी होगी. चीन को नुक़सान होने की स्थिति में इस बात का डर है कि कोई विरोधी ताक़त संघर्ष को लेकर उसके लोगों में शक का बीज बो सकती है और इसका CPC की स्थिरता पर असर हो सकता है. शी जिनपिंग के मन में इस बात को लेकर काफ़ी बेचैनी होगी कि चीन के लोग उनके पक्ष में नहीं भी खड़े हो सकते हैं. इसका सबूत पिछले दिनों PLA और पीपुल्स आर्म्ड पुलिस फोर्स के सामने शी जिनपिंग के संबोधन से मिलता है जिसमें उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि एक तरफ़ शासन व्यवस्था एवं सशस्त्र बलों और दूसरी तरफ़ सेना एवं लोगों के बीच एकजुटता को मज़बूत किया जाए. इस तरह उन्होंने समाज के ज़रिए देश की रक्षा का समर्थन किया. 

अब फिर से क्षमता के संबंध में चीन के इरादे को लेकर असमंजस पर पहुंचते हैं. अगर चीन के सैन्य रणनीतिकारों को डर है कि विरोधी ताक़तें उसके लोगों के बीच असंतोष को बढ़ावा देने की कोशिश कर सकती हैं तो ये मान लेना सुरक्षित है कि वो ख़ुद भी इसी तरह की क्षमता का निर्माण कर रहे हैं. 2024 में भारत, अमेरिका और ताइवान में चुनाव होने हैं. ये चीन के लिए एक मौक़ा हो सकता है कि वो इन देशों में गड़बड़ी फैलाने के लिए दुष्प्रचार के तरीक़ों का इस्तेमाल करने की कोशिश करे.


कल्पित ए मणिक्कर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रेटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

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